Friday, March 29, 2024

एल्गार परिषद मामले में पहले से बिछाया गया था पेगासस स्पायवेयर निगरानी का जाल

द वायर ने दावा किया है कि एल्गार परिषद मामले में पेगासस स्पायवेयर निगरानी का जाल पहले से बिछाया गया था। द वायर और सहयोगी मीडिया संगठनों द्वारा हज़ारों ऐसे फोन नंबरों, जिनकी पेगासस स्पायवेयर द्वारा निगरानी की योजना बनाई गई थी, की समीक्षा के बाद सामने आया है कि इनमें कम से कम नौ नंबर उन आठ कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ़्तार किया गया था।

द वायर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 के मध्य में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी अपने परिवार के साथ केरल के कोल्लम में एक ट्रिप पर गए थे। उनकी पत्नी जेनी रोवेना, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के ही मिरांडा हाउस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने अपना बचपन यहीं बिताया था। यहां हेनी बाबू और रोवेना दिल्ली के अपने पुराने दोस्त रोना विल्सन से भी मिले, जो कोल्लम के रहने वाले हैं। लेकिन वे उस समय ये नहीं जानते थे कि उनकी छुट्टियों के दौरान हेनी बाबू और रोना विल्सन के फोन नंबरों को एक अज्ञात भारत-आधारित एजेंसी द्वारा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुना गया था, जो इजराइल के एनएसओ ग्रुप से जुड़ी हुई थी।

एक साल बाद कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रोना विल्सन को एल्गार परिषद मामले में ‘मुख्य आरोपी’ बताते हुए छह जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था। तब से वे हिरासत में हैं। बाद में केरल की यह यात्रा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा हेनी बाबू के साथ पूछताछ का केंद्र बन गई, जो 28 जुलाई, 2020 को उनकी गिरफ्तारी से पहले एक सप्ताह से अधिक समय तक चली थी।यह जानना संभव नहीं है कि क्या उनके फोन को वास्तव में पेगासस स्पाइवेयर से हैक किया गया था, जो इजराइल के तेल अवीव स्थित एक फर्म का प्रमुख प्रोडक्ट है और यह इसके ऑपरेटरों को यूजर्स के मोबाइल डिवाइस और कार्यों तक अनधिकृत पहुंच प्राप्त करा देता है, वह भी बिना किसी डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण के। हेनी बाबू और विल्सन दोनों फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं, उनके फोन जांच एजेंसी ने जब्त कर लिए हैं।

द वायर और सहयोगी समाचार संगठनों द्वारा हजारों नंबरों, जिनकी निगरानी करने की योजना बनाई गई थी, के रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद पता चलता है कि कम से कम 9 नंबर उन 8 कार्यकर्ताओं, वकीलों और अकादमिक जगत से जुड़े लोगों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था।

विल्सन और हेनी बाबू के अलावा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुने गए अन्य लोगों में अधिकार कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, अकादमिक और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर शोमा सेन (उनका नंबर पहली बार 2017 में लिया गया है), पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वकील अरुण फरेरा और अकादमिक एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज शामिल हैं।

2018 के बाद से देश के 16 कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।उनमें से 83 वर्षीय झारखंड स्थित आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी भी शामिल थे, जिनका बीते पांच जुलाई को मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया। तमाम गंभीर बीमारियों के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी गई थी। एनआईए ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया था, तब से वे जेल में थे।

एल्गार परिषद मामले में सीधे तौर पर आरोपियों के अलावा गिरफ्तार किए गए लोगों के एक दर्जन से अधिक करीबी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और सहयोगी इस निगरानी के दायरे में प्रतीत होते हैं। द वायर ने इनके नंबर और पहचान की पुष्टि की है। इनमें से अधिकांश से महाराष्ट्र की पुणे पुलिस और बाद में 2018 और 2020 के बीच एनआईए द्वारा पूछताछ की गई है।

लीक हुए रिकॉर्ड में तेलुगू कवि और लेखक वरवर राव की बेटी पवना, वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग, उनके सहयोगी वकील निहालसिंह राठौड़ और जगदीश मेश्राम, उनके एक पूर्व क्लाइंट मारुति कुरवाटकर (जिन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत कई मामलों में आरोपी बनाया था और वे चार साल से अधिक समय तक जेल में रहे थे तथा बाद में जमानत पर रिहा हुए थे) भारद्वाज की वकील शालिनी गेरा, तेलतुम्बडे के दोस्त जैसन कूपर, केरल के एक अधिकार कार्यकर्ता, नक्सली आंदोलन के विद्वान और बस्तर की वकील बेला भाटिया, सांस्कृतिक अधिकार और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे की पार्टनर रूपाली जाधव, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत के करीबी सहयोगी और वकील लालसू नागोटी के नंबर भी शामिल हैं।इस सूची में एल्गार परिषद मामले के एक आरोपी के परिवार के पांच सदस्य भी शामिल हैं।

ज्यादातर लोगों की निगरानी के लिए उनके नंबरों को साल 2018 के मध्य में चुना गया था, जो कई महीनों तक जारी रहा।कुछ मामलों में ऐसे लोगों को चुना गया। जो महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, डेटा से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब वरवर राव को अगस्त 2018 में नजरबंद रखा गया था, उसी समय पवना के नंबर पर निगरानी शुरू की गई थी। बाद में पुणे पुलिस ने राव को हिरासत में ले लिया था। करीब 27 महीने जेल में बिताने के बाद 81 वर्षीय राव को इस साल फरवरी में सशर्त जमानत पर रिहा किया गया था।

भारद्वाज, गोंसाल्वेस, सेन और फरेरा के मामले में डेटा से पता चलता है कि उनके फोन जब्त किए जाने और उन्हें गिरफ्तार किए जाने के महीनों बाद भी लीक हुए डेटा में उनके फोन नंबर दिखाई देते रहे हैं।उदाहरण के लिए, भारद्वाज को 28 अगस्त, 2018 को नजरबंद किया गया था और अंत में 26 अक्टूबर, 2018 को उन्हें जेल भेज दिया गया। लेकिन लीक हुए डेटा से पता चलता है कि उनकी नजरबंदी और पुणे पुलिस द्वारा उनका नंबर लिए जाने के बाद तक उनकी निगरानी जारी रही। दूसरे शब्दों में कहें तो डिजिटल साक्ष्य के रूप में फोन लिए जाने के बाद सील किया जाता है और उसे स्विच ऑन नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि एक छोटा-सा बदलाव भी सबूतों के साथ छेड़छाड़ के बराबर माना जाता है।

इस महीने के पहले हफ्ते में अमेरिका के मैसाचुसेट्स की डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा की गई जांच में पता चला था कि एल्गार परिषद मामले में हिरासत में लिए गए 16 लोगों में से एक वकील सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को 16 फरवरी 2016 से हैक किया जा रहा था, जो कि 20 महीने से अधिक समय तक चला था और उसमें उन्हें आरोपी ठहराने वाले दस्तावेज प्लांट किए गए थे।

इस फॉरेंसिक फर्म की यह तीसरी रिपोर्ट थी। इससे पहले की दो रिपोर्ट- आठ फरवरी 2021 और 27 मार्च 2021 को प्रकाशित हुई थीं, जो एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग के साथ गिरफ्तार कार्यकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप से जुड़ी थीं, जिसमें बताया गया था कि विल्सन की करीब 22 महीने निगरानी की गई थी।

साल 2017 के मध्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी के फोन पर एक के बाद एक कई मैसेजेस आए। इसमें कश्मीर के संबंध में कई सारी मनगढ़ंत खबरें थीं, जिसके जरिये गिलानी के ध्यान को खींचने की कोशिश की गई थी। अब पिछले महीने उनके फोन पर किए गए एक स्वतंत्र डिजिटल फॉरेंसिक्स के परिणामों के आधार पर पता चला है कि एक अज्ञात भारत-आधारित एजेंसी, जो इजराइल के एनएसओ ग्रुप की क्लाइंट थी, द्वारा साल 2017 और 2019 के बीच गिलानी के फोन को हैक किया गया था।

द वायर ने एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब के सहयोग से गिलानी के आईफोन, जिसे उनके परिजनों ने संरक्षित किया हुआ है, का फॉरेंसिक विश्लेषण कराया है और इस बात की पुष्टि कर सकता है कि फोन के साथ दो साल से अधिक समय तक छेड़छाड़ की गई थी। गिलानी के फोन में पेगासस स्पायवेयर डाला गया था, जो इजराइल के तेल अवीव स्थित फर्म का नामी प्रोडक्ट है। पेगासस इसके ऑपरेटर को यूजर की इजाजत के बिना उसके मोबाइल पर अनाधिकृत पहुंच देता है।

गिलानी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में अरबी पढ़ाते थे, को संसद हमले के मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में अक्टूबर 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘सबूतों के अभाव’ में उन्हें बरी कर दिया गया था, जिस फैसले को बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2005 में बरकरार रखा था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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