Tuesday, March 28, 2023

वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील प्लांट की काली-करतूतों का कच्चा-चिट्ठा

विशद कुमार
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वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील प्लांट की मौजूदा स्थिति से अवगत कराने से पहले यह बताना जरूरी हो जाता है कि इसकी नींव इलेक्ट्रो स्टील कंपनी के नाम से लगभग 2005-2006 में रखी गई थी।

कंपनी ने सैकड़ों की संख्या में चीनी नागरिकता वाले कारीगरों, इंजीनियरों व तकनीशियनों की मदद से और भारी-भरकम मशीनों का उपयोग कर महज कुछ ही घंटों में वन भूमि की प्रकृति ही बदल दी। यह काम साल 2008-09 में हुआ, जब इलेक्ट्रो स्टील कंपनी के पास इस कारखाने का सम्पू्र्ण स्वामित्व था। परन्तु बाद के दिनों में इलेक्ट्रो स्टील ने इसे वेदांता ग्रुप के हाथों बेच दिया और आनन-फानन में वेदांता ग्रुप ने इसे खरीदकर इसका नाम वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील कर दिया।

सरकारी कर्मचारियों से मिलीभगत कर वनभूमि पर कब्जा

वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन विभाग द्वारा चिन्हित एवं अधिसूचित भूमि पर किसी तरह का निर्माण आदि नहीं किया जा सकता है। यदि राज्य सरकार को भी किसी विशिष्ट परियोजना के लिए ऐसी जमीन की जरूरत होती है तो उसे वन भूमि के उपयोग की अनुमति भारत सरकार से लेनी होती है। लेकिन इस कंपनी ने भारत सरकार के वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन किया है।

झारखंड में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से वन भूमि की हो रही खुली लूट के एक मामले में सुनवाई करते हुए लगभग तीन माह पूर्व झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सरकार की बखिया उधेड़ दी।

नवम्बर 2022 के पहले सप्ताह में झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एस. एन. प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य में वन भूमि पर अतिक्रमण करने को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों ने मिलीभगत कर वन भूमि को बेच दिया। इसलिए मामले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी।

सरकार ने जवाब देने का मौका मांगा। झारखंड सरकार की ओर से तीन सप्ताह का समय दिए जाने की मांग की जा रही थी, लेकिन अदालत ने कहा कि कोर्ट इतना समय नहीं दे सकती है। सरकार के बार-बार आग्रह करने के बाद अदालत ने दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। सरकार ने हाईकोर्ट में क्या जवाब दिया, इस बारे में अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है।

इस संबंध में आनंद कुमार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य के विभिन्न वन प्रमंडलों की पचास हजार हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है।

कुछ जगहों पर अधिकारियों की मिलीभगत से वन भूमि बेच दी गई है। वैसे तो वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील कारखाना के अवैध वनभूमि के कब्जे को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं, लेकिन कोई लिखित शिकायत कहीं उपलब्ध नहीं है।

इस बावत तत्कालीन जेवीएम के नेता एवं चास – चन्दनकियारी के एक समाजसेवी कुमार राजेश बताते हैं कि वेदान्ता इलेक्ट्रो स्टील ने सरकारी सांठगांठ करके अपनी हेकड़ी इस तरह से जमा ली है कि कोई भी कानून या सरकारी संस्था उसके लिए मायने नहीं रखता है। वन, श्रम विभाग और प्रदूषण नियमों को हमेशा ठेंगा दिखाना इसकी परिपाटी है। लगातार सुरक्षा मानकों के अवहेलना के कारण आए दिन दुर्घटना होना आम बात है।

सुरक्षा कर्मी लोकल गुंडे का किरदार निभाने के लिए रखे गये हैं, जिनका काम स्थानीय लोगों को आतंकित करना रह गया है। बेतरतीब ढंग से ट्रैफिक संचालन और माल ढुलाई के कारण सड़क दुर्घटना का होना आम है। कारखाने में सेफ्टी का कोई इन्तजाम नहीं है।

वन-भूमि अतिक्रमण पर वे बताते हैं कि सन् 2011-12 के आसपास वेदान्ता इलेक्ट्रो स्टील को वन भूमि कब्जे के मामले में वन विभाग एवं प्रशासन के द्वारा क्लीन चिट दे दिया गया था। गौरतलब बात यह है कि उस समय वन निगम के उपाध्यक्ष के पद पर स्थानीय विधायक उमाकांत रजक काबिज़ थे। यह जांच वन विभाग द्वारा स्वतः ही की गई थी। ऑफ द रिकार्ड स्थानीय लोगों के द्वारा जमीन कब्जाने के आरोपों से सहमति व्यक्त करते हैं।

