झारखंड। जब 7 सितंबर 2005 को नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) की अवधारण लाई गई तो लगा कि केंद्र सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी योजना से देश के ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों में रोजगार की गारंटी तय हो गयी है। इस योजना को 2 अक्टूबर 2005 को पारित कर कानूनी रूप दिया गया और इसे 2 फरवरी 2006 को देश के 200 जिलों में शुरू किया गया, जिसे 1अप्रैल 2008 तक भारत के सभी 593 जिलों में लागू कर दिया गया।
31 दिसंबर 2009 को इस योजना के नाम में परिवर्तन करके इसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) कर दिया गया। इस योजना के तहत प्रत्येक वित्तीय वर्ष में गांव के एक परिवार को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी की गई। चाहे उस परिवार में एक वयस्क सदस्य हो या एक से अधिक।
आज स्थिति यह हो गई है कि ग्रामीण विकास विभाग के अति महत्त्वाकांक्षी समझी जाने वाली योजना मनरेगा में वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा लगातार लायी जा रही कई नये नियमों से पैदा होती विसंगतियों के कारण आज मजदूरों में इसके प्रति रूचि घटती जा रही है। पहले जहां झारखंड में 8 लाख मजदूर प्रतिदिन काम कर रहे थे, अब वे घटकर 3.5 लाख ही रह गये हैं।
इस बात को राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने भी स्वीकार किया है।14 फरवरी 2023 को मंत्री आलमगीर आलम ने कहा था कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने सबसे अहम मनरेगा का बजट घटा दिया है, जिससे अब गरीबों को रोजगार देना मुश्किल होगा। ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन शुरू हो रहा है। यहां के बेरोजगारों को रोजगार कैसे देंगे, यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यहां कल-कारखाना भी समुचित नहीं है।
झारखंड में गांव के बेरोजगारों को उनके ही गांव में रोजगार देने की योजना फेल हो रही है। अब मजदूरों को उनके गांव में ही रोजगार देना संभव नहीं हो रहा है। ऐसा मनरेगा की योजनाओं में नया नियम लागू करने से हुआ है। मंत्री ने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने सबसे अहम मनरेगा का बजट घटा दिया है, जिससे अब गरीबों को रोजगार देना मुश्किल होगा। बता दें कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिए मनरेगा का बजट 60,000 करोड़ रुपये किया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में इसका बजट 89,000 करोड़ रुपये था।
इस तरह 34 प्रतिशत की बजट में कटौती हुई है। इस वजह से सभी राज्यों को कम पैसा मिल रहा है। वहीं केंद्र सरकार के नये नियम के तहत अब हर पंचायत में एक बार में मात्र 20 ही योजनाएं ली जा सकेंगी। इन योजनाओं की समाप्ति के बाद ही नयी योजना ली जा सकती है। स्थिति यह है कि किसी-किसी पंचायत में 25 से 30 गांव भी हैं। इस तरह कई गांव योजना से महरूम रह जाएंगे। वहीं एक योजना छह महीने या इससे अधिक समय तक चलती है।
इस वजह से दूसरी योजना लेने में भी काफी समय लगेगा। कुल मिलाकर रोजगार पूरी तरह घट जाएगा। मानव दिवस सृजन करने का अभियान फेल हो जाएगा। मनरेगा की अवधारण जब आई तो भारत के ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों की आजीविका रोजगार का मुख्य साधन बनी। उस समय मजदूरों की मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया काफी सरल थी और मजदूरी अनुपात सामग्री के लिए रात में भी पंचायतों में राशि उपलब्ध रहती थी।
