Wednesday, April 24, 2024

ग्रांउड रिपोर्ट: मिलिए भारत जोड़ो के अनजान नायकों से, जो यात्रा की नींव बने हुए हैं

भारत जोड़ो यात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर तक जा रही है। जिसका लक्ष्य 150 दिनों में 3500 किलोमीटर का रास्ता तय करना है। इस यात्रा के दौरान रोज लगभग 25 किलोमीटर की पद यात्रा की जा रही है। जिसमें देश के अलग-अलग जगहों से आए लोग हिस्सा ले रहे हैं।

कुछ कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं तो कुछ ऐसे ही इस यात्रा को अपना योगदान देने आए हैं। यात्रा के मुख्य फोकस राहुल गांधी हैं। लेकिन इस यात्रा को सफल बनाने के लिए कई लोग संघर्ष कर रहे हैं। जो अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से अपना काम कर रहे हैं और बलिदान भी दे रहे हैं।

ऐसे ही कुछ लोगों से जनचौक की टीम ने मुलाकात की है।

राजेश

राजेश इस यात्रा में कन्याकुमारी से शामिल हुए हैं। राजेश अपनी एंबुलेंस लेकर आए हैं। कांग्रेस नेता संतोख सिंह को यात्रा के दौरान हार्ट अटैक आने पर जो एंबुलेंस उन्हें अस्पताल लेकर गई थी, वह राजेश की ही थी। राजेश ने हमें इस यात्रा में आने के दो कारण बताए। पहला कारण कि वह पिछले लंबे समय से पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश के साथ काम करते थे।

जिस वक्त गौरी लंकेश की मौत हुई तब भी वह बैंगलुरु में ही थे। लेकिन उन्हें बचाने में सफल नहीं हो पाए। वह कहते हैं कि “देश में इतनी नफरत भर चुकी है कि हमारी साथी को इसके लिए अपने जान गंवानी पड़ी। इसलिए इस यात्रा का हिस्सा बना हूं ताकि देश से नफरत को दूर किया जा सके।

दूसरा कारण लोगों की मदद करना मेरा मकसदा है। वह कहते हैं कि यह यात्रा एक अच्छे मकसद के लिए चल रही है। जिसके कारण मैं इसका हिस्सा हूं ताकि किसी को इमरजेंसी में मेरी जरूरत हो तो मैं पहुंच सकूं”।

राजेश स्वयं विकलांग हैं। उनका एक पैर सही से काम नहीं करता है। इस यात्रा में शामिल होने से ठीक 15 दिन पहले ही उन्होंने पैर का ऑपरेशन भी कराया था। लेकिन यह सारी चीजें उनका हौसला नहीं तोड़ पाईं। वह बताते हैं कि इस एंबुलेंस का डीजल भी वह स्वयं ही भरवाते हैं। कभी-कभी सिविल सोसाइटी की तरफ से उन्हें मदद मिलती है।

रामनारायण

रामनारायण इस यात्रा में राजस्थान के दौसा से शामिल हुए हैं। वह शारीरिक रूप से चलने में सक्षम नहीं हैं। वह अपनी हाथ वाली साइकिल के सहारे इस यात्रा का हिस्सा बने हैं। यात्रा के दौरान जब चढ़ाई आती है तो कई अन्य लोग उनकी साइकिल में धक्का लगा देते हैं ताकि वह आगे बढ़ पाएं। राजेश से हमने इस यात्रा में शामिल होने के मकसद के बारे में पूछा तो उन्होंने झट से हमें जवाब दिया कि “एक अच्छे काम के लिए यह रैली हो रही है, यही वक्त है कि देश से नफरत को खत्म किया जाए।

राहुल गांधी ने इस काम की शुरुआत की है। हम उनका इस काम में साथ दे रहे हैं और कुछ नहीं”। जब हमने उनसे पूछा कि कैंप में इतनी सुविधाएं नहीं हैं। फिर भी आप यात्रा का हिस्सा बने हुए हैं। इस बात का जवाब वह कुछ इस तरह देते हैं। वह कहते हैं कि “यह यात्रा नहीं बल्कि एक तपस्या है। मैं भी उसी तपस्या का हिस्सा हूं। हां शारीरिक रुप से मैं जरूर थक जाता हूं इतनी लंबी साइकिल यात्रा करने में, लेकिन मेरा हौसला ही मुझे आगे जाने की हिम्मत देता है”।

