देश में ईद-उल-अजहा का त्यौहार मनाया जा रहा है। भारत के हर त्यौहार की तरह यह त्यौहार पर अपने साथ दहशत लेकर आया। वैसे तो बकरीद मनाने के लिए एक बकरे की कुर्बानी का खर्च बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के बूते के बाहर है। लेकिन जो कोई यह कर सकता है, उसके लिए हिंदू राष्ट्र बनते भारत में ऐसा करना खुद के लिए मुसीबत बुलाने जैसा हो गया है। धार्मिक परंपरा की इसी परिपाटी को निभाने की कोशिश मुंबई के मीरा रोड इलाके में एक मुस्लिम परिवार को भारी पड़ी है।
सोशल मीडिया पर इसे कल से इतना देखा गया है कि इस खबर के आगे पीएम मोदी का भोपाल में दिया गया यूनिफार्म सिविल कोड पर भाषण और राहुल गांधी की मणिपुर यात्रा की खबर पीछे छूट गई है। और हो भी क्यों न। बात मुंबई के एक अपमार्केट हाउसिंग सोसाइटी की जो है। बताया जा रहा है कि यह मामला मुंबई के मीरा रोड स्थित इलाके में जेपी नॉर्थ गार्डन सिटी का है, जहां पर मोहसिन शेख नामक एक मुस्लिम निवासी ने कुर्बानी के लिए सोसाइटी के भीतर दो बकरे लाये थे।
इस सोसाइटी में करीब 300 मुस्लिम परिवार रहते हैं, और बिल्डर ने दो साल से बकरों को सोसाइटी में रखने के लिए एक विशिष्ट स्थान मुहैया कराया हुआ था। लेकिन इस साल बिल्डर ने कई बार अनुरोध और ईमेल के बावजूद अलग से बकरों को रखने के लिए जगह देने से इंकार कर दिया था। बार-बार अनुरोध के बाद उसकी ओर से कहा गया कि वे चाहें तो अपने फ्लैट में बकरे को रख सकते हैं।
इस घटना की कई वीडियो सोशल मीडिया में घूम रही है। बकरों को लिफ्ट से लाने सहित बड़ी संख्या में मोहसिन और उसकी पत्नी को घेरकर सवाल-जवाब और बहस भी देखी जा सकती है। इसके अलावा सोसाइटी के बाहर सैकड़ों की तादाद में भीड़ द्वारा जय श्री राम के नारे लगाते देखा जा सकता है। भाजपा के जिला अध्यक्ष सहित महाराष्ट्र पुलिस की मौजूदगी में यह सब हुआ।
इस खबर की विस्तृत जानकारी द क्विंट मैगज़ीन में दी गई है, और उसके पास तमाम वीडियो हैं जो दोनों पक्षों की बात को स्पष्ट करते हैं। यह स्टोरी इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाली है। गुजरात की तरह महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में भी आगे से मुसलमानों को हाउसिंग सोसाइटी में घर न दिए जाने की शर्त बहुसंख्यक समाज की ओर से हिन्दुत्ववादी शक्तियों द्वारा पुरजोर तरीके से उठाई जा सकती है। आप यदि गौर करें तो दिल्ली-एनसीआर में बने हजारों सोसाइटी में आजकल एक कोने में मंदिर की स्थापना के बढ़ते ट्रेंड को देख सकते हैं।
बकरीद के त्यौहार से 3-4 दिन पहले से ही इसकी तैयारियां होने लगती हैं। बकरों को हाउसिंग सोसाइटी में विशिष्ट स्थान पर रखा जाता था। लाइसेंस शुदा बकरा सरकार के द्वारा बकरीद त्यौहार के लिए जारी किया जाता है। लेकिन सोसाइटी के भीतर बकरे की कुर्बानी का प्रश्न नहीं बनता। मुस्लिम परिवार सिर्फ चंद दिनों के लिए बिल्डर और सोसाइटी प्रबंधन से अनुरोध कर रहे थे। हालांकि मध्य मुंबई की एक सोसाइटी में भी इसी प्रकार के मामले में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने कल ही अपने फैसले में कहा है कि सोसाइटी के भीतर कुर्बानी की इजाजत नहीं है।
