Saturday, April 27, 2024

‘समान नागरिक संहिता’ को मायावती का समर्थन, पंजाब में अकाली-बसपा गठबंधन टूटना तय

‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने समर्थन कर दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुद इसकी घोषणा की और लखनऊ में पत्रकार वार्ता में कहा कि बसपा यूसीसी लागू करने के खिलाफ नहीं है। बयान मायावती ने लखनऊ में दिया लेकिन तत्काल हड़कंप पंजाब में मच गया। गौरतलब है कि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी का गठजोड़ है। जालंधर लोकसभा उपचुनाव दोनों ने मिलकर लड़ा था। हालांकि मायावती प्रचार के लिए नहीं आईं थीं। आतीं तो गठबंधन को मिलने वाले मतों में थोड़ा इजाफा तय था। अतीत में यह सब होता रहा है।

पंजाब कांशीराम का मजबूत गढ़ रहा है। बसपा का यहां बकायदा कैडर है। अनेक विधानसभा क्षेत्रों में बसपा समर्थकों के वोट निर्णायक साबित होते हैं। खैर, ‘समान नागरिक संहिता’ पर भाजपा का खुला समर्थन करके बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है कि वह गठजोड़ के अपने साथियों की रत्ती भर भी परवाह नहीं करतीं। सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल से बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन है। शिरोमणि अकाली दल यूसीसी का कड़ा विरोध कर रही है और इसके खिलाफ सड़कों पर आकर आंदोलन करने की चेतावनी दे रही है। यानी इस मुद्दे पर फिलवक्त उसके तेवर खासे तीखे हैं।

बीते दिनों ‘समान नागरिक संहिता’ का केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन के जरिए आंदोलन करने के लिए शिअद की एक अहम बैठक हुई थी और उसमें बसपा की राज्य लीडरशिप ने भी शिरकत की थी और साफ कहा था कि ‘समान नागरिक संहिता’ के विरोध में उनकी पार्टी गठबंधन साथी अकालियों के साथ है। सर्वविदित है कि मायावती से पूछे बगैर उनकी पार्टी का कोई भी नेता किसी तरह का बयान नहीं देता, फैसला लेना तो दूर की बात है।

यह अपने आप में गहरा रहस्य है कि कुछ दिन पहले तक बसपा सुप्रीमो मायावती यूसीसी पर खामोश थीं। यूपी में वह खुद को मुसलमानों का संरक्षक मानती-कहती हैं। माना जा रहा था कि वह मुस्लिम हितों के मद्देनजर यूसीसी का विरोध करेगीं लेकिन हुआ बिल्कुल उलट। मायावती के यूसीसी की यूं खुली हिमायत के बाद मुसलमान तो ठगा हुआ महसूस कर ही रहे हैं, बसपा की पंजाब इकाई भी गहरे असमंजस में है।

जबकि बसपा की पंजाब इकाई का यूसीसी खिलाफत में शिरोमणि अकाली दल को खुला समर्थन था। यानी मायावती का रुख ‘समान नागरिक संहिता’ के खिलाफ था। लेकिन एकाएक उन्होंने पाला बदल लिया। अब यकीनन पंजाब में अकाली-बसपा गठबंधन खतरे में है। मायावती अगर अपने स्टैंड पर कायम रहती हैं तो अकाली-बसपा गठबंधन टूट जाएगा। यह किसी भी वक्त हो सकता है। शिरोमणि अकाली दल का मानना है कि यूसीसी दरअसल जबरन थोपा जा रहा है और यह सरासर अल्पसंख्यक विरोधी है।

इसके लागू होते ही शिरोमणि ‘गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ (एसजीपीसी) और श्री अकाल तख्त साहिब के कुछ संवैधानिक अधिकारों में तत्काल कटौती हो जाएगी। दोनों, सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्थाएं हैं। जिस मानिंद भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जमीन पर खड़ी है; ठीक उसी तरह शिरोमणि अकाली दल एसीपीसी के सहारे (संसाधन जुटाकर) सियासत करता है। यूसीसी लागू होने के बाद ‘एससीपीसी’ और ‘श्री अकाल तख्त साहिब’ की पूर्व में संविधान प्रदत्त कुछ शक्तियां खत्म कर दी जाएंगी तो सीधा असर पंथक सियासत पर पड़ेगा। शिरोमणि अकाली दल कमजोर होगा।

पंजाब में समान नागरिक संहिता का कड़ा विरोध जारी है। कुछ अन्य संगठन भी आगे आए हैं। कांग्रेस पहले दिन से ही मुखालफत में है। सुखबीर बादल की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल को बहुजन समाज पार्टी के साथ का गहरा भरोसा था लेकिन मायावती ने लखनऊ में इस पर पानी फेर दिया। अब तय है कि शिरोमणि अकाली दल को UCC के खिलाफ लड़ाई अकेले लड़नी होगी और अकाली-बसपा गठबंधन किसी भी वक्त टूट सकता है।

अचानक हालात ऐसे बन गए हैं कि ‘समान नागरिक संहिता’ की खिलाफत के मद्देनजर शिरोमणि अकाली दल चाह कर भी भाजपा से गठजोड़ फिलहाल तो नहीं कर सकता। पार्टी हाशिए पर है और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के बाद यह राजनीतिक रूप से लावारिस हो गई है। UCC पर शिरोमणि अकाली दल का स्टैंड बरकरार है। सिख मैरिज एक्ट और सिखों की काली सूची सहित कई मसले केंद्र के यहां लंबित हैं। शिअद इस हैसियत में भी नहीं कि वह केंद्र सरकार पर इस बाबत कोई दबाव बना सके।

जगजाहिर तथ्य है कि शिरोमणि अकाली दल अपने तईं पंजाब में तमाम विधानसभा क्षेत्रों में अपने बूते पर चुनाव लड़ सके अथवा जीत के करीब आ सके। अभी तक भाजपा का सहारा था। भाजपा का शहरी हिंदू वोट और संगठनात्मक ढांचा शिरोमणि अकाली दल की जीत के लिए दिन-रात एक कर देता था। संघ का कैडर भी अपनी पूरी ताकत लगाता था और इसी से शिअद और गठबंधन को सत्ता हासिल होती थी।

लेकिन अब आलम बदल गया है। पिछले दिनों प्रयास थे कि अकाली-भाजपा गठजोड़ एकबारगी फिर वजूद में आएगा और पंजाब में उसका प्रदर्शन पहले से बेहतर होगा। सूबे के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके साथी तथा पूर्व पंजाब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ अब भाजपा में हैं। जाखड़ की बाबत सरगोशियां हैं कि उन्हें पंजाब भाजपा का प्रधान बनाया जा सकता है।

सार्वजनिक बयानबाजियों से इत्तर सुनील कुमार जाखड़, कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखबीर सिंह बादल तथा बिक्रमजीत सिंह मजीठिया मानते हैं कि ‘समान नागरिक संहिता’ का मसला बीच में नहीं आता तो भाजपा के साथ शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन तय था। अकाली दल खुद को ‘अल्पसंख्यक सिखों’ का प्रवक्ता और अभिभावक मानता है। अब उसकी यह भूमिका भी खतरे में पड़ेगी। बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद शिरोमणि अकाली दल सियासी तौर पर ‘अल्पसंख्यक’ हो जाएगी!

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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