Friday, April 19, 2024

फासीवाद के ख़िलाफ़ सभी दल आएं साथ, पटना में माले के अब तक के सबसे बड़े अधिवेशन में बोले दीपंकर भट्टाचार्य 

बिहार की राजधानी पटना में आज भाकपा-माले का 11वां महाधिवेशन विधिवत शुरू हो गया। माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने महाधिवेशन का उद्घाटन किया। महाधिवेशन के उद्घाटन सत्र में देश-विदेश के वामपंथी नेता मौजूद रहे। महाधिवेशन फासीवाद के खिलाफ व्यापक एकता बनाने के संकल्प के साथ शुरू हुआ।

भाकपा माले का अधिवेशन 15-20 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान 18 फरवरी को विपक्षी एकता के सवाल पर एक विशेष सत्र होगा जिसमें विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता शामिल होंगे। बता दें 15 फरवरी को माले ने पटना के गांधी मैदान में ‘लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ’ नारे के साथ एक बड़ी रैली की थी जिसमें लाखों लोगों ने शिरकत की थी।

महाधिवेशन का उद्घाटन करते हुए भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बढ़ते फासीवादी उन्माद और आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए, हमें देशभर में जुझारू लोगों की एकजुटता को मजबूत करना होगा। उन्होंने फासीवाद को हराने और लोकतंत्र की लड़ाई को जीतने के लिए सभी वामपंथी ताकतों और व्यापक विपक्ष के बीच घनिष्ठ एकता और सहयोग का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे और 2023 के हमारे प्रयास 2024 में लोकतंत्र की निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि जैसे-जैसे फासीवादी मोदी सरकार की सभी मोर्चों पर घोर विफलता और विश्वासघात तेजी से उजागर हो रहा है वैसे-वैसे वह अधिक से अधिक झूठ बोलने और डराने-धमकाने का सहारा ले रही है। सरकार ने पहले बीबीसी द्वारा बनायी गई डॉक्‍यूमेंटरी को भारत के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने से रोकने के लिए अपनी आपातकालीन शक्तियों का इस्‍तेमाल किया, फिर दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों पर आयकर विभाग ने छापे मारे।

माले महासचिव ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह पर शेयर बाजार में हेरफेर, अकाउन्‍ट में धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया, जिससे अडानी के शेयरों की कीमतों में अभूतपूर्व गिरावट आई। इससे अडानी की कुल संपत्ति में भारी गिरावट आई और वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में तीसरे स्‍थान से खिसककर बीसवें स्‍थान से भी नीचे पहुंच गये। मोदी सरकार की चुप्पी, जांच कराने से इंकार और भारत की नियामक प्रणाली की विफलता, मोदी और अडानी की सांठगांठ का ही नतीजा है।

उन्होंने कहा कि संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने अडानी के सवाल पर जवाब देने से परहेज किया और लोगों को इस नाम पर चुप रहने को कहा जा रहा है कि सरकार कथित तौर पर गरीबों को सस्ता भोजन, सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर, पक्का घर जैसी खैरात दे रही है। बीबीसी की डॉक्‍यूमेंटरी को एक औपनिवेशिक साजिश के रूप में पेश किया गया और अडानी के बारे में हुए खुलासे को भारत पर हमले के रूप में पेश किया गया। भाजपा यह सब राष्‍ट्रवाद के नाम पर कर रही है जबकि असलियत में वह राष्‍ट्रवाद का मखौल बना रही है।

महाधिवेशन में प्रतिनिधि व पर्वेक्षक

दीपंकर ने कहा कि ऑक्सफैम की नयी रिपोर्ट ने एक बार फिर से भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस असमानता को कम करने के लिए अरबपतियों पर संपत्ति और विरासत करों की शुरुआत की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने बिल्‍कुल उल्‍टा कदम उठाते हुए इस साल के बजट में मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवा व कल्याणकारी खर्च के लिए बजटीय प्रावधान को कम कर दिया और अरबपतियों के लिए कर में और भी कटौती की घोषणा कर दी।

उन्होंने कहा कि जहां आम लोगों की बिगड़ती जीवन स्थितियों और आर्थिक मोर्चे पर सरकार की भारी विफलता के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। लेकिन मोदी सरकार लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। सामाजिक और आर्थिक संकट का इस्तेमाल अंधराष्ट्रवादी फासीवादी उन्माद फैलाने के लिए करना चाहती है।

