अंबाला। इसी सरकार ने हम पर गोलियां चलाई हैं। ऐसे में इन पर भरोसा कैसे किया जा सकता है। बीजेपी ने अपने कार्यकाल में किसानों के साथ क्या किया है यह सभी लोग जानते हैं। यह कहना हैं अंबाला कैंट के किसान मनजीत सिंह का।
वह कहते हैं कि “सरकार ने पिछले पांच साल में किसानों की जो आवाज दबाने की कोशिश की है। किसान उससे खासा नाराज हैं”।
पिछले छह बार के अंबाला कैंट से विधायक रहे अनिल विज का जिक्र करते हुए वह कहते हैं “इनके गृहमंत्री रहते हुए किसानों पर गोलियां चलाई गईं। आंसू गैस दागे गए। किसान इनको अभी तक भूले नहीं हैं और उम्मीद है कि इसका असर चुनाव में भी देखने को मिलेगा।”
हरियाणा में एक फेज में सभी 90 विधानसभा सीटों पर पांच अक्टूबर को मत डाला जाएगा। ऐसे में पंजाबी बेल्ट अंबाला में किसानों के बीच सरकार को लेकर खासी नाराजगी देखने को मिल रही है।
जनचौक की टीम ने भाजपा के गढ़ अंबाला कैंट विधानसभा सीट का दौरा किया। यह मुख्य रुप से शहरी सीट है, जिसके अंतर्गत 27 गांव आते हैं। जिसमें लोगों ने अलग-अलग समस्याओं का जिक्र किया।
चुनावी माहौल के बीच सोशल मीडिया पर कई वीडियो जनता की नाराजगी को दर्शा रहे हैं। जहां जनता खुले तौर पर बीजेपी का विरोध कर रही है। लोगों का कहना है कि जब पांच साल तक बीजेपी के विधायक और लोग गांव में नहीं आए तो अब क्यों?
गांव में लोगों को कहना है कि अगर बीजेपी के लोग गांव में आ रहे हैं, तो उनके सवालों का जवाब दें।
सवालों के लगे बैनर
अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित शाहपुर गांव के एंट्री प्वाइंट पर ही सभी पार्टी प्रत्याशियों की बड़ी-बड़ी होर्डिंग लगी हुई है। जिसमें पार्टी प्रत्याशी के साथ ही बड़े नेताओं की फोटो भी शामिल है।
दोपहर के वक्त वहां भाजपा के ऑफिस में भी कोई नहीं था।

शाहपुर एक पंजाबी बहुल गांव हैं। जिसमें ज्यादातर लोग किसान हैं। गांव में जैसे-जैसे हम अंदर की ओर बढ़ते हैं। बसपा इनेलो के प्रत्याशी के पोस्टर और निर्दलीय प्रत्याशी चित्रा सरवारा के पोस्टर लगे हैं। गांव की ज्यादातर गलियों में निर्दलीय प्रत्याशी ही दिखाई दे रहे हैं।
किसान बहुल गांव होने के कारण यहां किसान आंदोलन की झलकियां भी साफ दिखाई दे रही हैं। यहां दो पोस्टर मुख्य रुप से दिखाई दिए। जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि किसानों के बीच सरकार को लेकर गुस्सा है।
किसान आंदोलन के दौरान का भारतीय किसान यूनियन का एक पोस्टर लगा हुआ है, जहां लिखा है “जो खुद को गब्बर कहलाता है, वह किसानों पर लाठी चलवाता है।”

वहीं दूसरा पोस्टर गुरुद्वारा के पास लगाया गया है जो संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा द्वारा लगाया गया है। जिसमें साफ-साफ लिखा है “बीजेपी व जेजेपी के प्रत्याशी गांव में आने से पहले हमारे इन सवालों का जवाब दें।”

