अज़ब इत्तेफ़ाक है कि 2019 की ‘आंधी’ में 303 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 2024 में एक ओर तो अपने उम्मीदवार घटा दिये और दूसरी ओर ख़ुद के लिए 370 तथा एनडीए के लिए 400 पार का नारा गढ़ लिया। अबकी बार ‘आएगा तो मोदी ही’ जैसा नारा भी नहीं सुनाई दिया। उल्टा ‘सत्ता विरोधी लहर’ का अंडर-करेंट लगातार मज़बूत ही होता चला गया। इसीलिए समर्थकों का आत्मविश्वास बढ़ाने की ख़ातिर उछाला गया ‘400 पार’ का नारा जनता को पहले दिन से ही फ़रेबी लगा।
स्ट्राइक रेट की महिमा
2024 में बीजेपी 370 सीटें जीतने के लिए 431 सीटें लड़ रही है। 2019 में उसके 437 उम्मीदवार थे। इनमें से 303 जीते थे। 2019 की ‘आंधी’ में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 69% था। अबकी 370 सीटों के लिए उसे 86% स्ट्राइक रेट चाहिए। पिछली लोकसभा में सहयोगी दलों की 33 सीटों समेत एनडीए के 336 सांसद थे। अबकी एनडीए को ‘400 पार’ करने के लिए बीजेपी ने सहयोगी दलों से सिर्फ़ 30 सीटों की अपेक्षा की है, जो 2019 के उनके प्रदर्शन के मुक़ाबले 10 प्रतिशत कम है। जबकि बीजेपी ने अपने लिए 25% ज़्यादा सीटों और 17% ज़्यादा स्ट्राइक रेट का लक्ष्य रखा है।
बीजेपी ने 30 सीटें जीतने के लिए सहयोगी दलों को 109 सीटें दी हैं। इसके लिए महज 27% स्ट्राइक रेट पर्याप्त होगा। अब ज़रा सोचिए कि तीसरी बार मोदी सरकार बनाने के लिए क्या बीजेपी और एनडीए एक ही नाव पर सवार नहीं हैं? इस सवाल का जवाब यदि ‘हां’ है तो ये कैसे मुमकिन है कि एनडीए की नैया के खेवनहार मोदीजी से सहयोगियों को 27% स्ट्राइक रेट मिले और बीजेपी के उम्मीदवारों को उनसे 3.2 गुना ज़्यादा यानी 86% स्ट्राइक रेट मिल जाए!
‘370 और 400 पार’ की खुली पोल
स्ट्राइक रेट की महिमा ‘370 और 400 पार’ के दावों की पोल खोल देती है। यदि सहयोगियों की तरह बीजेपी का स्ट्राइक रेट भी 27-28 प्रतिशत रहे तो उसे 116 से लेकर 120 सीटें ही मिलेंगी। इसमें सहयोगियों की 30 सीटें जुड़ेंगी तो एनडीए 150 सीटों पर सिमट जाएगी। इसी तरह, सहयोगियों को 86% स्ट्राइक रेट मिल जाए तो वो अपनी 109 में से 94 सीटें बटोर लेंगी और एनडीए की सीटें 464 हो जाएगी। ये तो ‘400 पार’ से भी 16% ज़्यादा है। इसीलिए ‘370 और 400 पार’ महज भ्रम है।
इसी तरह, सत्ता विरोधी लहर के बावजूद यदि बीजेपी 35% स्ट्राइक रेट हासिल कर ले तो उसकी सीटें 150 होंगी और एनडीए 188 पर सिमट जाएगी। स्ट्राइक रेट 40 प्रतिशत हो तो बीजेपी 172 तथा एनडीए 202 पर पहुंचेगी। यदि स्ट्राइक रेट 45% रहा तो भी बीजेपी का कारवां 194 पर और एनडीए 224 पर थम जाएगी। स्ट्राइक रेट 50% रहा तो बीजेपी की 215 सीट होंगी और एनडीए 245 तक पहुंचेगा। ऐसे आंकड़े भी मोदी सरकार को सत्ता में नहीं लौटा सकते।
अति-आत्मविश्वास का दांव
बीजेपी को काफ़ी पहले दिख गया था कि वो 2019 वाले 69% स्ट्राइक रेट को फिर नहीं छू पाएगी। क्योंकि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘इंडिया’ के गठन से ही सत्ता विरोधी लहर उफान पर थी। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से भी जब उफान थमा नहीं तो ‘इंडिया शाइनिंग’ वाले अति-आत्मविश्वास का दांव खेला गया और ‘370 तथा 400 पार’ का जुमला अखाड़े में फेंक दिया गया।