माले महासचिव ने कहा कि मोदी सरकार मुसलमानों को एक समुदाय के रूप में निशाना बना रही है साथ ही प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और सभी असहमति की आवाजों और न्याय व परिवर्तन के लिए लड़ने वाले सामाजिक समूहों को राष्ट्र-विरोधी बताकर घृणा व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने की कोशिश कर रही है।

उन्होंने कहा कि सब के लिए घर, बिजली, शौचालय और पानी मुहैया कराने के झूठे वादों की जगह अब बुल्‍डोजर से लोगों के घरों को ढहाया जा रहा है। नफरती और छद्म आध्‍यात्मिक गुरुओं द्वारा तथाकथित धार्मिक सभाओं के मंचों से खुले तौर पर जनसंहार के आह्वान किए जा रहे हैं।

महाधिवेशन को संबोधित करते दीपंकर

माले महासचिव ने कहा कि संवैधानिक शासन के सभी संस्थानों को नष्‍ट किया जा रहा है। कार्यपालिका खुले तौर पर विधायिका और न्यायपालिका के मामलों में हस्‍तक्षेप कर रही है। राज्यपालों के कार्यालयों, केन्‍द्र द्वारा नियुक्‍त संस्‍थाओं के प्रमुखों और केन्‍द्रीय जांच एजेंसियों को नियंत्रण के उपकरणों में बदल देने के जरिये केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को महिमामंडित नगरपालिकाओं में बदल देने की कोशिश की है।

नागरिकता कानून, आरक्षण नीतियों में बदलाव और लोगों के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, श्रमिक वर्ग, किसानों, छोटे व्यापारियों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं के मौजूदा अधिकारों के क्षरण के साथ संविधान को ही खोखला और भीतर से कमजोर किया जा रहा है। जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की है लोकतंत्र और विविधता पर यह हमला 2023 में भारत के जी20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से लेकर 1 जनवरी, 2024 को निर्धारित राम मंदिर के उद्घाटन के जश्न तक ढोल-नगाड़ों के साथ जारी रहेगा।

माले महासचिव ने कहा कि बढ़ते फासीवादी उन्माद और आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए, हमें भारत भर में जुझारू लोगों की एकजुटता को मजबूत करने की जरूरत है। कोविड-19 महामारी से पहले नागरिकता आंदोलन और कोविड काल की कठोर परिस्थितियों को धता बताते हुए और मोदी सरकार को विनाशकारी कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए मजबूर करने वाले किसान आंदोलन में जिस तरह की एकता और उत्‍साह को हमने देखा था उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि बेदखली, निजीकरण और सांप्रदायिक, जातिगत और पितृसत्तात्मक हिंसा के खिलाफ कई शक्तिशाली संघर्षों का निर्माण और भोजन, आवास, शिक्षा और रोजगार, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के सार्वभौमिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए नये ऊर्जावान आंदोलन खड़े करने की जरूरत है।

शहीदों को पुष्पांजलि

फासीवाद को हराने, संविधान को बचाने और भारत के लोगों के लिए एक प्रगतिशील और समृद्ध भविष्य बनाने की लोकप्रिय राजनीतिक इच्छाशक्ति की नींव पर ही जनता की देशव्यापी एकजुटता विकसित और सफल हो सकती है।

माले महासचिव ने कहा कि हम सभी वामपंथियों को इस लोकप्रिय एकजुटता को कायम करने और एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक संघीय भारत के एजेंडे को आगे बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभानी होगी। 2023 के हमारे प्रयास 2024 में लोकतंत्र की निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हमें फासीवाद को हराने और लोकतंत्र की लड़ाई जीतने के लिए सभी वामपंथी ताकतों और व्यापक विपक्ष के बीच घनिष्ठ एकता और सहयोग की आवश्यकता है और हमें विश्वास है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।

दीपंकर ने कहा कि फासिस्‍ट भारत की राज्य सत्ता से ही नहीं बल्कि दुनियाभर में दक्षिणपंथी ताकतों के उभार से भी अपनी ताकत हासिल कर रहे हैं। वे भारत की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और राजनीतिक इतिहास के सभी प्रतिगामी पहलुओं से अपनी जीवनीशक्ति पा रहे हैं।