सबसे पहले 2007-08 तक मजदूरों को मजदूरी भुगतान राशि के साथ-साथ अनाज दिया जाता था। जो पंचायत से देय होता था, ग्राम प्रधान और निगरानी समिति के सामने मस्टर रोल में सही ठेका कराया जाता था। इसके बाद मजदूरी भुगतान में बदलाव किया गया। पंचायत से चेक के माध्यम से मजदूरों के पोस्ट ऑफिस खाते में एडवाइस बनाकर भुगतान किया जाता था। वहीं 2011-12 से ऑनलाइन मस्टर रोल मॉडल की शुरुआत की गयी। जो काफी सुविधाजनक था। वह प्रखंड कार्यालय से होता था।
जब से केंद्र में मोदी सरकार आयी है नियमों में कई बदलाव किये गये हैं। पोस्ट ऑफिस के खाते का सिस्टम बंद कर दिया गया और बैंक में खाता अनिवार्य कर दिया गया। पहले मजदूर डाकघर में आसानी से निकासी कर लेते थे। लेकिन बैंक में खाता खुलने से कई परेशानियां शुरू हो गईं। मजदूरों को अपनी मजदूरी का भुगतान लेने के लिए दिन भर लाइन में लगे रहना पड़ता है। ऐसे में उस दिन उन्हें मजदूरी करने का समय भी नहीं मिलता है।
वहीं पहले से ही बैंक की लाइन की समस्या से परेशान मजदूरों के बीच मनरेगा भुवन एप आ गया। जिसमें जियो टैग की प्रक्रिया शुरू हुई। काम शुरू करने से पहले कार्य स्थल का फोटो, काम करते हुए फोटो, कार्य पूरा होने पर फोटो, की प्रक्रिया चालू हुई। इतनी पारदर्शिता शायद ही किसी योजना में हुई हो। दूसरी तरफ मनरेगा में कई तरह के नये काम जोड़े गये।
ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके जीवन स्तर पर सुधार लाने के लिए दीदी बाड़ी योजना, दीदी बगिया, आम बागवानी, डोभा, कुंआ, मुर्गी शेड, बकरी शेड, गाय शेड, सुअर शेड योजनाओं के तहत भी निर्माण कार्य कराया जा रहा है। वहीं जल स्तर को रोकने के लिए TCB (Tranc com band) का निर्माण, डोभा का निर्माण, ट्रैच का निर्माण, FB (fild band) का निर्माण किया जा रहा है। डोभा निर्माण की साइज 60’×60’×10′ और 100’×100’×10′ का होता है। जिसमें बरसात के पानी का जल जमाव रहता है।
इसमें 71 सीएफटी के हिसाब से एक हाजिरी का भुगतान होता है। Tranch, com band, का निर्माण 12’×3’×3′ साइज का होता है, जो जंगल के किनारे या पहाड़ी क्षेत्र के ढलान पर होता है। इस पर दो हाजिरी का भुगतान होता है। वहीं FB (fild band) 12’×6’×1′ साइज का होता है, जिसका निर्माण खेतों के बगल में किया जाता है। वह इसलिए कि खेतों में नमी बनी रहे। इसमें एक हाजिरी का भुगतान बनता है। इन योजनाओं को देख, सुनकर लगता है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र के गरीब लोगों पर दिल खोलकर मेहरबान है।
लेकिन धरातल पर जब हम देखते हैं तो इन योजनाओं के कार्यों के भुगतान की जो समस्याएं आ रही हैं वे काफी निराश करने वाली हैं। ग्रामीण इलाकों में कई ऐसी जगहें हैं जहां पर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र, जंगल एवं घाटी हैं। जहां नेटर्वक की काफी दिक्कतें रहती हैं। पूर्व की इन सारी दिक्कतों के बीच वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक योजना में ऑनलाइन हाजिरी बनाने के लिए एक नया एक सिस्टम NMMS (नेशनल मोबाईल मॉनिटर सिस्टम) यानी राष्ट्रीय मोबाईल निगरानी प्रणाली और ABP यानी आधार बेस पेमेंट इस वर्ष 2023 एक जनवरी से लागू किया गया है।
