ग्राउंड रिपोर्ट: देव दीपावली यानि कीचड़ में रेड कॉर्पेट पर वीआईपी जश्न की तैयारी  

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वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इन दिनों डेंगू, मलेरिया, टायफॉयड समेत अन्य बीमारियों ने मासूम जनता पर कहर बरपाया हुआ है। तीमारदार ब्लड और प्लेटलेट्स के लिए अस्पतालों की खाक छान रहे हैं। बाढ़ के चलते दो महीने से अधिक समय तक गंगा में नाव बंद होने से मल्लाह (नाविक) परिवारों को कर्ज लेकर गृहस्थी की गाड़ी खींचनी पड़ी है। गंगा नदी के किनारे हजारों छोटे-बड़े व्यापारियों, रेहड़ी-पटरी, ठेले-खोमचे, फेरीवाले, माला-फूलवाले, बुनकर, हथकरघा, मजदूर, घाटों की सीढ़ियों पर सिंदूर, चूड़ी, बिंदी आदि बेचने वाली महिलाएं और पूजा -पाठ सामानों के दुकानदारों की आमदनी को बाढ़ ने बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया। अब देव दीवापली मनाने के लिए प्रशासन घाटों व सीढ़ियों पर पसरे गाद और कीचड़ को हटवाने में लगा है, ताकि वीआईपी मेहमानों के जश्न के लिए रेड कॉर्पेट बिछा सकें। 10 लाख दीयों से 85 से अधिक घाट जगमग होंगे। इसके लिए दीया, बाती और तेल का खर्चा योगी सरकार दे रही है।

मौजूदा सरकार और जिला प्रशासन को हर बार की तरह फिर इवेंट और जश्न मनाने का अवसर मिल गया है। दशकों पहले काशी में देव दीपावली बनारस के नागरिक मनाते थे। घाटों, सीढ़ियों, मदिरों, नावों, इमारतों, घर-मकानों और गंगा के तटों को जगमग करने के लिए दीया-बाती, तेल और मोमबत्ती अपने घर से ले आते थे। इसमें शरीक होने के लिए देश-विदेश से लाखों की तादाद में सैलानी आते थे और नाव में बैठकर लाखों दीपों से जगमग गंगा के घाटों को अपलक निहारते थे। अब बदलते समय की चाल में हाल के दशकों में घाटों को जगमग करने का ठेका जिला प्रशासन ने अपने हाथ में ले लिया।

डबल बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले राजघाट निवासी जीतन साहनी बताते हैं कि “मैं अपने परिवार का भरण-पोषण नाव चलाकर करता हूं। पहली बार गंगा में बाढ़ आई और गंगा पूरे उफान पर थी तो डीसीपी काशी के आदेश पर गंगा में नाव का संचालन बंद करा दिया गया। आम दिनों में मैं नाव पर सैलानियों को गंगा में घुमाकर 700 से 900 रुपए कमा लेता था। इन रुपयों से पांच सदस्यीय परिवार का गुजर-बसर और अन्य जरूरतें पूरी होती हैं। लगभग डेढ़ महीने तक नाव संचालन ठप होने से आमदनी बंद हो गई और परिवार के गुजारे के लिए रुपए उधार लेने पड़े। गंगा की बाढ़ 40-45 दिनों बाद उतरी तो फिर कुछ ही दिनों बाद गंगा में पलट बाढ़ आ गई। इससे गंगा में बहाव बहुत तेज होने से पुलिस ने दोबारा नाव का संचालन रोक दिया था। अब देव दीपावली को सैलानियों को घुमाकर कुछ रुपए आमदनी होने की उम्मीद है। मेरे ख्याल से प्रशासन को नाविकों के आजीविका और जीवन स्तर के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। क्योंकि गंगा में बाढ़ तो हर साल आती है। बाढ़ की वजह से स्मार्ट सिटी बनारस में सबसे अधिक नुकसान मल्लाहों को उठाना पड़ता है।”   