सवाल में पूछा जा रहा है ‘किसानों पर गोलियां क्यों चलाई? किसानों का रास्ता क्यों रोका?’
साथ ही एक लंबी सूची सवालों को दी गई है। इसी गांव में रहने वाले जीता एक किसान है और किसान संगठन से भी जुड़े हुए हैं। वह बताते हैं कि “लगभग हर गांव में भाजपा का विरोध हो रहा है। इसका बड़ा कारण है बीजेपी सरकार द्वारा किसानों पर गोली चलवाना, इसके साथ ही किसानों की और भी जरुरी मांगे व प्रश्न हैं”।
उनके अनुसार आंदोलन पर सरकार ने जरा सा भी ध्यान नहीं दिया। इसलिए जनता के बीच गुस्सा है। हमारी सिर्फ एक ही मांग है कि बीजेपी के प्रत्याशी और कार्यकर्ता हमारे सवालों का जवाब दे दें।
शंभू बॉर्डर को लेकर नाराजगी
किसानों की समस्या को लेकर अंबाला कैंट के वरिष्ठ पत्रकार नरेश सैनी का कहना कि “किसानों में मुख्यरुप से नाराजगी दो बातों को लेकर है। पहला, लंबे समय तक अपनी मांगों को लेकर किसान दिल्ली में बैठे रहे। दूसरा, किसानों को शंभू बॉर्डर से आगे नहीं आऩे दिया गया”।
“अब स्थिति यह है कि गांव में लोग बीजेपी के कार्यकर्ताओं को प्रचार तक करने नहीं दे रहे। इससे ही साफ जाहिर होता है कि किसानों के बीच सिर्फ अनिल विज के लिए नहीं बल्कि पूरे बीजेपी के प्रत्याशियों के लिए गुस्सा है”।
फसल नहीं खरीदी जा रही
अंबाला कैंट में किसान लंबे समय से तरह-तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। फिलहाल धान खरीदी का सीजन है। इस दौरान 23 सितंबर से ही धान खरीदी का आदेश आ गया था लेकिन बाद में इसे एक अक्टूबर तक टाल दिया गया। जिसके बाद मंडी में धान लाने वाले किसानों को भी परेशानी हो रही है।
इस मामले में हमने अंबाला कैंट की अनाज मंडी में ही किसानों से बातचीत की। हमें यहां धर्मेद्र मिले जो एक छोटे किसान हैं। जिनके पास कुछ जमीन अपनी है और एक बड़े हिस्से को ठेके पर लेकर खेती करते हैं।

वह कहते हैं कि “हम तो सरकार से एकदम खुश नहीं है, हमारी तो फसलों ही नहीं ली जा रही हैं। मंडी में धान लाकर रखा है और अब सेलर की हड़ताल चल रही है। ऊपर से बारिश का मौसम है, अगर बारिश हो गई तो हमारी फसल तो एकदम बर्बाद हो जाएगी।”
चुनाव के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि “मैं किसी को वोट नहीं करने वाला हूं, सरकार किसी भी हो किसानों का साथ कोई नहीं देता है”।
अनाज मंडी में धर्मेंद्र की तरह की भी अन्य किसान भी अपनी फसल लेकर आ रहे हैं। मजूदर धान को सुखाने का काम कर रहे हैं। आढ़तियों के ऑफिस में किसान आकर इस इंतजार में बैठे हैं कि सरकारी आदेश आए और धान की खरीदी की जा सके।
इस बार पर ही पत्रकार सैनी की कहना है “जब मैं मंडी गया तो वहां किसानों में नाराजगी साफ दिखाई दे रही थी, अनाज खरीदा नहीं जा रहा है। सेक्रेटरी का कहना है कि एक अक्टूबर का आदेश है उसके बाद ही खरीदी होगी। वहीं दूसरी ओर खेतों में फसल पक गई है और मंडी में बारिश के कारण धान बर्बाद हो रहा है। जिसका असर चुनाव में देखने को मिलेगा।”
अनिल विज छह बार से विधायक
अंबाला कैंट की सीट पर साल 1990 में पहली बार विधायक बने और लगातार छह बार से भाजपा के विधायक रहे अनिल विज का मुकाबला अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों से हैं।
अनिल विज बीजेपी के कार्यकाल के दौरान गृहमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री भी रहे हैं। मंत्री होने के नाते जनता को इनसे ज्यादा उम्मीदें थी। भाजपा विरोधी लहर का असर अनिल विज की सीट पर भी देखने को मिल रहा है।
निर्दलीय प्रत्याशी का बोलबाला
गांव में निर्दलीय प्रत्याशी चित्रा सरवारा के पोस्टर ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। उनके जनसंपर्क में भी अच्छी खासी भीड़ है।
घसीटपुर गांव के सुरेंद्र का कहना कि “अनिल विज छह बार विधायक रहे हैं लेकिन हमारे यहां तो छह बार भी नहीं आए। सीवर का निर्माण किया है। उसका पानी अब हमारे यहां आ जाता है। गांव की गलियों के हाल से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना विकास हुआ है”।