जिससे और भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। नेटवर्क की वजह से हाजिरी बन नहीं पा रही है। जिसके कारण मजदूरों का भुगतान नहीं हो रहा है। चूंकि मजदूरों का मस्टर रोल, मापी पुस्तिका और मेजरमेंट बुक बनाने की सारी प्रक्रिया मेट की होती है। जब मजदूरों की हाजिरी नहीं बन पा रही है तो ऐसे में मेट की भी हाजिरी नहीं बनती है। मेट किसी महिला को ही बनाया जाना तय है। मेट की दैनिक मजदूरी न्यूनतम 373 रूपए प्रतिदिन है, वहीं मनरेगा मजदूरों की हाजिरी प्रतिदिन 237 रूपए (केंद्र सरकार की 210 रूपए और झारखंड सरकार की ओर से 27 रूपए) है।
जब ऑनलाइन से FTO (FUND TRANSFAR ORDAR) के माध्यम से मजदूरी भुगतान शुरू किया गया तब शुरुआत में कर्मी और मजदूरों को समझने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा। इन्टरनेट की व्यव्स्था नहीं थी। कई प्रखंडों में इन्टरनेट नहीं था। बैंक में भी संसाधनों की कमी थी। बहुत सारी समस्याएं थीं जिसे समझने में कई महीने लग गए। आज भी बहुत सारे पंचायत सचिव इस सिस्टम से अनजान हैं। इन्टरनेट है तो सर्वर नहीं है, सर्वर है तो इन्टरनेट नहीं। नेट भी इतना धीरे-धीरे चलता था कि छोटे से काम में पूरा दिन चला जाता था।
2G आया कुछ काम में कुछ सुधार होने लगा। पर किस कंपनी का नेट कार्यालय में ठीक चलेगा उसकी गारंटी नहीं थी। इसी समय से मजदूरों में मनरेगा योजनाओं से मन खराब होने लगा। नेट धीरे, काम धीरे, भुगतान भी धीरे। अपना पैसा बैंक से निकालना भी एक मजदूर के लिए बहुत बड़ी समस्या हो जाती थी। अपना सब काम छोड़ कर बैंक का चक्कर लगाने पर मजबूर, कभी लिंक नहीं, कभी नेट नहीं, कभी तकनीकी खराबी।
एक तो ‘करेला ऊपर से नीम चढ़ा’ वाली कहावत को साकार करते हुए इसके बाद आधार बेस पेमेंट (ABP) सिस्टम लागू किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर अलग-अलग बैंक कर्मी जाकर ZERO बैलेन्स में सिर्फ आधार कार्ड लेकर खाता खोल देते थे। ग्रामीण भी क्या जानें, जो बैंक वाला आता सभी में अपना खाता खोल लेते। पैसा तो लगना है नहीं। जितना शहर वाले के पास बैंक खाता नहीं है, उतना ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का खाता है।
एक मजदूर के पास लगभग 5 से 6 बैंक का खाता है। हास्यास्पद बात यह है कि मजदूर को खुद नहीं पता कि उनका खाता किस-किस बैंक में हैं। पंचायत में रोजगार सेवक का आधा समय इन मजदूरों की मजदूरी राशि खोजने में बीत जाता है कि मजदूर की मजदूरी भुगतान की राशि किस बैंक में गई है। कई बार मजदूर अपने पैसों के लिए मेट और रोजगार सेवक से लड़ने लग जाते हैं। फिल्ड में मारने-पीटने पर भी उतारू हो जाते हैं।
अब ABP के साथ NMMS (नेशनल मोबाईल मॉनिटरिंग सिस्टम) के माध्यम से मजदूरों का हाजिरी बना कर मजदूरी भुगतान किया जाना है। जिसमें दिन में दो बार ऑनलाइन मजदूरों का हाजिरी बनेगा उसके बाद ABP के माध्यम से भुगतान होगा।
सबसे बड़ी समस्या यहां यह है कि अधिकांश ग्रामीण महिला मेट के पास एंड्रॉयड मोबाईल नहीं है और जिसके पास है भी तो उसे वह ऑपरेट करना नहीं जानती हैं। मोबाईल में नेट होना जरूरी है। बिना नेट के काम नहीं हो सकता है।
