एम्स दरभंगा : वादा नौ साल पहले का था, अब हुआ शिलान्यास

Estimated read time 1 min read

आख़िरकार जिस एम्स की आस लगाये मिथिलांचल सहित बिहार की जनता को 9 वर्ष बीत चुके थे, ऐसा जान पड़ता है कि बिहार विधानसभा उपचुनाव की 4 सीटों और झारखंड विधानसभा के पहले चरण की वोटिंग के मौके पर इसका शिलान्यास शायद सत्तारूढ़ दल के लिए सबसे सही मौका जान पड़ा।

लेकिन प्रधानमंत्री तो उसी एम्स अस्पताल का शिलान्यास करने 13 नवंबर को पहुंच गये, जिसे उन्होंने पिछले वर्ष अपनी उपलब्धियों में गिनवा दिया था? क्या यह कोई दूसरा एम्स है, जिसे दरभंगा जिले के लिए उमड़े विशेष प्यार की वजह से केंद्र सरकार ने निर्माण करने का फैसला लिया है?

जी नहीं। हकीकत तो यह है कि पिछले 9 वर्षों से एम्स के नाम पर सिर्फ हवा-हवाई बातें हो रही थीं, और 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री, स्वर्गीय अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में एम्स दरभंगा के लिए जो प्रावधान किया था, वह फ़ाइल इन 9 वर्षों के दौरान राज्य से केंद्र और केंद्र से राज्य के बीच में झूल रही थी।

पिछले वर्ष 12 अगस्त 2023 को पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल में पंचायती राज परिषद को संबोधित करते हुए दावा किया था कि दरभंगा में एम्स को इस योजना के तहत खोला गया है, ताकि लोगों को इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर न जाना पड़े। 

यह इतना बड़ा झूठ था कि यह खबर सोशल मीडिया में कई दिनों तक सुर्ख़ियों में बना रहा। इसमें सबसे प्रमुख भूमिका निभाई यूट्यूबर्स ने, जिन्होंने एम्स दरभंगा के प्रस्तावित साईट पर जाकर लाइव वीडियो बनाकर दिखाया कि किस प्रकार जिस एम्स में पीएम मोदी के अनुसार हजारों मरीजों का रोज इलाज हो रहा है, वहां पर खेतों में पानी लगा है या तालाब नजर आ रहा है। 

शायद यह पहला मौका था, जब प्रधानमंत्री का बोला गया झूठ इतनी बुरी तरह औंधे मुंह गिरा था। कई लोग प्रस्तावित एम्स दरभंगा की साईट पर जाकर अपनी सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर टैग करने लगे। आज भी यदि कोई X पर एम्स दरभंगा सर्च करेगा तो उसमें इस घटना को लेकर सैकड़ों मीम्स मिल जायेंगे। 

‘बिहार के लिए इतने हजार करोड़ दूं, या इतने हजार करोड़ दूं’ के जुमले बिहार के लोगों को आज भी भुलाए नहीं भूलते। इसलिए, जब 2015 में केंद्रीय बजट की घोषणा के बावजूद वर्षों तक इस बारे में कोई प्रगति नहीं हुई तो मिथिलांचल के छात्रों ने इसके लिए एक अनूठे आंदोलन तक की शुरुआत की थी।

असल में, 2015 की घोषणा के साथ 2019 लोकसभा चुनावों में भी एम्स दरभंगा के नाम पर बीजेपी वोट मांग चुकी थी। उधर पड़ोसी राज्य झारखंड में, जून 2016 में एम्स देवघर के प्रस्ताव को मंजूरी मिली और अगले चार वर्ष के भीतर 2019 में एम्स देवघर बनकर तैयार भी हो गया।  

लेकिन एम्स दरभंगा की फाइल केंद्र और नितीश कुमार की खींचतान में ही उलझी रही और केंद्र की ओर से कई बार पत्राचार के बाद भी राज्य सरकार अस्पताल के लिए आवश्यक भूमि का प्रस्ताव भेज पाने में असफल रही। 

अगस्त 2021 में मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने दरभंगा में एम्स की स्थापना के लिए एक अनोखे आंदोलन की भी शरूआत की थी। इसके लिए 1 अगस्त 2021 से दरभंगा और मधुबनी से सैकड़ों छात्र गांव-गांव घूमकर हर घर से एक ईंट की मांग करने लगे थे। यह आंदोलन ठीक राम जन्मभूमि की तर्ज पर शुरू किया गया था, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश ही नहीं विदेशों में जाकर भी अपने सरकार की उपलब्धियों को कई गुना बढ़ा चढ़ाकर पेश करते देखे गये। 

एम्स दरभंगा का भले ही कल शिला पूजन के साथ शुरुआत हुई हो, लेकिन कागजों पर एम्स बखूबी चल रहा है। इस अस्पताल के लिए कार्यकारी निदेशक के तौर पर डॉ माधवानंद कर की नियुक्ति पहले से हो रखी है, जिनके पास एम्स जोधपुर का भी अतिरिक्त कार्यभार है।

फिलहाल इनके निर्देशन में पीएम मोदी के स्वास्थ्य संबंधी ट्वीट के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय और योग दिवस पर संदेशों को रि-ट्वीट करने का ही कार्यभार है, क्योंकि अभी तो एम्स की स्थापना में कम से कम 3 वर्ष लगने वाले हैं।

प्रधानमंत्री के भाषणों में अक्सर सुनने को मिल जाता है कि उनसे पूर्व कांग्रेस की सरकारों में सिर्फ 1 एम्स, दिल्ली ही 60 वर्ष में बन सका। और 2010 के बाद मात्र 6 नए एम्स अस्पताल बनाये जा सके थे, जबकि पिछले दस वर्षों के मोदी काल में यह संख्या बढ़कर दो दर्जन तक पहुंच गई है।

लेकिन वास्तविकता यह है कि 2014 में मोदी के सत्ता में आने से पहले तक वर्ष 2013 में देश में एम्स दिल्ली के अलावा, एम्स ऋषिकेश, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, भोपाल, रायपुर और रायबरेली में एम्स अस्पताल ऑपरेशनल हो चुके थे।

इन 8 एम्स अस्पतालों के अलावा जिन बाकी के 11 एम्स अस्पतालों के निर्माण का दावा किया जा रहा है, उनकी एनआईआरऍफ़ रैंकिंग का कोई अता-पता ही नहीं है। 

फिलहाल, मिथिलांचल में एम्स अस्पताल के शिलान्यास की खबर से दरभंगा सहित उत्तरी बिहार में जश्न का माहौल नजर आता है। लेकिन इसके साथ ही आम लोग यह सवाल जरुर उठा रहे हैं कि जिस एम्स के लिए 9 वर्ष पहले बजट में मंजूरी मिल गई थी, क्या वह वाकई में अगले 3 वर्षों के भीतर बनकर तैयार हो जायेगा?

1,264 करोड़ रूपये की लागत से बनने वाले एम्स दरभंगा में 750 बिस्तर की सुविधा मुहैया की जानी है। इसके लिए 2.25 लाख वर्ग मीटर भूमि का अधिग्रहण अभी करना बाकी है। बिहार के स्थानीय मीडिया के हवाले से बता दें कि अभी जिस भूमि का अधिग्रहण किया गया है, उसके लगभग 250 किसानों को अपनी खेती योग्य भूमि का मुआवजा तक नहीं मिल पाया है।

एक किसान ने इस बारे में बताया कि उसकी ढाई बीघा जमीन को प्रशासन ने अधिग्रहित कर लिया है। खेती चले जाने से उसके पास रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है। उसका साफ़ कहना था कि अयोध्या से सीख लेकर सरकार को तत्काल प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

शिलान्यास के साथ फिलहाल मिथिलांचल के लोगों को यह आस तो बंध गई है कि आज नहीं तो 5-10 साल बाद तो उनके इलाके में भी एम्स अस्पताल का निर्माण हो ही जायेगा, लेकिन वे शायद ये नहीं जानते कि एम्स दिल्ली की तुलना में बाकी एम्स अस्पतालों में डॉक्टर और आवश्यक चिकित्सा सुविधा और अत्याधुनिक मशीनरी की स्थिति क्या है।

देश में ऐसे सैकड़ों अस्पताल मौजूद हैं, जहां पर भवन निर्माण और उद्घाटन तो हो चुका है, लेकिन आवश्यक इंस्ट्रूमेंट और डॉक्टर एवं नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति के अभाव में वर्षों से ये अस्पताल खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। 

चुनावी फसल को काटने के लिए शिलान्यास, भवन का उद्घाटन करना जितना आसान है, किसी छोटे शहर में अस्पताल के संचालन के लिए स्थायी डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति, स्पेशलिस्ट विभाग और अत्याधुनिक साजो-सामान से लैस अस्पताल को नियमित रूप से संचालन के लिए आवश्यक फंड का राज्य या केंद्र सरकार के पास कोई योजना ही नहीं होती। 

यही कारण है कि देश में कम आय वर्ग के करोड़ों लोगों को आयुष्मान कार्ड तो बांट दिए गये हैं, जिसमें अब 70 वर्ष या उससे अधिक उम्र के सभी आय वर्ग के लोगों को भी शामिल कर लिया गया है, लेकिन इन कार्डधारकों को प्राइवेट अस्पतालों या नर्सिंग होम में अक्सर ठगा जाता है। 

कई बार इमरजेंसी की स्थिति में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा आयुष्मान कार्ड को ख़ारिज कर देने की स्थिति में मरीज को अपनी जेब से लाखों रूपये का बिल भरना पड़ता है। ये अस्पताल किस प्रकार लूट का अड्डा बन चुके हैं, इसे अब देश में अधिकांश ग्रामीण भारत समझने लगा है। 

उम्मीद की जानी चाहिए कि 13 नवंबर 2024 को जिस स्थान पर एम्स दरभंगा अस्पताल की नींव रखी गई है, वह अगले तीन वर्षों में बनकर तैयार हो जाये।

और जल्द ही इसके लिए सरकार स्थायी रूप से पर्याप्त संख्या में डॉक्टर्स और अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का भी उसी मुस्तैदी के साथ इंतजाम करे, जिस मुस्तैदी से वह पिछले कई वर्षों से इसे अपने चुनावी प्रचार के लिए इस्तेमाल में ला रही है।

कल मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने के लिए आगे बढ़े हाथों को थामने के बजाय पैरों पर गिरने का जो दृश्य उपस्थित किया, वह बिहार के लिए बेहद शर्मसार करने वाला दृश्य था।

यह साफ़ दर्शाता है कि इलाज की जरूरत सिर्फ बिहार की गरीब गुरबा आबादी को ही नहीं है, बल्कि इसके नीति-नियंताओं को सबसे पहले इसकी दरकार है। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author