यह मामला कहीं न कहीं हिंदू-मुस्लिम विवाद को बढ़ाने के मकसद से तूल दिया गया। हालांकि इस विवाद में कोई हिंसक वारदात नहीं हुई, क्योंकि इसमें उच्च मध्यवर्गीय परिवार शामिल थे, लेकिन इसके चलते पूरे देश में बकरीद, बकरे की कुर्बानी, मांसाहार-शाकाहार, PETA सहित तमाम स्रोतों से एक समुदाय को नसीहत दी जा रही है कि उसे जीव हत्या से बचना चाहिए। कुछ तो मिट्टी के बकरे की मूर्ति की कुर्बानी की सलाह दे रहे हैं। लेकिन इन्हीं धार्मिक त्यौहारों के कारण लाखों परिवार सालभर अपना जीविकापार्जन करते हैं, इसके बारे में मध्यवर्ग की जानकारी शून्य है।
अभी 3 दिन पहले एक दैनिक हिंदी समाचार पत्र ने हजारीबाग की मंडी का वीडियो जारी किया था, जहां बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग बकरीद के लिए बड़ी संख्या में बकरे बेचने के लिए पहुंचे थे। 10,000 रुपये से लेकर 35,000 रुपये तक के बकरे की बोली लगाने वाले ये लोग मूलतः किसान थे, जो आसपास के गांवों में रहते हैं। सालभर होली और बकरीद में बकरे की बिक्री से उनकी रोजी-रोटी चलती है। वस्तुतः पशुधन आज भी भारत के ग्रामीण जीवन का सबसे बड़ा कैशक्रॉप है। गेहूं-धान-गन्ना की खेती मूलतः बड़े या धनी किसानों के लिए कैश-क्रॉप है, लेकिन 10 करोड़ किसान परिवारों के लिए पशुधन ही आजीविका का सहारा है। इसमें गाय, बकरी, मुर्गी या मछली का व्यापार शामिल हैं।
आइये देश में इससे संबंधित कुछ अन्य घटनाओं पर निगाह डालते हैं:
तेलंगाना
26 जून की खबर है कि तेलंगाना में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल तेलंगाना के डीजीपी अंजनी कुमार से सोमवार को मुलाक़ात कर एक ज्ञापन सौंपता है और मांग करता है कि बकरीद के अवसर पर राज्य के भीतर अवैध पशुओं की आवक पर रोक लगाने के लिए पुलिस प्रशासन को तैनात किया जाये और आवश्यक कदम उठाये जाएं।
मध्य प्रदेश
सिहोर में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए एक व्यक्ति, जिसे बजरंग दल का नेता बताया जा रहा है, खुलेआम मस्जिदों को बजरंग दल का कार्यालय बनाने की धमकी दे रहा है।
बताया जा रहा है कि 4 दिन पहले यह हेट स्पीच वाला भाषण दिया गया था। पुलिस के अनुसार मामला दर्ज कर लिया गया है, और व्यक्ति की पहचान कर ली गई है। कार्रवाई की जायेगी।
उत्तराखंड
यहां पर पुलिस ने मुस्लिमों को निर्देश दिया है कि उन्हें बकरीद का त्यौहार मनाने की इजाजत नहीं है। इसके लिए बद्रीनाथ धाम से करीब 40 किमी दूर जोशीमठ में चाहें तो मुसलमान अपना त्यौहार मना सकते हैं। बद्रीनाथ में वैसे भी मुस्लिम आबादी नहीं है। मंदिर के पुनर्निर्माण एवं अन्य सहायक कार्यों के लिए कुछ मुस्लिम श्रमिक बाहर से यहां मजूरी करने आये हैं। लेकिन उत्तराखंड सरकार ने सीधे आदेश देने के बजाय पुलिस को मौखिक निर्देश देकर अपनी मानसिक स्थिति का परिचय दे दिया है।
