नई दिल्ली। भारतीय समाज में विवाह करना या किसी का विवाह होना बहुत मायने रखता है। तकरीबन सभी लोग विवाह करते हैं चाहे वो ना भी करना चाहते हों। क्योंकि हमारा समाज ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं करता जो सिंगल रहते हैं या रहना चाहते हैं। ये बात आज के संदर्भ में भी लागू होती है। जो सिंगल रहना चाहते हैं उन पर कई तरह से विवाह कर लेने के दबाव बनाये जाते हैं। उस पर विवाह के बाद विवाह को सुचारु रूप से चलाना भी विवाहित जोड़ों की जिम्मेदारी होती है और समाज का दबाव भी होता है।
हमारा समाज मानता है कि विवाह रूपी ये बंधन चाहे जबरदस्ती ही क्यों ना जोड़ा गया हो टूटना नहीं चाहिए। पति-पत्नी साथ न भी रहना चाहते हों, तो उन पर साथ रहने का दबाव होता है। लेकिन कई बार स्थिति ऐसी आ जाती है कि विवाह के उस बंधन में रहना नामुमकिन सा लगने लगता है। ऐसी स्थिति में तलाक ही एकमात्र रास्ता बचता है।
तलाक लेने के लिए विवाहित जोड़ों को कोर्ट का रूख करना पड़ता है। जहां सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की हाजिरी और गैर हाजिरी मामले को पेचिदा बनाने में अहम रोल अदा करती है। ऐसे में समय के साथ दोनों पक्षों की सुनवाई करने के बाद कोर्ट की तरफ से विवाहित जोड़ों को 6 माह का समय दिया जाता है। ये समय उन जोड़ों को अपने तलाक के फैसले पर पुर्नविचार करने के लिए दिया जाता है। ताकि अगर कहीं भी थोड़ी सी भी ये गुंजाइश बची हो कि पति-पत्नी एक साथ रह सकते हैं, तो शादी बची रहे और तलाक ना हो।
ऐसे में कई बार ये होता है कि पति या पत्नी दोनों तलाक के लिए राजी होते हैं बल्कि सिर्फ राजी ही नहीं होते वे दृढ़ निश्चय कर चुके होतें हैं कि अब हमें किसी भी कीमत पर एक साथ नहीं रहना है। उनके लिए एक साथ रहना असंभव हो जाता है। लेकिन कोर्ट के नियम के अनुसार उन्हें 6 माह का समय और दिया जाता है। जिस कारण कई बार पति या पत्नी दोनों में से एक को या कहें कि दोनों को ही मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है और उनका वक्त भी बर्बाद हो रहा होता है। हो सकता है कि दोनों चाहते हों कि जल्दी से इस रिश्ते से बाहर निकल जाएं और किसी दूसरे रिश्ते से जुड़ जाएं।
लेकिन फिर भी उन्हें 6 माह तक का इंतजार करना पड़ता है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब विवाहित जोड़ों को तलाक के लिए 6 माह का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को आसान कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तलाक पर अहम फैसला दिया है। पांच जजों की बेंच ने कहा है कि जिन शादियों के बचने की गुंजाइश न हो, उनको सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके खत्म कर सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां मिली हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि वह आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक पति-पत्नी को बिना फैमली कोर्ट भेजे भी अलग रहने की इजाजत दे सकता है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि अगर आपसी सहमति हो तो कुछ शर्तों के साथ तलाक के लिए अनिवार्य 6 महीने के वेटिंग पीरियड को भी खत्म किया जा सकता है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा है कि अगर पति-पत्नी की सहमति हो तो उन्हें 6 माह से पहले ही तलाक मिल सकता है। कोर्ट का ये फैसला उन जोड़ों के लिए राहत भरी खबर है जो एक दूसरे के लिए 6 माह तो क्या 6 मिनट भी नहीं गंवाना चाहते हैं। अगर पति-पत्नी को लगता है कि उनकी शादी चलनी अब नामुमकिन है और 6 माह इंतजार करने के बाद भी अगर उनका तलाक लेने का फैसला कायम रहेगा है तो उन्हें 6 माह से पहले ही तलाक दे दिया जाएगा।
(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)