‘ऑपरेशन टिकट’
सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए ही बीजेपी ने अपने 112 मौजूदा सांसदों यानी 37% के टिकट काट दिये, क्योंकि इनका हारना तय था। बीजेपी ने हिसाब लगाया कि 303 में से 140 यानी क़रीब 47% मौजूदा सांसद ही ऐसे हैं जो 2019 में एक लाख से ज़्यादा वोट से जीते थे और शायद फिर जीत जाएं। बाक़ी 50 हज़ार से कम के अन्तर से जीते क़रीब 40 सांसदों का टिकट कट गया, 5 की सीट बदली और 3 मौजूदा सांसदों की सीट सहयोगी दलों को देनी पड़ी। 2019 में जीते 12 सांसद अब विधायक हैं तो 9 चेहरे विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा टिकट से भी वंचित रहे।
जिताऊ उम्मीदवारों की किल्लत
कुलमिलाकर, 167 यानी 55% मौजूदा सांसद ही फिर से टिकट पा सके। बाक़ी 264 चेहरे नये हैं। टिकट बांटते वक़्त बीजेपी जानती थी कि उसके 45% मौजूदा सांसद फिर जीतने लायक नहीं रहे। ‘ऑपरेशन टिकट’ से बीजेपी को जिताऊ उम्मीदवारों की ऐसी किल्लत हुई कि उसे दूसरी पार्टियों से आयातित 116 यानी 27 प्रतिशत ‘भ्रष्टाचारी’ तथा ‘दलबदलुओं’ को भी टिकट देना पड़ा। इनमें कांग्रेस के 37, बीआरएस के 9, बीएसपी के 8, टीएमसी के 7 और बीजेडी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी और अन्ना द्रमुक के 6-6 नेता शामिल हैं।
शिगूफ़ा और ‘चमत्कार’
अति-आत्मविश्वास वाले दांव के तहत ही अबकी बार ये ढोल पीटा गया कि बीजेपी हर बूथ पर पहले से 370 मत ज़्यादा लाएंगी क्योंकि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने का ‘चमत्कार’ किया है। हालांकि, ये दावा भी किसी शिगूफ़ा से कम नहीं है, क्योंकि कश्मीर घाटी की तीन सीटों पर तो बीजेपी ने उम्मीदवार ही नहीं उतारे। दूसरी ओर, देश में 10.5 लाख से ज़्यादा पोलिंग बूथ हैं। इनमें 370 मत प्रति बूथ बढ़ने का ‘चमत्कार’ हो जाए तो बीजेपी के 39 करोड़ वोट बढ़ जाएंगे।
‘मुंगेरी सपने’
देश में अभी क़रीब 98 करोड़ मतदाता हैं। 2019 में ये क़रीब 90 करोड़ थे। तब बीजेपी को 37 प्रतिशत यानी 33.4 करोड़ मत मिले थे। इस बार 98 करोड़ में से औसतन 66 प्रतिशत यानी 67 करोड़ लोगों ने मतदान किया। ज़रा सोचिए कि 2019 की मोदी लहर में 33.4 करोड़ वोट पाने वाली बीजेपी क्या मौजूदा सत्ता विरोधी लहर से जूझते हुए 39 करोड़ वोट और पाने का ‘चमत्कार’ कर सकती है? क्या ये सम्भव है कि चुनाव में वोट तो पड़ें 67 करोड़ और बीजेपी को मिल जाएं 72 करोड़! यही है ‘मुंगेरी लाल का हसीन सपना’।
‘किंग मेकर’ का धर्मसंकट
एनडीए की संख्या बहुमत से 50 कम रही तो मोदीजी के लिए नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी का समर्थन भी काम नहीं आने वाला। ओडिशा में 21 तथा आन्ध्र प्रदेश में 17 सीटें हैं। फिर भी यदि इन्हें ‘किंग मेकर’ की भूमिका मिल गयी तो धर्मसंकट बहुत भारी होगा। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वाले फ़ॉर्मूले की बदौलत कहीं इनका हश्र भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसा ना हो जाए!
(मुकेश कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)