कार्य स्थल पर जाकर मेट को ऑनलाइन हाजिरी बनाना है। एक बार सुबह और एक बार शाम में। इसकी भी गारंटी नहीं है कि काम हो ही जाएगा, कभी सर्वर रहता है कभी नहीं। इन्टरनेट की भी समस्या कैसी है? ग्रामीण क्षेत्रों की क्या स्थिति है? सभी जानते हैं। दूसरी समस्या यह है कि मनरेगा में मजदूर अपना समय निकाल कर काम करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अहले सुबह उठ कर काम करने चले जाते हैं।
योजना स्थल भी गांव से बाहर ही होता है। TCB, FB, DOBHA, कूप निर्माण, आम बागवानी, मुख्य रूप से किया जाता है। जो गांव या घर के अगल बगल तो होगा नहीं। एक चौका मिट्टी खोदने के लिए अधिकतर मजदूर सुबह ही चले जाते हैं और 6-7 बजे तक वापस आ जाते हैं। महिला मेट सुबह योजना स्थल पर जाने में अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं। ऐसी समस्या TCB, FB,और DOBHA निर्माण में देखने को मिलता है। NMMS तो हो नहीं पाया तो हाजिरी बनी नहीं।
ना मजदूर को पैसा मिला ना मेट को। काम करके भी मेहनताना शून्य रहा। बता दें कि पश्चिमी सिंहभूम ज़िला अंतर्गत खूंटपानी प्रखंड के सोनरोकुटी गांव के नाली निर्माण योजना सं.- 3408002011/ IC /7080901189422 में 25 मनरेगा मज़दूरों का भुगतान महीनों से लंबित है। जनवरी 2023 से भुगतान लंबित हैं, एनएमएमएस ऐप की समस्याओं के कारण हाजरी नहीं चढ़ रही है। किसी मजदूर का 26 दिन, किसी का 18 दिन तो किसी का 21 दिनों के काम का भुगतान रुका हुआ है।
प्रखंड कार्यालय द्वारा कहा जा रहा है कि एनएमएमएस में फोटो नहीं होने के कारण भुगतान नहीं हो रहा है। कभी दिन भर एनएमएमएस ऐप नहीं खुलता है, तो कभी फोटो नहीं अपलोड होता है। प्रशासन ने NMMS के चक्कर में मज़दूरों के काम को कई मस्टर रोल में जीरो कर दिया है। वैसे मज़दूरों ने शिकायत दर्ज कर मुआवज़ा सहित भुगतान और दोषी पदाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। जिले के खूंटपानी प्रखण्ड के 23 मजदूरों ने बताया कि मोबाईल आधारित हाजरी दर्ज नहीं होने से उनके 5 सप्ताह के 10 मस्टर रोल जीरो कर दिए गए हैं और उनकी मजदूरी नहीं मिली।
जबकि उन लोगों ने वास्तविक योजना स्थल पर कार्य किया है। ऑनलाइन फोटो अपलोड करने के चक्कर में नेटवर्क नहीं रहता है और घंटों तक भूखे-प्यासे इंतजार करना पड़ता है। खूंटपानी प्रखंड स्थित पूर्णिया पंचायत के सोनरो कुटी में मनरेगा योजना के तहत नाली निर्माण कार्य में 25 मजदूरों का करीब तीन माह से पैसा का भुगतान लंबित है। सोनरो कुटी का ही मजदूर भूंइया बंकिरा ने बताया कि वह और उसकी पत्नी सुकुरमनी बंकिरा ने 10 दिन मनरेगा योजना के तहत नाली निर्माण का कार्य किया है, लेकिन दोनों का भुगतान नहीं मिला है।
‘हो’ आदिवासी समुदाय का भूंइया बंकिरा टूटी-फूटी हिन्दी में बताता है कि प्रखंड कार्यालय में बताया गया कि एनएमएमएस का नेटवर्क फेल रहने से हाजिरी नहीं बना है जिसके कारण भुगतान नहीं हो रहा है। सोनरो कुटी गांव की मेट मुनी माइ बंकिरा बामुश्किल हिन्दी बोल पाती है। उसने टूटी-फूटी हिन्दी में जो बताया उसके अनुसार उसके पास मोबाईल तो है, जिसे उसने बड़ी मुश्किल से खरीदा है, लेकिन उसका इस्तेमाल करने में उसे काफी परेशानी होती है। वह बड़ी मुश्किल से बता पाती है कि नया सिस्टम एनएमएमएस के कारण मजदूरों की हाजिरी नहीं बन पा रही है, जिसके चलते हमारी भी हाजिरी नहीं बनती है।
