कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक आज हैदराबाद में शुरू हो गयी है। पार्टी के नये दौर में वर्किंग कमेटी की यह पहली बैठक है जो दिल्ली से बाहर हो रही है। पहले आमतौर पर वर्किंग कमेटी की बैठक दिल्ली में होती थी और वह भी तीन-चार घंटों के लिए। यह न केवल इस तरह की बैठक है जो दिल्ली से बाहर हो रही है बल्कि बाकायदा दो दिन तक चलेगी। पहले दिन वर्किंग कमेटी के सदस्य और दूसरे दिन उसके विस्तारित सदस्य बैठक में हिस्सा लेंगे। नये दौर में कांग्रेस का यह नया चेहरा है। कांग्रेस अब बदल रही है। खड़गे के अध्यक्ष बनने और उनके वर्किंग कमेटी गठित करने के बाद यह उसकी पहली बैठक है। इस नजरिये से भी इसका महत्व काफी बढ़ जाता है।
तेलंगाना में इसको करने के पीछे वहां होने वाला विधानसभा का चुनाव माना जा रहा है। जहां कांग्रेस और बीआरएस बिल्कुल आमने-सामने होंगे और वहां कोई तीसरी ताकत नहीं है। जिस तरह का वहां माहौल है उसमें माना जा रहा है कि पार्टी की स्थिति बेहद मजबूत है। लेकिन पार्टी किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहने देना चाहती है। इसीलिए इस बैठक के बाद यानि कल शाम को वहां एक रैली भी आयोजित की गयी है जिसमें राहुल गांधी समेत पार्टी के आला नेता हिस्सा लेंगे। लेकिन यह बैठक सिर्फ तेलंगाना और उसके चुनाव तक सीमित नहीं है। बताया जा रहा है कि बैठक का पूरा एजेंडा और केंद्रीयकरण हाल में होने वाले विधानसभा के चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव पर केंद्रित होगा।
पांच राज्यों जिसमें हिंदी बेल्ट के राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ के साथ ही नॉर्थ-ईस्ट के मिजोरम और फिर दक्षिण का तेलंगाना शामिल है, के चुनाव नतीजे देश की धड़कन का खुलासा करेंगे। लिहाजा लोकसभा से पहले यह अपने किस्म का रेफरेंडम होगा। मिजोरम का चुनाव बताएगा कि मणिपुर की घटना के बाद उत्तर-पूर्व में जनता का मिजाज क्या है वह अभी भी बीजेपी के साथ खड़ी है या फिर उसे कोई दूसरा रास्ता दिख रहा है?
पार्टी की पूरी तैयारी अब लोकसभा चुनाव पर केंद्रित है। माना जा रहा है कि अगर एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी कुछ ऐसा नहीं कर पायी जो बीजेपी के लिए बेहद नुकसानदेह हो तो लोकसभा चुनाव में उसको बड़ी उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना कुल मिला कर 82 सांसद लोकसभा में भेजते हैं। और 2019 में इसमें कांग्रेस को महज 6 सीटें मिली थीं। एक राष्ट्रीय पार्टी के लिहाज से कांग्रेस के लिए यह शर्मनाक प्रदर्शन कहा जाएगा। और इस तरह की किसी परफार्मेंस से तो बीजेपी को रोक पाने की किसी को दूर-दूर तक उम्मीद नहीं करनी चाहिए। और जिस तरह की अभी स्थितियां हैं उसमें इन सभी राज्यों में कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला है। लिहाजा पार्टी को यहां इंडिया गठबंधन के किसी दूसरे सदस्य का कोई सहयोग भी नहीं मिलने जा रहा है। ऐसे में पार्टी को अपने ही बल पर यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी।
टेलीग्राफ में संजय के झा ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इंडिया गठबंधन के लोग इन राज्यों की कम से कम से 40 सीटों पर कांग्रेस की जीत की उम्मीद कर रहे हैं। और अगर पार्टी ऐसा नहीं कर पाती है तो वह बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित नहीं कर पाएगी। कांग्रेस भी इस बात को जानती है। इसीलिए कांग्रेस ने इन विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक देने का फैसला किया है।
शुक्रवार को हैदराबाद में मीडिया से रूबरू पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इसी बात को पूरी मजबूती से कहा। उन्होंने कहा कि “हम सभी चार राज्यों में सरकार बनाने जा रहे हैं। विपक्ष का इंडिया गठबंधन बनने के बाद माहौल पूरा बदल गया है। और लोग अब हम लोगों की तरफ उम्मीद से देखने लगे हैं। नरेंद्र मोदी और के चंद्रशेखर राव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मोदी पूरे देश के लोगों को परेशान कर रहे हैं जबकि केसीआर तेलंगाना के लोगों को”।
बताया जा रहा है कि कर्नाटक एक दूसरा राज्य है जहां पार्टी फिर से अपनी पूरी संभावनाओं को समेट लेना चाहती है। यहां लोकसभा की कुल 28 सीटें हैं। और पिछले चुनाव में कांग्रेस को यहां महज दो सीटें मिली थीं। कहा जा रहा है कि पार्टी ने इस बार कम से कम 15 सीटें बीजेपी से छीन लेने का लक्ष्य रखा है। हालांकि चुनाव जीतने और सरकार के गठन के बाद ही पार्टी ने यहां अपने किए सभी वादों को पूरा कर दिया है। और माना जा रहा है कि इसका जनता में भी अच्छा खासा संदेश गया है। लेकिन लोकसभा चुनाव में यह वोट में कितना बदल पाएगा यह नतीजा आने के बाद ही पता चलेगा।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कर्नाटक में सरकार के इस प्रदर्शन का असर तेलंगाना के चुनावों पर भी पड़ेगा और बीआरएस से सीधे मुकाबले में उसे बढ़त मिल सकती है। इसके अलावा गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं जहां पार्टी बीजेपी से सीधे मुकाबले में होगी। लिहाजा इस सीडब्ल्यूसी में इन राज्यों को लेकर भी पार्टी अलग से विचार-विमर्श कर सकती है।
