राष्ट्रपति पद की डिबेट में क्या कमला हैरिस को जीत और डोनाल्ड ट्रम्प की हार हुई है?

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अमेरिकी समाचारपत्रों और सोशल मीडिया की बहसों से तो यही निकलकर आ रहा है कि एबीसी न्यूज़लाइव द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए सोमवार को आयोजित डिबेट में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का पलड़ा भारी रहा। जबकि जुलाई में हुई डिबेट में राष्ट्रपति जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच हुई डिबेट में बाजी ट्रम्प के हाथ लगी थी, जिसके बाद से ही बाइडेन ने राष्ट्रपति पद की रेस से खुद को बाहर कर डेमोक्रेटिक पार्टी की अपनी सहयोगी कमला हैरिस के लिए रास्ता खोल दिया था।

ऐसा माना जा रहा है कि 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले यह संभवतः आखिरी डिबेट हो, जिसका अर्थ हुआ कि राष्ट्रपति पद के लिए आमने-सामने की भिड़ंत के लाइव शो का जैकपॉट कमला हैरिस ने लूट लिया है, जबकि हाजिरजवाब और करिश्माई नेता माने जाने वाले ट्रम्प को रेस में बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

CNN के एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक इस डिबेट को देखने वालों ने हैरिस को 63-37 के भारी अंतर से विजेता घोषित कर दिया है। इसी प्रकार YouGov के एक सर्वेक्षण में पंजीकृत मतदाताओं के बीच हैरिस को 43-28 से जीत हासिल हुई है। यहाँ तक कि कंजरवेटिव टीवी नेटवर्क फॉक्स न्यूज़ के विशेषज्ञों तक ने इस बात पर सहमति जताई है कि हैरिस ने ट्रम्प को डिबेट में परास्त कर दिया है। 

डिबेट के दौरान जो चीज मार्के की नजर आई वह यह थी कि कमला हैरिस जहां अपनी बातचीत के दौरान लगातार खुशमिजाज दिखने की कोशिश कर रही थीं, वहीं उन्होंने ट्रम्प को जब-तब घेरने के दौरान उनकी तरफ देखते हुए सवालों की बौछार की, जबकि ट्रम्प शुरू से ही अपने विपक्षी की आँख में आँख डालने से बचते नजर आये। कमला हैरिस ने अपने विरोधी को डिबेट शुरू होने से पहले ही तब अनसेटल कर दिया था, जब उन्होंने अपने लिए निर्धारित मंच पर न जाकर ट्रम्प के पास जाकर उनका अभिवादन और हाथ मिलाने की पहल की। अभी तक यही माना जाता था कि हैरिस इस प्रकार के अवसरों से बचती रही हैं, शायद इसलिए भी डोनाल्ड ट्रम्प को लगा हो कि वे कमला हैरिस के बॉस की तरह उन्हें भी आसानी से धूल चटा देंगे। 

अल ज़जीरा ने नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर निक ब्यूचैम्प, जिनका काम राजनीतिक डिबेट की मॉडलिंग करना है, के साथ हुई बातचीत प्रकाशित की है, जिसमें ब्यूचैम्प का कहना है, “पहली डिबेट में, जबकि बाइडेन मुख्य रूप से अपने विनाश के एजेंट थे, वहीं ट्रंप आराम से पीठ टिकाकर, शांत रहकर और काफी हद तक क्या संदेश प्रेषित करना है, पर अपने ध्यान को केंद्रित रखे हुए थे, जिससे उन्हें मदद मिली।”

ट्रम्प-हैरिस डिबेट के बारे में उनका कहना था, “इस डिबेट में हैरिस की ओर से लगातार चुभोने वाली बातें, ताने और छोटे-मोटे अपमान ने ट्रंप के खराब प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभाई है, जिससे उनका गुस्सा और असंगत बयानबाजी बढ़ती चली गई। तो इस अर्थ में, हैरिस ने ट्रम्प की हार में सक्रिय रूप से हिस्सेदारी निभाई, वहीं दूसरी ओर खुद को सबसे अच्छी रोशनी में पेश करने को लेकर बेहद सूझबूझ से काम लिया।”

एबीसी न्यूज़ की ओर से दोनों उम्मीदवारों को सवाल का जवाब देने के लिए दो-दो मिनट का समय दिया गया था। कुछ प्रश्नों पर दोनों अम्मीदवारों को बारी-बारी से एक से ज्यादा बार मौके दिए गये। पूरी डिबेट में दखने में आया कि डोनाल्ड ट्रम्प ने जहां अपने सवालों की धार को अभी भी राष्ट्रपति जो बाइडेन के हिसाब से निर्धारित कर रखा था, और उनके जवाब में कोई नयापन देखने को नहीं मिला, वहीं कमला हैरिस ने कई बार ऐसे सवालों का जवाब न देकर यह जताने की कोशिश की कि इनके लिए वे सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं। ट्रम्प की ओर से अवैध घुसपैठ की समस्या को जरूरत से ज्यादा जोर दिया जाना और कमला हैरिस पर मार्क्सिस्ट पिता की संतान और सोच में अमेरिकी आईडिया का विरोधी बताना भी कहीं न कहीं उनके खिलाफ गया। गर्भपात के अधिकार पर हैरिस ने ट्रम्प को घेरा, जिसे ट्रम्प चाहकर भी घेरेबंदी को तोड़ नहीं पाए। 

