आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने कल इंदौर में राम मंदिर कार सेवकों को सम्मानित करने के अवसर पर अपने मन की बात देश को बताई थी, उसने अब एक बड़े विवाद को खड़ा कर दिया है। पिछले वर्ष 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार और खुद को नॉन-बायोलॉजिकल बताते देखे गये थे, उसका हश्र 4 जून 2024 के चुनाव परिणाम में मिल गया था।
आज नरेंद्र मोदी संविधान, अंबेडकर और खुद के साधारण इंसान होने की बात को खुद स्वीकारने के बहाने देश के मतदाताओं के दिल से संविधान को बदल देने की धारणा को धो-पोछकर मिटाने की हरचंद कोशिश में जुटे हैं। लेकिन आरएसएस प्रमुख ने संघ की आंतरिक चर्चा को सार्वजनिक कर एक बार फिर से आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक की संघ की वैचारिकी के प्रति आम भारतीय को सशंकित अवश्य बना दिया है।
आज दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नए मुख्यालय के उद्घाटन के मौके पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी ने मोहन भागवत के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस ने आज के दिन देश की “लगभग हर संस्था पर कब्जा कर लिया है”। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा भारत की आजादी पर की गई टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी ने जबरदस्त प्रहार करते हुए भागवत के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाया है।
बता दें कि कल सोमवार 14 जनवरी को मोहन भागवत ने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक की तिथि को “प्रतिष्ठा द्वादशी” के रूप में मनाया जाना चाहिए क्योंकि उस दिन भारत को “सच्ची आजादी” मिली है, जिसे कई शताब्दियों तक “पराचक्र” (दुश्मन के हमले) का सामना करना पड़ा, वो स्थापित हो पाई।
राहुल गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, “हमें एक बहुत ही खास समय पर एक नया मुख्यालय मिल रहा है। यह काफी हद तक प्रतीकात्मक है कि कल एक भाषण में, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत को कभी भी 1947 में आजादी नहीं मिली थी। उनका कहना था कि देश को सच्ची आजादी तब मिली जब राम मंदिर का निर्माण हुआ। फिर उन्होंने कहा कि संविधान हमारी आजादी का प्रतीक नहीं है। मोहन भागवत की हिम्मत देखिये, वे हर दो-तीन दिन में देश को बताते रहते हैं कि वे आजादी की लड़ाई के बारे में क्या विचार रखते हैं, संविधान के बारे में उनकी क्या राय है।”
राहुल ने आगे कहा, “वास्तव में देखें कि कल उन्होंने जो कहा उसे देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। क्योंकि वो कह रहे थे कि देश का संविधान अवैध है, अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष अवैध था। ये सब सार्वजनिक मंच पर कहने की वो हिम्मत रखते हैं। किसी भी दूसरे देश में वो ऐसा कहते तो उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलता। यह तथ्य है। यह कहना कि 1947 को देश को आजादी नहीं मिली, हर भारतीय का अपमान है। समय आ गया है कि हमें इस तरह की ऊलजलूल बातें करने वालों को और बर्दाश्त करना बंद करना होगा, जिसे ये लोग सोचते हैं कि वे कुछ भी कहते रहेंगे और फिर हल्ला-गुल्ला मचाते रहेंगे।”
राहुल गांधी के अनुसार, “आज जो लोग सत्ता पर काबिज हैं, वे तिरंगे को नमन नहीं करते, राष्ट्रीय ध्वज में विश्वास नहीं करते, संविधान में विश्वास नहीं करते और भारत के बारे में उनका नजरिया हमसे पूरी तरह से विपरीत है।”
कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने आगे कहा, “ऐसा मत सोचिए कि हम कोई निष्पक्ष लड़ाई लड़ रहे हैं। इसमें कोई निष्पक्षता नहीं है। यदि आप ये समझते हैं कि हम भाजपा या आरएसएस नामक राजनीतिक संगठन से लड़ रहे हैं, तो आप नहीं समझ पा रहे हैं कि असल में क्या हो रहा है। भाजपा और आरएसएस ने हमारे देश की प्रत्येक संस्था पर कब्जा कर लिया है। हम अब भाजपा, आरएसएस और भारतीय राज्य से संघर्ष कर रहे हैं।”
