यह पहलवानों के धैर्य की परीक्षा का समय है

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नई दिल्ली। जंतर-मंतर पर पहलवानों का धरना जारी है। 3 मई की रात के हंगामे के बाद आज का दिन अपेक्षाकृत शांत है। 4 मई सुबह 10 बजे का समय है, और एशियन गेम्स सहित कामनवेल्थ गेम्स खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला पहलवान खिलाड़ी, विनेश फोगाट जंतर-मंतर के आधिकारिक धरनास्थल पर खामोश बैठी हुई हैं। उनकी आंखों में आंसुओं का सैलाब नजर आता है, और उनके पास ही बैठे हैं ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया। करीब 200 मीटर गद्दे बिछे हैं, जिनके बीच दिन भर मीडियाकर्मियों की आवाजाही बनी रहती है, जबकि दिल्ली पुलिस ने इस क्षेत्र की भारी सुरक्षा बंदोबस्त के साथ किलेबंदी कर रखी है।

यह कथित किलेबंदी इसलिए कही जा सकती है क्योंकि कल रात ही गीले गद्दों को लेकर धरनास्थल पर बड़ा बवाल देखने को मिला था। इस बार मई महीने में अनपेक्षित बारिश के कारण यह परिस्थिति बनी। धरने पर बैठे लोगों का कहना था कि रात में उन्हें गीले गद्दों पर सोने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

3 मई की रात को हुआ था विवाद

3 मई को आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक सोमनाथ भारती ने प्रदर्शनकारी खिलाड़ियों के सोने के लिए फोल्डिंग खाट का बंदोबस्त कर दिया। लेकिन दिल्ली पुलिस ने यह कहकर इसकी इजाजत नहीं दी कि इसके लिए पहले से इजाजत नहीं ली गई थी। पुलिस का आरोप है कि जब उन्होंने हस्तक्षेप किया तो समर्थकों ने जबरन ट्रक से खाट निकालने की कोशिश की, जिसके कारण झड़प में पांच पुलिसकर्मी चोटग्रस्त हो गये हैं। वहीं बजरंग पुनिया का दावा है कि पुलिस ने दुर्व्यवहार किया और खिलाड़ियों को गाली दी।

लेकिन जिस बड़ी लड़ाई को ये खिलाड़ी इस समय लड़ रहे हैं, उसके सामने सोने के लिए खाट का यह संघर्ष काफी बौना साबित होता है। अप्रैल के अंत से ये खिलाड़ी कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए दूसरी बार मोर्चे पर डटे हुए हैं। साक्षी मलिक कहती हैं, “हमारी सुरक्षा दांव पर लगी हुई है। हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित गृह मंत्री अमित शाह हमारी मांगों पर नजर डालें, जो कि शोचनीय हैं।”

करीब एक सप्ताह के आंदोलन के बाद बृजभूषण सिंह के खिलाफ कुछ कार्रवाई की गई है। सात महिला खिलाड़ियों, जिनमें से एक नाबालिग है, ने सिंह के खिलाफ कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत दर्ज की थी। डीसीपी प्रणव तयाल के अनुसार, पॉक्सो एक्ट के तहत एक नाबालिग खिलाड़ी की शिकायत पर एक प्राथमिकी दर्ज की गई है, जबकि आईपीसी की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) एवं 354डी (पीछा करने) के तहत अन्य छह बालिग़ महिला खिलाड़ियों की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई है।

मांग और एक सपना

खिलाड़ी प्राथमिकी दर्ज किये जाने से संतुष्ट नहीं हैं, वे चाहते हैं कि सिंह को गिरफ्तार किया जाए। जंतर-मंतर पर करीब 200-300 समर्थक मौजूद रहते हैं। इनमें खाप नेता, किसान, नए उभरते पहलवान और उनके माता-पिता के साथ-साथ अब हाल के दिनों में दिल्ली विश्विद्यालय के छात्र भी जमा होने लगे हैं। रात में, करीब 25 खिलाड़ी धरनास्थल पर बने रहते हैं, जिनमें पुनिया, फोगाट और मलिक शामिल हैं। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार ने धरनास्थल की बिजली, पानी काट दी है और अब आराम करने के लिए मंगाए गद्दों पर रोक लगाने के पीछे का मकसद इस विरोध-प्रदर्शन को समाप्त करने और समर्थकों को हतोत्साहित करना है।

कभी-कभी लोग पानी की बोतल दे जाते हैं। रात में बिजली न होने पर खिलाड़ी मोबाइल की फ़्लैश लाइट के सहारे रात का भोजन एवं अन्य काम करते हैं। हर दिन किसी एक प्रदर्शनकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह कारों में या पास ही स्थित जनता दल के दफ्तर में सभी खिलाड़ियों के मोबाइल फोन को चार्ज करके रख ले।

