Tuesday, March 21, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट : 45 बार उजड़ा और फिर बसा बिहार का नरकटिया गांव

राहुल
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नरकटिया, बिहार। “बरसात के मौसम में रात भर इस बात के लिए जगे रहना कि पानी घर में ना घुस जाए। नाव पर दाह संस्कार करना और खानाबदोश की जिंदगी जीना हमारी किस्मत बन चुकी है। गांव के 20% से भी कम लोगों को सरकार के द्वारा 6000 रुपये महीने का मुआवजा मिलता है। सरकारी अधिकारी मानते भी नहीं हैं कि इस गांव में बाढ़ भी आती है। गांव के अधिकांश लोग दिल्ली और पंजाब कमाने जाते हैं लेकिन बरसात के वक्त वापस अपने घर लौट आते हैं।” नरकटिया गांव के सबसे बुजुर्ग 85 वर्षीय ब्रह्मदेव सहनी कहते हैं।

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नरकटिया गांव बिहार के सबसे छोटा जिला शिवहर में पड़ता है। बागमती नदी में इस गांव से 2 किलोमीटर पहले लाल बकैया नदी का मिलन होता है, इस वजह से बागमती नदी में पानी का आकार ज्यादा होने के बाद उसका रूप और विनाशकारी हो जाता है। जिसका असर इस गांव के लोगों पर प्रत्येक साल पड़ता है। जो हर साल डूब कर फिर से खड़े हो जाते हैं। इसलिए यह कहानी नरकटिया के ग्रामीणों की जिजीविषा और सब कुछ खोकर फिर से खड़ा होने की जीवटता की है।

गांव में तीन सौ घर, आबादी डेढ़ हजार

बिहार के सबसे छोटे जिले शिवहर के पिपराही प्रखंड की बेलवा पंचायत स्थित नरकटिया गांव में 1000 आबादी के लिए 300 घर हैं। भूकंप से दूर तक नहीं नाता था। फिर 1934 में आए भूकंप के चलते दो किलोमीटर दूर बहने वाली बागमती की धारा मुड़कर गांव के पास पहुंच गई। उस साल बरसात में पहली बार बागमती ने तबाही मचाई। उसके बाद से बाढ़ इस गांव की नियति बन गई। 

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अब तक 50 बार बाढ़ का कहर देख चुके हैं के गांव के लोग

85 वर्षीय ब्रह्म देव साहनी इस गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं। वो बताते हैं कि, “कम से कम मैं सिर्फ 20 बार अपना घर बना चुका हूं। शायद 50 बार से ज्यादा बाढ़ की विभीषिका को झेल चुका हूं। बाढ़ की वजह से पूरे गांव में पांच पक्का मकान भी नहीं मिलेगा।”

वहीं गांव के 22 वर्षीय ललित पासवान बताते हैं कि, “बरसात शुरू होते ही गांव के पुरुष दिल्ली और पंजाब से गांव आ जाते हैं। वहीं महिलाएं अपने बच्चों के साथ रिश्तेदार के यहां चली जाती हैं। गांव में 10 से 15 व्यक्ति को विस्थापन की जमीन मिली हुई है। वह भी गांव छोड़कर नहीं जा रहे हैं। क्योंकि खेत तो गांव में ही हैं। सरकारी मुआवजे के नाम पर बस लॉलीपॉप दिया जा रहा है ग्रामीणों को। पहले राहत शिविर का भी आयोजन होता था अब सामुदायिक रसोई के नाम पर सिर्फ खाना दिया जाता है। बरसात में बीमार को अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल होता है।” 

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“2021 में लगभग 50 घर कटाव में बह गए थे। सभी कच्चे घर गिर गए थे। इस बार कम बारिश होने की वजह से बाढ़ नहीं आयी है। हालांकि धान की फसल वैसे भी बर्बाद हो गया सुखाड़ से। फिर भी लोग डर से प्लास्टिक टांगकर और मचान बनाकर रह रहे हैं। पता नहीं कब बरसात अचानक बाढ़ के रूप में आ जाए। ” गांव के ही ग्रामीण रामचंद्र बताते हैं।

बाढ़ के बाद बीमारी चुनौती बन कर आती है

बाढ़ से जंग लड़ने के बाद बीमारी भी इस गांव के लिए एक चुनौती बनकर आती है। गांव के युवा ललित बताते हैं कि, “ यहां से 20 किलोमीटर की दूरी पर सदर अस्पताल होने से लोगों के लिए एक और बड़ी समस्या का कारण है। बाढ़ बारंबार आने की वजह से रोड टूटा फूटा हुआ है। साथ ही बाढ़ के बाद बच्चे और बुजुर्गों में मच्छर के काटने की वजह से डायरिया और डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी होती है। बाढ़ ग्रस्त एरिया बीमारी ग्रस्त में तब्दील हो जाता है। इसके बाद भी हम लोग सरकारी अस्पताल पर नहीं बल्कि निजी अस्पताल के भरोसे जिंदा रहते हैं। गांव में तो बाढ़ के वक्त कई जानें चली जाती हैं और वजह पता भी नहीं चलती है। इस साल भी किसी सरकारी मदद की आस नहीं है।”

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बदलता रहता है गांव का नक्शा

1934 से पहले जिस गांव में बाढ़ नहीं आती थी अब यह गांव बाढ़ ग्रस्त गांव के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। अब साल दर साल इस गांव का नक्शा और खेत का आकार बदलता रहता है। गांव के 56 वर्षीय राम चंद्र मांझी कहते हैं कि, “बागमती कब धारा बदल ले और किसके घर को बहाकर ले जाए, कहना मुश्किल है। नदी से कैसी शिकवा, शिकायत व्यवस्था से है। अधिकारी मानते भी नहीं हैं कि इस गांव में बाढ़ आयी है। अब तो सरकारी तंत्र पर भरोसा भी नहीं है खुद के पैरों पर खड़े हो चुके हैं हम लोग”।

सरकारी महकमों का सुनिए 

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शिवहर में आपदा विभाग में कार्यरत एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, “नरकटिया को बाढ़ से बचाने के लिए बेलवाघाट पर डैम बन रहा है। सरकारी काम में देर तो होती ही है। विभागों के सामंजस्य की वजह से भी थोड़ा लेट हो रहा है। निर्माण वर्ष 2020 में ही पूरा करना था, लेकिन बाढ़ की वजह से कार्य प्रभावित हुआ है। इसे जल्द पूरा किया जाएगा।”

प्रखंड विकास पदाधिकारी वशीक हुसैन पूरे मामले पर बताते हैं कि, ” इस बार सरकार पूरी तरह मुस्तैद है। बागमती नदी वाले डैम का काम भी चल रहा है तेजी में। डैम का काम अंतिम चरण में है जैसे ही टाइम पर काम पूरा होगा इस गांव के ऊपर बाढ़ का खतरा भी कम हो जाएगा। साथ ही गांव के समानांतर बांध का निर्माण होने से इस गांव में बाढ़ का पानी नहीं जा सकेगा।”

(शिवहर से राहुल की रिपोर्ट।)

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