अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया पर उनकी निजता का रखें ख्याल

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जब से सोशल मीडिया का प्रचलन बढ़ा, हम देख रहे हैं कि हमारे जीवन का एक बड़ा हिस्सा सार्वजनिक हो गया है। क्या हम समझ रहे हैं कि भोलेपन में और खुशियां बांटने के उद्देश्य से हम जो कुछ सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं, उस पर किसी और का कब्ज़ा हो जा सकता है और वह उसका दुरुपयोग कर सकता है? कई बार हमारे फैमिली फोटो, हमारे बच्चों की प्यारी तस्वीरें और त्योहारों, शादियों, यात्राओं के दौरान लिए गए फोटो सोशल मीडिया पर डाले जाते हैं। कुछ बच्चे या वयस्क आपत्ति करते हैं कि उनकी अनुमति के बिना ऐसा क्यों किया गया, और तस्वीरों को डिलीट करवा देते हैं।

पर बाकी को लगता है कि यह तो साधारण सी बात है। यहां तक कि बच्चों के नहाते हुए, बिना कपड़ों के या मालिश करवाते हुए फोटो तक साझा कर दिये जाते हैं। इसके खतरे क्या हैं हमें समझना होगा क्योंकि हम आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस से माॅर्फि़ंग तथा ऑनलाइन पाॅर्न व साइबर क्राइम के युग में जी रहे हैं। निजता के अधिकार पर बहसें भी चल रही हैं। और यहीं आ जाता है ‘शैरेंटिंग’ का सवाल। क्या है ये ‘शैरेंटिंग’, आगे समझते हैं।

भारत में ‘शैरेंटिंग’ को लेकर चिंता

असम पुलिस के ट्विटर हैंडल से एक चेतावनी दी जा रही है- “बच्चों के अभिभावकों को आगाह किया जा रहा है कि वे पैरेंट्स बनें ‘शैरेंट्स’ नहीं। इसके मायने क्या हैं? ‘शैरेंटिंग’ यानि सोशल मीडिया पर अपने बच्चों की तस्वीरें साझा करने के लिए सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग और अभ्यस्त उपयोग से पहचान की चोरी, भविष्य में भेदभाव और आपके बच्चों की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है।”

इसी प्रकार पश्चिम बंगाल सीआईडी ने भी अपने फेसबुक पेज के माध्यम से अभिभावकों को चेताया है कि उन्हें अपने बच्चों की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर साझा करने के खतरों को समझ लेना चाहिये और सावधानी बरतनी चाहिये। क्योंकि बच्चों और यहां तक कि वयस्कों की पहचान से जो डिजिटल फुटप्रिंट तैयार होता है, उसका प्रयोग साइबर अपराधियों से लेकर पाॅर्न साइट चलाने वाले और यहां तक कि फिरौती लेने वाले गैंग व आतंकवादी भी कर सकते हैं।

एक वरिष्ठ सीआईडी अधिकारी ने कहा कि “हम परिवार की खुशियों पर अंकुश नहीं लगाना चाहते, पर कहीं तो कोई सीमा होनी चाहिये कि आप बच्चों के जीवन का कितना भाग सोशल मीडिया पर साझा करेंगे, क्योंकि इसके अपने खतरे भी हैं। यही नहीं आपके बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत अच्छा नहीं है, क्योंकि बच्चे को मालूम ही नहीं होता कि आप क्या कुछ शेयर कर रहे हैं और उसकी स्थिति नहीं होती कि वह मना कर सके। आजकल ब्लॉग्स बनाने का फैशन है, तो बच्चों की निजता कम्प्रोमाइज़ होती है। उनके जीवन प्रभावित होते हैं। हमको बहुत सी कार्यशालाएं चलानी पड़ रही हैं ताकि हम इसके बारे में समझदारी विकसित कर सकें।”

साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि “बहुत सा अपराध लोगों के सोशल मीडिया फुटप्रिंट्स का प्रयोग करके हो रहा है। क्या हम इस संबंध में स्कूलों-कॉलेजों में बात कर रहे हैं? क्या कभी पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग्स में इस विषय में चर्चा होती है? आखिर हम कब चेतेंगे? भारत में अब तक कोई कानून नहीं बना है जो शैरेंटिंग को रोक सके। डीपीडीपीबी यानि मसविदा डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2022 में यह प्रावधान जरूर है पर अभी बिल पर बहस होना बाकी है”।

