प्रियंका गांधी का इंतजार कर रहा है नेहरु का पैतृक घर आनन्द भवन और स्वराज भवन

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“ये घर हमारे लिए और अन्य बहुत से लोगों के लिए उस सब कुछ का प्रतीक बन गया जिसे हम जीवन में मूल्यवान मानते हैं।यह एक ईंट और कंक्रीट की इमारत और एक निजी संपत्ति से बहुत मूल्यवान है।ये हमारे स्वतंत्रता संग्राम से बहुत घनिष्ठता से जुड़ा है और इसकी दीवारों के अंदर महान घटनाएं घटी हैं, बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं”- (आनंद भवन के बारे में जवाहरलाल नेहरू द्वारा 21 जून 1954 को की गयी वसीयत से।)

दिल्ली के लुटियन जोन स्थित लोदी एस्टेट के सरकारी बंगले को वापस लेने का पत्र केंद्र सरकार ने प्रियंका गांधी को भेजा है। केंद्र सरकार का कहना है कि एसपीजी सिक्योरिटी मिलने की वजह से ही उनको यह बंगला अलॉट किया गया था, लेकिन अब एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई है। इसलिए उनको यह बंगला एक महीने के भीतर खाली करना होगा। पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रियंका को यह बंगला आवंटित किया गया था।

अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना राजनीतिक बेस कैंप बनाएंगी। प्रियंका के करीबी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है। प्रियंका जल्द ही लखनऊ के हजरतगंज में गोखले मार्ग स्थित घर में रहने आएंगी। यह घर इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल का है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शीला कौल प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक प्रोफेसर कैलाश नाथ कौल की पत्नी थीं। सालों से गोखले मार्ग पर स्थित कौल का बंगला बंद पड़ा है।

लेकिन प्रियंका गांधी का इंतजार प्रयागराज में पंडित मोतीलाल नेहरु का पैतृक घर आनन्द भवन और स्वराज भवन कर रहा है। यदि कांग्रेस को पूरे प्रदेश में पुनर्जीवित करना है तो प्रियंका गांधी एवं राहुल गांधी को लखनऊ के बजाय प्रयागराज को अपनी कर्मस्थली बनाये तो इसका संदेश पूरे उत्तर प्रदेश में जायेगा। इससे कांग्रेस से बिछड़े समर्थक वर्ग एक बार फिर अपने को कांग्रेस से जोड़ पाएंगे,जुड़ा महसूस कर पाएंगे।अब जब दिल्ली छोड़कर उत्तरप्रदेश में लौटना ही है तो प्रयागराज का आनंद भवन /स्वराज भवन ही क्यों न काग्रेस के पुनर्जीवन का चश्मदीद गवाह बने।

दरअसल जब भी नेहरू-गांधी परिवार के इतिहास का कोई ज़िक्र छिड़ता है तब आनंद भवन की बात ज़रूर निकलती है। नेहरू परिवार की विरासत, स्वराज भवन और आनंद भवन देश के स्वतंत्रता संग्राम की कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। यहां ब्रिटिश शासन के खिलाफ नीतियां बनतीं और फिर उन्हें अमल में लाने की पुरजोर कोशिशें की जाती थीं। यही कारण रहा कि, कई बार दौरान ब्रिटिश पुलिस ने यहां छापेमारी की और नेहरू परिवार के कई सदस्यों को जेल भी भेजा गया। इनमें इंदिरा गांधी भी शामिल रहीं। इंदिरा का जन्म स्वराज भवन में साल 1917 में हुआ था। उनका विवाह 25 साल की उम्र में 26 मार्च 1942 को आनंद भवन में हुआ। 14 नवंबर 1969 को उन्होंने आनंद भवन को जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि को दान कर दिया था।

प्रयागराज (इलाहाबाद) में सवा सौ साल से मौजूद आनंद भवन अपनी चारदीवारी में एक परिवार, एक पार्टी और एक देश के संघर्ष की कहानी समेटे खड़ा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू सबसे पहले पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज पहुंचे थे। साल 1883 में उन्होंने कैंब्रिज से वकालत की। इसके बाद हिंदुस्तान लौटकर 25 साल के मोतीलाल नेहरू की दूसरी शादी 14 साल की स्वरूप रानी से करवा दी गई। मोतीलाल नेहरू की पहली पत्नी की मौत प्रसव के दौरान हो गई थी। तीन साल की उम्र में उनका बेटा रतनलाल भी चल बसा।