हमें इस फासीवादी मंसूबे को विफल करने के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रगतिशील विरासत और साम्राज्यवाद-विरोधी और फासीवाद-विरोध की परंपरा से ताकत हासिल करते हुए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए बड़े संघर्षों के निर्माण की जरूरत है। हमें विश्वास है कि आपके सहयोग से 11वां महाधिवेशन इस यात्रा को आगे बढ़ायेगा।

नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री का संबोधन

माले के महाधिवेशन को संबोधित करते हुए नेपाल पूर्व उप प्रधानमंत्री व नेकपा (एमाले) के नेता ईश्वर पोखरेल ने भाईचारे और एकता के संदेश के साथ महाधिवेशन के भव्य सफलता की कामना की।

महाधिवेशन को संबोधित करते नेपाल पूर्व उप प्रधानमंत्री ईश्वर पोखरेल

उन्होंने भारत व नेपाल के कम्युनिस्ट आंदोलन की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में नेपाल ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। भारतीय जनता ने भी नेपाल के लोकतंत्र आंदोलन में सहयोग किया था।

उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत में लोकतंत्र पर मंडराता हुआ संकट जरूर टलेगा और जो भी ताकतें तानाशाही थोपने का प्रयास करती हैं, उन्हें पीछे धकेल दिया जाएगा।

व्यापक विपक्षी एकता पर जोर

महाधिवेशन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सीपीआई नेता पल्लव सेन गुप्ता ने फासीवादी खतरे, पर्यावरण असंतुलन, दलित अधिकारों को खत्म करने की साजिश और न्याय तंत्र पर मंडराते खतरे की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें एक व्यापक एकता के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

सीपीएम नेता सलीम ने राष्ट्रीय संपदा की लूट, मोदी राज में आधारभूत संरचनाओं को ध्वस्त करने की जारी प्रक्रिया, पब्लिक सेक्टर के निजीकरण, बेरोजगारी, बुल्डोजरराज, लव जिहाद, किसान आंदोलन आदि की चर्चा करते हुए लेफ्ट यूनिटी पर जोर दिया।

महाधिवेशन के मंच पर वाम दलों के नेता

भाकपा-माले के वरिष्ठतम नेता स्वदेश भट्टाचार्य ने कहा कि हमें उम्मीद है कि अगले पांच दिनों तक चलने वाला महाधिवेशन फासीवादी ताकतों के खिलाफ व्यापक विपक्ष की एकता के निर्माण की दिशा में एक बड़ा पड़ाव साबित होगा।

स्वागत समिति के अध्यक्ष का संबोधन

स्वागत समिति के अध्यक्ष व जाने माने इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार की धरती सदियों से असहमति और नई राह बनाने वालों की धरती रही है। उन्होंने बिहार में आर्यों के विरोध की गाथा सुनाते हुए कहा कि बिहार ने आर्यों की सत्ता को भी नहीं स्वीकार किया। मध्य काल, आधुनिक काल में भी बिहार के लोगों ने लड़ाइयां लड़ीं। उन्होंने कहा कि बिहार की धरती आज भी लड़ने को तैयार रहती है।

उन्होंने आज की परिस्थिति को विकट काल बताया। फासीवाद चेहरा बदल बदल कर सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि आरएसएस काफी खोजबीन के बाद नाजियों के आदर्श पर चलता है और कभी लोकतंत्र की राह पर नहीं चल सकता है, वह अधिनायकवाद के रास्ते पर चलने का काम करता है।

महाधिवेशन को संबोधित करते स्वागत समिति के अध्यक्ष प्रो ओपी जायसवाल

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी पर ध्यान नहीं वह सिर्फ क्रोनी कैपिटिलिज्म पर ध्यान दे रही है। जबकि आजादी के बाद देश में बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक है। किसानों के कर्ज को माफ करने की कोई  पहल नहीं हुई। बिहार की धरती से हमेशा विषम परिस्थिति में भी विद्रोह का शंखनाद हुआ है और हमेशा विजय प्राप्त हुई है। बिहार की धरती मुक्ति का मार्ग दिखलाएगी।

शहीदों की याद के साथ महाधिवेशन की शुरुआत

महाधिवेशन की शुरुआत पिछले पार्टी कांग्रेस से लेकर अब तक गुजर चुके पार्टी नेताओं व अन्य आंदोलनकारियों के प्रति शोक प्रस्ताव के साथ किया गया, जिसका पाठ केंद्रीय कमिटी सदस्य अभिजीत मजुमदार ने किया। पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने मेहमानों व देश के विभिन्न इलाकों से आए प्रतिनिधियों व पर्यवेक्षकों का स्वागत किया।