डीपीडीपीबी विधेयक और बेहतर हो सकता था

यह विधेयक बच्चों की ट्रैकिंग और व्यवहार संबंधी निगरानी, बच्चों पर निर्देशित लक्षित विज्ञापन और बच्चों को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी प्रकार के डेटा प्रोसेसिंग पर प्रतिबंध लगाएगा। अपवाद सरकार द्वारा निर्धारित किये जा सकते हैं। एक बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। गैर-अनुपालन के लिए जुर्माना 2 बिलियन रुपये (यूएस डाॅलर 24.4 मिलियन) तक जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि “बिल का सामान्य दृष्टिकोण गैर-सूक्ष्म है, जिसमें बच्चों के डेटा प्रोसेसिंग पर पूर्ण प्रतिबंध है, जो वर्तमान डिजिटल परिदृश्य में अव्यावहारिक है। अन्य न्यायिक क्षेत्र बच्चों की डाटा सुरक्षा के लिए अधिक परिष्कृत दृष्टिकोण हेतु उपयोगी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। कई लोग अलग-अलग स्तर बनाने के लिए परिपक्वता के व्यावहारिक परीक्षण की बात करते हैं, जहां एक निश्चित आयु से अधिक, परन्तु वयस्कता के आधार पर कम आयु के व्यक्ति अपने डेटा के प्रसंस्करण के लिए सहमति दे सकते हैं।

यह परीक्षण परिपक्वता स्तर और कानूनी अधिकारों व प्रसंस्करण तथा अनुचित प्रभाव से जुड़े खतरों को समझने की क्षमता पर विचार करता है। मसलन एक 17 साल के बच्चे के साथ आमतौर पर एक छोटे बच्चे जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। भारत में आपराधिक कानून विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों के बीच उनकी मानसिक क्षमता और उनके कार्यों के परिणामों को समझने की क्षमता के आधार पर अंतर करते हैं।

डीपीडीपीबी में ‘सहमति’ पर जोर के मदृदेनज़र, एक स्तरीय दृष्टिकोण, जहां एक निश्चित आयु से ऊपर के बच्चे अपने डेटा के प्रसंस्करण के लिए सहमति प्रदान कर सकते हों” यह कानून को बेहतर बनाता, उनका विशेषज्ञों का सुझाव है। संसद के माॅनसून सत्र में विधेयक पेश होगा।

फ्रांस में शैरेंटिंग के विरुद्ध कानून

फ्रांस की नेशनल असेंबली ने शैरेंटिंग के खिलाफ मार्च 2023 में ही एक कानून बना दिया है। इमैनुएल मैक्राॅन के दल के एक सांसद ब्रूनो स्टुडर ने यह विधेयक प्रस्तावित किया था। स्टुडर बाल अधिकार के मामले भी देखते हैं। विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया क्योंकि काफी सारे ऐसे मामले सामने आ रहे थे जिनमें बच्चोें के अभिभावक भोलेपन में अपने बच्चों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कर रहे थे और उन्हें मालूम नहीं था कि इन तस्वीरों ने उनके बच्चों को कितने बड़े संकट में डाल दिया था।

कानून यह बताना चाहता है कि माता-पिता या परिवार के कोई भी सदस्य बच्चों की निजता को भंग नहीं कर सकते और उन्हें अपने बच्चों की छवियों पर पूर्ण अधिकार नहीं है। दूसरी बात कि बच्चों की तस्वीरें ऑनलाइन साझा करने के मामले में उनकी उम्र और परिपक्वता का ध्यान रखना होगा और यदि बच्चे के लिए किसी भी प्रकार की हानि का खतरा होगा तो उन्हें न्यायालय ऐसा करने से रोक सकता है।

इसके अलावा अपने बच्चों की तस्वीरें साझा करने के परिणामों के लिए उन्हें पूर्ण जिम्मेदारी लेनी होगी। यदि एक अभिभावक की अनुमति न हो तो दूसरा अभिभावक बच्चों की तस्वीरें ऑनलाइन साझा नहीं कर सकता/सकती। यह शैरेंटिंग के खिलाफ विश्व का पहला विधेयक है।

शैरेंटिंग क्या सचमुच खतरा पैदा कर सकता है?

