ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार की राजधानी पटना में जाति देखकर मिलता है फ्लैट 

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आपका पूरा नाम क्या हुआ? अंकल सौरभ, सर्टिफिकेट नाम क्या हुआ? अंकल सुमन सौरभ, ओ.. पापा का नाम?

देवनारायण सौरभ। सुनो सौरभ, हम लोग कायस्थ परिवार से आते हैं। इसलिए यहां माहौल बढ़िया मिलेगा। उसी ढंग से आपको भी रहना पड़ेगा। वैसे आपकी जाति क्या हुई? अंकल हम लोग पासवान हैं। ठीक है!  हम अपने बड़े भैया से बात करके आपको बताते हैं। उसके बाद मकान मालिक का फोन सौरभ के पास नहीं आया। यह घटना पटना के बोरिंग रोड इलाके की है। सौरव बताते हैं, यह स्थिति अमूमन पूरे पटना की है। 

मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखने वाले रेहान बताते हैं कि, “मुसलमान कम्युनिटी के लड़के अधिकांश मुसल्लहपुर, सब्जीबाग और राजा बाजार में मिलेंगे। क्योंकि वहां मुसलमानों की संख्या अच्छी है। हिंदू बहुल इलाके के लॉज में मुस्लिम लड़के को आसानी से रख लिया जाता है। वहीं फ्लैट में उन्हें रखने के लिए कोई जल्दी तैयार नहीं होता।”

लॉज में आसानी से लेकिन फ्लैट में मशक्कत करनी पड़ती है

बिहार का पटना सरकारी नौकरी चाहने वालों के लिए एक अड्डा है। जहां लाखों की संख्या में छात्र आते हैं। इसलिए यहां क्या स्थानीय लोगों की कमाई रेंट से चलती है। कई लोग फ्लैट तो कुछ लॉज बनाकर लड़कों को रूम भाड़ा पर देते हैं। 

विगत 35 साल से पटना में रह रहे रोशन झा बताते हैं कि, “जिस लॉज में मकान मालिक का भी घर रहता है। वहां मकान मालिक सब कुछ जानकारी लेकर ही रूम देते हैं। सब कुछ में छात्र का स्थानीय पता, जाति और धर्म भी शामिल है। वहीं फ्लैट लेने में तो काफी मशक्कत करनी पड़ती है। सवर्ण और ओबीसी वर्ग के कुछ जाति के लड़कों को ज्यादा समस्या नहीं आती है। वहीं दलितों और मुसलमानों को समस्याएं आती हैं। मेरे एक दलित दोस्त के साथ यह सब घटना हो चुकी है।”

“बड़े प्यार से पहले नाम पूछा जाता है। फिर सर्टिफिकेट नाम। उससे भी पता ना चले तो पिताजी का नाम पूछा जाता है। इस सब के बाद भी अगर बू न लगे तो डायरेक्ट जाति पूछी जाती है।” रूम ब्रोकर धनंजय मंडल बताते हैं।

खास जाति पर निशाना साधते प्रोफेसर

पटना के पुनई चक स्थित प्रोफेसर कॉलोनी के एक स्थानीय निवासी, जो पेशे से प्रोफेसर हैं। नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, “1990 के दशक में एक खास जाति पहले रूम किराए पर लेता था फिर उसे हड़प लेता था। इसी डर की वजह से आज भी बिहार के कई शहरों में उस जाति के लोगों से मकान मालिक बचते हैं।” तो दलितों और मुसलमानों को क्यों नहीं दिया जाता है रूम किराए पर? इस सवाल के जवाब पर प्रोफेसर साहब कहते हैं कि, ” पहले से जो चला आ रहा है उसे भी निभाना पड़ता है। हालांकि यह अच्छी सोच नहीं है लेकिन अधिकांश लोग मानते हैं तो आप भी मानिए।” जब एक प्रोफेसर ऐसा सोच रखता हो तो बाकी से क्या ही उम्मीद की जाए। 

मुस्लिम छात्र हिन्दू बहुल इलाके में क्यों नहीं रहते हैं?

पटना का पुनई चक छात्रों के लिए नया गढ़ बनता जा रहा है। पुनई चक में रह रहे निशांत बताते हैं कि, “मैं विगत 13 सालों से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं। पुनई चक इलाके में लगभग 200 से ज्यादा लॉज हैं। आज तक हमने किसी भी मुस्लिम कम्युनिटी के लड़के को लॉज में रहकर तैयारी करते हुए नहीं देखा है। जबकि मैं कम से कम चार से पांच लॉज बदल चुका हूं।” इसकी वजह क्या है? इस सवाल के जवाब पर निशांत खामोश हो जाते हैं।

जातिगत विषयों पर रिसर्च करने वाले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साकेत दुबे बताते हैं कि, ” सिर्फ पटना नहीं बल्कि भारत के किसी भी शहर में मुस्लिम कम्युनिटी के लोग एक साथ रहते हैं। क्योंकि उन्हें अभी भी भारत में एक खास सोच से खतरा है। सुरक्षा दृष्टिकोण इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।”

जाति है कि जाती नहीं

प्रोफेसर साकेत दुबे बताते हैं कि, ” बिहार, जहां सरकार के द्वारा बनाया गया नियम और कानून भी जातिगत दृष्टिकोण से होता है वहां जाति शायद ही समाप्त हो। जातिवाद का प्रचंडतम और विद्रूप चेहरा आज भी बिहार के स्थानीय नेताओं का कवच कुंडल है।”

“सुना था कि जाति सिर्फ गांवों तक सीमित है। लेकिन जातिवाद का नंगा नाच शहरों में भी होता है। बस फर्क इतना है कि यहां छुपाकर होता है और गांव में दिखा कर।” समस्तीपुर के रमेश कुमार बताते है। 

“आम आदमी के दिल में जाति का सवाल अभी बना हुआ है। रूम में रखना तो बड़ी बात है, बिहार में तो दोस्ती और शादी भी जाति देखकर होती है। बिहार में जाति व्यवस्था ख़त्म करने पर राजनीतिक इच्छाशक्ति और उत्साह का अभाव दिखता है क्योंकि कथित ऊंची जातियों की कई पीढ़ियों ने इस व्यवस्था से फ़ायदा उठाया है।” कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और जेएनयू से पढ़ें बिहार के सुपौल के नंददेव यादव बताते हैं।

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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