गंगा किनारे कुल 90 से अधिक घाट हैं। अब भी गंगा भरी हुई है और पानी का बहाव काफी तेज है। पानी होने की वजह से कई घाट आपस में अब भी सुगम तरीके से नहीं जुड़ पाए हैं। घाट किनारे अब भी कीचड़, गाद और सिल्ट जमी हुई है। देव दीपावली से पहले नगर निगम ने दो किमी से अधिक के दायरे में अस्सी घाट से लेकर राजघाट के खिड़कियां घाट तक 50 से अधिक घाटों से सिल्ट व कीचड़ हटाने के लिए मजदूरों की संख्या बढ़ा दी है। उन मजदूरों को मिट्टी काटने के लिए अब फावड़ा भी इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं कि “सिल्ट व गाद को फौरी तौर पर हटाया जा रहा है। लेकिन पक्के घाटों के नीचे नमी और दलदली मिट्टी से हजारों सैलानियों को कौन बचाएगा ? रेड कॉर्पेट कीचड़ में सन जाएगा।”

पीलीकोठी स्थित कटेहर वार्ड के पार्षद अफजल अंसारी कहते हैं “हमारे इलाके में सबसे अधिक बुनकरों की आबादी है। शासन के अधिकारी और आला जनप्रतिनिधि मेरे वार्ड से साथ सौतेला व्यवहार करते हैं। बुनकरों को शासन सहयोग और योजना का लाभ दिलाने के लिए आंदोलन करने पर जेल में बंद करने की धमकी दी जाती है। कंट्रोल वाले रुपए लेकर अपात्रों को योजना का लाभ देते हैं। इसकी जांच हो और पात्र बुनकरों को हथकरघा, पावरलूम और राशन समेत सभी योजनाओं के लाभ दिए जाएं। तभी बनारस में हुनरमंद कारीगरी बुनकरी को बचाया जा सकता है।”

विशेश्वरगंज मंडी के अध्यक्ष भगवानदास जायसवाल का कहना है कि “देव दीपावली मनाना अच्छी बात है। इससे पहले जिला प्रशासन और सरकार को अंग्रेजों के ज़माने की पुरानी किराना मंडी को मॉडर्न बनाने के बारे में भी सोचना चाहिए। विशेश्वरगंज किराना मंडी में बनारस समेत पूर्वांचल के दर्जन भर और बिहार के आधा दर्जन जिलों से रोजाना हजारों की संख्या में थोक व फुटकर व्यापारी सामान खरीदने आते हैं। मंडी में अव्यवस्था चरम पर है, दोनों पहर जाम की स्थिति, दुकानों के खपरैल उखड़े हुए हैं। बारिश के दिनों में सीलन होने से अनाज नुकसान होता है, अतिक्रमणकारियों का बोलबाला है। रोशनी, टॉयलेट और यूरिनल आदि की व्यवस्था नहीं है। हर महीने मंडी से लाखों रुपए का राजस्व सरकारी खजाने में जमा होता है। बेहतर होता कि सरकार और जिला प्रशासन मंडी को आधुनिक बनाने पर भी ध्यान दें।”  

भैंसासुर घाट के पास सड़क किनारे कुसुम देवी चूड़ी-बिंदी ठेले पर सजाकर बेचती हैं। वह बताती हैं कि “मेरा बेटा नाव चलाता है, जो तकरीबन एक महीने से बेरोजगार था। अब जाकर उसे काम मिलने लगा है। गंगा में बाढ़ व सैलानियों के कम आने से चूड़ी-बिंदी का धंधा भी एकदम मंदा चल रहा था। मेरा पैर भी फ्रैक्चर हो गया था। परिवार का पेट पालने और दवा आदि के लिए कर्ज लेना पड़ा। प्रशासन से उम्मीद बेईमानी है। वोट मांगने के लिए सभी आते हैं, लेकिन दुःख-तकलीफ के वक्त किसी का पता नहीं चलता है। देव दीपावली को लेकर अब घाटों पर सैलानियों के आने से चूड़ी-बिंदी की बिक्री बढ़ी है।”

