सुपौल (बिहार)। बालू के अवैध खेल में दर्जनों सक्रिय गैंग काम करते हैं, जो लगातार पुलिस प्रशासन और बिहार सरकार को चुनौती देते रहते हैं। ‘लाल’ बालू के अलावा सफेद बालू की ‘काली’ कमाई का ‘खेल’ पूरे बिहार में चल रहा है। सफेद बालू के अवैध खनन के इस खेल में कोशी और गंगा किनारे की रेत बेचकर माफिया लाखों का खेल कर रहे हैं।
“जहां लाल बालू 9 से ₹10 हजार रुपये टेलर बिकता है। वहीं सफेद बालू 2500 से लेकर 3000 रुपये टेलर बेची जाती है। कम दाम होने की वजह से पुलिस और मीडिया की नजर में सफेद बालू माफिया नहीं आ रहे हैं। हालांकि प्रतिदिन सिर्फ सुपौल जिले में 9 लाख के बालू का अवैध कारोबार होता है। मतलब प्रत्येक महीने ढाई से तीन करोड़ का अवैध कारोबार होता है। लेकिन प्रशासन और अधिकारियों की कार्रवाई नगण्य है।” सुपौल जिले के स्थानीय पत्रकार राजीव कुमार झा बताते हैं।
“बिहार के सुपौल जिले के निर्मली प्रखंड के डगमारा, बसंतपुर प्रखंड के बलभद्रपुर एवं त्रिवेणीगंज प्रखंड के डपरखा स्थित खदान में सबसे अधिक सफेद बालू का अवैध खनन होता है। पूरे सुपौल में 250 टेलर रोज बालू बिकता है। वहीं सुपौल की तरह ही सहरसा पूर्णिया और मधेपुरा में कोसी नदी में सफेद बालू का खनन होता है। इस प्रक्रिया में पदाधिकारी से लेकर लोकल नेता और सरकार सब सम्मिलित हैं।” आगे राजीव कुमार झा बताते हैं।
सफेद बालू के अवैध कारोबार में सम्मिलित मजदूर का क्या कहना है
सहरसा जिले के महिषी प्रखंड के उत्तरी महिषी गांव के रहने वाले हरीलाल रोज सफेद बालू के खनन में जाते हैं। हरीलाल को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि वह बालू खनन सरकारी है या अवैध। उन्हें बस प्रतिदिन मेहनताना के रूप में 400 रुपये मिलता है। जिसके बदले वह 6 से 7 टेलर बालू भरते हैं। हरीलाल बताते हैं कि, “70 से 80 सीएफटी बालू एक टेलर पर भरा जाता है। जिसे ग्राहक को 2500 से लेकर 3000 रुपये तक बेची जाती है। कुछ समय पहले रात के वक्त भी बालू खनन के लिए बुलाया जाता था। खनन आमतौर पर रात के समय जेसीबी एवं पोकलेन के माध्यम से किया जाता है। जिस बालू को ज्यादातर सरकारी कामकाज के लिए गिराया जाता था।”
“बालू खनन के लिए खनन माफिया लोगों को 50 हजार रुपए प्रति कट्ठा के हिसाब से भुगतान करते हैं। प्रति कट्ठा 80 से 90 ट्रेलर बालू निकलता है। इसमें खनन माफिया खदान पर ट्रैक्टर मालिक से हजार रूपए प्रति ट्रेलर के हिसाब से बालू बेचता है, जबकि यही बालू लोगों को पहुंचाकर ट्रेलर मालिक 2500 से 3000 रूपए तक वसूलता है। इस अवैध खनन से होने वाली कमाई में छोटे से छोटे अधिकारी पदाधिकारी और लोकल नेता का भी हिस्सा रहता है। ताकि अधिकारी खदान पर कार्रवाई ना करें।” बालू खनन से जुड़े एक आदमी नाम न बताने की शर्त पर बताते है।
राजधानी पटना और भागलपुर में भी हो रहा सफेद बालू का खेल
कोसी के अलावा गंगा की कोख से लाल बालू के अलावा अवैध सफेद बालू का खनन भी जारी है। जहां एक तरफ पटना में जेपी सेतु के नीचे नावों पर मोटर की मदद से अंधाधुंध बालू अवैध तरीके से निकाला जा रहा है। वहीं
