168 रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई के मसले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि “इनकी रिहाई नहीं होगी और ये होल्डिंग सेंटर में ही रहेंगे और इन्हें कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद ही वापस भेजा जा सकता है।”
रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्ला की ओर से दाखिल अंतरिम अर्जी पर प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना व न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने ये आदेश सुनाया है। अर्जी पर सुनवाई 26 मार्च को पूरी हो गई थी।
वहीं पिछली सुनवाई में केंद्र की मोदी सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि भारत अवैध प्रवासियों की राजधानी नहीं बन सकता।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पिछली सुनवाई के दौरान आरोप लगाया था कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जम्मू में रोहिंग्या लोगों को हिरासत में लिया और जल्द ही उन्हें वापस भेज दिया जाएगा।
उन्होंने कोर्ट का ध्यान मानवीय ग्राउंड पर आकर्षित करते हुए कहा कि “म्यांमार में रोहिंग्या बच्चों की हत्याएं कर दी जाती हैं और उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रही है।
पिछली सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा था कि वे केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश देने की मांग कर रहे हैं कि जो रोहिंग्या हिरासत में रखे गए हैं, उन्हें रिहा किया जाए और वापस म्यांमार ना भेजा जाये। भूषण ने कहा था कि रोहिंग्या बच्चों की हत्याएं कर दी जाती हैं और उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तथा म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रही है।
न्यायालय में लंबित जनहित याचिका में 11 मार्च को एक अंतरिम अर्जी दाखिल कर जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्ला ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के जरिए अर्जी में कहा था कि यह जनहित में दायर की गई है, ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया जा सके। संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह अर्जी दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू में हिरासत में रखे गए रोहिंग्या को लेकर दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए याची की अपील को न सिर्फ़ ठुकरा दिया है बल्कि कहा है कि जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं की रिहाई नहीं होगी। साथ ही इन लोगों को वापस म्यांमार भेजने को लेकर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही इन्हें वापस भेजा जा सकता है। कोर्ट की टिप्पणी का आशय यह है कि इन लोगों को तभी भेजा जाएगा जब म्यांमार अपने नागरिक के रूप में स्वीकार करने पर सहमति दे देगा। गौरतलब है कि केंद्र ने दलील दी थी कि वे (रोहिंग्या) शरणार्थी नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल एक याचिका पूर्व में खारिज कर दी थी।
केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलीसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा था कि घुसपैठियों से देश की आंतरिक सुरक्षा को गंभीर ख़तरा है। और म्यांमार से आए रोहिंग्या घुसपैठियों के एजेंट हो सकते हैं।
इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि भारत अवैध प्रवासियों की राजधानी नहीं बन सकता। साथ ही केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने कहा था, “जब तक रोहिंग्या की नागरिकता की पुष्टि म्यांमार से नहीं हो जाती, हम उन्हें वहां नहीं भेजेंगे। “
वहीं सीजेआई बोबडे ने सुनवाई के दौरान अधिवक्ता प्रशांत भूषण को कहा था कि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि, “हम किसी भी रूप में यह नकार नहीं रहे कि रोहिंग्या समुदाय के लोगों को म्यांमार में मारा गया। लेकिन जब सॉलीसिटर जनरल कह रहे हैं कि बिना म्यांमार की पुष्टि के जम्मू में रह रहे रोहिंग्या को वापस नहीं भेजा जाएगा। हम यह देखेंगे कि यह मामला किस तरह से पिछले मामले से अलग है।”
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)