विशेष रिपोर्ट: गैंगलैंड बनता पंजाब-3: सरकार तोड़ना चाहती है गैंगस्टरों का आपराधिक सिंडिकेट

शुरुआत में जिन्हें गुंडा, बदमाश या दस नंबरी कहा जाता था-बाद में वे असामाजिक तत्व खुद को गैंगस्टर कहला कर अलहदा रौब रखने लगे। गोया गैंगस्टर कोई तगमा हो! कहते हैं कि हर सभ्य समाज के साथ शराफत के समानांतर बदमाशी भी होती है। बदमाशी का अतीत भी ठीक उतना पुराना है जितना शराफत का। बतौर बानगी एक उदाहरण है। उन लोगों के लिए जो मानते-कहते हैं कि पंजाब में ‘गन कल्चर’ हाल-फिलहाल पैदा हुआ।

संयुक्त पंजाब के एक मुख्यमंत्री हुए सरदार प्रताप सिंह कैरौं। उन्होंने 1956 में सूबे के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली और पंजाब को विकसित बनाने का काम शुरू किया। अपने कामकाज के मद्देनजर वह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बेहद करीबी माने जाते थे और उनकी पहचान देश के ताकतवर मुख्यमंत्रियों में थी। वह जनवरी 1956 से लेकर जून 1964 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। हरित क्रांति के बीज उन्होंने ही बोए थे। छह फरवरी 1965 को प्रताप सिंह कैरों फिएट कार से दिल्ली से अमृतसर की ओर लौट रहे थे कि सोनीपत के रसोई गांव में कुछ हमलावरों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस हत्याकांड में उनके निजी सहायक के अलावा दो आईएएस अधिकारी भी गोलियों से छलनी कर दिए गए।

इस हत्याकांड ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था। पंजाब से संदेश गया और कि बंदूक तंत्र कैसे लोकतंत्र को चुनौती देने की इतनी बड़ी हिम्मत रखता है कि एक मुख्यमंत्री और दो वरिष्ठ अधिकारी तथा निजी सहायक इस मानिंद ढेर कर दिए जाएं। बेअंत सिंह दूसरे मुख्यमंत्री थे जिन्हें खालिस्तानी आतंकवादियों ने सचिवालय के बाहर मार डाला। वह आतंककारी हमला था। तब तक राज्य में गैंगस्टर्स संस्कृति एक से दूसरे कोने तक फैल चुकी थी। पुलिस के लिए भी शिनाख्त मुश्किल थी कि मुतवातर जो हिंसक वारदातें हो रही हैं; उन्हें टकसाली आतंकवादी अंजाम दे रहे हैं या कुकरमुत्तों की तरह पनपे गैंगस्टर।

आतंकवाद के दौर में पुलिस ने तत्कालीन महानिदेशक केपीएस गिल की हिदायत पर ‘ब्लैक कैट कमांडो’ भर्ती करना शुरू कर दिए थे। उनकी पृष्ठभूमि गुंडई और आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की थी। मतलब कि बाकायदा चुन-चुन कर ऐसे तत्वों को ब्लैक कैट कमांडो बनाकर पुलिस फोर्स का हिस्सा बनाया गया-जिनकी न्यायपालिका के प्रति किसी किस्म की कोई जवाबदेही नहीं थी। वे पर्दे के पीछे से पुलिसिया मुठभेड़ों अथवा जानलेवा टॉर्चर में शामिल होते थे। बाद में ऐसे कुछ ब्लैक कैट कमांडो को नौकरी और रैंक दिए गए। बदनाम पुलिस इंस्पेक्टर गुरमीत सिंह पिंकी इसका एक पुख्ता उदाहरण है। ब्लैक कैट कमांडो को हथियार चलाने और पुलिसिंग की ट्रेनिंग भी दी गई थी जो बाद में खुद पुलिस महकमे पर कमोबेश भारी पड़ी।

आतंकवाद का वह काला दौर बीता तो स्थाई नौकरी से वंचित ब्लैक कैट कमांडो गैंगस्टर का चोला पहनने लगे। (उन्हीं की भाषा में कहें तो पूरी तरह बेलगाम होकर हत्या, लूटपाट, फिरौती और अपहरण करने लगे)। बहुधा कानून के हाथ आसानी से उन तक इसलिए भी नहीं पहुंचते थे कि वे पुलिस के तौर-तरीकों से बखूबी वाकिफ थे। कई पुलिस अफसरों के चहेते थे और उनके तमाम भेद जानते थे। नाजायज असलहा मिलने के ठौर-ठिकाने उन्हें मालूम थे। सो आतंकवाद के तथाकथित खात्मे के बाद गैंगस्टर्स का संजाल पूरे प्रदेश में फैल गया। रेंज पड़ोसी राज्यों तक चली गई। तब की दहशत आज तक यथावत कायम है।