मंदिर का पुनर्निर्माण में उनका श्रम चाहिए, लेकिन उन्हें अपने धर्म के मुताबिक ईश्वर/अल्लाह को याद करने की इजाजत नहीं है। याद करिए कुछ वर्ष पूर्व पीएम मोदी की अरब यात्रा को, जिसमें वहां पर एक भव्य मंदिर की घोषणा पर भारत में हिन्दुत्ववादी शक्तियां कितने हर्षोल्लास से भर उठी थीं। सहिष्णुता और समावेशिता का पहलू भारत की विशिष्टता थी, जो पिछले कुछ वर्षों में खत्म हो चुकी है। दुनिया इसे गौर से देख रही है।
पीटीआई को दिए गये अपने वक्तव्य में बद्रीनाथ पुलिस स्टेशन के थाना प्रभारी केसी भट्ट ने इस संबंध में कहा है, “मंगलवार को प्रोजेक्ट के काम से जुड़े ठेकेदारों, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों और पुजारियों के साथ एक बैठक हुई थी। सामूहिक रूप से फैसला हुआ कि बकरीद की नमाज बद्रीनाथ के बजाय जोशीमठ में किया जायेगा।”
उत्तरकाशी के पुरोला कस्बे से अब देश परिचित है। एक महीने तक चले बवाल और सांप्रदायिक उन्माद के बाद अब कुछ मुस्लिम परिवार वापस लौट आये हैं। लेकिन हिंदुत्व के पैरोकार उन्हें ईद मनाने की इजाजत नहीं दे रहे। यहां तक कि अपने घर के भीतर भी उन्हें इसकी इजाजत नहीं है। यह बेहद चिंताजनक है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए यह कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है। हिंदुस्तान टाइम्स की यह खबर उत्तराखंड की खौफनाक सच्चाई को उजागर करती है, जिसे राष्ट्रीय मीडिया कभी नहीं दिखायेगा।
दिल्ली
दिल्ली में सीधे तौर पर तो मुस्लिम विरोधी अभियान देखने को नहीं मिला, लेकिन 27 जून को दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक अधिसूचना जारी कर 29 जून को सार्वजनिक अवकाश को रद्द कर कार्य दिवस में तब्दील कर दिया। इसके पीछे की वजह 30 जून 2023 के दिन विश्वविद्यालय में शताब्दी दिवस समारोह के प्रबंधन की तैयारियों को लेकर बताई जा रही है। पीएम मोदी के भी इस अवसर पर शामिल होने की बात कही जा रही है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार की ओर से जारी अधिसूचना को आप नीचे दिए लिंक में देख सकते हैं।
दूसरा मामला और भी रोचक और सरकार की मंशा को स्पष्ट करता है। बकरीद के त्योहार को ध्यान में रखते हुए इस फैसले को लिया गया है या नहीं यह पाठक स्वंय तय करें। कल शाम एनडीएमसी के अधिकारियों ने तय किया कि औरंगजेब लेन का नाम बदलकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम लेन किया जाता है। एनडीएमसी के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने इस बारे में जानकारी दी, जिसे पत्रकार दीपक चौरसिया के ट्वीट में विस्तार से बताया गया है।
पीएम मोदी ने भी देश में सभी मुस्लिमों को ईद की बधाई देते हुए आज ट्वीट किया है। ट्वीट पर अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ख़ुशी जाहिर करते हुए उन्हें भी ईद की बधाई दी है। लेकिन कुछ लोग इस संदेश से नाखुश भी हैं। जाहिर सी बात है उन्हें पीएम मोदी की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय को बधाई भी मंजूर नहीं। कुछ इसे चुनावी मजबूरी बता रहे हैं।
महाराष्ट्र
