“मणिपुर हिंसा में राज्य सरकार शामिल है। सरकार की मिलीभगत के कारण हिंसा नहीं रुक रही है।” यह कहना है मणिपुर से भाजपा विधायक पाओलीनलाल हाओकिप का। उनका साफ़ मानना है कि “राज्य में जारी जातीय हिंसा को रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।”
पिछले दो दिनों से पीएम मोदी के संसद भवन की सीढ़ियों पर दिए गये बयान के बाद अचानक से कथित राष्ट्रीय गोदी मीडिया के सुर बदल गये, और भाजपा के मंत्रियों, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं सहित सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी ने मणिपुर के समानांतर राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ में हिंसा और महिला अत्याचारों के बारे में हल्ला बोलने के साथ-साथ जिस प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अपने निशाने पर लिया, वह बेहद चौंकाने वाली घटना है।
होकिप उन 10 आदिवासी विधायकों में से हैं जिन्होंने मई माह में ही मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को राज्य के कुकी-बहुल जिलों के लिए अलग प्रशासन की मांग की थी। इन 10 विधायकों, जिन्होंने मई में पत्र जारी किया था, में से 7 विधायक भाजपा के थे। इनका आरोप था कि घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के द्वारा हिंसा को बढ़ावा दिया गया, और भाजपा संचालित राज्य सरकार द्वारा इसे “मौन समर्थन” दिया गया।
लेकिन अब जबकि एक बार फिर से मणिपुर के उन 10 कुकी विधायकों ने- जिन्होंने 4 मई के बाद मणिपुर राज्य में भारी हिंसा, आगजनी और विधायकों, सांसदों के ऊपर हुए हमलों के लेकर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के कामकाज पर सवाल खड़े किये थे, लेकिन तब बात दबा दी गई थी- आज फिर से ज्यादा मुखर तरीके से सवालों को उठा दिया है।
इंडिया टुडे के एक ओपिनियन लेख में होकिप ने लिखा है, “राज्य सरकार की संलिप्तता को स्पष्ट रूप से इसी बात से देखा जा सकता है, जब मुख्यमंत्री के द्वारा एक शुद्ध रूप से जातीय-सांप्रदायिक हिंसा के रूप से शुरू हुए संघर्ष को ‘मादक पदार्थों से जुड़े आतंकवाद’ के खिलाफ राज्य द्वारा चलाए जा रहे युद्ध के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया।”
इसके जवाब में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने यह कहते हुए अलग प्रशासन की मांग को ठुकरा दिया था कि “मणिपुर की प्रादेशिक अखंडता की हर हाल में रक्षा की जाएगी।”
पाओलियनलाल हाओकिप अपने लेख में मुख्यमंत्री के ‘नार्को आतंकवाद’ के नैरेटिव बनाने के पीछे के मकसद पर लिखते हैं, “इसका उद्येश्य इंफाल घाटी के आसपास की तलहटी में बसे कुकी-ज़ो बस्तियों पर कट्टरपंथी मैतेई मिलिशिया के द्वारा किये जा रहे हमलों को राज्य बलों द्वारा सहायता पहुंचाने को न्यायोचित ठहराना था। इससे ज्यादा इसका कोई अर्थ नहीं है।”
He added that conflict over rights under the Constitution which had been simmering since the pre-statehood days was another reason for the prolonged violence।
उन्होंने कहा कि संविधान के तहत अधिकारों को लेकर संघर्ष, जो राज्य बनने से पहले से ही चल रहा था, लंबी हिंसा का एक और कारण था।
हाओकिप दोनों समुदायों के बीच चल रही जातीय हिंसा को एक तरह से “आदिवासी कुकी-ज़ो लोगों द्वारा अपने साथ हो रहे घोर अन्याय से मुक्ति के युद्ध के रूप में देखते हैं, जबकि मैतेई मिलिशिया इसे आदिवासी भूमि पर अपने दावे के युद्ध के रूप में देखते हैं।”
उन्होंने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के बारे स्पष्ट कहा है कि उन्हें मैतेई लीपुन और अरामबाई तेंगगोल जैसे कट्टरपंथी समूहों को अपना संरक्षण देने के लिए यहां पर जाना जाता है।” पिछले 78 दिनों की हिंसा में इन दोनों संगठनों की भूमिका पर लगातार सवाल उठे हैं, और इनके नेताओं ने अपने बयानों में कुकी समुदाय के समूल सफाए की घोषणा तक की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि ये दो संगठन “कुकी-ज़ो समुदाय के जातीय सफाए के मुख्य निष्पादकों में से एक” हैं।
यहां पर विशेष रूप से इस बात का उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि मणिपुर की एक पूर्व ‘सुपर कॉप’ थौनाओजम बृंदा ने 2020 में एक अदालती दस्तावेज़ में आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह द्वारा उनपर एक ‘ड्रग लॉर्ड’ को हिरासत से रिहा करने का दबाव डाला जा रहा था। मणिपुर की पहाड़ियों पर मादक पदार्थों की खेती की जाती है। इसमें मुख्यतया कुकी, नागा और अन्य जनजातियों के लोग शामिल हैं। लेकिन एन बीरेन सिंह सरकार और कथित राष्ट्रीय मीडिया इन मादक पदार्थों के व्यापार से जुड़े लोगों और नेताओं के गठजोड़ के बारे में सायास चुप्पी साध लेते हैं, जिनके चलते यह धंधा फल-फूल रहा है।
इसके विरोध में उन्होंने बीरेन सिंह सरकार द्वारा उनकी वीरता के लिए प्रदान किये गए राजकीय पुलिस पदक को वापस कर दिया था, और पिछले साल विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था। ज्ञातव्य हो कि इस भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में गृहमंत्री अमित शाह ने प्रचार किया था।
इस बारे में हओकिप अपने लेख में लिखते हैं, “एक पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने वाली सरकार किसी भी राज्य में शांति के लिए अहितकर है। हालांकि मणिपुर में इस प्रकार का पूर्वाग्रह हमेशा से मौजूद रहा है, लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री के राज में यह पूरी तरह से घनीभूत हो चुका है।”
क्या प्रधानमंत्री अपने विधायक सहित इन 7 भाजपा विधायकों के मन की बात सुनेंगे? क्या मणिपुर में राजधर्म का पालन करने में यदि घोर लापरवाही ही नहीं बल्कि राज्य सरकार के मुखिया द्वारा मैतेई मिलिशिया संगठनों को बढ़ावा दिया गया है, तो उसकी जांच और दोषी पाए जाने पर सजा दिए जाने का निर्देश दिया जायेगा, मणिपुर के साथ अब समूचा देश इसे ध्यान से देख रहा है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)