सुबह 5 बजे उठ जाते हैं धरनास्थल पर मौजूद रहने वाले समर्थक

धरनास्थल पर मौजूद रहने वाले समर्थक सुबह 5 बजे के आसपास उठ जाते हैं। उनमें से एक हैं 15 वर्षीय सौरभ, जो सोनीपत के हैं। कुश्ती के लिए दीवानगी ने सौरभ को अपने 50 वर्षीय कोच पिता के साथ धरनास्थल पर आकर विरोध में शामिल होने के लिए प्रेरित करता है। जब ऋषभ से सवाल किया गया कि वह यहां पर क्यों है तो उनका जवाब था, “मेरे दोस्तों को किसी भी खेल को खेलने से डर न हो।”

सुबह प्रैक्टिस शुरू हो गई है। कोच की आवाज आती है, “चलो, शाबाश, भागो” और पहलवान वार्म अप शुरू कर देते हैं। लेकिन सड़क पर वार्म अप, प्रैक्टिस या उठक-बैठक करना आसान नहीं है। 8 बजे खिलाड़ी अभ्यास पूरा कर नाश्ते की तैयारी में जुट जाते हैं। ऋषभ ने बताया कि उदीयमान खिलाड़ियों के लिए बादाम, दूध, घी, जूस और भिगोये हुए किशमिश दिए जाते हैं। ये सभी चीजें हरियाणा और गाजियाबाद से किसानों के द्वारा थोक में लाई जाती हैं।

प्रदर्शनकर्ताओं के लिए आंदोलन करने का अर्थ है न्याय की मांग। जबकि ऋषभ और उनके दोस्त आदित्य की भी यही मांग है, लेकिन उनके लिए यह एक सपने का भी सच हो जाने का समय है। वह है उनके आदर्श फोगाट और पुनिया जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों से मिलने वाली कोचिंग का सपना सच हो जाने की खुशी।

किसान कर रहे खिलाड़ियों के नाश्ते और खाने का इंतजाम

9 बजे तक सभी खिलाड़ी नहा-धोकर तैयार हो जाते हैं। धरनास्थल के दोनों छोर पर टॉयलेट्स का इंतजाम है। पहलवानों का दावा है कि वे अपने हाथों से फ्लोर की सफाई करते हैं। एक घंटे बाद नाश्ते में दलिया, ऑमलेट, ब्रेड, पनीर, खीर और चना परोसा जाता है। यह इंतजाम भी किसानों द्वारा किया गया है। राजस्थान के एक 30 वर्षीय समर्थक शाहरुख़ खान से बात करने पर पता चला कि जब कभी भी उन्हें काम से फुर्सत मिलती है, वे धरनास्थल पर पहुंच जाते हैं। खान ने कहा, “यदि हम यहां पर नहीं आयेंगे तो हमारी बहनों के लिए कौन खड़ा होगा? ये आरोप बेहद गंभीर हैं।”

इन आरोपों की गंभीरता तो 18 जनवरी से ही साफ़ नजर आने लगी थी, जब पहली बार महिला खिलाड़ियों ने जंतर-मंतर पर अपना पहला विरोध दर्ज कराया था। भारतीय ओलिंपिक संघ एवं खेल मंत्रालय ने तब महिला खिलाड़ियों को शांत करते हुए आश्वस्त किया था कि उनके आरोपों की जांच की जायेगी। उस दौरान, कई अन्य प्रमुख महिला पहलवान खिलाड़ियों, जिनमें अंशु मलिक, रवि दहिया, सोनम मलिक, दीपक दहिया और दीपक पुनिया शामिल थे, ने प्रदर्शनकारी महिला पहलवानों के पक्ष में वीडियो जारी किये थे। आईओए ने एक आंतरिक जांच कमेटी बनाई, जिसकी अध्यक्षता एम.सी. मेरी कॉम को दी गई। इसके कुछ दिनों बाद युवा मामलों एवं खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के निर्देशन पर एक ओवरसाइट कमेटी का गठन किया गया, और इसे भी मेरी कॉम के तहत जांच का काम सौंपा गया। नतीजतन धरना खत्म कर दिया गया।

कमेटी ने 5 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट जमा कर दी, लेकिन मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया। बस यही जानकारी प्रकाश में आई कि मंत्रालय ने पाया कि कुश्ती महासंघ के पास खिलाड़ियों की शिकायतों को संबोधित करने के लिए यथोचित तंत्र का अभाव है, और साथ ही कुश्ती महासंघ एवं खिलाड़ियों के बीच पारदर्शिता एवं बेहतर संवाद को स्थापित किये जाने की जरूरत है।

