Sunday, April 28, 2024

आम चुनाव से पहले कम नहीं होने वाली महंगाई की मार

महंगाई की मार कम होने वाली नहीं है, टमाटर के बाद दूसरे खाद्य पदार्थों की कीमतें भी सुरसा बनने के रास्ते पर हैं। हालांकि सरकार ने भी अब मान लिया है कि देश में महंगाई है और टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं। और उसके लिए उसने अपने छोटे पड़ोसी देश नेपाल का सहारा लेने का फैसला किया है। वित्तमंत्री निर्मला सीता रमण ने आज (गुरुवार) लोकसभा में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि शुक्रवार को उसकी पहली खेप यूपी के वाराणसी, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों तक पहुंच जायेगी। लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे महंगाई पर काबू पाना मुश्किल है। और सरकार के इन उपायों से बहुत ज्यादा कुछ नहीं होने वाला है क्योंकि आने वाले दिनों में दूसरी चीजों की कीमतों में भी बड़े स्तर पर बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है।

वर्ष 2023 के शुरुआती कुछ माह को छोड़ दें तो पिछले वर्ष 2022 में महंगाई की मार से भारत ही नहीं पूरी दुनिया जूझ रही थी। यूरोप और अमेरिका सहित भारत में मुद्रास्फीति से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारों ने अपने केंद्रीय बैंकों के जरिये ब्याज दरों को लगातार बढ़ाकर मुद्रास्फीति से निपटने की कोशिशें कीं। लंबे प्रयास के बाद इसे एक हद तक रोकने में कामयाबी पाने के बावजूद आज भी दुनिया इससे निजात नहीं पा सकी है, लेकिन भारत की तुलना में पश्चिम को एक और महंगाई की मार से दो-चार नहीं होना पड़ रहा है।

भारत में भी केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर इसे काबू में लाने का भरसक प्रयास किया है। लेकिन पिछले वर्ष की महंगाई पर यदि प्रभावी रूप से किसी चीज ने लगाम लगाई थी, तो वह उपभोक्ता वस्तुओं, विशेषकर सब्जी-फल एवं खाद्य तेल के दामों में आई कमी की वजह से हुई थी।

लेकिन जून और जुलाई माह में अनपेक्षित मानसून की मार से कई क्षेत्रों में अचानक बाढ़ ने जहां टमाटर सहित कई सब्जियों की आवक और फसल को बर्बाद कर दिया, और अब गेहूं के बाद चावल के दामों में अचानक बढ़ोत्तरी ने मुद्रास्फीति में कमी के बजाय एक बार फिर से भारी महंगाई की दिशा में देश को झोंक दिया है।

पिछले 2 माह से देश की बहुसंख्य आबादी ने टमाटर ही खाना छोड़ दिया है। देश में टमाटर की लूट के किस्से अब आम खबर का हिस्सा बन चुके हैं। टमाटर पर व्यंग्य और मीम बनाने का फैशन तक पुराना पड़ चुका है। केंद्र सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय ने टमाटर के दामों पर तब कहा था कि अगले 10 दिनों में कीमतें सामान्य हो जाएंगी, सरकार सप्लाई चैन को इस बीच दुरुस्त कर देगी। यह मंत्रालय अब कहां है और इसके मंत्री किस दिशा में काम कर रहे हैं, यह पूछने की अब जरूरत भी नहीं बची है। यहां तक कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के “मैं तो प्याज नहीं खाती हूं” वाले जुमले को लोग टमाटर के लिए स्वीकार कर चुके हैं, और खुद से टमाटर खाना भूल चुके हैं।

केंद्र सरकार ने दिखावे के तौर पर फौरी राहत भी उन लोगों को दी है, जो मध्य, उच्च-मध्य या केंद्रीय कर्मचारियों के परिवार हैं, जिन्हें 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से टमाटर खरीदने के लिए कई घंटों की लाइन में टीवी न्यूज़ दिखाकर सवाल उठाने की कोशिश करते दिखते हैं कि क्या टमाटर खरीदने की लाइन में लगने पर उन्हें गुस्सा आता है या वे अब भी सरकार के प्रति कृतज्ञ भाव से देखते हैं? वैसे बाजार में टमाटर का भाव अब 200 रुपये प्रति किलो के पुराने भाव की तुलना में कम होने के बजाय 250-300 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है। जाहिर है, 80% गरीब एवं वंचित भारत के साथ-साथ अब यह मध्य-उच्च मध्य वर्ग के तबके को भी प्रभावित करने लगा है।