अवैध घुसपैठियों के बारे में डोनाल्ड ट्रम्प का यह आरोप कि वे अमेरिका में लोगों के कुत्ते और बिल्लियों को मारकर खा रहे हैं, अधिकांश अमेरिकियों को नहीं पच रहा है। जब ट्रम्प यह बयान दे रहे थे तो हैरिस के साथ ही एबीसी के एंकर तक ने उन्हें टोका। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा छाया हुआ है। कई अमेरिकियों का कहना है कि इस डिबेट को अमेरिकी लोग देख रहे थे, जबकि दुनिया भर के लोग अपना मनोरंजन कर रहे थे। अमेरिकी राष्ट्रपति की छवि को जोकर बना देने की ट्रम्प की इस भूमिका को निश्चित रूप से अमेरिकी मतदाता सहजता से स्वीकार नहीं सकते। विशेषकर उनके पहले कार्यकाल में भी ट्रम्प इसी प्रकार के झूठ और अफवाहबाजी के लिए बदनाम रहे हैं, और इस डिबेट के बाद तो यह साबित हो गया है कि उनसे इससे बेहतर की उम्मीद नहीं की जा सकती। 

हालांकि, डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और अरबों डॉलर के हथियारों को डंप कर देने से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य-पूर्व एशिया में जारी इजराइल-हमास जंग पर बाइडेन-कमला हैरिस को आड़े हाथों लिया, जो पूरी तरह से सही था। हैरिस के जवाब से भी लगा कि उनके पास अपने साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में पूरे विश्व को युद्ध में झोंक देने और तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर देने का कोई ठोस जवाब नहीं है, लेकिन जब यही सवाल ट्रम्प से किया गया कि वे कैसे इस समस्या का समाधान करते तो उनका जवाब बेहद हास्यास्पद था, जैसा कि वे चार वर्ष पहले भी दिया करते थे। 

बीबीसी के सर्वेक्षण के मुताबिक कमला हैरिस के पक्ष में 47% जबकि डोनाल्ड ट्रम्प 44% के साथ अभी भी अगस्त माह वाली स्थिति पर बने हुए हैं। सभी की निगाहें अमेरिका की उन 7 स्विंग स्टेट पर लगी हुई हैं, जिनके पलटने से राष्ट्रपति की दौड़ में शामिल दोनों उम्मीदवारों की किस्मत टिकी हुई है। ये राज्य हैं, एरिज़ोना, जार्जिया, मिशिगन, नेवादा, नार्थ कैरोलिना, पेन्सिल्वेनिया और विस्कांसिन। इनमें से अधिकांश राज्य परंपरागत रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी को जीतते आये हैं, लेकिन 2016 में इनमें से अधिकांश राज्य डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में गये थे। 2020 में बाइडेन को इन राज्यों में जीत हासिल हुई थी, लेकिन 2024 में इन राज्यों का क्या रुख रहता है, यह देखना दिलचस्प होगा। 

हालाँकि, रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर जब ट्रम्प ने अपने जवाब में कहा कि उनके राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही यह युद्ध समाप्त हो जायेगा, तो इसके जवाब में कमला हैरिस ने यूरोपीय देशों और अमेरिकी रुढ़िवादी रुख के भीतर के खौफ को अपने पीछे लामबंद करते हुए तत्काल जवाबी हमला किया कि अमेरिका और यूरोपीय समर्थन के अभाव में, पुतिन पहले से ही कीव में बैठे होते, और उनकी सूची में पोलैंड अगला होता। पेंसिल्वेनिया में रहने वाले 800,000 पोलिश-अमेरिकियों को यह बात किसी झटके से कम नहीं है।

एक प्रकार से देखें तो डेमोक्रेटिक उम्मीदवार, कमला हैरिस एक तरफ अश्वेत, दक्षिण एशिया सहित अफ्रीकी मूल और महिला मतदाताओं को अपने पीछे लामबंद करने में बड़े पैमाने पर सफल होती दिखती हैं, वहीं दूसरी तरफ उनका फोकस रूस-यूक्रेन युद्ध से यूरोप में उपजी हताशा, भय को अमेरिकी-यूरोपीय श्वेत आबादी से भी वसूलना चाहती हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दलों की वैचारिकी में क्या अब कोई अंतर रह गया है? 

कमला हैरिस बड़ी शान से X पर यह बताने से नहीं चूकतीं कि, “मुझे 200 रिपब्लिकनों का समर्थन प्राप्त है जो पूर्व में राष्ट्रपति बुश, मिट रोमनी और जॉन मैक्केन के साथ काम कर चुके हैं।” स्वंय डेमोक्रेटिक समर्थक पूछ रहे हैं कि पूर्व राष्ट्रपति बुश, मिट रोमनी और जॉन मैक्केन जैसे युद्ध समर्थकों और पूरी दुनिया में नरसंहार के लिए बदनाम लोगों के समर्थकों का समर्थन हासिलकर डेमोक्रेटिक नेतृत्व पार्टी, देश और दुनिया को किस अंधी गली में प्रविष्ठ करा चुका है? कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रम्प में से यह डिबेट या 5 नवंबर को भले ही कोई जीते, सच्चे लोकतांत्रिक विकल्प के अभाव में अमेरिकावासियों की पराजय तो निश्चित रूप से तय है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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