विक्रम प्रताप सिंह

विक्रम पेशे से एक वकील हैं और मध्यप्रदेश से इस रैली का हिस्सा बने हैं। विक्रम की खास बात यह है कि वह लगातार 1 डिग्री तापमान में भी बिना चप्पल के यात्रा कर रहे हैं। हमारी मुलाकात जिस दिन विक्रम से हुई उस दिन जम्मू में बारिश हुई थी। नंगे पांव चलने के कारण उनके पांव में छाले पड़ गए थे। स्थिति ऐसी हो गई थी कि उन्हें पैरों में पट्टी बंधानी पड़ी।

इस दृढ़ संकल्प के बारे में वह कहते हैं कि “इस वक्त देश में जैसा माहौल है ऐसे में बहुत जरूरी है कि युवा इस नफरत के खिलाफ एक हो जाएं”। वह कहते हैं “राहुल गांधी जो कर रहे हैं उनको मेरा सिर्फ एक समर्थन मात्र है। नंगे पांव चलने से अगर देश में नफरत कम हो जाती है तो मैं हर बार ऐसे ही चलने को तैयार हूं”।

विक्रम मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके से ताल्लुक रखते हैं। वह बताते हैं कि “एनसीआरबी की रिपोर्ट इस बात की गवाह है कि देश में सबसे ज्यादा आदिवासियों पर अत्याचार मध्यप्रदेश में हो रहा है। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे मुद्दों पर चर्चा की जाए”। वे कहते हैं कि “मौजूद सरकार से मैं बहुत उम्मीद नहीं करता हूं क्योंकि राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है, हमारी राष्ट्रपति आदिवासी हैं। इसके बाद भी एमपी के आदिवासियों की स्थिति दयनीय है। मैं उन दबी आवाज़ को उठाने यहां आया हूं। ताकि आने वाले चुनाव में यह अहम मुद्दा बन सकें”।

देवाशीष

देवाशीष इस यात्रा में दिल्ली में शमिल हुए थे। जबकि आए वह उड़ीसा के मयूरभंज जिले से हैं। देवाशीष का इस यात्रा में पहुंचना ही अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। वह कहते हैं कि “मेरे परिवार वाले आरएसएस से ताल्लुक रखते हैं। मेरे पिताजी शिशु मंदिर में अध्यक्ष हैं। ऐसे में हो सकता था अगर मैं अपने घरवालों को यह कहता कि मुझे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जाना है तो वह नहीं जाने देते। इसलिए मैंने अपने परिवारवालों को कहा कि मैं राजस्थान घूमने जा रहा हूं और कुछ दिन अपने दोस्तों के साथ रहूंगा। इन सब में एक महीना लगेगा और उसके बाद मैं वापस आ जाऊंगा”।

वह बताते हैं कि “मैं राजस्थान बोलकर सीधा जनवरी के पहले सप्ताह में दिल्ली आया और यात्रा में शामिल हो गया। मेरे घर वालों को इसकी जरा सी भी भनक नहीं लगी। धीरे-धीरे मैं रोज अपने घर में फोन पर बात करता और उन्हें अपनी लोकेशन अलग बताता तो उन्हें मुझे पर शक हुआ, आखिर में उन्हें पता चल गया कि मैं यात्रा में हिस्सा लेना आया हूं। वह कहते हैं कि फिलहाल मेरे घरवालों ने यह जानने के बाद कुछ कहा नहीं है। अलबत्ता वह भी मुझसे इस रैली के बारे में पूछने लगे हैं”।

