चुनाव आयोग के पास नहीं है जवाब, दो लोगों का चुनाव पहचान संख्या एक कैसे हो सकता है?

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क्या दो लोगों का आधार नंबर एक ही हो सकता है? भले ही वो दो अलग-अलग राज्यों के लोग हों। क्या दो गाड़ियों की नंबर प्लेट संख्या एक ही हो सकती है? यदि हो जाए तो यह कितना घातक हो सकता है, इसका कुछ अंदाज़ा है? क्या दो लोगों की पासपोर्ट संख्या एक हो सकती है? नहीं न? तो फिर एक से अधिक मतदाताओं की चुनावी फोटो पहचान कार्ड यानी ईपीआईसी एक कैसे हो सकती है?

चुनाव आयोग मतदाता पहचान कार्ड नंबर विवाद में फँस गया है। एक से अधिक लोगों की वोटर आईडी कार्ड यानी ईपीआईसी संख्या एक ही होने के आरोपों पर चुनाव आयोग की सफ़ाई के बाद और गंभीर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी ने दावा किया है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में धोखाधड़ी को छुपाने की कोशिश कर रहा है। टीएमसी ने चुनाव आयोग द्वारा दी गई सफ़ाई को चुनाव आयोग की ही गाइडलाइंस के आधार पर ‘फ्रॉड’ बता दिया है।

दरअसल ममता बनर्जी ने 27 फ़रवरी को आरोप लगाया था कि कई मतदाताओं के पास एक ही ईपीआईसी संख्या है। इस पर चुनाव आयोग ने एक बयान जारी कर कहा कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है। इसने कहा था कि ‘मैनुअल त्रुटि’ से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई।

इस मामले में टीएमसी के नेता साकेत गोखले ने कहा है कि चुनाव आयोग ने जो सफ़ाई दी है वो उनके अपने नियमों और दिशानिर्देशों से मेल नहीं खाती। उन्होंने वोटर आईडी कार्ड के रूप में जाने जाने वाले EPIC बनाए जाने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए चुनाव आयोग की दलीलों को खारिज कर दिया। गोखले ने कहा है कि ईपीआईसी जारी करने की प्रक्रिया चुनाव आयोग की ‘हैंडबुक फॉर इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स’ में लिखी है।

साकेत गोखले इसी के आधार पर चुनाव आयोग की ‘सफ़ाई’ में तीन झूठ बेनकाब करने का दावा किया है-

चुनाव आयोग का दावा 1: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को इसलिए दे दिया गया क्योंकि कुछ राज्यों ने एक ही “अल्फान्यूमेरिक सीरीज” का इस्तेमाल किया।

सच: ईपीआईसी नंबर में 3 अक्षर और 7 नंबर होते हैं। हैंडबुक में साफ़ लिखा है कि ये 3 अक्षर फंक्शनल यूनिक सीरियल नंबर के नाम से जाने जाते हैं। ये 3 अक्षर हर विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग होते हैं। मतलब, एक ही राज्य में भी दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के वोटर्स के ईपीआईसी के पहले 3 अक्षर एक जैसे नहीं हो सकते। तो फिर पश्चिम बंगाल के वोटर्स के ईपीआईसी नंबर हरियाणा, गुजरात और दूसरे राज्यों के लोगों को कैसे मिल गए?

चुनाव आयोग का दावा 2: उनका कहना है कि अगर दो लोगों के पास एक ही ईपीआईसी नंबर है, तो भी वे अपने-अपने क्षेत्र में वोट डाल सकते हैं जहां उनका नाम दर्ज है।

सच : फोटो वाली मतदाता सूची में वोटर की तस्वीर ईपीआईसी नंबर से जुड़ी होती है। अगर बंगाल का कोई वोटर वोट डालने जाए और उसका ईपीआईसी नंबर किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति को भी दिया गया हो तो मतदाता सूची में उसकी तस्वीर अलग दिखेगी। इससे फोटो न मिलने की वजह से उसे वोट डालने से रोका जा सकता है। एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों में देकर उन वोटर्स को वोटिंग से रोका जा सकता है जो बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट दे सकते हैं।

चुनाव आयोग का दावा 3: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को ग़लती से दे दिया गया और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