भागलपुर जिला के नाथनगर- नारायणपुर और मायागंज-बिहपुर व बरारी-खरीक इलाके में बालू और मिट्टी के अवैध सौदागरों ने गंगा तट को मौत का कुआं बना डाला है। इस अवैध खनन से एक तरफ तो नदी का पर्यावरण संतुलन खराब हो रहा है, तो दूसरी तरफ हर दिन बिहार सरकार के लाखों के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
“गंगा के बीच बने टापुओं और दियारा क्षेत्र में पानी के बीच से भी बालू निकाला जा रहा है। भागलपुर में भी कोशी क्षेत्र की तरह ही 1800 से 2000 की दर से एक ट्रैक्टर टॉली गंगा की सफेद बालू की बिक्री होती है। चौकसी नहीं होने के कारण माफियाओं के हौसले बुलंद हैं। नाव के जरिए बालू व मिट्टी का खनन किया जाता है। फिर देर शाम या रात में ट्रैक्टर आदि पर लोड कर बाजार में भेजा जाता है।” भागलपुर के स्थानीय वेब पोर्टल पत्रकार गौरव झा बताते हैं।
नदी विशेषज्ञ की सुनिये
भागलपुर विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर रुचि श्री अपने आर्टिकल में लिखती हैं, “बिहार कई नदियों से घिरा हुआ है। लेकिन नदियों के रखरखाव को लेकर परंपरागत ज्ञान से दूर होने की वजह से बाढ़ के साथ जीने वाला समाज इसे समस्या के रूप में देखने लगा है। बांध से नदी को बांधना अलग मसला है। साथ ही बालू का अत्यधिक खनन नदी के बहाव के मूल स्वभाव को प्रभावित किया हुआ है”।
बिहार कोसी नवनिर्माण मंच विगत 15-20 सालों से कोसी वासियों और कोसी नदी पर काम कर रहा है। कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि, “कोसी पर अपनी किताब ‘दुई पाटन के बीच में’ में नदी विशेषज्ञ डॉ दिनेश मिश्र कैप्टन एफसी हर्स्ट (1908) के हवाले से बताते हैं कि कोसी नदी हर साल अनुमानतः पांच करोड़ 50 लाख टन गाद लाती है। इसलिए कोसी में बालू का खनन गलत नहीं है लेकिन एक ही जगह से जब बालू का खनन अत्यधिक मात्रा में होगा तो नदी का रूप और आकार दोनों बदल जाता है। इसका फल बिहार सालों से बाढ़ के रूप में देखता आ रहा है। प्रशासन और अधिकारियों को इस पर नियंत्रण करना पड़ेगा। नहीं तो परिणाम और भी बुरा होगा।”
पुलिस महकमे का क्या कहना है?
सुपौल जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, “जब तक पुलिस महकमे को नदी के घाट पर तैनात ना किया जाए तब तक खनन नहीं रुकने वाला है। खनन ज्यादातर लोकल लोग करते हैं। लोकल लोग पुलिस के आने का पता चलते ही भाग जाते हैं। पुलिस का भी नदी की तरफ जाना मुश्किल होता है। वैसे प्रशासन के सख्त होने के बाद कमी जरूर आती है खनन करने में। “
पटना के खनन इंस्पेक्टर सुनील कुमार चौधरी बताते हैं कि, “आए दिन हमारी टीम अवैध बालू खनन में लगी मशीन, ट्रैक्टर से लेकर अन्य संसाधनों को जब्त करती रहती है। अपराधियों को गिरफ्तार भी किया जाता है। तभी तो अवैध खनन और अवैध खरीद-बिक्री करने वालों से हर माह औसतन एक करोड़ रुपये जुर्माना वसूला जाता है। कहीं कोई जानकारी खनन की मिलती है तो हम लोग तुरंत प्लॉट पर जाते हैं।”
(सुपौल, बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)
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