आज संसद के पटल पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का आर्थिक सर्वे पेश किया। स्थापित तथ्य है कि आर्थिक सर्वे भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार किया जाता है, भले ही उसे वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। क्रेडिट स्युसे ग्रुप एजी और जूलियस बायर ग्रुप के आला कार्यपालक अधिकारी रहे नागेश्वरन को दिसंबर 2021 में के. वी. सुब्रमण्यम के तीन बरस का कार्यकाल पूरा होने के उपरांत मुख्य आर्थिक सलाहाकार नियुक्त किया गया है। इस सर्वे से यह उम्मीद की जाती है कि इसमें अर्थव्यवस्था की वस्तुगत सच्चाई सामने आएगी, जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष होंगे। लेकिन इस बार का सर्वे वस्तुगत सच्चाई कम आर्थिक मोर्चे पर सरकार की उपलब्धियों को प्रस्तुत करता ज्यादा दिखाई दे रहा है, देश और देश की जनता के सामने आर्थिक चुनौतियां क्या हैं, और निपटने की सरकार की रणनीति क्या है, इसकी भी बहुत कम चर्चा है।
इस बार के आर्थिक सर्वे के पहले अध्याय की दो ढाई पंक्तियों में भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित वैश्विक और देशी के भीतर की चुनौतियों को समेट दिया गया है, जिसमें कोविड-19 संकट, उसके चलते वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और मुद्रास्फीति के संकट को गिना दिया गया है। उसके बाद की पंक्तियां सरकार की पीठ थपथपा रही हैं। सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए सर्वे में कहा गया है कि “इन चुनौतियों की तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में भारत सरकार ने समाज के कमजोर वर्गों एवं व्यापार क्षेत्र के लिए विस्तृत सुरक्षा जाल का गठन किया। इसके उपरांत बुनियादी ढांचे में पूंजीगत व्यय में वृद्धि की गई, ताकि मध्यम अवधि की मांग तुरंत बढ़े, एवं अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विस्तार के लिए आपूर्ति पक्ष उपायों को कृतसंकल्प होकर लागू किया गया।” जब कि सच यह है कि दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों ने कोविड-19 संकट से निपटने के लिए सरकार द्वारा जनहित और अर्थव्यवस्था के विकास एवं विस्तार के लिए उठाए गए कदमों की आलोचना की थी। यानि सर्वे में जो दावा किया गया है, वह सच नहीं है।
सर्वे में अर्थव्यवस्था में 2021-22 में 9.2 प्रतिशत विस्तार की उम्मीद की गई है। सर्वे का कहना है कि कुल मिलाकर आर्थिक गतिविधियां पूर्व महामारी/2019-20 के स्तर से उबर चुकी हैं। 2021-22 में कृषि क्षेत्र में 3.9 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के करीब आधे हिस्से सेवा क्षेत्र में 8.2 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के मोर्चे पर भारतीय अर्थव्यवस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। भुगतान संतुलन और विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर भी उपलब्धियां गिनाई गई हैं और बताया गया है कि 31 दिसंबर, 2021 को विदेशी मुद्रा भंडार 634 बिलियन डॉलर था। 2021-22 में राजस्व में भारी वद्धि को भी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया गया है। टीकाकरण को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 2021 में मुद्रास्फीति की दर ( 5.6 प्रतिशत) के लिए भी सरकार की प्रशंसा की गई है।
इस आर्थिक सर्वे का कहना है कि “ कुल मिलाकर वृहद आर्थिक-स्थिरता संकेतक बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह तैयार है।”
अगर इस आर्थिक सर्वे के दावों को देखा जाए, भारतीय अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर सामने आती है और सब कुछ सुनहरा-सुनहरा दिखाई देता है। इस सर्वे को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे अर्थव्यवस्था का मतलब जीडीपी की विकास दर, राजस्व घाटा, निर्यात-आयात और विदेशी मुद्रा भंडार है। सर्वे इस बात का कोई जवाब नहीं देता है कि आखिर 2021 में भारत के 84 प्रतिशत परिवारों की आय में गिरावट क्यों आई है, नीचे के सबसे 20 प्रतिशत लोगों की आर्थिक हालात बद से बदतर क्यों हुई, 4.6 करोड़ लोग भयानक गरीबी के दायरे में क्यों चले गए, न ही सर्वे यह बताता है कि इतने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी क्यों है? सर्वे लाखों छोटे कारोबारियों- व्यापारियों की तबाही के कारणों की कोई व्याख्या नहीं करता है।
सर्वे यह भी नहीं बताता कि एक तरफ शेयर मार्केट में लगातार उछाल हो रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ रहा है, लेकिन देश के बहुलांश लोगों के आर्थिक हालात बद से बदतर क्यों होती जा रही है और भारत के 80 प्रतिशत लोगों को रोजगार देने वाले अनौपचारिक क्षेत्र की आर्थिक हालत बिगड़ती क्यों जा रही है, सर्वे यह भी नहीं बताता है कि आखिर भारत में सिर्फ 2021 में अरबपतियों ( बिलिनियरी) की संख्या कैसे 39 प्रतिशत बढ़ गई, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था इस दौरान 7.3 प्रतिशत सिकुड़ गई थी। जब भारतीय अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही थी, तो कैसे बिलियनरी बढ़ रहे थे और अडानी की संपत्ति में कैसे 8 गुने की वृद्धि हुई।
यह आर्थिक सर्वे सामान्यीकृत अमूर्त आर्थिक आंकड़ों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर प्रस्तुत करता है, जबकि बहुसंख्यक भारतीयों की वास्तविक आर्थिक हालात बद से बदतर होती जा रही है, हालिया आंकड़े और जमीनी सच्चाई इसकी पुष्टि करते हैं।
(सीपी झा स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं।)