नासिक में 26 जून को भीड़ ने दो मुस्लिम युवाओं को बीफ ले जाने के शक में हमला किया। इसमें से एक की मौत हो गई। अफ्फान अंसारी, 32 की मौत हो चुकी है, जबकि नासिर कुरैशी का इलाज चल रहा है। बकरीद की तैयारियों के बीच गौ रक्षक की चौकसी का यह परिणाम है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का राज पूरी तरह से शांत है। विरोध की कोई आवाज ही नहीं आएगी तो मरघट वाली शांति अपने आप आने लगती है। पिछले दिनों बकरीद मनाये जाने की सूचना पर बजरंग दल सहित हिंदुत्ववादी शक्तियां स्वतः अलर्ट मोड़ पर आ गईं। विशेषकर मुरादाबाद इसके केंद्र में है। यहां पर एक मुस्लिम के निजी आवास पर समुदाय के लोगों द्वारा नमाज पढ़े जाने का विरोध करने बजरंग दल के प्रदेश अध्यक्ष रोहन सक्सेना स्वंय पहुंच गये हैं। उनकी जुबानी खुद इस ट्वीट में सुनें।
लेकिन मामला इतने पर ही खत्म नहीं होता है। मुरादाबाद पुलिस तत्काल बजरंग दल की शिकायत पर संज्ञान लेकर अपनी कार्रवाई करती है। इस मामले में तराबी (एक प्रकार की नमाज) के लिए दोषी 10 व्यक्तियों पर 10 लाख के जुर्माने का नोटिस लगा दिया जाता है। इनका अपराध सिर्फ यह है कि इन्होने प्रशासन को सूचित किये बिना एक गोदाम में इकट्ठा होकर एक धार्मिक कृत्य किया। इससे अशांति फैलने का खतरा हो सकता था। इसलिए सजा भुगतो।
इस घटना से एक दिन पहले 25 जून को बजरंग दल के जूनियर नेता पहले ही बकरीद के मौके पर गौवंश की हत्या की आशंका को भांपते हुए मुरादाबाद जिला प्रशासन को चेतावनी देने प्रदर्शन कर चुके थे। उनके वक्तव्य के मुताबिक गौवंश का कटान न हो, और कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले सभी मीट, मुर्गे की दुकानें बंद की जाएं, हेतु प्रदर्शन किया गया। इस ट्वीट में खून बहाने के उत्तेजक नारे साफ़ सुने जा सकते हैं।
नीचे से हिंदुत्ववादी शक्तियों की यह मांग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लगता है सुन ली। इस संबंध में मंगलवार को आगामी बकरीद और जुलाई के पहले सप्ताह में शुरू होने जा रही कांवड़ यात्रा में सुरक्षा के इंतजामों के मद्देनजर सीएम ने अफसरों के साथ बैठक कर उन्हें जरूरी निर्देश दिए। इसी के साथ यूपी सरकार ने 4 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा के मार्ग पर खुले में मांस की बिक्री और खरीद पर रोक लगाने का भी निर्देश दिया है।
आगामी त्योहारों पर तैयारियों को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक में पुलिस कमिश्नर, डिविजनल कमिश्नर, जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षकों समेत तमाम बड़े अधिकारियों के शामिल होने की सूचना यूपी के समाचारपत्रों में दर्ज है।
इस ट्वीट पर यूपी में कुछ लोग कांवड़ के दौरान भांग, गांजा, चिलम, डोडा और शराब सहित सभी प्रकार के नशे पर पाबंदी की भी सलाह मुख्यमंत्री जी को दे रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान बड़ी संख्या में मादक पदार्थों का सेवन, अवैध तस्करी होती है। प्रशासन इस बारे में जानते हुए भी खामोश बना रहता है।
