नई दिल्ली। मणिपुर में चार महीने बाद भी हिंसक घटनाओं के साथ-साथ कुकी समुदाय को पुलिस-प्रशासन के भेद-भाव का सामना करना पड़ रहा है। मणिपुर में हिंसक घटनाओं के शुरू होने के बाद अधिकांश कुकी समुदाय के लोग तो घाटी छोड़कर पहाड़ों पर चले गए। लेकिन राजधानी इम्फाल में रह रहे कुछ कुकी समुदाय के लोगों ने सुरक्षा बलों पर उन्हें जबरन उनके ही घर से बेदखल करने का आरोप लगाया है।
3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद इम्फाल से कुकी समुदाय के लोग पलायन कर गए थे लेकिन समुदाय के कुछ परिवार अब भी इम्फाल में रुके हुए हैं। उन्होंने कहा कि 2 सितंबर को तड़के सुरक्षा बलों ने उन्हें जबरन उनके घरों से बाहर निकाल कर राहत शिविरों में भेज दिया।
जबकि सुरक्षा बलों के एक सूत्र ने कहा कि नागरिक प्रशासन के विशेष अनुरोध पर परिवारों को इंफाल पूर्व में न्यू लाम्बुलाने से सेनापति जिले के मोटबुंग तक सुरक्षित मार्ग प्रदान किया गया था। सूत्र ने कहा कि आदिवासी लोग लंबे समय तक वहां रहे थे और वर्तमान माहौल में असुरक्षित हो गए थे।
इम्फाल के मध्य में न्यू लाम्बुलाने क्षेत्र में रहने वाले लगभग 300 आदिवासी कुकी-ज़ो परिवार 3 मई को जातीय हिंसा शुरू होने के बाद धीरे-धीरे वहां से चले गए, लेकिन उनमें से 5 परिवार वहीं रह गए। उन परिवारों में लगभग 24 सदस्य हैं। ये जगह मुख्यमंत्री के आवास से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर चौबीसों घंटे केंद्रीय सुरक्षा बलों और भारतीय सेना का पहरा रहता था।
27 अगस्त को कुकी परिवार के एक खाली घर में उपद्रवियों ने आग लगा दी। आग की लपटों ने कुछ मैतेई घरों को भी अपनी चपेट में ले लिया। जिसके कारण स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े।
एस. प्राइम वैफेई ने द हिंदू को बताया कि हिंसा के चरम पर भी उन्होंने वह घर खाली नहीं किया, जिसमें वह 1990 से रह रहे थे। वैफेई ने कहा कि “हमें हर तरफ से विरोध का सामना करना पड़ा। मैतेई को हमारा यहां रहना पसंद नहीं था, कुकी भी चाहते थे कि हम चले जाएं। सुरक्षा बलों ने भी बार-बार अनुरोध किया और हमें दूसरे स्थान पर जाने के लिए कहा। हालांकि, शुक्रवार की देर रात, वे हमारे दरवाजे पर आये और हमें तुरंत घर खाली करने के लिए कहा गया। मैं अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा, टूथपेस्ट, स्वेटर या जैकेट कुछ भी नहीं ले जा सका।”
उन्होंने कहा कि कुकी इलाके के सभी पांच प्रवेश द्वारों पर केंद्रीय सुरक्षा बलों का पहरा है। वैफेई ने कहा कि “3 मई से, हम अपने घरों में बंद हैं। गली का उत्तरी भाग एक मुस्लिम इलाके से सटा हुआ है और दक्षिणी भाग में मैतेई लोग रहते हैं। हमारे जरुरत के सामान मुस्लिम पक्ष की तरफ से आ रहे थे। हमने कभी भी शहर के अन्य हिस्सों में कदम भी नहीं रखा।”
कुछ परिवार 100 वर्षों से भी अधिक समय से इस क्षेत्र में बसे हुए थे। वैफेई ने कहा कि उन्हें सेना की एक गाड़ी में बिठाया गया, 25 किमी दूर मोटबुंग में असम राइफल्स शिविर में ले जाया गया, और एक तंबू के नीचे ठंडे फर्श पर रात बितानी पड़ी।
उन्होंने कहा कि “यह मेरा एकमात्र घर था। हिंसा में मेरा पुश्तैनी घर जला दिया गया।” इस समय वह अपनी पत्नी के रिश्तेदार के घर पर रह रहे हैं। एक और निवासी, हेजांग किपगेन ने कहा कि उनमें से कई को नींद से जगाया गया और उन्हें केवल पहने हुए कपड़ों में ही गाड़ियों में खींच लिया गया।
किपगेन ने कहा कि “हमने हमारी मर्जी के खिलाफ किए गए इस अपहरण जैसे ज़बरदस्ती निष्कासन पर अपनी कड़ी नाराजगी जताई। हमें खेद है कि भारत जैसा देश समाज और राज्य को नष्ट करने की कोशिश करने वाली अराजक ताकतों की धमकी के आगे झुककर अपने नागरिकों के जीवन और सुरक्षा को उनके निवास स्थान पर सुनिश्चित करने के लिए तैयार नहीं है।”
3 मई से अब तक आदिवासी कुकी-ज़ो और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा में 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 50,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं।
(‘द हिंदू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)
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