यात्रा में चलने के दौरान हमने देवाशीष से यात्रा और उनके पारिवारिक माहौल, विचार आदि के बारे में चर्चा की। वह बताते हैं कि “मेरे और मेरे पिताजी के बीच वैचारिक मतभेद जरूर हैं। लेकिन वह इतने नहीं है कि वो मेरी बात न सुनें। वह कहते हैं कि लोकतांत्रिक देश की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि हम लोग गांधी से लेकर गोडसे तक की बात अपने घर में करते हैं। एक दूसरे के विचारों पर चर्चा करते हैं। लेकिन अभी वह बातें उनके जेहन में ज्यादा रहती हैं जिनके द्वारा सरकारी प्रोपगेंडा फैलाया जा रहा है। जैसे की जनसंख्या नियंत्रण कानून पर हमारी अक्सर बहस हो जाती है”।

देवाशीष को स्किन प्रॉब्लम भी है। पैदल चलते हुए मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको शारीरिक रूप से कुछ परेशानी हो रही है?  इस पर वह कहते हैं कि इतना चलने के बाद कोई भी थक जाएगा। मैं भी थक जाता हूं, लेकिन मुझे स्किन को लेकर ज्यादा परेशानी होती है। ज्यादा ठंड, धूप के कारण मेरी स्किन बहुत ज्यादा खराब हो रही है। इसमें रेसेज हो जाते हैं। लेकिन यह सब जिदंगी का एक हिस्सा है। फिलहाल जरूरी है कि देश को जोड़ा जाए। मैं अपने ओडिशा की तरफ से इस यात्रा का हिस्सा बनने के साथ-साथ समर्थन देने आया हूं ताकि नफरत को कम किया जा सके। देश से गरीबी, भुखमरी को हटाया जा सके।

प्रोफेसर माइकल

प्रोफेसर माइकल पोलैंड से इस यात्रा का हिस्सा बनने आए हैं। गांधीवादी विचारक प्रोफेसर माइकल 73 साल की उम्र में एक लाठी के सहारे यात्रा की अग्रिम पंक्ति में चल रहे हैं। वह हिंदी बोलने में असमर्थ थे। लेकिन अपनी भावनाओं से उन्होंने पूरी तरह से इस यात्रा का समर्थन किया।

हमने उनसे इस यात्रा में शामिल होने के पीछे का कारण जानने की कोशिश की तो उन्होंने लच्छेदार अंग्रेजी और इतिहास की गहरी समझ के साथ सबसे पहले गांधी जी के दांडी मार्च का जिक्र किया। उसके बाद अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए बापू के संघर्ष का जिक्र करते हुए वह कहते है कि मैंने लगभग 50 साल गांधी को पढ़ा है। गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के बल पर देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी।

लेकिन भारत की स्थिति वैसी ही होती जा रही है जैसी पहले थी। धर्म के नाम पर युवाओं को भड़काया जा रहा है। वह कहते है कि मैं हैरान हूं कि बापू के देश में लोग रंगों के लिए लड़ रहे हैं। अपनी फर्राटेदार अंग्रेजी में वह गोडसे का जिक्र करते हुए कहते हैं कि भारत के आजाद होने के 75 साल में हम कहां से कहां आ गए हैं कि गोडसे पर फिल्म बनाई जा रही है। जिस शख्स ने एक बुजुर्ग को गोलियों से मारा उसके लिए फिल्म बनाई जा रही है।

यह सारी बातें भविष्य के लिए चिंताजनक हैं। हमें इन सारी चीजों पर विचार करना चाहिए। वह कहते हैं कि ‘राहुल गांधी जो कर रहे हैं वह कहीं न कहीं बापू के विचारों से प्रेरित हैं। इसलिए मैं इसमें शामिल हुआ हूं। मैं भारत आता जाता रहता हूं लेकिन इस वक्त जो स्थिति है ऐसे में यह यात्रा सकारात्मकता का काम करेगी। क्योंकि इस वक्त हालात यह है कि मीडिया को बहुत हद तक अच्छी खबरों के लिए भी रोका जा रहा है। बीबीसी द्वारा गुजरात के दंगे पर बनी पीएम मोदी की डॉक्यूमेंटरी पर बैन लगाया जा रहा है। जबकि साल 2002 में क्या हुआ था यह सभी को मालूम है’।

(पूनम मसीह जनचौक संवाददाता हैं)

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