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में चंबा में जून के पहले सप्ताह एक दलित युवा की मौत के बाद से हंगामा जारी है। एक मुस्लिम लड़की के साथ उसके प्रेम संबंधों की बात कही जा रही है। ऑनर किलिंग के इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि परिवार के 5 सदस्यों की गिरफ्तारी (इसमें 2 नाबालिग लडकियां भी शामिल हैं) मामला शांत नहीं किया जा सका। आरएसएस, बजरंग दल सहित तमाम हिन्दुत्ववादी दल, जो भाजपा की हार के बाद निराश थे, के लिए चंबा की यह घटना संजीवनी साबित हुई। शहर में प्रदर्शन और आगजनी की घटना में दो मुस्लिम परिवार के घर फूंक दिए गये।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुक्खु ने कड़ी कार्रवाई से परहेज रखा है, क्योंकि राज्य में सवर्ण वर्चस्व उत्तराखंड की तरह ही सर चढ़कर बोलता है। हालांकि निषेधाज्ञा लागू करने से हालात काबू में आ गये हैं, ऐसा बताया जा रहा है, वर्ना बकरीद तक बेहद कम संख्या में रह रहे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए हिमाचल प्रदेश को छोड़कर बाहर जाने का अल्टीमेटम साफ़-साफ़ दिया जा चुका था।
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि भारतीय मुसलमानों के लिए दिन-प्रतिदिन जीवन दूभर होता जा रहा है। कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। महंगाई और बेकारी से बहुसंख्यक समुदाय भी भन्नाया हुआ है। अगर उसे मुस्लिम घृणा की खुराक थोड़ी भी कम मिली, या देरी हो गई तो वह तुरंत पेट की भूख में बिलबिलाने लग सकता है।
ऐसे में अल्पसंख्यक समुदाय ही वह चारा है, जिसे आगे कर उसके गुस्से को गुमराह किया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यस्था तेजी से अमीर को अमीर और मध्य वर्ग एवं गरीब को और गरीब बनाने की दिशा में बढ़ रही है। इसके चक्र को वापस मोड़ने की कूव्वत वर्तमान सरकार क्या विपक्ष के पास तक नहीं है। ऐसे में मुसलमान आज निशाने पर है, कल कौन होगा नहीं पता।
बकरीद के बारे में मान्यता है कि हजरत इब्राहिम जो अल्लाह के पैगंबर थे, काफी उम्र में जाकर पिता बने थे। वे अपने बेटे इस्माइल को दिलो-जान से प्यार करते थे। एक बार अल्लाह ने हजरत साहब का इम्तिहान लेने की सोची, और ख्वाब में आकर उन्हें अपनी सबसे अजीज़ चीज की कुर्बानी देने को कहा। हजरत साहब ने खूब सोच-विचार किया लेकिन उन्होंने पाया कि उनके लिए सबसे अजीज़ तो उनका बेटा इस्माइल ही है। अल्लाह की बात मानकर उन्होंने आखिरकार अपने बेटे की कुर्बानी का मन बना लिया।
अपने लख्ते-जिगर को अपने ही सामने मरते देखने को वे बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली, ताकि अल्लाह की राह में उनका मोह आड़े न आने पाए। कुर्बानी के बाद जब उन्होंने आंखों की पट्टी खोली तो उन्होंने पाया कि उनका बेटा तो सही-सलामत है। उसकी जगह पर एक भेड़ कुर्बान हो गई है। यह एक प्रकार से अल्लाह द्वारा हजरत साहब का इम्तिहान था, जिसमें वे पास हो गये थे। इसी के बाद से ईद-उल-अजहा/बकरीद में मस्जिद में नमाज अदा करने के बाद भेड़/बकरे की कुर्बानी का चलन शुरू हुआ। लेकिन इस कुर्बानी को सिर्फ अपने या परिवार के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि एक हिस्से को गरीब और जरूरतमन्द के बीच बांटने का रिवाज है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक के संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)