ओवरसाइट कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक किये जाने में हो रही देरी और जांच पर ही भरोसे के उठ जाने की सूरत में फोगाट, पुनिया और मलिक के नेतृत्व में महिला खिलाड़ियों ने एक बार फिर से जंतर-मंतर का रुख किया और उन्होंने इस बार भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी और कैसरगंज की संसद सदस्यता सहित सभी पदों से बर्खास्त किये जाने की मांग पर अडिग हैं।

इन खिलाड़ियों का कहना है कि उन्हें अन्य पहलवान खिलाड़ियों का व्यापक समर्थन मिल रहा है, लेकिन इस बार ज्यादा खिलाड़ी समर्थन में आगे नहीं आये हैं। शायद उन्हें इसके नतीजे भुगतने होंगे, का खौफ सता रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा सहित खेल से जुड़ी हस्तियों में अभिनव बिंद्रा, नीरज चोपड़ा और सानिया मिर्जा जैसे दिग्गजों ने सार्वजनिक तौर पर बयान देकर इन खिलाड़ियों को अपना समर्थन दिया है।

जंतर-मंतर पर अपने समर्थकों और मीडिया को संबोधित करते हुए विनेश फोगाट ने कहा, “कमेटी की रिपोर्ट खिलाड़ियों से सार्वजनिक नहीं की जा रही है। तीन महीने हो चुके हैं, खेल मंत्रालय और कमेटी के सदस्य हमारे फोन नहीं रिसीव करते।” इसी बीच आईओए की अध्यक्ष पीटी उषा की ओर से महिला पहलवानों के सड़क पर जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया। अपने बयान में उनका कहना था कि “आईओए की एक कमेटी और एथलीट कमीशन है। सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने के बजाय उन्हें हमारे पास आना चाहिए था। इससे देश की छवि धूमिल होती है।” बाद में उनके बयानों पर चारों तरफ से जमकर निंदा होने पर वे जंतर-मंतर पर आकर खिलाड़ियों का हालचाल ले चुकी हैं।

इस बीच कुश्ती महासंघ की रोजमर्रा के मामलों को सुचारू रूप से चलाने के लिए खेल मंत्रालय ने आईओए को एक ‘एड-हाक कमेटी’ का गठन करने का निर्देश दिया है। आईओए के संयुक्त सचिव कल्याण चौधरी ने कहा है कि जनवरी में गठित आईओए की जांच कमेटी अभी अपना काम कर रही है और कई अहम गवाहों को कमेटी के पास आना शेष है। वहीं बृजभूषण सिंह की ओर से आंदोलन को शाहीन बाग़ की तर्ज पर चलाए जाने के आरोप उछाले जा रहे हैं।

उनका आरोप है कि इस आंदोलन के बहाने निशाना उनके ऊपर नहीं बल्कि भाजपा पर लगाया जा रहा है, और कुछ चुनिंदा परिवार और अखाड़े की ओर से ही ये आरोप मढ़े जा रहे हैं। इस अखाड़े को वे कांग्रेस सांसद दीपक हुड्डा से जोड़ते हुए, इसके पीछे विपक्षी पार्टियों की साजिश करार देते हैं। मीडिया के साथ बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया है कि पिछले चार महीनों से कुश्ती से जुड़ी सभी गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ी हैं। वे कहते हैं कि भले मुझे फांसी पर लटका दो, लेकिन बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। इस्तीफे को सिंह अपराध स्वीकार करने से जोड़ते हैं। उनका कहना है कि इस्तीफा कोई बड़ी चीज नहीं है। लेकिन मैं कोई अपराधी नहीं हूं। सरकार ने एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है। मेरा कार्यकाल भी समाप्त होने को है। 45 दिन के भीतर कुश्ती संघ के चुनाव हो जाने के बाद यह स्वतः समाप्त हो जाने वाला है।

महिला सशक्तीकरण

विरोध स्थल पर किराए पर लिए गये माइक से वक्ता बोल रहे हैं कि कैसे भाजपा का ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान विफल रहा है, क्योंकि महिलाएं आज भी प्रताड़ित की जा रही हैं। दो पेड़ों के सहारे एक लाल रंग के विशालकाय बैनर में “यौन उत्पीड़न के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाई शुरू करो” पढ़ा जा सकता है। इसमें जेल की सींखचों के पीछे बृजभूषण सिंह को दिखाया गया है। हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी और हरयाणवी में तीन पहलवानों के द्वारा दिए गये भाषणों के अंश में महिला सशक्तीकरण सहित महिलाएं कैसे देश में सुरक्षित नहीं हैं के बारे में भी बात की गई है।

