धूमिल ने आज से लगभग 50 साल पहले लिखा था कि गरीब और मजबूर आदमी भारत के राजनीतिक मौसम का सबसे दिलचस्प विज्ञापन है और गाय सबसे सटीक नारा है। आज भी गाहे-बगाहे ‘गाय’ के नारे को नेता देश की फिजाओं में उछाल देता है जबकि वोटों की लहलहाती सरसब्ज फसल को काटे अभी ज्यादा दिन भी नहीं गुजरे हैं। कल मोदीजी को एक बार फिर ‘गाय’ की याद आ ही गयी। प्रधानमंत्री ने मथुरा में कार्यक्रम की शुरुआत गो-सेवा से की फिर वह पालतू पशुओं का टीकाकरण करने की बात करने लगे। उनका कल का उद्बोधन गाय के ही इर्दगिर्द घूमता रहा, मोदी भूल गए कि जैसे आज 2019 में वो गोवंश की बात कर रहे हैं वैसे ही 2014 में सत्ता संभालते ही वह गोकुल ग्राम मिशन लेकर आए थे।
जुलाई 2014 में ही कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने राष्ट्रीय गोकुल ग्राम मिशन लॉन्च किया था। यह योजना देसी गायों के संरक्षण, देसी गायों की नस्लों के विकास, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने, पशु उत्पाद की बिक्री आदि समेत कई लक्ष्यों के लिए शुरू की गई थी। इसमे 13 राज्यों में पीपीपी मॉडल के तहत कम से कम 20 गोकुल ग्राम बनाने की बात की गई थी और मिशन के लिए पिछले पांच साल में करीब 835 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं।
लेकिन फेसबुक मित्र शशिशेखर ने जब एक आरटीआई के माध्यम से कृषि मंत्रालय के अधीन पशुपालन और डेयरी विभाग से इस बारे में पता करना चाहा तो विभाग ने 26 नवंबर 2018 को बताया कि-राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत बनने वाले 20 गोकुल ग्राम में से अब तक केवल 4 गोकुल ग्राम ही बने हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 2020-21 तक सभी नौ करोड़ दुधारू पशुओं का हेल्थ कार्ड जारी करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन चार साल में 13 से 14 फीसदी दुधारू पशुओं का ही हेल्थ कार्ड जारी हो सका है।
मोदी जी गाय के बारे में बोलते हुए यहीं नहीं रुके, उन्होंने अफ्रीका के रवांडा का उदाहरण देते हुए कहा कि मैं वहां गया था। वहां मैंने 200 गायों को रवांडा के राष्ट्रपति को भेंट दी थी। रवांडा में एक अनोखा कार्यक्रम चल रहा है, जहां सरकार ग्रामीणों को इस शर्त पर गाय देती है कि गाय की पहली बछिया वापस ली जाएगी और उन लोगों को दी जाएगी, जिनके पास गाय नहीं है।
‘इस तरीके से एक शृंखला काम करती है। उनका प्रयास है कि रवांडा में प्रत्येक घर में एक गाय, दूध का उत्पादन और पशुपालन होना चाहिए, जो अर्थव्यवस्था का आधार है। मैंने खुद यह देखा है कि वहां गाय के जरिये जीविका चलाने का नेटवर्क कैसे काम कर रहा है।’
मोदी जी सही कह रहे हैं कि रवांडा सरकार के इस प्रोग्राम को अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल हुई है। लेकिन हम गाय को पूजनीय और पवित्र मानते हैं, रवांडा में ऐसी कोई परम्परा नहीं है, वहां के निवासी गाय के प्रति वैसा नजरिया नहीं रखते जैसा एक आम भारतीय व्यक्ति रखता है न ही वहां बीमार और बूढ़ी गाय के लिये कोई गौशाला खोलता है। वहां गाय स्लॉटर हॉउस में कटने के लिए भेज दी जाती है। रवांडा जिस देश को अपना दूसरा सबसे ज्यादा गाय से जुड़े उत्पादों का प्रोडक्शन एक्सपोर्ट करता है उस देश का नाम सऊदी अरब है।
वैसे मोदी सरकार आने के बाद भी भारत मे गोवंश का मांस यानी बीफ का एक्सपोर्ट बिलकुल बढ़िया तरीके से चल रहा है। मोदी जी ने 2014 में सत्ता में आने से पहले एक भावुक भाषण दिया था……’भाइयो और बहनों आपका कलेजा रो रहा या नहीं, ……..मुझे मालूम नहीं, मेरा कलेजा चीख-चीख कर पुकार रहा है। और आप कैसे चुप हैं, कैसे सह रहे हैं, ………मैं समझ नहीं पा रहा हूं.” यह भाषण भारत मे पिंक रिवोल्यूशन से यानी बीफ निर्यात से संबंधित था।
2014 में भाजपा सरकार के बनने के बाद से देश भर में गाय, बीफ और मांसाहार को लेकर घमासान मच गया कई लोगों को बीफ का सेवन करने, लाने, ले जाने या गाय को काटने के लिए ले जाने के शक में पीट-पीट कर मार दिया गया। इसे सॉफ्ट सा मोब लिंचिंग का नाम दे दिया गया। छोटे-छोटे बूचड़खाने बन्द हुए पर पैक्ड बीफ का कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता रहा। बड़े-बड़े ऑर्गेनाइज सेक्टर के स्लॉटर हॉउस मोटा माल कमाते रहे। बल्कि बड़े सॉफिस्टिकेटेड तरीके से लिसियस जैसी बड़ी कंपनियां देश भर में बीफ सप्लाई का काम आसानी के साथ करने लगी।
मोदी राज में बीफ एक्सपोर्ट रूका नहीं। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपिडा) ने बताया कि वर्ष 2018-19 की अप्रैल-फरवरी अवधि के दौरान 22,925 करोड़ रुपये के 11.1 लाख टन बीफ का निर्यात किया गया जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में 23,800 करोड़ रुपये मूल्य के 12.3 लाख टन बीफ का निर्यात का हुआ था। यह असलियत गौ सरंक्षण की, रवांडा की और मोदी राज में बीफ निर्यात यानी पिंक रिवोल्यूशन की है।
( गिरीश मालवीय वरिष्ठ पत्रकार हैं और इंदौर में रहते हैं।)
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