मनरेगा योजना की समस्याओं पर ‘हो’ आदिवासी समुदाय के समूह में बैठे मजदूरों से पूछे जाने पर कि कितने दिनों का भुगतान नहीं हुआ है? चम्बरा बंकिरा हो में ही बताता है कि इस योजना में हम लोगों को पैसा (भुगतान) की समस्या है। पैसा का भुगतान नहीं हो रहा है। बोला जाता है कि फोटो जरूरी है। लेकिन वह भी नहीं हो रहा है। जनवरी से ही तीन महीने से भुगतान नहीं मिल रहा है। हम तो 52 दिन काम किये है। 52 दिन का पैसा नहीं मिला है।
निलांची बंकिरा बताती है कि उसका 18 दिन का भुगतान नहीं मिला है। एक दीदी को 48 दिन का भुगतान नहीं हुआ है। मेट अस्मिता बंकिरा से पूछे जाने पर कि आपको कितने दिन का भुगतान नहीं मिला है? वह बताती हैं कि 38 दिन का भुगतान नहीं मिला है। मस्टर रोल भी जमा किये हैं। मस्टर रोल जमा करने के बाद बताया जा रहा है, फोटो जमा नहीं हुआ है। अब फोटो ऑनलाइन नहीं हो रहा है।
वह बताती है एक दिन में दो बार फोटो जरूरी है। सुबह 6.00 बजे से दिन के 11 बजे तक और दोपहर 2.00 बजे से शाम 6.00 बजे तक का। पहले ऐसा नहीं था। यह पूछे जाने पर कि फोटो जरूरी है, यह कौन कह रहा है? वह बताती है प्रखंड कार्यालय से बोला जा रहा है कि अब फोटो जरूरी है। वहीं राज्य के लातेहार जिला अंतर्गत महुआडांड़ निवासी कृपा खाखा अच्छा खासा नरेगा मेट के तौर पर दिसम्बर 2022 तक कार्य करती रही थी। 1 जनवरी से मोबाईल आधारित हजारी प्रणाली के अनिवार्य किये जाने से उनकी मजदूरी बंद हो गई है।
क्योंकि अब उनके इलाके के सारे मजदूर इस नए प्रणाली से काम के लिए राजी नहीं हो रहे हैं। ऐसे में मजदूर अब काम करने को तैयार नहीं हैं। विनिता की भी हाजिरी नहीं बनी तो उनको भी भुगतान नहीं हुआ और वह अब बेरोजगार हो गई हैं। विनीता रुआंसे स्वर में कहती हैं कि 1 जनवरी से मोबाईल आधारित हाजिरी प्रणाली (NMMS) अनिवार्य कर दिया गया है। इस नए हाजिरी प्रणाली में मनरेगा मजदूर काम करने को राजी नहीं हो रहे हैं।
क्योंकि पूरे प्रखण्ड इलाके में मोबाईल नेटवर्क न के बराबर रहता है, जिसके कारण मजदूरों की हाजरी नहीं बन रही है और मजदूरों द्वारा काम करने के बाद भी उनको मजदूरी नहीं मिलने से वे भी काम करने के इच्छुक नहीं दिखते हैं। इसी प्रखंड की मेट विनीता तिग्गा नए साल 2023 से बेरोजगार हो गईं हैं। क्योंकि नये नियम से मजदूरों की हाजिरी नहीं बनी और उनका भुगतान नहीं हुआ।
क्योंकि पूरे प्रखण्ड एरिया में नेटवर्क बहुत ही कमजोर रहता है और मजदूरों को सुबह शाम दो बार उनका फोटो अपलोड के साथ हाजरी बनना अनिवार्य है। फोटो अपलोड नहीं होने से हाजिरी नहीं बनेगी और काम करने के बाद भी मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलेगी। ऐसे में हमारी भी हाजिरी नहीं बनेगी और हमें भी भुगतान नहीं मिलेगा। इसी प्रखंड की सरिता बेक अब मनरेगा मेट के तौर पर कार्य से महरूम हो गईं हैं। क्योंकि गरीबी के कारण इनके पास स्मार्ट फोन नहीं है।
मंत्रालय के फरमान की शिकार अकेली विनीता, कृपा खाखा या सरिता बेक ही नहीं हैं, बल्कि पूरे प्रखंड की सैकड़ों महिला मेटों की यही स्थिति है। सरकारी फरमान ऐसे क्षेत्रों के लिए बेहद घातक साबित हो रहे हैं, क्योंकि ऐसे आदिवासी दलितों के पास न तो स्मार्ट फोन सेट है, न रिचार्ज के लिए पैसे हैं, न बिजली है और न ही मोबाईल नेटवर्क है। यह एक तरह राज्य के आदिवासियों का डिजिटल उत्पीड़न है।
नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज बताते हैं कि झारखण्ड के लातेहार जिला का महुआडांड़ प्रखण्ड आदिवासी बहुल क्षेत्र है। इस इलाके में मोबाईल नेटवर्क की स्थिति अत्यंत कमजोर, बिल्कुल नहीं के बराबर रहती है। पूरे प्रखण्ड क्षेत्र के मनरेगा मजदूर मनरेगा के कामों से खुद को अलग कर लिए हैं। क्योंकि उनको NMMS हाजिरी प्रणाली शुरू होने से मोबाईल के जरिये उनकी हाजिरी बनना बिल्कुल भी संभव नहीं है।
जाहिर है, हाजिरी बनेगी नहीं तो मजदूरी भुगतान भी नहीं होगा। मजदूरों के रोजगार योजनाओं से अलग होने से मनरेगा मेट को भी कोई काम नहीं दिया जा रहा है। मजदूरों द्वारा नरेगा में रूचि नहीं लिए जाने से पंचायत में चल रही सभी योजनाएं मुख्य रूप से आम बागवानी की योजना पर बुरा असर हो रहा है। समय रहते मनरेगा की जटिलताओं को दूर नहीं किया गया तो सिंचाई और सुरक्षा की कमी के कारण आम के पौधे बर्बाद हो जाएंगे।
झारखण्ड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे बताते हैं कि राज्य के सभी प्रखंडों के सभी पंचायतों की स्थिति यह है कि दिसंबर 2021 और जनवरी, फरवरी, मार्च 2022 की मजदूरी राशि का भुगतान अभी तक मजदूरों को नहीं मिला है। आवास निर्माण पूर्ण हो गया और MR (मस्टर रोल) के द्वारा भुगतान की गयी राशि अभी तक उनके खाते में नहीं आयी है।
कूप निर्माण सहित DOBHA निर्माण की कई योजनाओं की स्थिति यही है। मजदूर अपनी मजदूरी के लिए परेशान हैं और मेट, रोजगार सेवक काम कराने के लिए परेशान हैं। मजबूरन झूठ बोल-बोल कर किसी तरह काम कराया जा रहा है। अभी तो जनवरी 2023 से मजदूरी भुगतान नहीं आ रहा हैं।
पहले से ही मनरेगा में मजदूर बदलते नियम से परेशान हैं। वे मनरेगा से दूरी बनाए हुए हैं और कुछ लोग हैं भी तो इस तरह की समस्या से और दूरी बना रहे हैं। झारखण्ड का बजट भी एक चौथाई कर दिया गया है। अब सभी को रोजगार दे पाना भी असंभव है। शायद केंद्र सरकार की नीयत है कि मनरेगा को इतना जटिल बना दिया जाए कि मनरेगा ही समाप्त हो जाए।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)
100% सही है।।एक तरफ बाजार में काम करने पर मजदूरी ज्यादा और तुरंत मिल जाता है लेकिन दूसरी तरफ महीने महीने बाद भी मजदूरी नही मिल पाता है।।ग्रामीण गरीब मजदूरों का सुनने बाला कोई नही।।।सब राजनेतिक पार्टियों की सुनो।।।
Pardarshita manjur nahi hai ghotale ko aasani se nahi kiya ja sakta hai, easaliye le khak mahodaya ne samsyo ko aapne dhng ne tatha kiss thekedar vrut poshan paya hai. Imandar hone manjur nahi hai.
Aapne mnrega ke bare me sarkar ki mansha 100% Satya likha hai .jis paresani se koi apna kary karta hai usse utna hi samsayaon ka samna karna padta hai Aur apni bhi jindgi aa apna pariwar ka bharan poshan ab mnrega se nhi kar pata hai.
Modiji ka fast lecture tha ki mnrega congress ki fel yojana he tabi se pata chal gya tha ki modiji bandh karne ki intjaar me he or rahi bhastachar ki baat to kis jagah pe nahi hota brastachar
100%sahi visleshan kiye he sirji ek mnrega hi yo he jo garibo ko rojgar milti he ….kendra sarkar ko ise saral karke bajat badhane ki awasyakta he
Satya he