बड़े गैंगस्टर अशिक्षित किशोरों और बेरोजगार नौजवानों के महानायक बनने लगे। गैंगस्टरों का काम नशा तस्करी में बड़े पैमाने पर फैल गया। इस काले धंधे पर उनका एकमुश्त कब्जा हो गया। अब भी आलम यह है कि किशोर और नौजवान जब पूरी तरह से नशे की जद में आ जाते हैं और आखिरकार खरीदारी के लिए उनके पास कुछ नहीं बचता तो वे नशा पूर्ति के लिए गैंगस्टरों के गैंग में शामिल हो जाते हैं। इस तरह नफरी बढ़ती जाती है।

कुछ भ्रष्ट पुलिसकर्मी भी लालचवश गैंगस्टर्स का सक्रिय साथ देते हैं। ऐसे कई पुलिस मुलाजिम गिरफ्त में भी आ चुके हैं। फिर भी सिलसिला जारी है। नामजद एक पूर्व पुलिस अधीक्षक लुका-छिपी का खेल पिछले एक हफ्ते से खेल रहा है। उसकी तलाश में दर्जनों पुलिस टीमों ने पचासों जगह दबिश दी, लेकिन वह फरार है।

एक डीआईजी का तस्करों/गैंगस्टर्स से गठजोड़ सामने आया है। किसी भी वक्त उसे बर्खास्त करके गिरफ्तार किया जा सकता है। दर्जन भर से ज्यादा पुलिसकर्मी इस जुर्म में सलाखों के पीछे हैं कि उन्होंने गैंगस्टर्स के लिए काम किया। ‘पुलिस की सेवा’ का वक्त गैंगस्टरों की जी हजूरी में लगा दिया और पंजाब को गैंग्लैंड बनाने में अहम भूमिका अदा की! महकमे में ऐसे गद्दारों की बहुत बड़ी तादाद है जो नमक तो पुलिस का खाते हैं लेकिन हक गैंगस्टर्स का पूरा करते हैं।

मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद चाहते हैं कि पंजाब की सरजमीं से गैंगस्टर कल्चर खत्म हो जाए। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं की उनसे पहले की सरकारों ने यह जहरवाद बदस्तूर फैलने दिया। जो पंजाब भगवंत मान सरकार को मिला; उसका एक बड़ा हिस्सा गैंगलैंड था। आम लोगों की उम्मीद है कि मुख्यमंत्री गैंगलैंड की फसल काट देंगे। लेकिन यह इतना आसान नहीं। सच यह भी है कि कानून व्यवस्था के मोर्चे पर फिलहाल तक तो सरकार लुंज पुंज है। जबकि कई टास्क फोर्स, एसटीएफ बनाकर गैंगस्टर्स के नेटवर्क को ध्वस्त करने की कवायद की जा रही है। लेकिन नामालूम है कि गैंगस्टरों मनोबल सरकार तथा अवाम की खिलाफत के बावजूद इतना मजबूत क्यों है? सरकार बदल गई है लेकिन क्या अभी भी व्यवस्था के भीतर उनके आका संरक्षण के लिए मौजूद हैं?

पंजाब के गैंगस्टर्स के एक तबके में तब जरूर डर देखा गया था; जब ‘वारिस पंजाब दे’ का मुखिया अमृतपाल सिंह खालसा अमृत संचार मुहिम के प्रचार के साथ सूबे में आया था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक एक वक्त ऐसा आया जब लगने लगा कि अमृतपाल सिंह खालसा समर्थकों और नशा कारोबारी गैंगस्टरों के बीच हिंसक टकराव होने वाला है। उससे पहले ही अमृतपाल सिंह पहले फरार और फिर गिरफ्तार हो गया। वैसे, उसने खुली पेशकश की थी कि गैंगस्टर्स उसके साथ आ मिलें। यह अव्यवहारिक बात थी।

खैर, देखना होगा कि पंजाब को गैंगस्टरों से आखिर कब मुक्ति मिलती है? आईएसआई से उनका गठजोड़ कब और कैसे टूटेगा? घर और समाज का रास्ता भूल चुके नौजवान कब उनके चंगुल से आजाद होंगे? होंगे भी या अंततः किसी प्रतिद्वंदी ग्रुप अथवा पुलिस की गोलियों का शिकार हो जाएंगे! यानी उनका सूरज सदा के लिए डूब जाएगा। खुफिया विंग के एक आला अफसर के अनुसार रणनीति बनाई गई है कि एक-एक करके बड़े गैंगस्टर्स के गिरोहों का सफाया किया जाए। रोजमर्रा की लूटपाट और सरेआम गुंडागर्दी आम लोगों को बगावत के लिए मजबूर कर रही है।

