anand navlakha

गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को नहीं मिली अग्रिम जमानत

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सोमवार को भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 फरवरी के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें इस आधार पर उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनके खिलाफ प्रथम दृष्ट्या मामला बनाया गया था। 

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को चार सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दिया ताकि वे अपील में उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकें। उनकी याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 16 मार्च तक ऐसी अंतरिम सुरक्षा बढ़ा दी थी। 

सोमवार को पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री को देखते हुए याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने अंतरिम संरक्षण के कम से कम एक सप्ताह के विस्तार की मांग की, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, क्रमशः तेलतुम्बडे और नवलखा की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए भड़काऊ पत्र दूसरे व्यक्ति से बरामद किए गए थे। यह भी तर्क दिया गया कि वे शांतिपूर्ण कार्यकर्ता हैं जो बौद्धिक और शैक्षणिक तरीकों के माध्यम से सिस्टम की आलोचना में लगे हुए थे। 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी, जिसने पिछले महीने महाराष्ट्र पुलिस से जांच का जिम्मा लिया था, उसकी ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अभियुक्तों की हिरासत में पूछताछ बेहद आवश्यक थी। उन्होंने कहा कि आरोपी प्रतिबंधित संगठनों के साथ शामिल थे और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत अपराधों का कमीशन दिखाने के लिए सामग्री मौजूद थी। 

दरअसल 1 जनवरी, 2018 को पुणे जिले के भीमा कोरेगांव में हिंसा के बाद गौतम नवलखा और आनंद समेत अन्य कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने उनके कथित माओवादी लिंक और कई अन्य आरोपों के लिए आरोपी बनाया है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को चार सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दिया ताकि वे अपील में सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकें।

 पुलिस ने आरोप लगाया है कि वो सम्मेलन माओवादियों द्वारा समर्थित था। तेलतुंबडे और नवलखा ने उच्च न्यायालय में पिछले साल नवंबर में गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग की थी, जब पुणे की सत्र अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि पुणे पुलिस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन केंद्र ने पिछले महीने जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया था। दरअसल उच्च न्यायालय ने नवलखा के खिलाफ 1 जनवरी 2018 को पुणे पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।) 

More From Author

saarc meet

सार्क देशों में समन्वय के प्रयत्नों की शिक्षा

nitin front

आइसा उपाध्यक्ष समेत युवा नेताओं की गिरफ्तारी की माले ने की निंदा

Leave a Reply