इसके जवाब में भाजपा की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने मोर्चा संभाला है। हालाँकि नड्डा ने मोहन भागवत के बयान या राहुल गांधी के द्वारा संघ प्रमुख पर की गई टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया देना जरुरी नहीं समझा। लेकिन उन्होंने राहुल गांधी के पूरे बयान में से भारतीय राज्य के खिलाफ संघर्ष की बात को प्रमुख मुद्दा बनाकर हमला बोला है। इसके साथ ही भाजपा के प्रवक्ता भी न्यूज़ चैनलों पर राहुल के बयान पर हंगामा मचाना शुरू कर चुके हैं, जिसे गोदी मीडिया में तेजी से प्रचारित करना भी शुरू कर दिया गया है।
जे पी नड्डा ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर कहा है, “कांग्रेस की घिनौनी सच्चाई अब उनके अपने नेता के द्वारा ही उजागर कर दी गई है। मैं श्री राहुल गांधी की इस बात के लिए सराहना करता हूं कि उन्होंने वह बात स्पष्ट रूप से कह दी है, जिसे देश जानता है- कि वह भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं! यह कोई रहस्य नहीं है कि श्री गांधी और उनके पारिस्थितिकी तंत्र का शहरी नक्सलियों और डीप स्टेट के साथ घनिष्ठ संबंध है जो भारत को बदनाम और अपमानित करना चाहते हैं। उनकी बार-बार की कारगुजारियों ने भी इस विश्वास को मजबूत करने का काम किया है। उन्होंने जो कुछ भी किया या कहा है वो भारत को तोड़ने और हमारे समाज को विभाजित करने की दिशा में उठाया गया कदम है।”
चूँकि राहुल गांधी के भाषण के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, मल्लिकार्जुन खरगे ने भी अपने भाषण में संघ प्रमुख के खिलाफ निशाना साधा है, लिहाजा कांग्रेस की कतारों में भी इसकी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। आज दिल्ली में पार्टी के छात्र संगठन, एनएसयूआई ने सड़क पर निकलकर प्रदर्शन किया और मोहन भागवत का पुतला फूंका। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष के नेतृत्व में छात्र संगठन ने मोहन भागवत को गिरफ्तार किये जाने की मांग की। दिल्ली पुलिस ने आंदोलनरत छात्रों को हिरासत में लेकर प्रदर्शन को खत्म किया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा है, “श्री मोहन भागवत अक्सर हास्यास्पद बयानबाजी करते रहते हैं। लेकिन उनकी सबसे निम्नतम बयानबाजी के मानकों के अनुसार भी, उनका यह नवीनतम बयान न सिर्फ बेहद चौंकाने वाला है, बल्कि पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है। यह न सिर्फ महात्मा गांधी और उस उल्लेखनीय पीढ़ी का घोर अपमान है, जिसने हमें आजादी दिलाई, बल्कि 26 जनवरी 1950 के दिन लागू हुए संविधान पर भी एक और हमला है। श्री भागवत को अपनी अपमानजनक टिप्पणियों के लिए तत्काल माफी मांगनी चाहिए, जो उस विचारधारा की मानसिकता को दर्शाती है, जिसने न तो कभी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और न ही राष्ट्रपिता और डॉ. अंबेडकर को उनके जीवनकाल के दौरान सम्मान दिया।”
इसके अलावा, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने भी मोहन भागवत के बयान की कड़ी आलोचना की है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल, राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और सचिन पायलट ने भी संघ प्रमुख के बयान पर गहरी आपत्ति दर्ज करते हुए इसे संघ की मानसिकता का परिचायक बताया है।
निश्चित रूप से विपक्ष के हाथ एक बार फिर से संघ और भाजपा की वो दुखती रग मिल गई है, जिसकी एक झलक 2024 लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के 6 बार के सांसद, अनंत हेगड़े, फैजाबाद के पूर्व सांसद लल्लू सिंह, ज्योति मिर्धा या मेरठ से सांसद अरुण गोविल के बयानों से देश की आम जनता को मिली थी। देश में मौजूद दर्जनों अन्य विपक्षी पार्टियों की ओर से अभी तक मोहन भागवत के इस बयान पर कोई टिप्पणी नहीं आई है, जो राष्ट्रीय पटल पर उनकी असंवेदनशीलता का जीता-जागता सबूत है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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