सूत्रों के मुताबिक पंजाब सरकार कतिपय पूर्व मंत्रियों और राजनेताओं पर भी शिकंजा कसने की तैयारी में हैं जिन्होंने अपनी सत्ता रहते गैंगस्टर्स को खुला खेल खेलने दिया और एवज में तिजोरियां भरीं। जालंधर जिले से वाबस्ता एक दबंग विपक्षी नेता के बारे में कहा जाता है कि उसका पुलिस में अब भी इतना दबदबा है कि वह किसी भी गैंगस्टर के गुर्गे को चंद मिनटों में सलाखों से बाहर निकलवा सकता है। उक्त दबंग नेता के खुले संरक्षण में कई गैंगस्टर तरक्की-दर-तरक्की करते रहे। पूरे जिला जालंधर और आसपास के इलाकों में इसी दबंग राजनेता की खुली शह पर शराब, अफीम और चिट्टा (चरस/हेरोइन) बिकती थी। बेचने वाले चेहरे आज भी वही हैं और शायद गैंगस्टर और उनके आका भी! ‘जनचौक’ मानता है कि यह गंभीर आरोप हैं और इनकी पुष्टि पुख्ता सबूतों के अभाव में फिलवक्त संभव नहीं लेकिन विभिन्न लोगों से बातचीत के बाद जो सुना, वही लिखा।

इस बीच हासिल ताजा जानकारी के मुताबिक पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के साथ मिलकर विदेश में बैठे और यहां की जेलों में बंद गैंगस्टरों का नेटवर्क तोड़ेगा। इसके लिए एनआईए के महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने शुक्रवार को पंचकूला में हुई एक संयुक्त बैठक में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ पुलिस के साथ वास्तविक सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक सामूहिक संस्थागत तंत्र स्थापित करने की घोषणाा की।

भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक उत्तरी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों निष्क्रिय विभिन्न अपराधिक सिंडिकेट के पूरे नेटवर्क को सूचीबद्ध करने के लिए एनआईए और तीन पुलिस बलों के प्रतिनिधियों के साथ एक संयुक्त समिति स्थापित करने का फैसला लिया गया है। उत्तरी क्षेत्र के राज्यों में संगठित अपराधियों और अपराधियों के मुद्दे पर मासिक बैठकें आयोजित करने का निर्णय भी लिया गयाा है।

वहीं, पंजाब के पुलिस महानिदेशक गौरव यादव ने कहा है कि विभिन्न देशों में सक्रिय गैंगस्टरों और उनके गुर्गों के प्रत्यर्पण व निर्वासन की प्रक्रिया तेज की जाए, जिससे पंजाब सहित अन्य राज्यों में गैंगस्टरों के नेटवर्क पर लगाम कसने में आसानी होगी। इसके लिए डीजीपी गौरव यादव ने विदेश में लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी (एलईए) के साथ अंतरराष्ट्रीय संपर्क और सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया।

जिक्रेखास है कि पंजाब में सक्रिय गैंगस्टर पड़ोसी राज्यों-हरियाणा, राजस्थान और चंडीगढ़ के लिए भी सिरदर्द बने हुए हैं। डीजीपी के मुताबिक इनके तार विदेश में बैठे गैंगस्टरों और उनके गुर्गों से जुड़े होने के तथ्य सामने आते रहे हैं। पंजाब में सक्रियता गैंगस्टरों को कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, हांगकांग आदि में छिपे गैंगस्टरों से आर्थिक संसाधन और हथियारों के रूप में सहयोग मिल रहा है और ये गैंगस्टर पंजाब में अपने साथियों के जरिए हिंसक वारदातों को अंजाम देते रहे हैं। (‘जनचौक’ यह भी पहले ही लिख चुका है)।

बैठक में उत्तरी राज्यों में सक्रिय गैंगस्टरों और उनके गुर्गों की गतिविधियों के अलावा इनसे जुड़े़ आपराधिक मामलों में जारी जांच को लेकर भी चर्चा हुई। हरियाणा के डीजीपी पीके अग्रवाल ने इन आपराधिक सिंडिकेट के नेटवर्क को नष्ट करने, उनकी गतिविधियों को बाधित करने के लिए निर्णायक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक प्रवीर रंजन ने कहा कि प्रभावित राज्यों के पुलिस बलों के बीच घनिष्ठ अंतरराज्यीय समन्वय और संयुक्तत अभियान जरूरी है, क्योंकि आपराधिक सिंडिकेट चंडीगढ़ सहित पूरे देश में सक्रिय है।

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(पंजाब से अमरीक की विशेष रिपोर्ट।)

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