मानमंदिर घाट पर नाव चलाने वाले अठाइस वर्षीय विक्की कहते हैं कि “अधिकतर छोटे-बड़े नाविकों का एक महीने से काम ठप्प था। देव दीपावली को लेकर अच्छी इंक्वायरी और बुकिंग मिली है। सरकार की पहल पर नाविकों के मोटरबोट में डीजल इंजन हटाकर सीएनजी इंजन लगाने की कोशिश का हासिल कुछ नहीं है। डीजल हटाकर नाव में सीएनजी इंजन इंस्टॉल करने के कुछ ही दिनों बाद इंजन में खामियां आने लगीं। गंगा में सैलानियों को सैर कराने के दौरान कभी क्रैंक टूट जाता है तो कभी गरम होकर इंजन दम तोड़ देता है।

इसके चलते सैलानियों की खरी-खोटी हमें सुननी पड़ती है। कुछ नाविक तो सीएनजी इंजन में लगातार खामी आने से इसे हटाकर पुनः डीजल इंजन इंस्टाल कर रहे हैं। सीएनजी और तकनीकी दिक्कत दूर करने के लिए चार से पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इससे आर्थिक नुकसान और काफी समय बर्बाद होता है। जब नाविकों को सीएनजी दिया गया था तो बताया गया था कि सीएनजी ईंधन डीजल से सस्ता है। शुरूआत में सीएजी का रेट 50 रुपए था, आज 89 रुपए प्रतिकिलो हो गया है। सरकार हमारे गले में आफत की घंटी नहीं बांधे। सुगम और टिकाऊ विकल्प मुहैया कराये।”

प्रशासन को जब मन में आता है, वीआईपी जश्न के लिए बनारस के लोगों का अपना घाट रिजर्व कर दिया जाता है। इसकी मुनादी भी करवा दी जाती है। राजघाट पुल के पास बना खिड़कियां घाट पर देव दीपावली के दिन आम नागरिकों का आवागमन प्रतिबंधित रहेगा। दस लाख दीप जलाकर 7 नवंबर, दिन सोमवार को देव दीपावली मनाई जानी है। जिसको लेकर वाराणसी में लोकल हॉलीडे घोषित कर दिया है। देव दीपावली के दिन खिड़कियां यानि नमो घाट पर आम लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित किये जाने पर लोग आपत्ति भी जता रहे हैं। 

लहरतारा के पास की बदहाल सड़क

कांग्रेस के नेता वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि “देव दीपावली की तैयारी आधी-अधूरी है और सरकारी महकमों द्वारा की गई व्यवस्था रामभरोसे है। इस दिन लाखों की तादाद में लोग घाटों का रुख करते हैं। बनारस में गुजरात के मोरबी जैसा हादसा नहीं हो, इसके लिए प्रशासन को राजघाट पुल, सुंदरी पुल, रामनगर किला पुल और तेज वेग से बह रही गंगा के किनारे घाटों को पब्लिक के आवागमन के लिहाज से सुरक्षित रखने के लिए अब तक नाकाफी इंतजाम किये गए हैं। बनारस में डेंगू का कहर, अस्पतालों की बदहाली, प्लेटलेट्स की किल्लत, जलती-बुझती स्ट्रीट लाइट, बदहाल गालियां, मोहल्लों में उफनते सीवर, हासिये पर जा पहुंची बुनकरी, छुट्टा पशुओं की समस्या, बेरोजगारी, विशेश्वरगंज किराना मंडी और सड़कों के गड्ढों से जनता परेशान है। लोगों की समस्या को जमीन पर उतरकर देखने वाला ही कोई नहीं है। एक ही कृपा पात्र व्यक्ति को डीएम और कमिशनर के पद से नवाज दिया गया है, जो अपने आप में बड़ा सवाल है? जिले में सामूहिक जिम्मेदारी लेने वाला कोई अधिकारी नहीं है।

