पेगासस कांड की कोर्ट की निगरानी में जांच के लिए माकपा सांसद की सुप्रीम कोर्ट में याचिका

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पेगासस जासूसी कांड के मामले में उच्चतम न्यायालय में एक और याचिका दायर की गई है। माकपा के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने इजराइली स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल करके सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, पत्रकारों और संवैधानिक पदाधिकारियों की जासूसी की रिपोर्ट की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इससे पहले अधिवक्ता एम एल शर्मा ने याचिका दायर कर मांग की थी कि न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा जांच कराई जाए।

दरअसल मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल मंत्रियों, राजनीतिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों और पत्रकारों सहित लगभग 300 भारतीयों पर निगरानी करने के लिए किया गया था, जिसके बाद एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया और इसकी गूंज सड़क से लेकर संसद तक सुनाई दी। इससे पगले अधिवक्ता एम एल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि पेगासस कांड गहरी चिंता का विषय है और यह भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है तथा ‘व्यापक स्तर पर और बिना किसी जवाबदेही के निगरानी करना नैतिक रूप से गलत है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सदस्य ब्रिटास ने रविवार को एक बयान में कहा कि बहुत गंभीर प्रकृति के बावजूद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को लेकर आरोपों की जांच कराने संबंधी परवाह नहीं की है। उन्होंने कहा ”इसलिए, इस संबंध में संसद में प्रश्न उठाए गए थे। लेकिन सरकार ने स्पाईवेयर द्वारा जासूसी से न तो इंकार किया और न ही स्वीकार किया है।

पेगासस विवाद पर सरकार ने कहा था कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा था कि संसद के मॉनसून सत्र के एक दिन पहले रिपोर्ट का आना संयोग नहीं है। उन्होंने कहा था कि अतीत में व्हाट्सएप पर पेगासस के इस्तेमाल करने का दावा सामने आया। इन खबरों का तथ्यात्मक आधार नहीं है और सभी पक्षों ने इससे इंकार किया है। हालांकि मंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं।

ब्रिटास ने रविवार को यह भी दावा किया कि आरोपों से दो निष्कर्ष निकलते हैं, या तो जासूसी सरकार द्वारा या फिर किसी विदेशी द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि यदि यह सरकार द्वारा किया गया तो यह अनधिकृत तरीके से किया गया। यदि किसी विदेशी एजेंसी द्वारा जासूसी की गई है तो यह बाहरी हस्तक्षेप का मामला है और इससे गंभीरता से निपटने की आवश्यकता है।

इससे पहले प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठन भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराए जाने की मांग कर चुके हैं। विपक्षी दल के नेता भी संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग लगातार कर रहे हैं। ऐसी मांग तब से उठ रही है जब इजराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर का विवाद आया है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई।

‘द गार्डियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द वायर’ सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजराइली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। द वायर के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। ये नंबर विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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