सच: चुनाव आयोग के नियम कहते हैं कि ईपीआईसी नंबर देने के लिए जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है, वो हर इस्तेमाल और खाली नंबर का हिसाब रखता है ताकि एक ही नंबर दो लोगों को न मिले। ईपीआईसी नंबर वोटर की जानकारी और तस्वीर से जुड़ा होता है और इसे स्थायी यूनिक आईडी माना जाता है। तो ये कैसे मुमकिन है कि ‘ग़लती’ से एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों के लोगों को दे दिया जाए? और अगर ईपीआईसी नंबर डुप्लिकेट है, तो वोट डालने से रोका जा सकता है। ये साफ़ तौर पर बीजेपी के पक्ष में मतदाताओं को रोकने की साज़िश लगती है, जिसमें गैर-बीजेपी इलाक़ों के वोटर्स को निशाना बनाया जा रहा है।

साकेत गोखले ने आरोप लगाया है, ‘ये सब चुनाव आयोग की कार्रवाई और विश्वसनीयता पर बड़े सवाल खड़े करता है। खासकर अब, जब चुनाव आयुक्तों को मोदी सरकार नियुक्त करती है। 3 सदस्यों वाली कमेटी में 2 लोग- प्रधानमंत्री और अमित शाह- बहुमत से फ़ैसला लेते हैं। अगर चुनाव आयोग बीजेपी के लिए काम कर रहा है, तो निष्पक्ष चुनाव की कोई उम्मीद नहीं है।’

टीएमसी नेता ने कहा है कि चुनाव आयोग को सच बताना चाहिए कि कितने ईपीआईसी कार्ड अभी सक्रिय हैं और उनमें से कितनों के नंबर एक जैसे हैं। गोखले ने कहा कि उन्हें ये दिखावा बंद करके डुप्लिकेट वोटर आईडी घोटाले पर साफ़ जवाब देना चाहिए।

टीएमसी नेताओं ने दावा किया है कि उनके पास ऐसे कई दस्तावेज हैं, जो दिखाते हैं कि एक ही ईपीआईसी नंबर का इस्तेमाल एक ही निर्वाचन क्षेत्र और अलग-अलग राज्यों में किया जा रहा है। पार्टी की उपनेता सागरिका घोष ने कहा, ‘हमारे पास सबूत हैं कि गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लोगों को बंगाल की मतदाता सूची में शामिल किया गया है। यह एक सुनियोजित साज़िश है।’

ईपीआईसी में गड़बड़ी के आरोपों को लेकर चुनाव आयोग की सफ़ाई के बाद टीएमसी ने ये सवाल उठाए हैं। ममता बनर्जी के आरोपों पर चुनाव आयोग ने रविवार को एक बयान में कहा था कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है। इसने कहा था कि ‘मैनुअल त्रुटि’ से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई।

टीएमसी सांसद डेरेक ओब्रायन, सागरिका घोष और कीर्ति आज़ाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग को गड़बड़ी सुधारने का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि चुनाव आयोग ने 24 घंटे में गड़बड़ी को मानकर नहीं सुधारता है तो टीएमसी ऐसी ही गड़बड़ियों के और दस्तावेज मंगलवार को जारी करेगी।

सागरिका घोष ने कहा, “आज हमने ‘ईपीआईसी’ घोटाले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। टीएमसी ने सबूतों के साथ डुप्लीकेट ईपीआईसी कार्ड के घोटाले को उजागर किया है। जब आधार कार्ड पर यूनिक नंबर होते हैं, जब लाइसेंस प्लेट पर यूनिक नंबर होते हैं, तो कई लोगों के पास एक ही ईपीआईसी नंबर कैसे हो सकता है? चुनाव आयोग का जवाब पूरी तरह से असंतोषजनक है। टीएमसी ने चुनाव आयोग को अपनी ग़लती स्वीकार करने के लिए 24 घंटे का समय दिया है, अन्यथा हम कल एक और दस्तावेज़ जारी करेंगे।”

सागरिका घोष, कीर्ति आज़ाद के साथ डेरेक ओब्रायन ने एक ही ईपीआईसी नंबर वाले वोटर आईडी कार्डों की सूची को दिखाया और कहा कि इनमें से अधिकतर बीजेपी शासित राज्यों से हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि उस राज्य का वोटर ही किसी राज्य में चुनाव में मतदान करे जिस राज्य का वह रहने वाला है। ओब्रायन ने कहा कि सिर्फ़ बंगाल का वोटर ही बंगाल में वोट करे। उन्होंने कहा कि ‘मतदाताओं को वोट नहीं डालने दिया जाएगा क्योंकि उसी ईपीआईसी नंबर से लोग उन मतदाताओं के वोट डाल चुके होंगे। ये लोग दूसरे राज्यों से वोट डालने के लिए लाए जाएँगे। यह अस्वीकार्य है।’