वैभव आगे बताते हैं “इस सरकार में जो भी काम किए जा रहे हैं, वो वीआईपी कल्चर को पोषित करने के लिए किए जा रहे हैं। इनको गरीबों और आम जनता की दुःख-तकलीफों से कोई वास्ता नहीं है। जब सारे वीवीआईपी-वीआईपी खिड़कियां घाट पर होंगे तो स्वाभाविक है कि पूरी पुलिस और बंदोबस्त यहीं होगा। शेष घाटों पर उमड़ने वाली पब्लिक की भीड़ को प्रभावी तरीके से मैनेज कैसे किया जाएगा ? सारी व्यवस्थाएं वीआईपी के लिए क्यों की जा रही हैं ? इससे सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी की जा रही है। आनन-फानन में की जा रही आधी-अधूरी तैयारी से यदि जानमाल की हानि होती है तो इसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी। “

वाराणसी पुलिस कमिश्नर सतीश गणेश ने बताया कि “देव दीपावली को कमिश्नरेट और चंदौली की पुलिस संयुक्त रूप से राजघाट पर निगरानी रखेगी। राजघाट पुल से देव दीपावली का नजारा देखने की किसी को अनुमति नहीं होगी। वहां भीड़ होने पर खतरा हो सकता है। पुलिस अधिकारी अपने क्षेत्र में होटलों की चेकिंग ठीक से कराएं। चेकिंग के समय महिला पुलिसकर्मी भी मौजूद रहें। सीयूजी नंबर पर हर फोन कॉल अटेंड करें।”

नगर निगम के पीआरओ संदीप श्रीवास्तव के अनुसार “घाटों पर कीचड़ और गाद को हटाने का काम युद्धस्तर पर कराया जा रहा है। दीप उत्सव के मद्देनजर गंगा के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र को 20-20 सेक्टर में बांटा गया है। सभी सेक्टर में नोडल अधिकारियों की तैनाती की गई है। घाटों को आकर्षक बनाने के लिए फसाड लाइट और रंग-बिरंगे बिजली के झालरों से सजाया जाएगा। लेजर शो के साथ देव दीवापली के दिन ग्रीन आतिशबाजी का प्रबंध किया गया है। देश-विदेश से लाखों की तादाद में सैलानियों के आने की उम्मीद है।”

निषादराज गंगा सेवा समिति वाराणसी के सचिव व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हरिश्चंद्र बिंद सीएनजी मोटरबोट चालकों की परेशानियों पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि “डीजल मोटरबोट नाविकों को मझधार में धोखा नहीं देती है। सरकारी महकमे द्वारा नाविकों के बोट में लगाए जा रहे सीएनजी इंजन में कई खामियां आ रही हैं। परेशान नाविक सीएनजी इंजन निकालकर फेंक रहे हैं। अस्सी घाट से राजघाट के बीच कई बेकार पड़े सीएनजी इंजन देखने को मिल जायेंगे। अब तो सीएनजी ईंधन की कीमत भी आसमान छू रही है। नाविक, नगर निगम व प्रशासन से जो इंजन मांग रहे थे, वह नहीं दिया गया। कंपनी जो इंजन मुहैया करा रही है, वह टिकाऊ नहीं है।

हरिश्चंद्र आगे कहते हैं “प्रशासन का आसान शिकार घाट के मल्लाह और नाविक हैं। जब तब ये नावों के संचालन पर रोक लगा देते हैं। कभी नए साल पर तो कभी देव दीपावली पर हाथ वाली नाव नहीं चलानी है, ऐसा कहते हैं। स्थानीय प्रशासन पर्यावरण और सुरक्षा के नाम पर मल्लाहों का उत्पीड़न करती रहती है। वंचित समाज पर नित नए कानून थोपे जाते हैं। जब बाढ़ आती है तो गंगा में प्राइवेट कंपनी का क्रूज चलता रहता और नाव के संचालन पर पुलिस रोक लगा देती है। जबकि पूर्वांचल के जिलों में बाढ़ आने पर मल्लाह अपनी नाव लेकर लोगों की जिंदगी बचाने निकालता है। तब नाव से खतरा नहीं रहता है, प्रशासन का यह दोहरा चरित्र बताता है कि नियम-कायदों की आड़ में मल्लाहों-नाविकों का उत्पीड़न किया जा रहा है।

(वाराणसी से पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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