लेकिन एक टमाटर की महंगाई ही होती तो भी महंगाई इस कदर आम लोगों की जेब और दिल पर इतना भार नहीं डालती। आम लोगों की थाली में आज प्याज, आलू, लौकी, शिमला मिर्च, भिंडी, हरी सब्जियों, खाद्य तेल, जीरा, हल्दी, काली मिर्च, अरहर, उरद और मसूर सहित चीनी ने भी भारी चोट पहुंचाने का काम किया है। सरकार को भी बखूबी इस बात का अहसास है और देश में 5 विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 के आम चुनावों में महंगाई का मुद्दा हावी रहा तो कैसे देश को विश्वगुरु बनाने के सारे दावे हवा हो सकते हैं, को लेकर सरकारी मशीनरी लगातार बेचैन है। 

इसी को ध्यान में रखते हुए चावल और गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई गई है, जिस पर वैश्विक नेताओं की ओर से भारत पर दबाव और विरोध के स्वर उभर रहे हैं। दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक (करीब 40%) देश होने के नाते भारत से यदि निर्यात को प्रतिबंधित करने से चावल के दामों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। वियतनाम सहित पूर्वी एशिया के देशों ने चावल के निर्यात पर कीमतों में करीब 25% का इजाफा कर दिया है। अब पिछले कुछ दिनों से भारत में जिस तेजी से गेहूं के दामों में वृद्धि देखने को मिल रही है, और थोक बाजार एवं आटा मिलों के पास गेहूं का स्टॉक चुक गया है, वह गेहूं के दामों को तेजी से नई ऊंचाई पर पहुंचा रहा है। 

यदि यही हाल रहा तो गेहूं और चावल के दाम आसमान छू सकते हैं, और 80% आबादी जो आज टमाटर, दाल सहित विभिन्न खाद्य वस्तुओं से किनारा कर सिर्फ जीने के लिए गेहूं, चावल पर निर्भर है के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो सकता है।

इसी को मद्देनजर रखते हुए केंद्र सरकार गेहूं के निर्यात के बजाय आयात के लिए कदम उठाने जा रही है। बुधवार को केंद्र ने अपने स्टॉक से 50 लाख टन गेहूं और 25 लाख टन चावल को ओपन मार्केट में उतारने का फैसला लिया है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि जून माह में जब सरकार की ओर से यह प्रक्रिया शुरू की गई थी तो 15 लाख टन गेहूं को खुले बाजार में लाने के बावजूद खरीदारों की ओर से 8.2 लाख टन की ही खरीद की गई, जो कुल प्रस्तावित स्टॉक का 55% बैठता है। चावल की खरीद का आंकड़ा इससे भी बदतर रहा था, जिसमें 5 लाख टन चावल में सिर्फ 38% खरीद ही ओपन मार्केट में संभव हो सकी। 

महंगाई को काबू में रखने के लिए सरकार ने चावल की रिजर्व प्राइस में बड़ी कटौती करते हुए 3100 रुपये प्रति क्विंटल को 200 रुपये घटाकर 2,900 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसके बाद अब उम्मीद की जा रही है कि व्यापारी चावल की खरीद में उत्साह दिखाएं। 

इसके साथ ही सरकार ने दावा किया है कि उसके स्टॉक में पीडीएस एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए पर्याप्त गेहूं चावल के भंडार के अलावा भी 2.87 करोड़ टन गेहूं और चावल का भंडार है, जिससे दामों में किसी भी प्रकार के भारी उछाल को रोकने में वह समर्थ है। भारतीय खाद्य निगम के प्रबंध निदेशक अशोक के मीणा के अनुसार, इस वर्ष 28 जून से ई-बोली के माध्यम से गेहूं और चावल की खुले बाजार में बिक्री शुरू की गई है। अभी तक 7 बार ई-बोलियों के माध्यम से कुल 8 लाख टन गेहूं की बिक्री की जा चुकी है। 

लेकिन यही काम जब राज्य सरकारों के द्वारा अपने प्रदेश की जनता के विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए किये जाने के लिए कदम उठाया गया, तो केंद्र ने कर्नाटक को केंद्रीय पूल से चावल देने से मना कर दिया था। यानि खुले बाजार में व्यापारियों, बिचौलियों को तो मोदी सरकार गेहूं, चावल दे सकती है, लेकिन विपक्षी राज्यों की सरकारें केंद्र के 5 किलो अनाज के साथ अतिरिक्त 5 किलो अनाज देने का प्रयास करती है तो उसे ऐसा करने से रोका जायेगा। मजे की बात यह है कि कर्नाटक ने इसके लिए 3,400 रुपये प्रति क्विंटल देने का प्रस्ताव किया था, जबकि खुले बाजार के लिए केंद्र ने 3,100 रुपये और अब उसे भी घटाकर 2,900 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। 

इससे क्या निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं? पहला तथ्य यह है कि अपेक्षा के विपरीत इस बार धान और गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। दूसरा, इस कमी के चलते बाजार में लगातार दाम बढ़ रहे हैं। तीसरा, केंद्र के पास पीडीएस एवं अन्य योजनाओं के अलावा भी करोड़ों टन गेहूं और चावल का पर्याप्त भंडार मौजूद है, जिसे उसने खुले बाजार में महंगाई की सूरत में ई-बोलियों के माध्यम से बाहर निकालना शुरू कर दिया है, लेकिन बिचौलिए और व्यापारी कम दाम पर भी खरीद में आनाकानी कर रहे हैं।