चुनाव आयोग ने अपने जवाब में माना कि कुछ मतदाताओं के पास वास्तव में एक जैसे ईपीआईसी नंबर हैं, लेकिन वे अलग-अलग राज्यों से हैं। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि ईपीआईसी नंबर में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट/नकली मतदाता नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर यह ईपीआईसी क्या है, इसे समझना भी जरूरी है। मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 में सभी मतदाताओं को मतदाता फोटो पहचान पत्र जारी करने का प्रावधान है, ताकि फर्जी पहचान पत्र को रोका जा सके। पंजीकृत मतदाताओं को 1993 से राज्य सरकारों द्वारा ईपीआईसी जारी किया जाना शुरू हुआ।

ईपीआईसी एक पहचान दस्तावेज है। यह धारक को वोट देने का अधिकार नहीं देता है, जो केवल उन लोगों को उपलब्ध है जिनके नाम उनके संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में हैं। EPIC में मतदाता का नाम, आयु, निवास और चुनाव आयोग द्वारा निर्दिष्ट कोई भी विवरण; मतदाता की एक तस्वीर; और पंजीकरण अधिकारी के फैक्सिमाइल हस्ताक्षर होते हैं।

इस बीच कांग्रेस के नेताओं और विशेषज्ञों के विशेषाधिकार प्राप्त कार्य समूह (ईगल) ने एक मतदाता पहचान संख्या का इस्तेमाल कई राज्यों में किए जाने का सोमवार को दावा किया और आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग मतदाता सूची से संबंधित हेरफेर में संलिप्त है।कांग्रेस इस मुद्दे को कमजोर नहीं होने देगी तथा वह कानूनी, राजनीतिक, विधायी और अन्य तरीकों से समाधान तलाशने के लिए सक्रिय है।

‘ईगल’ ने एक बयान में कहा, ‘‘मतदाता सूची में हेरफेर के मुद्दे पर कुछ चौंकाने वाले घटनाक्रम सामने आए हैं। एक ही मतदाता पहचान संख्या का उपयोग एक ही राज्य के एक ही निर्वाचन क्षेत्र के साथ-साथ अन्य राज्यों के कई मतदाताओं के लिए किया जा रहा है। ये बिल्कुल चौंकाने वाला है।’’प्रत्येक भारतीय मतदाता के लिए एक मतदाता पहचान पत्र एक साफ-सुथरी मतदाता सूची की मूलभूत आवश्यकता और आधार है।

कांग्रेस की इस इकाई ने कहा, ‘‘एक ही मतदाता पहचान संख्या वाले कई मतदाताओं का होना देश में एक ही पंजीकरण संख्या वाले कई वाहनों के समान विचित्र है। यह किसी भी चुनावी लोकतंत्र में अनसुना है।’’‘ईगल’ के अनुसार, दिसंबर 2024 में, कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र 2024 विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूचियों में भारी अनियमितताओं और असामान्यताओं की ओर इशारा किया।

उसने कहा कि यह तार्किक और सांख्यिकीय आधार पर बेतुकापन है कि चुनाव आयोग ने 2019 और 2024 के बीच पूरे पांच साल की अवधि में दर्ज नए मतदाताओं (32 लाख) की तुलना में 2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच पांच महीनों में अधिक नए मतदाता (40 लाख) पंजीकृत किए।

‘ईगल’ ने दावा किया कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में जमीनी रिपोर्टों के माध्यम से इसकी पुष्टि की गई, जहां हजारों मतदाताओं को सिर्फ एक इमारत से नामावली में जोड़ा गया था या अन्य राज्यों से लाया गया था।यह प्राथमिक जानकारी है कि जो व्यक्ति कानूनी रूप से देश के किसी भी राज्य में प्रवास कर सकता है, उसके पास पूरे देश में एक अद्वितीय मतदाता पहचान संख्या होनी चाहिए। चुनाव आयोग इस मामले में अनजान होने या अक्षमता का दिखावा नहीं कर सकता।’’

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह सत्तारूढ़ दल की सहायता करने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के विचार को विफल करने के लिए मतदाता सूची में हेरफेर का एक जानबूझकर किया गया कार्य है। अब पर्दा हट चुका है। यह स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ बीजेपी चुनाव आयोग की मिलीभगत से मतदाता सूचियों में हेरफेर करके चुनाव जीतती है या जीतने का प्रयास करती है। यही कारण है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए इतनी महत्वपूर्ण है कि उसने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक संतुलित समिति बनाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलट दिया।’’

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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