जोशीमठ के निवासियों के भय और उदासी के बीच चारधाम यात्रा

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नई दिल्ली। चारधाम यात्रा की शुरुआत होने जा रही है। सरकार का प्रयास है कि इस बार 50 लाख लोग यात्रा में भाग लेंगे जो कि एक रिकॉर्ड होगा। चार धामों में एक है बद्रीनाथ धाम जहां जाने से पहले यात्री जोशीमठ होकर जाते हैं। इससे जोशीमठ के लोगों में उत्साह रहता था यहां के लोग यात्रियों का स्वागत भी बड़े धूमधाम से करते रहे हैं।

किंतु इस बार जोशीमठ गहरे संकट में फंसा हुआ है और वहां के लोग कई महीनों से डर और आशंकाओं के बीच में जी रहे हैं। वहां के निवासी शहर छोड़ कर जा रहे हैं और जो अभी रह रहे हैं उन्हें भी आज नहीं तो कल जाना पड़ेगा। क्योंकि जोशीमठ जैसा धार्मिक और एतिहासिक नगर धीरे-धीरे रोज धंस रहा है।

कई सरकारी प्रोजेक्ट्स के कारण जोशीमठ में विस्फोटों और अनियंत्रित निर्माण की वजह से पूरे शहर में मकानों में दरारें पड़ रही हैं और भू-धंसाव लगातार हो रहा है।

पिछले साल तक जहां चारधाम यात्रा शुरु होने के कारण पूरा जोशीमठ यात्रियों की आवभगत में सराबोर रहता था। वहीं इस वर्ष इस ऐतिहासिक नगर के कई लोगों की जिंदगी इस ‘विकास जनित आपदा’ की वजह से दांव पर लगी है।

कई महीनों से सरकार के खिलाफ यहां के लोग जोशीमठ को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, तो वहीं मुआवजे की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। विडंबना है कि जिन होटलों में वे यात्रियों को ठहराते थे आज उन्हीं में कुछ बचे होटलों में रात गुजारने को अभिशप्त हैं। इसके बरक्स सरकार के प्रयास ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान हैं। जिन लोगों ने अपने घर और आजीविका को खो दिया है वे सरकार से मुआवजे की आस में हैं।

इस शहर के कई निवासी भूख और भय से जूझ रहे हैं। वहां के एक 62 वर्षीय निवासी ठाकुर कहते हैं कि उनका होटल सरकार द्वारा असुरक्षित इमारतों की कैटेगरी में था, जिसे तोड़ दिया गया। जिसकी कीमत 5 से 6 करोड़ रुपए थी और उन्हें 50 लाख का मुआवजा सरकार दे रही है। वे कहते हैं “सरकार मुआवजा नहीं भीख दे रही है”।  

सीमा के घर को आपदा प्रबंधन वालों ने असुरक्षित धोषित कर दिया है। वे रोज अपना घर देखने आती हैं परिवार के पास अब जीवन-यापन के लिए कुछ भी नहीं बचा है। जो जमा पूंजी थी वो सब मकान में लग गई और अब वो भी खत्म हो चुका है। सीमा अब सरकारी मुआवजे़ का इंतजार कर रही हैं।

उत्तराखंड सरकार ने  मुआवजे के भुगतान के हिस्से के रूप में अब तक 48 लोगों और बड़े प्रतिष्ठानों को कुल मिलाकर ₹1169.82 लाख वितरित किए गए हैं। और अलग से भी किराया, परिवहन और कई तरह के भत्ते जैसे खर्चों के लिए सरकार ने तत्काल राहत प्रदान करने के लिए 658.75 लाख रुपये खर्च किए हैं।

‘जोशीमठ बचाओ संधर्ष समिति’ के अतुल सती कहते हैं। यह पर्याप्त नहीं है। होटल के एक कमरे में एक ही परिवार के 10 लोग रह रहे हैं। इनका सब कुछ छिन चुका है सरकार को पुनर्वास की प्रक्रिया को और तेज करना पड़ेगा। यदि सरकार ने 11 सूत्रीय मांगों को नही माना तो बद्रीनाथ का कपाट 27 अप्रैल को खुलने के कारण, जो आंदोलन स्थगित कर दिया गया है उसे 11 मई के बाद पहले से भी तीब्र गति से चलाया जाएगा।

इधर गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट 22 अप्रैल को खुलेंगे, जबकि केदारनाथ के मंदिर 25 अप्रैल को खुलेंगे। पिछले 48 घंटों में चारों तीर्थों में ताजा हिमपात और बारिश देखी गई है, भारतीय मौसम विभाग ने आने वाले समय में और अधिक हिमपात की चेतावनी दी है। आने वाला समय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती वाला बन गया है। प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं से निपटने के लिए ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ ने गुरुवार को संयुक्त रूप से ‘मॉक-ड्रिल’ का आयोजन भी किया।

बद्रीनाथ जाने वालों को जोशीमठ से होकर गुजरना होगा, जहां होटल बंद हो गए हैं क्योंकि उनके मालिक सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं या प्रशासन ने जिनके घर असुरक्षित घोषित कर दिया है, उन लोगों को पुनर्वासित करने के लिए अधिग्रहित कर लिया है। इसलिए सरकार भी जोशीमठ में यात्रियों को ठहराने के बजाय पीपल कोठी, कर्णप्रयाग,और बद्रीनाथ जैसी जगहों पर जोर दे रही है।

जोशीमठ के संजय जिनकी दुकान दरारों की वजह से बंद हो गई है, कहते हैं  “मैं तीर्थयात्रियों के लिए एक संदेश के साथ अपनी दुकान के बाहर एक पोस्टर चिपकाऊंगा कि वे सरकार से हमारी मदद करने के लिए कहें। कौन जानता है, शायद वे तीर्थयात्रियों की बात सुन लें।”

(आज़ाद शेखर जनचौक के सब एडिटर हैं।)

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