इसका अर्थ यह है कि गेहूं और चावल की पैदावार की कमी का फायदा उठाते हुए बाजार भाव को ऊंचा बनाये रखने में स्टॉकिस्ट और बिचौलियों की कोशिश है, जिसे केंद्र सरकार समझती तो है, लेकिन आवश्यक कार्रवाई करने से बच रही है। चौथा, कर्नाटक जैसे विपक्षी राज्य यदि अपने राज्य के आम लोगों की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में मौजूद विपुल भंडार में से व्यापारियों की तुलना में ऊंचे दाम पर भी अनाज की खरीद करना चाहें तो उनके लिए यह रास्ता बंद कर दिया गया है। यह इन राज्यों की जनता के लिए डबल इंजन सरकार का चयन न करने की सजा मानी जा सकती है। 

बहरहाल, केंद्र सरकार के आंकड़ों पर विश्वास करें तो गेहूं और चावल का पर्याप्त भंडार होने के चलते इन दो वस्तुओं की कीमतों में असाधारण वृद्धि की संभावना नहीं है। लेकिन जिस प्रकार से गेहूं की बिकवाली के सीजन के दौरान ही दाम कम होने के बजाय बढ़ने लगे थे, वह साफ़ इशारा करता है कि मांग एवं आपूर्ति के इस गैप में बेहद छोटे से अंतर को भी देश का व्यापारी वर्ग अपने हित में भुनाने के लिए किस हद तक तत्पर है और वह इस कृत्रिम कमी का भरपूर दोहन करने से बाज नहीं आ रहा है। यह वही साहसिक उद्यमी समुदाय है, जिसकी प्रशंसा में एक बार प्रधानमंत्री ने खुलकर कसीदे पढ़े थे और उन्हें सबसे साहसी बताया था। 

अब जबकि महाराष्ट्र की मंडी में प्याज की कीमत करीब 1,300 प्रति क्विंटल से बढ़कर 1,700 रुपये हो चुकी है, दिल्ली के खुदरा बाजार में 25-30 रुपये प्रति किलो प्याज की कीमत बढ़कर 40 रुपये हो चुकी है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र की मंडी में प्याज की आपूर्ति पहले की तुलना में बढ़ी है, इसके बावजूद प्याज की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। यही हाल रहा तो टमाटर के बाद प्याज भी महंगाई के आंसू रुलायेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध में एक बार फिर से नया गतिरोध का नतीजा सूरजमुखी तेल के आयात पर ब्रेक भारत में किचन के बजट को फिर से बिगाड़ने की दिशा में बढ़ चुका है। 

चीनी और चावल की सीमा पार स्मगलिंग की खबर पहली बार सुर्खियां बनी हैं। चीनी के मामले में भी महंगाई अपना असर दिखाने लगी है। मोदी सरकार ने हाल के वर्षों में चीनी से एथनॉल बनाने की जिस प्रकिया को अग्रगति दी थी, उसके चलते चीनी का मौजूदा उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में गिरा है, जो आम भारतीय के लिए जल्द ही एक नई मुसीबत बन सकता है।

कुल मिलाकर देखें तो भारतीय रिजर्व बैंक जहां एक माह पहले महंगाई को काबू में कर लेने के दावे कर रही थी, और 4% होने के दावे के साथ कथित राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के एंकर देश की वर्तमान सरकार के सक्षम, सबल और कुशल नेतृत्व का गुणगान करते नहीं थक रहे थे, उनके सामने जुलाई माह में महंगाई के आंकड़े एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकते हैं। 

रायटर्स के मुताबिक आरबीआई ने मौजूदा तिमाही के लिए 5.2% मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया था, वह गलत साबित हुआ है। रायटर्स के 3-8 अगस्त के बीच 53 अर्थशास्त्रियों के साथ किये गये सर्वेक्षण में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में औसतन 6.40% वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। आरबीआई 2-6% के बीच की मुद्रास्फीति को नियंत्रित मानती आई है, जिसकी सीमा से बाहर जाने का अर्थ है आम लोगों का बजट बिगड़ रहा है।

इन अर्थशास्त्रियों का आकलन यह भी बता रहा है कि खाद्य वस्तुओं की महंगाई अभी कुछ महीने आगे भी बनी रहने वाली है। बेरोजगारी, महिला सुरक्षा-सम्मान, लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता के हनन, केंद्र-राज्य संबंध, ईडी-सीबीआई, मणिपुर के साथ-साथ बढ़ती महंगाई की मार का मुद्दा जो शहरी निम्न एवं मध्यवर्गीय मतदाताओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है, को लेकर केंद्र सरकार क्या वास्तव में कोई ठोस कदम उठाने जा रही है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)     

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles