
(सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को लेकर विवाद सामने आने के बाद गुजरात के संदेसरा ब्रदर्स एक बार फिर चर्चे में आ गए हैं। अस्थाना का न केवल संदेसरा की डायरी में नाम दिखा था बल्कि उनकी बेटी की शादी में उन्होंने अपना फार्म हाउस तक उन्हें मुहैया कराया था। गौरतलब है कि 6000 करोड़ रुपये के डिफाल्टर संदेसरा को जांच एजेंसियों ने भगोड़ा घोषित कर रखा है। संदेसरा का इतिहास और उनके कार्यों के भूगोल की पूरी एक श्रृंखला जनचौक पर प्रकाशित की जा रही है। पेश है उसकी पहली कड़ी-संपादक)
नई दिल्ली। गुजराती व्यवसायियों के अभिजात वर्ग में वडोदरा के संदेसरा हमेशा बाहरी आदमी ही बने रहे। 1980 के दशक की पहली पीढ़ी के उद्यमियों की नाजुक जमात का हिस्सा होने के नाते वे निरमा समूह के पटेल, टेक्सटाइल दिग्गज लालभाई, टोरेंट के मेहता या फिर रीयल इस्टेट लार्ड बकेरी जैसे गुजरात के पुराने उद्योगपतियों में कभी फिट नहीं बैठे। व्यवसायियों का एक समूह हर तरह से अपने सिंगिल मार्केट पर टिके रहने पर गर्व करता था और आम तौर पर पिता के बाद बेटे को अपना व्यवसाय ट्रांसफर कर देता था।
न ही संदेसरा की महत्वाकांक्षा चीजों को लागू करने की उनकी क्षमता का कभी मुकाबला कर पायी। बेहद शार्प और धारदार अंबानी या फिर मफतलाल परिवार की शार्क सरीखी बिजनेस मारक क्षमता उनसे अछूती रही।
इसकी बजाय उनकी उत्पत्ति गौतम अडानी की बढ़त से मेल खाती है। जब संदेसरा एकदम शुरुआत करने वाले थे तब वो एक छोटे व्यापारी के तौर पर व्यवसाय के आकाश में अपनी जगह तलाश रहे थे।
अडानी की तरह ही नितिन और चेतन संदेसरा भी नये उद्यमियों में थे जो बांबे से गुजरात एक फैले हुए और प्राय: नाकाम व्यवसायिक समूह को शुरू करने के लिए लौटे और जिनकी रुचि फार्मास्यूटिकल्स और इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर तेल और गैस के उत्पादन तक में थी।
बहुत सारे छोटे गुजराती व्यवसायियों के विपरीत वो ठाट-बाट की जिंदगी के ख्वाहिशमंद थे और इस बात को सुनिश्चित करना चाहते थे कि लोग उनको जाने। इसमें बॉलीवुड कनेक्शन, प्राइवेट जेट और सप्ताह के अंत की लंबी पार्टियों का एक बड़ा दायरा शामिल था।
अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर स्टर्लिंग बायोटेक के एक पूर्व सीनियर एक्जीक्यूटिव ने बताया कि ‘जब चेतन 100 करोड़ रुपये का एक गल्फस्ट्रीम जेट खरीदे तो उसकी कीमत की डींग हांकने के लिए उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर पत्रकारों को आमंत्रित किया। वो दूसरे व्यवसायियों पर अपना रुआब झाड़ना चाहते थे। और उनके जेट हासिल करने के ठीक एक साल बाद अडानी ने चैलेंजर खरीदा। कैडिला के पंकज पटेल उसके तकरीबन दो साल बाद इस काम को किए।’
एक दौर में वडोदरा के व्यवसायिक समुदाय के टोस्ट संदेसरा ब्रदर्स अब 5000 करोड़ रुपये के विलफुल डिफाल्टर हैं और आर्थिक भगोड़े घोषित कर दिए गए हैं। उनकी संपत्तियों को ईडी ने सील कर दिया है। व्यवसाय को बैंकों ने अपने हाथ में ले लिया है।बताया जा रहा है कि पिछले साल दोनों भाई दरबे से निकलकर नाईजीरिया भाग गए। जहां एक दौर के उनके समृद्ध तेल व्यवसाय का एक हिस्सा अभी भी बरकरार है।
हालांकि यही अकेली बात उन्हें एक ऐसे क्लब में शामिल कर देती है जिसके नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग सदस्य हैं। जांच एजेंसियों के वरिष्ठ अफसरों को कथित घूस और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल के परिवार के सदस्यों के साथ संपर्क उन्हें ढेर सारे परेशान करने वाले घोटालों के केंद्र में ला देता है जिनकी अभी तक उचित तरीके से जांच होनी बाकी है।
हालांकि मौजूदा समय में जो चीज उन्हें हॉट शीट पर बैठाती है वो केंद्रीय जांच ब्यूरो के अफसर राकेश अस्थाना के साथ उनका रिश्ता है- मामले की जानकारी रखने वाले कम से कम तीन लोगों ने दि वायर को उनकी दोस्ती के बारे में बताया जो अस्थाना के वडोदरा में पुलिस कमिश्नर रहने के दौरान परवान चढ़ी थी। गौरतलब है कि अस्थाना इस समय सीबीआई की साख के खतरे को लेकर पैदा तूफान के केंद्र में हैं।
जिलेटिन जब बना सोना
1980 के दशक में मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद संदेसरा ब्रदर्स कुछ समय के लिए इधर-उधर भटके। पहले प्लूटो एक्सपर्ट एंड कंसल्टेंट नाम की ट्रेडिंग फर्म के साथ फिर बाद में नार्थ-ईस्ट में कुछ बगानों की खरीद के जरिये भारत के चाय उद्योग में प्रवेश किया।
पहले कुछ सालों में जब कुछ काम करता हुआ नहीं दिखा तब उन्होंने 1990 के दशक में सौभाग्य से फार्मा-ग्रेड जिलेटिन के निर्माण के जरिये सोने की खान पर छापा मारा। ये एक रंगविहीन पदार्थ होता है जो बाद में क्रिस्टल की तरह के कड़े गुच्छे में बदल जाता है।
उनकी योजना की प्रतिभा को समझने में उस समय कोई एक सेकेंड का समय लेता। फार्मा-ग्रेड जिलेटिन तकरीबन हर आखिरी उत्पाद में जेलिंग एजेंट के तौर पर इस्तेमाल होती है जो उस समय भारत के उभरते जेनेरिक उद्योग की जरूरत बन गयी थी: हार्ड कैप्सूल, सॉफ्ट कैपसूल और यहां तक कि गैर कप्सूलों को बांधने में भी उनका इस्तेमाल होता था।
मांग के बावजूद भारत की कोई भी बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनी उस समय इसको बनाना नहीं चाहती थी। क्यों? एक कारण ये था कि जेनेरिक मेडिसिन बनाने में ही बहुत लाभ था। लेकिन एक दूसरी वजह जिसके बारे में बहुत कम बात होती है ये थी कि जिलेटिन बनाने के लिए जिन प्राथमिक चीजों की जरूरत पड़ती है उनमें जानवरों की हड्डियां शामिल हैं। जो आमतौर पर पहले से मरी भैसों की होती थीं। ज्यादातर परंपरागत गुजराती व्यवसायियों के लिए तो ये बिल्कुल कड़ाई से न था।
दूसरी तरफ संदेसरा के लिए ये एक अवसर था। स्टर्लिंग बायोटेक पैदा हो गया। जैसा कि बजाज कैपिटल में एक मार्केट विश्लेषक अभिषेक गुप्ता ने कंपनी के बिजनेस माडल पर 2008 में लिखा था कि ‘जिलेटिन उत्पादन के लिए प्राथमिक कच्चा पदार्थ भैंसों की हड्डियां, चूना और हाइड्रोक्लोरिक एसिड (एचसीएल) की जरूरत पड़ती है। भारत के भैंस मीट का सबसे बड़ा निर्यातक होने के चलते ये कच्चा माल यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। प्रतियोगी पदार्थ की कीमतों ने स्टर्लिंग को वैश्विक स्तर पर सबसे कम कीमत वाले जिलेटिन उत्पादक बनने की क्षमता प्रदान कर दी।100 फीसद से ज्यादा क्षमता के इस्तेमाल ने स्टर्लिंग को प्रतियोगियों के मुकाबले अलग कीमत का लाभ मुहैया कराने की इजाजत दे दी।’
भाइयों ने 1990 के दशक के मध्य में काराखड़ी जिले में अपनी पहली जिलेटिन उत्पादन की फैक्टरी लगायी। जो वडोदरा के बाहर तकरीबन 35 किमी दूरी पर थी। और उनके भीमकाय अंपड विलेज फार्महाउस जिसे अभी बनना था, से तकरीबन 20 किमी दूर। उसके बाद फिर दोनों भाई कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे।
संदेसरा के काराखाड़ी में शॉप खोलने के तकरीबन एक दशक तक फार्मा व्यवसाय में उन्होंने अच्छी प्रगति की। जिसमें तकरीबन 1000 करोड़ रुपये की आय हुई जिसकी मार्केट में 4000 करोड़ कीमत थी। घरेलू बाजार के 85 फीसदी हिस्से पर कब्जा था और वैश्विक बाजार में उसकी 6 फीसदी की हिस्सेदारी थी। और इसके साथ ही वो दुनिया के पांच जिलेटिन उत्पादकों में शुमार था।
अपनी शुरुआती सफलता के बाद भाइयों ने उसे जल्द ही फैलाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया। 2003 के बाद से शुरू होने वाले वाइब्रैंट गुजरात की समिट के साथ दूसरे व्यवसायों की घोषणा होती रही- जिसमें सबसे महत्वपूर्ण दाहेज बंदरगाह पर ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट की सुविधा और जंबुसार में एक स्पेशल इकोनामिक जोन प्रोजेक्ट था।
ये दोनों प्रोजेक्ट बुरी तरह से फेल हुए। साथ ही उन्हें सैकड़ों करोड़ रुपये के कर्ज में डुबो दिए। इस साल की शुरुआत में दाहेज और जंबुसार में निवेश करने वाली कंपनियों के समूह के उधार देने वाले लोग दिवालिया घोषित करने की कार्रवाई के तहत उन्हें नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के सामने ले गए हैं।