रोहतक। हरियाणा में आखिरी दौर का प्रचार गुरुवार शाम को थम गया। आखिरी दिन सभी पार्टियों ने अपने-अपने हिसाब से जनता से वोट की अपील की। कांग्रेस ने जहां पूरे चुनाव प्रचार के दौरान किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, अग्निवीर योजना और बेरोजगारी पर वोट मांगा।
वहीं दूसरी ओर भाजपा की तरफ से पीएम मोदी ने 18 साल पहले हुए मिर्चपुर और गोहाना के दलित उत्पीड़न को साधने की कोशिश की।
दलित दूसरा बड़ा वोट बैंक
हरियाणा में जाटों के बाद दलितों का वोट बैंक दूसरे नंबर पर है। जिसमें इस बार भाजपा दलितों को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहा है। राज्य में 20 प्रतिशत दलित आबादी है। जो मुख्यत दो वर्गों में विभाजित हैं एससी और डीएससी।
एससी में जाटव अन्य और डीएससी में वाल्मीकि, बाजीगर, सांसी, देहास, धानक और सपेरा की 36 श्रेणियां शामिल हैं। डीएससी पूरी दलित आबादी का 11 प्रतिशत है, जबकि जाटव सिर्फ 9.7 प्रतिशत है। भाजपा ने इस चुनाव में डीएससी को साधने के कोशिश की है।
वंचित जातियों को नौकरियां
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण में वर्गीकरण के आदेश को हरियाणा ने सबसे पहले आगे बढ़ाया। चुनावी मौसम के दौरान अगस्त के महीने में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही सूबे की भाजपा सरकार ने हरियाणा एससी आयोग की उप-वर्गीकरण की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है।
जिसके अनुसार एससी के 20 प्रतिशत आरक्षण में वंचित जातियों को नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। अब भाजपा इसी मुद्दे के साथ एससी की अन्य जातियों से वोट मांग रही है।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने यह ऐलान भी किया है अगर भाजपा की सरकार बनती है तो विधानसभा में विधेयक लाकर इसे पास किया जाएगा।
जनचौक की टीम ने ग्रांउड पर इसके असर को जानने के लिए रोहतक जिले की कुछ दलित कॉलोनियों का दौरा किया। जिसमें धानक समुदाय के लोग पूरी तरह से भाजपा के समर्थन में थे। जबकि वाल्मीकि इस मामले में बंटे हुए हैं।
कैलाश कुमार भमानिया धानक समाज से ताल्लुक रखते हैं। वह अपनी कॉलोनी के बाहर भाजपा उम्मीदवार के आने की तैयारी कर रहे हैं। हमने उनसे आरक्षण के वर्गीकरण के बारे में जानने की कोशिश की। आखिर समाज के लोगों को इस बारे में जानकारी है कि नहीं?
कैलाश ने बताया ‘कांग्रेस ने हमारे साथ धोखा किया है। साल 1994 में हमारे समाज की तरफ से हाईकोर्ट में केस किया गया था, कांग्रेस की सरकार के दौरान ही वर्गीकरण को खत्म कर दिया गया था। अब नायब सिंह सैनी ने हमें हमारा हक दिलाया है’।
कैलाश को इस मामले में सिर्फ इतनी जानकारी है कि मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट से फैसला दिलवाया है। अब राज्य में सिर्फ एक हस्तारक्षर के कारण लागू होना रुका हुआ है’।
उनके अनुसार ‘अगर तीसरी बार भाजपा की सरकार आती है तो हमें हमारा हक मिल जाएगा’।
लेकिन महिलाओं को इस बारे में कुछ खास जानकारी नहीं है। उनके अनुसार घर में जैसा पुरुष कहेंगे वैसे ही वोट डाला जाएगा।
महिलाओं को वर्गीकरण की नहीं है जानकारी
सीमा और आशा दोनों ही भाजपा की किसी रैली से आ रही थीं। दोनों ही धानक समाज से ताल्लुक रखती हैं और मजदूर हैं।
मैंने दोनों से आरक्षण में वर्गीकरण के बारे में पूछा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। उनका कहना था ‘हम दोनों मजदूर हैं पति हमारे शराब के नशे में रहते हैं, घर चलाने और बच्चों की परवरिश के लिए मजदूरी करते हैं। ताकि किसी तरह जीवन चल सके। कौन सी सरकार क्या दे रही है, इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है। मैंने पूछा वोट करेंगी? जवाब था हां।
दलितों में धानक समाज के बीच भाजपा का ज्यादा बोलबाला है। राज्य में आरक्षण में वर्गीकरण की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले रामधारी नागर का कहना है ‘इस बार डीएससी का 80 प्रतिशत वोट भाजपा को जाएगा। 20 प्रतिशत वे लोग हैं, जो कांग्रेस को पूरी तरह से समर्पित हैं’।
भाजपा को वोट देने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने घोषणा कि अगर उनकी सरकार बनती है तो शैक्षणिक संस्थानों के बाद नौकरियों में भी 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। जिसका सीधा लाभ समाज के लोगों मिलेगा। जबकि पहले किसी एक जाति विशेष के लोग ही इसका लाभ उठाते थे।
दलितों को नौकरियां नहीं मिली
इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की करारी हार के बाद मुख्यमंत्री सैनी ने सामाजिक न्याय विभाग को पिछले साल की बाकी पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति को जारी करने का आदेश दिया था।
इतना ही नहीं भाजपा ने डीएससी ग्रुप को अपने साथ लाने के लिए आरक्षित 17 सीटों में नौ पर समाज के लोगों को टिकट दिया है।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार धर्मपाल धनकड़ का कहना है ‘दलित वोटर्स को अपनी तरफ लाने के लिए भाजपा इस प्रकार के वायदे कर रही है। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो कुमारी सैलजा को बीजेपी में शामिल होने का ही ऑफर दे दिया था। ताकि दलित वोट भाजपा की तरफ शिफ्ट हो’।
धर्मपाल बताते हैं कि ‘भाजपा को आरक्षण में वर्गीकरण का ज्यादा लाभ नहीं मिल पाएगा क्योंकि लोगों को पता है कि भाजपा और आरएसएस के लोग आरक्षण के खिलाफ हैं।
आरएसएस ने ही बिहार चुनाव के दौरान आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी, जिसका असर भी देखने को मिला था। इसी प्रकार यहां की जनता समझ चुकी हैं कि भाजपा आरक्षण विरोधी है’।
वह सवाल करते हैं कि सूबे में दस साल से भाजपा की सरकार रही, इतने सालों में आरक्षण में वर्गीकरण क्यों नहीं किया, अब अचानक चुनाव से ठीक पहले ऐसा करने की क्या जरुरत आ पड़ी।
जबकि भाजपा सरकार ने एचकेआरएन एजेंसी द्वारा पूरे राज्य में संविदा पर एक लाख बीस हजार नौकरियां दी, लेकिन उसमें किसी तरह के आरक्षण का इस्तेमाल नहीं किया है।
अगर दलितों के आरक्षण में वर्गीकरण की भी बात करें तो डीएससी को नौकरियां कहां मिली? जनता इन सारी बातों को जानती हैं। इसलिए बीजेपी जिन 11 प्रतिशत वोटों को लुभाने की कोशिश कर रही है वह इतना आसान नहीं है।
भाजपा का ग्राफ गिरा
भाजपा भले ही दलितों को साधने की कोशिश कर ही है। लेकिन पिछले चुनावों में इसके ग्राफ में कमी आई है। साल 2014 में पहली बार मोदी लहर के बीच भाजपा को जिस तरह से दलितों का समर्थन मिला, वह आगे के चुनावों में घटता गया है।
साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान कुल आरक्षित सीटों में, 2014 में जीती नौ से पांच पर आ गई। जबकि कांग्रेस ने सात और जेजेपी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी।
यही हाल लोकसभा चुनाव में भी रहा साल 2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 के मुकाबले 20 प्रतिशत से अधिक दलित बहुल इलाके की 47 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त 44 से घटकर 18 रह गई। जबकि कांग्रेस दो सीटों से बढ़कर 25 पर हो गई।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में 17 आरक्षित सीटों पर भाजपा की बढ़त चार पर आकर अटक गई जबकि कांग्रेस ने पिछली दो से बढ़ाकर 11 कर ली। इन आंकड़ों से साफ है कि दलितों के बीच भाजपा का ग्राफ घटा है।
(रोहतक से पूनम मसीह की रिपोर्ट)
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