पीएम मोदी ने बना डाला अपने कोविड-19 वैक्सिनेशन को चुनावी संदेश का जरिया

Estimated read time 1 min read

वैक्सीन लेते हुए विजुअल्स जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवत: देश को संदेश देना चाहते हैं। इन तस्वीरों ने यह संदेश तो दिया कि वैक्सीन लेना जरूरी है। मगर, यही तस्वीरें कई और संदेश देती भी नज़र आयीं। तस्वीर में वैक्सीन लगातीं नर्सें मॉस्क पहनी हुई हैं, एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया मॉस्क पहने हुए दिख रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मॉस्क नहीं पहना है। क्यों? इससे क्या संदेश जाता है?

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की गाइडलाइन का पालन करना क्या प्रधानमंत्री के लिए जरूरी नहीं है? इस सवाल से अधिक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या पीएम मोदी संदेश देना चाहते हैं कि वैक्सिनेशन के समय लोग मॉस्क ना पहनें? दिल्ली में दो हजार रुपये की फाइन है अगर आप मॉस्क नहीं पहनते हैं।  

मानवीय पहलू भी इन तस्वीरों से जुड़ा है। कोरोना वॉरियर्स जो पहले ही वैक्सीन ले चुके हैं वे भी मॉस्क लगा रहे हैं ताकि किसी मरीज को उनकी वजह से संक्रमण न हो जाए। मगर, खुद मरीज के रूप में मौजूद प्रधानमंत्री को इस बात की परवाह नहीं है कि वे उन कोरोना वैरियर्स की चिंता करें। यह पीएम मोदी की मानवीय संवेदना पर भी सवाल है।

चुनावी संदेश देने की कोशिश?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोवैक्सीन का इंजेक्शन लेते हुए भी चुनावी संदेश देने से नहीं चूके। वैक्सीन देने वाली नर्सें उन प्रदेशों से ताल्लुक रखने वाली थीं जहां चुनाव होने वाले हैं। रोसम्मा अनिल और पी निवेदा- एक केरल से हैं और दूसरी पुडुचेरी से। पहनावे में जिस स्कार्फ का उपयोग किया वह असम की याद दिलाते हैं। और कहने की जरूरत नहीं कि रविंद्र नाथ टैगोर वाला फील तो काफी समय से नरेंद्र मोदी कराते रहे हैं। यानी बंगाल की मौजूदगी भी वैक्सिनेशन के वक्त महसूस की जा सकती थी।

बीजेपी के पदाधिकारी, केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक तमाम लोग नरेंद्र मोदी के कदम की स्वाभाविक रूप से तारीफ कर रहे हैं। लगे हाथ विपक्ष को भी कोस रहे हैं कि क्यों नहीं वे इस कदम का स्वागत कर रहे हैं। विपक्ष कह रहा है कि प्रधानमंत्री को इस मौके का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। कहने का अर्थ यह है कि कोरोना की महामारी को दूर करने के लिए वैक्सीनेशन तो हो रहा है लेकिन राजनीति में जो महामारी दिख रही है उसके वैक्सिनेशन का कोई उपाय नहीं नज़र आ रहा है।

अब भी पूरे नहीं हुए हैं कोवैक्सीन के ट्रायल

यह बात बहुत सराहनीय है कि प्रधानमंत्री ने कोवैक्सीन को चुना जिस पर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे थे। इस वैक्सीन के ट्रायल को लेकर सवाल अभी खत्म नहीं हुए हैं। और, न ही अब तक कोई संतोषजनक जवाब सरकार की ओर से दिया जा सका है। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने 26 फरवरी को भारत बायोटेक से कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल का आंकड़ा देने को कहा है। इससे पता चलता है कि अब तक ट्रायल के आंकड़े नहीं आए हैं। तीसरे चरण में 25,800 लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया गया है। माना जा रहा है कि मार्च के अंत तक ये आंकड़े आ पाएंगे।

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्लीनिकल ट्रायल पूरा हुए बगैर किसी वैक्सीन को कैसे आजमाया जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जोखिम उठाया है और एक संदेश देने की कोशिश की है कि भारत में बनी कोवैक्सीन के नतीजे आखिरकार सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित करेंगे। जब हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने खुद पर वैक्सीन का ट्रायल कराया था और फिर भी वे कोरोना पीड़ित हो गये, तब यह कहा गया था कि दूसरे चरण की वैक्सीन लिए बगैर कोई कोविड-19 से इम्यून नहीं हो सकता। मगर, यही बात अगर पहले से बता दी गयी होती तो किसी को कोई शक-शुबहा नहीं रह जाता।

कोवैक्सीन का ट्रायल 5 साल और 18 साल के बीच के बच्चों पर पूरा नहीं हुआ है। यह भी सच है कि ऐसे बच्चों को अभी टीके नहीं दिए जा रहे हैं। मगर, जिन लोगों को टीके दिए जा रहे हैं उनकी जान को कोई खतरा नहीं हो, यह सुनिश्चित करना और इसका विश्वास दिलाना सरकार का काम होना चाहिए।

दुनिया के कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने खुद सबसे पहले वैक्सीन लेकर जनता में विश्वास जगाने की पहल की थी। भारत में वैसी ही पहल करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थोड़ा वक्त जरूर लगाया है लेकिन फिर भी यह विश्वास बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसकी टाइमिंग चुनावी फायदे के लिए होना या अन्य बातों से मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की कभी तारीफ नहीं की जा सकेगी। मगर, यह भी सच है कि ऐसे आरोप को साबित कर पाना भी मुश्किल होता है। यही वजह है कि वैक्सीन जैसी चीज पर भी सियासत खत्म नहीं होती।

कोरोना वैरियर्स का वैक्सिनेशन हुआ लेकिन पत्रकारों और नेताओं को इससे दूर रखा गया। जबकि, चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा इन्हीं लोगों ने महामारी का सामना किया। आज भी उम्र के आधार पर नेता इस वैक्सिनेशन ड्राइव में शरीक हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैक्सीन लेने के बाद अगर राजनीति से जुड़े लोग आगे बढ़कर इस ड्राइव का हिस्सा बनते हैं तो पीएम मोदी की पहल का असर और व्यापक होगा।

वैक्सिनेशन से क्या महामारी खत्म हो जाएगी?

भारत में कोरोना वैरियर्स के बाद आम लोगों में वैक्सिनेशन तब शुरू हुआ है जब कोविड महामारी के एक्टिव के 1 लाख 64 हजार रह गये हैं। सितंबर महीने में एक्विट केस 10 लाख पार पहुंच गये थे। अब तक 1.57 लाख से ज्यादा लोगों की कोविड महामारी के कारण मौत हो चुकी है। अब तक इस सवाल का जवाब भी नहीं मिल पाया है कि वैक्सिनेशन के बावजूद कोविड महामारी से जनता को निजात मिल सकेगी या नहीं? अगर हां, तो इसमें कितना वक्त लगेगा? इन सवालों के जवाब मिले बगैर वैक्सिनेशन के प्रति लोगों में उत्साह पैदा करना सचमुच बड़ी चुनौती है।

वैक्सिनेशन के प्रति लोगों में उत्साह पैदा करने के लिए इस पूरे अभियान को गैर राजनीतिक बनाए रखने की जिम्मेदारी भी सरकार की है। चुनावी फायदों से इसे जोड़ना या फिर गाइडलाइन का उल्लंघन करना कभी भी अच्छा संदेश देने के लिहाज से अच्छा नहीं हो सकता। आखिरकार यह बात कब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समझ पाएंगे?

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author