मंच के पास ही एक सफेद रंग का फ्लेक्स बोर्ड भी लगाया गया है। इसमें बृजभूषण के खिलाफ दायर 38 मामलों की सूची है, जिसमें हत्या करने, हत्या का प्रयास सहित दंगा करने और डराने धमकाने के आरोप लगे हैं। यूपी गैंगस्टर एक्ट सहित एंटी-सोशल (निरोधक) अधिनियम 1986 एवं शस्त्र अधिनियम, 1959 का भी बोर्ड में जिक्र किया गया है।

हरियाणा के हिसार जिले के पहलवान, सोमवीर कादियान (25) ने बताया कि खिलाड़ियों ने अपने पैसे से टेंट, बेडशीट, गद्दे, पंखे, स्पीकर्स, माइक्रोफोन और एक मिनी पॉवर जनरेटर सहित पीने का पानी और भोजन की व्यवस्था की है। बजरंग पुनिया ने अपने हालिया इन्स्टाग्राम वीडियो में कहा है, “वे हमें तोड़ना चाहते हैं। हमारा यह आंदोलन किसी प्रतिस्पर्धा या हिस्सा लेने को लेकर नहीं है, बल्कि यौन उत्पीड़न को लेकर है।”

अब जबकि बारिश रुक गई है, गीली मिट्टी और भिनभिनाते मच्छर इन पहलवानों को फुटपाथ पर सोने में सबसे बड़ी बाधा बने हुए हैं। मच्छरों को भगाने वाली क्रीम लगाये हुए साक्षी मलिक कहती हैं, “जब हमें मेडल प्राप्त होता है तो सब जश्न मनाते हैं। लेकिन जब हम व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करते हैं तो वे हमसे उल्टा सवाल क्यों करने लगते हैं?” उनके पति सत्यव्रत कादियान जो खुद भी कामनवेल्थ गेम्स खेलों में पदक विजेता हैं, पहले दिन से ही इस विरोध में उनके साथ समर्थन में खड़े हैं। कादियान कहते हैं, “हम तब तक यहां से नहीं जाने वाले हैं, जब तक प्रत्येक लड़की को न्याय नहीं मिल जाता है।”

रात 9 बजे तक चोटी के पहलवान खिलाड़ी आराम करने चले जाते हैं, और अब व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी उदीयमान पहलवानों के कंधे पर आ जाती है। वे डिब्बाबंद भोजन वितरण का काम संभाल लेते हैं, जिसमें दाल, चावल, सूखी सब्जी, दही और साथ में एक गुलाब जामुन दिया जा रहा है। थाली में भोजन बदलता रहता है, और यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसानों ने क्या खरीदारी की है। गाजियाबाद के पहलवान राहुल यादव ने बताया, “यहां पर कोई भी भूखा नहीं सोता। सभी के लिए भरपेट भोजन की व्यवस्था है।” आंदोलन का समर्थन कर रहे लोगों, मीडिया कर्मियों, पुलिसकर्मी और यहां तक कि बैरिकेड के उस पार रह रहे भिखारियों तक को फूड पैकेट दिए जाते हैं।

धरनास्थल पर मौजूद समर्थकों का कहना था कि 12:30 तक पहलवानों के बीच में हंसी-मजाक का दौर चलता है। इसके साथ ही वे अपने भविष्य, अपने जीवन साथी और इस विरोध प्रदर्शन का उनके लिए क्या अर्थ है के बारे में भी विचार-विमर्श करते हैं। लेकिन हर दिन एक युद्ध के समान है। विनेश कहती हैं, “इस जंग को लड़ने के लिए उन्होंने अपना समूचा कैरियर और परिवार को दांव पर लगा रखा है। हमारी सिर्फ एक मांग है कि सिंह को गिरफ्तार किया जाए। क्योंकि आरोप बेहद संगीन हैं, इसलिए हम जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता हम यहीं पर अपना खाना पीना और सोना जारी रखेंगे।”

पहलवानों के शारीरिक स्वास्थ्य और फिजिकल फिटनेस कोच, करनाल के 29 वर्षीय सूरज लाठेर का कहना है कि कुश्ती एक चुनौतीपूर्ण खेल है, और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ आंदोलनरत पहलवान एक इंच पीछे नहीं हटने वाले हैं। वे कहते हैं, “हम अपनी बहनों के लिए इस लड़ाई में अपने परिवारों को पीछे घर छोड़कर आये हैं। वे हमारी हिम्मत को नहीं तोड़ सकते हैं। महिलाएं अपने कैरियर और समाज के डर से आगे नहीं आती हैं। यदि हम ही उनका साथ नहीं देंगे, तो कौन आगे आएगा?”

(साभार: द हिंदू की समृद्धि तिवारी की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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