पचहत्तर वर्षीय मशहूर पंजाबी कवि सुरजीत पातर उन बेमिसाल हस्तियों में से एक हैं जिन्हें पुरस्कृत करके देने वाला स्वयं सम्मानित हो जाता है। अब सुरजीत पातर ने यह घोषणा की है कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन में वह पद्मश्री पुरस्कार लौटा देंगे। पातर ने बयान जारी कर कहा कि किसानों की मांग के प्रति केंद्र सरकार के ‘‘असंवेदनशील’’ रवैये से वह दुखी हैं, जो शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं। 2012 में सुरजीत पातर को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था।
इससे पहले जब अकाली दल के नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कृषि कानूनों के विरोध में पद्म विभूषण लौटाने की घोषणा की थी और यह कहा था की वह गरीब आदमी हैं उनके पास लौटाने के लिए इसके सिवा और कुछ नहीं है तो लोगों में वह हंसी का पात्र बन कर रह गए थे लेकिन पातर के सम्मान लौटाने की इस घोषणा को बौद्धिक जगत में बड़ी गंभीरता से लिया जा रहा है और इसे मोदी सरकार के मुँह पर एक तमाचे के रूप में देखा जा रहा है।
इससे पहले डॉ. स्वराजबीर, डॉ. मोहनजीत और डॉ. जसविंदर सिंह अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं। बुद्धिजीवियों का पुरस्कार वापसी का यह कदम भी मोदी सरकार की असहिष्णुता के खिलाफ एक कदम ही नहीं है बल्कि बौद्धिक जगत के लोकतन्त्र पर से उठते विश्वास की भी निशानदेही करता है। लोकतन्त्र के द्वारा समाज-परिवर्तन और समाज के द्वारा लोकतन्त्र-परिवर्तन की अनेकानेक घटनाओं में यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। ऐसी घटनाएँ राजनीतिक नागर समाज के भीतर विकल्प की संभावनाओं से जुड़े विमर्श के द्वार खोलती हैं।
जन मुद्दों से प्रतिबद्धता और सत्ता प्रतिष्ठान से असहमति का साहस ही लोकतंत्र की ताकत है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने फरवरी में गुजरात में एक विधि विश्वविद्यालय के छात्रों से कहा था कि “असहमति का साहस” विकसित करें और आशावादी रहें व अपने ज़मीर के प्रति सच्चा रहें लेकिन जब अर्णब गोस्वामी का मामला सामने आया तो असहमति का साहस नहीं दिखा पाये। कथनी और करनी में यही फ़र्क़ आम आदमी के भीतर बैठे सम्मानित संस्थाओं और व्यक्तियों के प्रति विश्वास को तोड़ता है।
सुरजीत पातर और पंजाब के अन्य बुद्धिजीवियों ने असहमति का सच्चा साहस दिखा कर उस आम आदमी के विश्वास को टूटने से बचा कर एक मिसाल कायम की है जिसे हमेशा याद किया जाएगा।
किसान संघर्ष को समर्पित सुरजीत पातर की कविता
ये मेला है
है जहाँ तक नज़र जाती
और जहाँ तक नहीं जाती
इसमें लोक शामिल हैं
इसमें लोक और सुर-लोक और त्रिलोक शामिल हैं
ये मेला है
इसमें धरा शामिल, बिरछ, पानी, पवन शामिल हैं
इसमें हमारे हास, आँसू, हमारे गौन1 शामिल हैं
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं इसमें कौन शामिल है
इसमें पुरखों का गौरवित इतिहास शामिल है
इसमें लोक-मन का सृजित मिथहास शामिल है
इसमें सिद्क़ हमारा, सब्र, हमारी आस शामिल है
इसमें शब्द, चित्त, धुन और अरदास शामिल है
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं
इसमें वर्तमान, अतीत संग भविष्य शामिल है
इसमें हिंदू मुस्लिम, बौद्ध, जैन और सिक्ख शामिल है
बहुत कुछ दिख रहा और कितना अदृष्ट शामिल है
ये मेला है
ये है एक आंदोलन भी, संघर्ष भी पर जशन भी तो है
इसमें रोष है हमारा, दर्द हमारा टशन भी तो है
जो पूछेगा कभी इतिहास तुमसे, प्रश्न भी तो है
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं
इसमें कौन शामिल हैं
नहीं ये भीड़ नहीं कोई, ये रूहदारों की संगत है
ये चलते वाक्य के अंदर अर्थ हैं, शब्दों की पंगत है
ये शोभा-यात्रा से अलग है यात्रा कोई
गुरुओं के दीक्षा पर चल रहा है काफ़िला कोई
ये मैं को छोड़ हम और हमलोग की ओर जा रहा कोई
इसमें मुद्दतों के मिथे हुए सबक शामिल हैं
इसमें सूफ़ियों फक्करों के चौदह तबक़ शामिल हैं
तुम्हें मैं बात सुनाऊँ एक, बड़ी भोली और मनमोहनी
हमें कहने लगी कल दिल्ली की बेटी सोहनी
आप जब लौट गए यां से, बड़ी बेरौनक़ी होनी
ट्रैफिक तो बहुत होगी पर संगत नहीं होगी
यह लंगर भख रही और बाँटती पंगत नहीं होगी
घरों को दौड़ते लोगों में यह रंगत नहीं होगी
हम फिर क्या करेंगे
तो हमारे नैन नम हो गए
ये कैसा नेह नवेला है
ये मेला है
तुम लौटो घरों को, राजी खुशी, है ये दुआ मेरी
तुम जीतो ये बाजी सच की, है ये दुआ मेरी
तुम लौटो तो धरती के लिए नयी तक़दीर होके अब
नए एहसास, सच्चरी सोच और तदबीर होके अब
मोहब्बत सादगी अपनत्व की तासीर होके अब
ये इच्छरां माँ और पुत्र पूरन के पुनर्मिलन की बेला है
ये मेला है
है जहाँ तक नज़र जाती
और जहाँ तक नहीं जाती
इसमें लोक शामिल हैं
इसमें लोक और सुर-लोक और त्रिलोक शामिल हैं
ये मेला है
इसमें धरा शामिल, बिरछ, पानी, पवन शामिल हैं
इसमें हमारे हास, आंसू, हमारे गौन शामिल हैं
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं इसमें कौन शामिल है
ये मेला है
- गौन: गान
(वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र पाल की रिपोर्ट।)