अगर इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए तो बड़े घोटालों का न सिर्फ पर्दाफाश होगा, बल्कि अरबों रुपये मूल्य की सरकारी सम्पत्ति को लूटने व लुटवाने वाले लोग बेनकाब होकर कानून के शिकंजे में होंगे।

किसानों की जमीन ली, लेकिन रोजगार किसी नहीं मिला 

रैयतों की परेशानियों की बात करें जिसने इस प्लांट को स्थापित करने के लिए अपनी कृषि योग्य जमीन को दिया हुआ है तो, इस जमीन को जमीन दलालों एवं भू माफियाओं के द्वारा लिया गया है। जिस वक्त इस जमीन को लिया जा रहा था, उस वक्त यहां के लोगों को 350 से 850 रू के बीच ही प्रति डिसमिल की कीमत पर भुगतान किया गया है।

इस प्लांट को स्थापित करने के लिए जिन गांव के लोगों ने जमीन दी हुई है उनमें भागाबांध, मोदीडीह, चंदाहा, कुमारटाड़, सियालजोरी, अलकुसा, गिद्ध टाड़, भंडारीबांध, मोहाल, तेतुलिया इत्यादि गांव के लोगों ने इस आशा एवं विश्वास के साथ जमीन दी थी कि यहां के लोगों को नौकरी एवं आसपास के लोगों को रोजगार दिया जाएगा। परंतु  20%जमीन दाताओं को ही रोजगार दिया गया है, बाकी 80 फ़ीसद रैयतों को अभी तक रोजगार नहीं दिया है और आज स्थिति यह है कि प्रभावित गांव के लोगों को आधार कार्ड देखते ही उनके पेपर को डस्टबिन में फेंक दिए जाते हैं।

रैयतों का 350 से 850 रु. एक डिसमिल जमीन का जो राशि बनता था, उसे भी पूरी तरह से भुगतान नहीं किया है, रैयत आज भी प्लांट का चक्कर लगा रहे है। दूसरी तरफ कंपनी ने वन विभाग की लगभग 400 से 500 एकड़ जमीन पर अपने प्लांट को स्थापित कर चुका है और कुछ एकड़ कब्जा करके रखा हुआ है।

बोकारो जिले के चास मुफस्सिल थाना अंतर्गत अलकुसा गांव के निवासी व सामाजिक कार्यकर्ता सनाउल अंसारी बताते हैं कि मेरे ही सामने वन विभाग के लोगों पर कंपनी ने हमला करते हुए जमीन पर कब्जा किया था, परंतु अभी तक कंपनी पर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई है, इसकी जांच होनी चाहिए।

जानलेवा प्रदूषण 

वे आगे बताते हैं कि बांधडीह रेलवे साइडिंग में जिसमें राॅ-मेटेरियल की ढुलाई  ईएसएल वेदांता के द्वारा बाई रोड हाईवा वाहन से की जाती है, उसमें ओवरलोड की शिकायत उपायुक्त एवं आरटीओ से कई  बार किया गया है। फिर भी ओवरलोड कम नहीं हुआ है। जिसके कारण प्रदूषण भी बहुत फैलता है, पेड़ पौधे पूरी तरह काली गंदगी से भरे हुए हैं। रोड के किनारे जो भी मकान वगैरह हैं, उनके भी रंग काले हो गए हैं।

जिस कारण यहां वास करने वाले लोग टीबी, दमा सहित कई सांस की बीमारियों को झेलने को मजबूर हैं। इन बीमारियों के कारण बांधडीह गांव के दो से तीन लोगों की मौत हो भी हो चुकी है।

मजदूर बुनियादी हकों से वंचित 

रेलवे साइडिंग में लगभग 600 से 800 के बीच मजदूर कार्य करते हैं, परंतु इन मजदूरों को ना ही पीएफ और ना ही ईएसआई का कोई लाभ मिल पाता है। इस विषय पर लगभग सात आठ बार आंदोलन भी किया गया। परंतु अभी तक मजदूरों का पीएफ एवं ईएसआई की व्यवस्था नहीं की गई है। जिस वजह से यहां के मजदूरों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं रेलवे साइडिंग में सेफ्टी की भी सुविधा नहीं रखी जाती है,  जिसके कारण कई बार दुर्घटना हो चुकी है।

वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील प्लांट में सुरक्षा कोई इंतजाम नहीं 

वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील प्लांट  के अंदर सेफ्टी का कोई भी इन्तजाम नहीं रखा गया है, जिस कारण ऑक्सीजन प्लांट में साल 2017-18 के बीच एक विस्फोट हुआ था जिसमें कई मजदूर घायल हुए थे और इस विस्फोट का नतीजा यह रहा कि विस्फोट का जो मलबा निकला वह मलबा भागाबांध गांव के घरों में पूरी तरह से घुस गया था जिस कारण ग्रामीण भी बहुत परेशानियां का सामना करना पड़ा था। एक तरह से भागाबांध गांव प्लांट की चहारदिवारी में कैद है अतः कभी भी गांव के लोगों को कोई बड़ी दुर्घटना होने पर अपनी जान गंवानी पड़ सकती है।

2 साल के भीतर वहां विभिन्न दुर्घटनाओं में 8 से 15 लोगों की मौत हो चुकी है।2020 से 21 के बीच में बीएफ 2 ब्लास्ट फर्नेस टू में एक लिफ्ट में दुर्घटना होने के कारण तीन लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी।

अभी लगभग 2 से 3 माह पूर्व प्लांट के अंदर 220 केवीए एमआरएसएस साइडिंग में बिजली की शार्ट सर्किट के कारण बहुत बड़ा विस्फोट हुआ, जिसमें लगभग 10 से 15 लोगों की मौत हुई थी। जबकि प्रशासनिक एवं कंपनी के आंकड़ों के हिसाब से 3 लोगों को मृत घोषित किया गया था।

इसी तरह आए दिन प्लांट के भीतर भी छोटी बड़ी दुर्घटना होती रहती है। क्योंकि प्लांट के अंदर सेफ्टी का कोई ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है। अधिकारियों के द्वारा जबरन मजदूरों को काम करवाया जाता है और मना करने पर प्लांट से बाहर की ओर रास्ता दिखा दिया जाता है, जिसकी वजह से मजदूर भी बंधुआ मजदूर की तरह कार्य कर रहे हैं। यह जांच का विषय है मगर प्रशासनिक मिलीभगत से सबकुछ हो रहा है।

( विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Unknown person
Unknown person
1 month ago

Yes exactly yahi ho rha hain plant main mrss ka accident ko daba diya gya hain..

Abkkfg
Abkkfg
1 month ago

Fake news

Bikram tiwary
Bikram tiwary
1 month ago

Pura plant management hi chor hai

D Bauri
D Bauri
1 month ago

Durghatna kis plant me nhi hota hai…is news ko kuch jada v badha chada Kr pes kiya gya hai..

Natrah
Natrah
1 month ago

Paisa Khane ke Liye Media Jod Marr raha. Neta, Goonda aur Media Lootne mei laga hai.
Factory band ho to ho jaaye ye log ko fark nahi padta hai.
Sirf Durgandh Sunghte hai.
Achha kuchh dikhta hi nahi.

Mishra
Mishra
1 month ago

Ya Jo bhi likha gya h bilkul sahi h aur es company may jo bhi contractor h vo bhi vedanta ka sath dya rahya h agar prof krna h to mujhya bataya

Raju Mahato
Raju Mahato
10 days ago

पूरी सच्चाई लिखा है आपने mrss वाली घटना में करीब 30-32 लोग थे कुछ तो अंदर ही दब गए थे,सिर्फ 3 लोगो के मरने की खबर सामने आई थी, यहां के प्रशासन प्लांट के गुंडे है,जो हर आंदोलन को बिफल करने के लिए है, इनके CSR विभाग भी कुछ कम नहीं है, ग्रामीणों के लिए ना तो कोई स्कूल दिए है नही कोई अस्पताल या एंबुलेंस सेवा है, आस पास के कुएं और तालाब समय से पहले सुख जाते है,मवेशियों के लिए ना स्वच्छ पानी बचता है ना घास सब तरफ सिर्फ गंदगी प्लांट अपनी मनमानी करती है जो अब नही चलेगी,बहुत जल्द जवाब दिया जाएगा।
सियालजोरी ग्रामीण
धन्यवाद

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