भविष्य में मोतीलाल की वकालत चल निकली। तीस की उम्र के आसपास ही मोतीलाल 2 हजार रुपए प्रति महीने से ज्यादा कमाने लगे थे। नए नवेले अमीर मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद की 9 एल्गिन रोड पर एक शानदार घर लिया जिसमें सभी को सिर्फ अंग्रेज़ी बोलने का हुक्म दिया गया। साल 1900 में जब जवाहलाल नेहरू 11 साल के थे, मोतीलाल नेहरू ने अपनी प्रतिष्ठा के हिसाब से एक और नया घर खरीदा। ये घर इलाहाबाद के 1, चर्च रोड पर स्थित था। 19 हजार रुपए की भारी भरकम कीमत चुका कर मोतीलाल नेहरू ने जिस घर को खरीदा वही भविष्य में आनंद भवन के नाम से जाना गया।घर बेहद जर्जर हालत में था लेकिन उसके लंबे चौड़े अहाते में फलों के बगीचे और स्विमिंग पूल ने समां बांधा हुआ था।

मोतीलाल नेहरू ने बड़े मन से पूरे घर की मरम्मत कराई। हर कमरे में बिजली-पानी की सप्लाई का इंतज़ाम हुआ। बाथरूम में फ्लश टॉयलेट लगवाए गए जिसे पहले इलाहाबाद में किसी ने देखा तक नहीं था। अंग्रेज़ी स्टाइल से बेतरह प्रभावित मोतीलाल नेहरू ने उस दौर में यूरोप और चीन की यात्रा कर बेशकीमती फर्नीचर खरीदा औऱ घर का नाम आनंद भवन भी उन्होंने ही रखा।

नई सदी की तरफ बढ़ते भारत में सियासत बदली।महात्मा गांधी के हिंदुस्तान में पदार्पण ने तो इस बदलाव में और तेज़ी ला दी. साथ ही साथ मोतीलाल नेहरू के विचार भी बदल रहे थे।1930 आते-आते तो उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ ऐसे तीखे तेवर अपना लिए कि बड़े शौक से तैयार किया गया पूरा आनंद भवन ही ब्रिटिश शासन से लोहा ले रही कांग्रेस के हवाले कर दिया।तब इसका नाम आनंद भवन से ‘स्वराज भवन’ हो गया।इस ऐतिहासिक स्वराज भवन के बिल्कुल नज़दीक एक नए आनंद भवन की नींव रखी गई।इसे भी 1969 में इंदिरा गांधी ने देश को ही समर्पित कर दिया था। स्वराज भवन कांग्रेस का हेडक्वार्टर बन चुका था।1947 तक वो कांग्रेस की गतिविधियों का केंद्र बना रहा।

देशभर में कांग्रेस की गतिविधि आनंदभवन से संचालित होने लगी तो राष्ट्रीय नेताओं का आना-जाना भी होने लगा। लाल बहादुर शास्त्री, सुभाषचंद्र बोस, राम मनोहर लोहिया, खान अब्दुल गफ्फार खान, महात्मा गांधी के चरण यहां पड़े। बापू तो जब कभी इलाहाबाद आते तो यहीं ठहरते। आज भी वो कमरा ज्यों का त्यों मौजूद है जहां महात्मा गांधी विश्राम करते। नन्हीं इंदिरा के साथ बापू की एक पुरानी तस्वीर अभी भी युगपुरुष महात्मा की कहानी कहती है। इसी के पास प्रथम तल पर वो ऐतिहासिक कमरा है जहां कांग्रेस कार्यकारिणी बैठती थी।साल 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर वल्लभ भाई पटेल को बैठाने का फैसला यहीं हुआ। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन और व्यक्तिगत सत्याग्रह का निर्णय भी इसी कमरे में बैठकर लिया गया।इसी तल पर जवाहरलाल नेहरू का अध्ययन कक्ष है।


मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस को अपना घर दे दिया और खुद परिवार के साथ नए बनाए आनंद भवन में आ गए। इंदिरा प्रियदर्शिनी को भी नए घर में नया कमरा मिला, लेकिन उनके मन से कभी भी पुराना आनंद भवन नहीं निकल सका जो अब स्वराज भवन था। जीवनी लेखक डोम मोरेस के साथ बातचीत में पुराने दिनों को याद करते हुए इंदिरा ने कहा था ‘घर में हमेशा चहल पहल रहती थी। वहां लोग भरे रहते थे लेकिन आनंद भवन से ज़्यादा मुझे स्वराज भवन पसंद था। वो मेरे लिए ज़्यादा घर था। हम ब्रिटिश पुलिस से भागकर आए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को वहां छिपा लेते थे।एक रात हमारे घर कोई घायल पहुंचा तो मुझ समेत घर की सारी महिलाओं ने नर्स का काम किया।

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