चूंकि इंडिया गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर और अगुआ के रूप में कांग्रेस है ऐसे में उसकी जिम्मेदारी भी किसी और से ज्यादा बढ़ जाती है।
बताया जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी आने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार में पूरे दम-खम से उतरेंगे। और अगले तीन-चार महीने जगह-जगह सभाओं को संबोधित करेंगे। यहां तक कि इंडिया गठबंधन की पहली रैली भी इसीलिए चुनाव वाले राज्य मध्य प्रदेश और उसकी राजधानी भोपाल में रखी गयी है।
इस पूरे दौर में एक जो खास बात देखी जा रही है वह है विपक्ष की आक्रामकता। किसी भी मामले में भी वह रक्षात्मक होने की जगह हमलावर दिखा। जी-14 एंकरों के मसले पर भी उसके रुख को इसी आक्रामकता के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है। इंडिया गठबंधन के इस फैसले ने पूरे देश को यह संदेश दिया है कि वह पूरी तरह से लड़ाई के मूड में है। और पूरा गठबंधन 2024 तक किसी भी रूप में रक्षात्मक नहीं होने जा रहा है।
इस मुद्दे पर पूछे गए सवाल के जवाब में वेणुगोपाल ने कहा कि जी-14 समूह के एंकरों को हमारे उनके नफरत से भरे सर्कस से बचने के फैसले और हर सुबह पीएमओ के जरिये की जाने वाली सेंसरशिप के बीच अंतर को समझना होगा। मैं उन्हें इसका जवाब देने की चुनौती देता हूं कि क्या उन्हें प्रत्येक दिन पीएमओ के अफसरों से निर्देश नहीं प्राप्त होते हैं? क्या आप ने 2021 में नकारात्मक नैरेटिव को भोथरा करने के सरकार के प्रयासों का विरोध किया था? क्या आप पहले लोग नहीं थे जिन्होंने सरकार को अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद की थी?
इस मसले को और स्पष्ट तरीके से रखते हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आज की प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि हमने किसी को बैन, बायकॉट या फिर ब्लैकलिस्ट नहीं किया है। हम ऐसे किसी भी शख्स को सहयोग नहीं करेंगे जो समाज में घृणा फैला रहा है…..वो हमारे शत्रु नहीं हैं। कुछ भी स्थायी नहीं है। अगर कल वो इस बात का एहसास करते हैं कि वो जो कर रहे हैं वह भारत के लिए अच्छा नहीं है। हम फिर से उनके शो में हिस्सा लेना शुरू कर देंगे।
इसके साथ ही भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण शुरू होगा या फिर नहीं इसको लेकर भी इस बैठक में फैसला किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा इसकी मांग कर रहा है। और इस बीच तमाम सूत्रों के हवाले से इस तरह की खबरें भी आयी थीं। जिसमें कहा गया था कि दूसरा चरण पोरबंदर से शुरू होकर असम पर जाकर खत्म होगा। यहां तक कि गाँधी की जयंती दो अक्तूबर उसकी शुरुआत की तिथि तक सामने आ गयी थी। लेकिन बाद में पता चला कि वह सब कुछ मीडिया की खबरों तक ही सीमित था।
81 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी में नई जान फूंक दी है। कहा जा रहा है कि वह अपने बयानों और कदमों से न केवल गंभीर राजनेता साबित हुए हैं बल्कि पार्टी को जिस तरह से लेकर आगे बढ़ रहे हैं वह उनके एक कुशल संगठनकर्ता होने का प्रमाण है। उनके नेतृत्व में पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक का चुनाव जीता है। इसके साथ ही उन्होंने राजस्थान में पार्टी के भीतर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी अंतरविरोध को भी कारगर तरीके से हल करने में सफलता हासिल की है। उनके ही प्रयासों का नतीजा है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
एक सामान्य कांग्रेस सदस्य से उसके सबसे बड़े पद पर पहुंचने वाले खड़गे के हौसले बुलंद हैं। वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि मैंने एक अदना कांग्रेस कार्यकर्ता से अपनी राजनीति की शुरुआत की। उसके बाद ब्लॉक अध्यक्ष बना, फिर जिले का अध्यक्ष और उसके बाद राज्य की इकाई का अध्यक्ष बना और उसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बना और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं। इसलिए मैं नहीं सोचता हूं कि मेरे लिए कुछ भी नया है। और चूंकि बहुत सालों से मैं बहुत सारे लोगों से संपर्क में रहा हूं इसलिए मैं इसे एक रोजाना के काम के तौर पर लेता हूं। मुझे कुछ महान जिम्मेदारी दी गयी है और उसे मुझे पूरा करना है। मुझे सभी को विश्वास में लेकर चलना है।
माना जा रहा है कि इस बैठक में पार्टी 18 सितंबर से शुरू होने वाले लोकसभा के विशेष सत्र के लिए भी रणनीति बना सकती है। इस बारे में जब खड़गे से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि केवल दो लाइन का एजेंडा आया है और वो इस सत्र को इतना छोटा क्यों बनाना चाहते हैं यह मेरी समझ से बाहर है। आप इसे 15 दिन या फिर एक महीने का कर सकते थे। लेकिन यह जी-20 के साये में एक पब्लिसिटी स्टंट हो सकता है। पीएम एक प्रचार माध्यम चाहते हैं इसलिए यह उनके लिए एक आत्म प्रचार का सेशन हो सकता है।
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