महाधिवेशन के उद्घाटन सत्र का संचालन ऐपवा नेता मीना तिवारी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन राजाराम सिंह ने किया। इस मौके पर स्वागत समिति की ओर से प्रो. भारती एस. कुमार, गालिब, प्रो. संतोष कुमार, प्रो. विद्यार्थी विकास सहित कई लोग उपस्थित थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ उद्घाटन सत्र की समाप्ति हुई।

शहीदों को श्रद्धांजलि

18 फरवरी को विपक्षी एकता पर विशेष सत्र

भाकपा-माले के 11 वें महाधिवेशन के दौरान 18 फरवरी को विपक्षी एकता के सवाल पर एक विशेष सत्र होगा। महाधिवेशन के ही मंच से फासीवादी हमले से लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिए व्यापक विपक्षी एकता के निर्माण के सवाल पर यह राष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित होगा।

भाकपा-माले ने इस कन्वेंशन में शामिल होने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी सहित विपक्ष के कई नेताओं को आमंत्रित किया गया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस कन्वेंशन में शामिल होंगे।

माले के इतिहास का सबसे बड़ा महाधिवेशन

भाकपा-माले के महाधिवेशन में 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सत्रह सौ से अधिक प्रतिनिधि और पर्यवेक्षक भाग ले रहे हैं। इस लिहाज से यह माले के इतिहास का सबसे बड़ा महाधिवेशन है।

पार्टी ने अपने दो नेताओं को श्रद्धांजलि देने के लिए पटना को विनोद मिश्र नगर और सभागार को रामनरेश राम हॉल का नाम दिया है। मंच डीपी बख्शी, बीबी पांडे और एनके नटराजन की स्मृति को समर्पित है। ये तीनों नेता माले की केन्‍द्रीय कमेटी के सदस्‍य रहे हैं।

माले के इतिहास का सबसे बड़ा महाधिवेशन

महाधिवेशन में वाम दलों की भागीदारी

सीपीआई (एम) नेता सलीम, सीपीआई नेता पल्लब सेनगुप्ता, आरएसपी नेता मनोज भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से जी देवराजन, मार्क्सवादी समन्वय समिति से हलधर महतो, लाल निशान पार्टी महाराष्ट्र से भीमराव बंसोडे, आरएमपीआई से मंगतराम पासला और सत्यशोधक कम्युनिस्ट पार्टी से किशोर धामले उद्घाटन सत्र में शामिल रहे और महाधिवेशन को संबोधित किया।

अंतराराष्ट्रीय एकजुटता

भाकपा माले के महाधिवेशन से पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और वेनेजुएला जैसे देशों के प्रगतिशील पार्टियों और संगठनों ने अंतर्राष्ट्रीयवादी एकजुटता व्यक्त की। श्रीलंका, पाकिस्तान और जर्मनी के वीजा की समस्या के कारण पार्टियों ने नेता नहीं आ सके, लेकिन एकजुटता के संदेश दुनिया के कोने-कोने से आए हैं। नेपाल पूर्व उप प्रधानमंत्री व नेकपा (एमाले) के नेता ईश्वर पोखरेल ने महाधिवेशन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।

महाधिवेशन के प्रस्ताव

भाकपा माले का महाधिवेशन फासीवाद के खिलाफ संघर्ष लिए पूरी तरह से समर्पित है। राजनीतिक प्रस्‍ताव और संगठनात्मक रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के अलावा, महाधिवेशन के एजेंडे में दो अन्य विशिष्ट प्रस्‍ताव भी शामिल हैं- एक, फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध की दिशा, परिप्रेक्ष्य और हमारे कार्यभार और दूसरा, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु न्याय प्रश्‍न पर।

माले का यह महाधिवेशन दुनियाभर में मेहनतकश लोगों पर थोपी गई तरह-तरह की कटौतियों, फासीवाद और निरंकुशतावाद के नए सिरे से उदय, युद्ध, कब्जे और छोटे व कमजोर देशों की संप्रभुता पर हमले और हमारे ग्रह के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले जलवायु संकट समेत आज के सड़ते हुए पूंजीवाद द्वारा पैदा किये गये तमाम संकटों से दुनिया को मुक्त करने की लड़ाई को तेज करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता और सहयोग के अपने संबंधों को मजबूत करने पर केंद्रित होगा।

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