देश इन दिनों दो बड़ी आपदाओं से जूझ रहा है। एक ओर ताउते का आकस्मिक विनाशकारी आगमन और दूसरा कोराना की ख़तरनाक दूसरी लहर के बीच लाखों लोगों का दुनिया से विदा होते जाना। इस मातमी हालात में हाल में पूर्ण बहुमत से बनी बंगाल सरकार को उखाड़ फेंकने के जो उपक्रम चल रहे हैं वे अशोभनीय हैं। पहले बंगाल चुनाव बाद हिंसा को आधार बनाने की पुरज़ोर कोशिश हुई । यहां तक कि महामहिम राज्यपाल ने भी अपना कथित फ़र्ज निभाते हुए हिंसा पीड़ितों से बड़ी जद्दोजहद के बीच मिलने मिलाने की रस्म पूरी की। यहां उनका दांव उल्टा पड़ा। उनका जनता ने भरपूर विरोध किया जिससे उनके अंदर की आग और भड़क गई । फलस्वरूप उन्होंने एक पुराने मामले को हरी झंडी देकर सरकार को हिला दिया।मामला नारद न्यूज़ पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल के 2014 में कथित स्टिंग ऑपरेशन का था जिसमें तृणमूल कांग्रेस के मंत्री, सांसद और विधायक लाभ के बदले में एक काल्पनिक कंपनी के प्रतिनिधियों से कथित तौर पर धन लेते नजर आए थे । 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारद स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो जारी किया गया था। मार्च, 2017 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने स्टिंग ऑपरेशन की सीबीआई जांच का आदेश दिया।
ईडी ने आरोपितों के खिलाफ मनी लॉड्रिंग का मामला भी दर्ज किया था। नवंबर 2020 में ईडी ने नारद स्टिंग ऑपरेशन में पूछताछ के लिए तीन टीएमसी नेताओं मंत्री फिरहाद हकीम, सांसद प्रसून बंदोपाध्याय और पूर्व मंत्री मदन मित्रा को नोटिस भेजकर आय और व्यय का हिसाब मांगे थे। इस मामले में सीबीआई ने 14 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था। इनमें मदन मित्रा, मुकुल रॉय (अब भाजपा में), सौगत रॉय, सुलतान अहमद (2017 में निधन), इकबाल अहमद, काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बंदोपाध्याय, सुवेंदु अधिकारी (अब भाजपा में), शोभन चटर्जी ( अब भाजपा छोड़ी), सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हकीम, अपरूपा पोद्दार, आईपीएस अधिकारी सैयद हुसैन मिर्जा तथा कुछ अज्ञात लोगों का नाम शामिल था।
आज जो हुआ वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ताबूत में कील ठोकने के मानिंद है। नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने ममता सरकार के दो मंत्री समेत चार नेताओं को गिरफ्तार किया है। इनमें मंत्री सुब्रत मुखर्जी फिरहाद हकीम विधायक मदन मित्रा व पूर्व विधायक तथा कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी शामिल हैं । सबसे बड़ी बात तो ये है इस मामले में मुकुल राय और सुभेंदु अधिकारी भी शामिल थे लेकिन उनको छोड़ दिया गया । चूंकि वे अब बेदाग हो चुके हैं भाजपा में पहुंच कर। शुभेंदु तो इस वक्त बंगाल सरकार में प्रतिपक्ष नेता हैं और राज्यसभा सदस्य मुकुल राय अब विधायक भाजपा से हैं। जबकि इनके बारे में स्टिंग ऑपरेशन करने वाले मैथ्यू सैमुअल ने ख़ुदबखुद अपना वीडियो जारी कर बताया था कि इन दोनों को भी उसने धनराशि दी है ।सभी पर कार्रवाई होनी चाहिए।
बेशक,कार्रवाई होनी चाहिए यह तो सभी चाहते हैं पर यह इकतरफा सीबीआई का कृत्य कटु आलोचना का विषय बन गया है। ममता भी जो इस वक्त कोरोना से लड़ने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्धता से जुट गई थीं। राज्य में लॉकडाउन की व्यवस्था पर नज़र रखें थीं उन्हें भी इस घटना ने उद्वेलित कर दिया।घरों में कैद लोग सड़कों पर उतर आए हैं वे सीबीआई कार्यालय पर पथराव कर रहे थे। हर तरफ विरोध प्रदर्शन की तैयारी चल रही है। ममता ने भी इस कार्रवाई से आक्रोशित होकर सीबीआई दफ्तर जाकर अपनी भी गिरफ्तारी की मांग की और धरने बैठ गईं । स्थिति को काबू में करने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने हल्का लाठीचार्ज भी किया। इस बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने ट्वीट करके मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कानून व्यवस्था को नियंत्रित रखने की नसीहत दी है। देर शाम सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी चारों आरोपियों को जमानत दे दी।
इधर राज्य विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अनुमोदन को भी गैरकानूनी करार दिया। राज्य के तीन विधायकों फिरहाद हकीम सुब्रत मुखर्जी व मदन मित्रा की गिरफ्तारी पर बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष ने कहा कि सीबीआई ने उनकी अनुमति के बिना ही यह कार्रवाई की है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बिना कोई नोटिस दिए उनके नेताओं को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया। यह सब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के इशारे पर हुआ ।सीबीआई की टीम इन नेताओं के घर पर गई। सीबीआई के साथ केंद्रीय बल के जवान भी थे और इन लोगों को सीबीआई के अधिकारी निजाम पैलेस ले आए। इसके बाद इन्हें कोलकाता के बैंकशाल कोर्ट स्थित नगर दायरा अदालत में वर्चुअली पेश किया गया, जहां उन्हें शाम को जमानत मिल गई। हालांकि सीबीआई की ओर से इन नेताओं को प्रभावशाली बताकर जमानत का विरोध भी किया गया तथा जेल हिरासत की मांग की गई। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। अब सीबीआई हाई कोर्ट जाने पर विचार कर रही है। तृणमूल की ओर से अधिवक्ता कल्याण बनर्जी की दलील थी कि जब इनके खिलाफ चार्जशीट पेश कर दिया गया है तो हिरासत में लेने का कोई मतलब ही नहीं है। बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि सीबीआई दफ्तर के बाहर पत्थरबाजी की गई, लेकिन कोलकाता पुलिस, बंगाल पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कानून तोड़ने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई।
ये सच है कि बंगाल में उठे इस राजनैतिक तूफ़ान ने यह तो जता ही दिया कि भाजपा को मिली करारी हार के बाद इस तरह की गतिविधियां बढ़ेंगी ही। यदि इस आपरेशन में शामिल सभी लोगों पर कार्रवाई होगी तो वह महत्वपूर्ण होगी और यदि भाजपा में शामिल हुए कथित अपराधियों को बचाया गया तो यह तूफान बंगाल को बर्बादी की ओर ले जाएगा। अराजकता तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ बढ़ता विरोध, सड़कों पर उतरी भीड़ कोरोना को भी बढ़ाएगी । सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में पहल कर संज्ञान लेने की ज़रूरत है क्योंकि बंगाल की जीत को नेस्तनाबूद करने वाले लोगों में जब राज्यपाल भी केन्द्रीय सरकार के इशारे पर काम कर रहे हों तो कानून ही लोकतंत्र को हत्या के प्रयास करने वालों से बचा सकता है।
(सुसंस्कृति परिहार स्तंभकार हैं।)