वोट देने के बारे में वह कहते हैं कि अनिल विज को तो गांव-गांव में घुसने तक नहीं दिया जा रहा है। हमारे यहां भी लोग चित्रा को सपोर्ट कर रहे हैं। हमलोग अब बदलाव चाहते हैं।
इस पर भी पत्रकार नरेश सैनी का कहना है कि “अंबाला कैंट की सभी कॉलोनियां जल जमाव की समस्या को झेल रही हैं। हालांकि इसका विकास नहीं हो पाने में अऩिल विज से ज्यादा उनके कार्यकर्ताओं का हाथ है। वॉर्ड प्रधान का प्रत्येक जगह में विरोध है। स्थिति यह है कि वह लोग शहर की कॉलोनियों में वोट मांगने भी नहीं जा पा रहे हैं”।
निर्दलीय भी जीता चुनाव
अनिल ने साल 1990 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। पहली बार उपचुनाव जीत कर अंबाला की सीट पर काबिज हुए। इसके बाद साल 1996 और 2000 में निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। साल 2009 में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अंबाला कैंट से टिकट दिया। उसके बाद से जो जीत का सिलसिला जारी हुआ वह थमा नहीं।
इसका ही नतीजा है कि किसानों की नाराजगी के बावजूद उन्होंने सीएम पद की दावेदारी पेश की है। हाल ही में अनिल विज ने कहा “मैं प्रदेश का सबसे वरिष्ठ और लगातार छह बार से जीत हासिल करने वाला विधायक हूं। मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए”।
पत्रकार सैनी का कहना है कि “यहां सीधी लड़ाई बीजेपी के अनिल विज और निर्दलीय प्रत्याशी चित्रा सरवारा के बीच है। इसका कारण यह कि पिछले बार के चुनाव में चित्रा दूसरे नंबर पर रही थी। इस बार भी लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं”।

वहीं दूसरी ओर बीजेपी की आपसी कलह का असर अनिल विज पर देखने के मिल रहा है। इनके कार्यकर्ता भी पूरी तरह से साथ नहीं है। विज का सबसे करीबी माने जाने वाला आशीष गुलाटी ने चित्रा सरवारा को ज्वाइन कर लिया है। कार्यकर्ताओं में नाराजगी साफ दिखाई दे रही है। जिससे जाहिर है कि इसका असर चुनाव में देखने को मिलेगा।
चित्रा सरवारा ने पिछले विधानसभा में भी निर्दलीय चुनाव लड़ा और लगभग 45 हजार वोट पाए। इसके बाद इन्होंने पहले आम आदमी पार्टी ज्वाइन की और बाद में इसी साल कांग्रेस। लेकिन कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के कारण उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया।
नरेश सैनी के अनुसार अभी की स्थिति के अनुसार चित्रा सरवारा ही आगे चल रही है। बाकी पांच अक्टूबर को जनता निर्धारित करेगी की उसे किसे जिताना है।
(पूनम मसीह की रिपोर्ट)
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