बच्चों की तस्वीरें बाल पॉर्नोग्राफी, स्कूल में धौंस जमाने, डिजिटल किडनैपिंग करने और साइबर अपराध के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। स्टुडर ने एक साक्षातकार में कहा है कि “जब तक बच्चा/बच्ची 13 साल के हाते हैं, उनके लगभग 1,300 फोटो सोशल मीडिया पर साझा हो जाते हैं। इन तस्वीरों को चाइल्ड पाॅर्न और स्कूल के माहौल में बुलींग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।” यह पाया गया है कि बाल पाॅर्न साइट्स पर इस्तेमाल की जा रही तस्वीरों में से 50 प्रतिशत सोशल मीडिया पर साझा की गई तस्वीरों में से ही ली जाती हैं। और इसका पता न बच्चों को न उनके माता-पिता को होता है।

कई बार स्कैम करने वाले लोग ‘डिजिटल किडनैपिंग’ (यानि आपके बच्चे का सारा डाटा चोरी करके अपना बना लेना) करने के बाद माता-पिता को ब्लैकमेल करके अच्छी रकम मांग लेते हैं- यह कहकर कि यदि वे पैसा नहीं देंगे, उनके बच्चे की तस्वीर और सारा डाटा किसी पाॅर्न साइट द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा। फिरौती भी बिटकाॅयन्स में मांगी जाती है, जिसे पकड़ना असंभव होता है। यह खतरनाक हो सकता है क्योंकि बच्चे का समस्त डाटा उसके हाथ लग चुका होता है। डिजिटल किडनैपिंग किसी के साथ भी हो सकती है।

अमेरिका की एक कन्टेंट क्रियेटर मेरेडिथ स्टील ने बताया कि उसके बच्चे के साथ डिजिटल किडनैपिंग हो चुकी है, इसलिए सभी माताओं को सावधान हो जाना चाहिये। उनके बच्चे की सारी तस्वीरें एक डिजिटल किडनैपर ने चुराकर अपनी बना ली। उन्हें अपने सारे सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट करने पड़े थे और अपना और अपने बच्चे का नाम बदलना पड़ा। वह बोलीं कि यह सब भयावह था। यह भी देखा गया है कि जब बच्चे दोस्तों के साथ या परिवार संग सैर पर निकलते हैं, वे जहां-जहां जाते हैं और जहां-जहां ठहरते हैं उन जगहों की तस्वीर रीयलटाईम में पोस्ट करते जाते हैं। इससे उनकी लोकेशन का पता लगता रहता है और उन्हें स्टाक करना, नुकसान पहुंचाना या अगवा करना बहुत आसान हो जाता है।

यह ‘ऐक्टिव डिजिटल फुटप्रिंट’ है जो आप सोच-समझकर इंटरनेट में डालते हैं। इसके अलावा आपका ‘पैसिव डिजिटल फुटप्रिंट’ भी छूटता है। आप कौन सी वेबसाइट देखते हैं, कहां से खरीददारी करते हैं, क्या लाइक करते हैं और क्या कमेंट करते हैं सब कुछ आपका डिजिटल डाटा होता है, जो सरवर्स के पास स्टोर होता है।

ऐरिज़ोना की एक मां ने बताया कि एआई के माध्यम से उनकी बेटी की आवाज़ क्लोन कर ली गई थी और फोन करके उस आवाज़ में कहा गया था कि उसे किन्हीं लोगों ने अगवा कर लिया है। उसके बाद फिरौती मांगी गई। शुक्र था कि मां ने अपनी बेटी की सलामती का पता लगा लिया। पर वह बुरी तरह डर गई थी। यह सच भी हो सकता था क्योंकि उसकी बेटी बाहर पढ़ने गई थी और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी।

क्या कभी आपने सोचा कि आप डिजिटल डाटा डिलीट नहीं कर पाएंगे और वह सालों-साल स्टोर्ड रहेगा? जब इलाॅन मस्क स्वयं एआई के खतरों के बारे में लगातार बोल रहे हैं, और लोगों को सतर्क रहने के लिए कह रहे हैं, तो क्या हमें सजग नहीं होना चाहिये?

तब क्या करना होगा?

डाटा प्रोटेक्शन कानून को लागू करने के लिए तो हमें लगातार आवाज़ उठानी होगी। इसके अलावा हम अपने स्तर पर भी काफी कुछ कर सकते हैं, मसलन अपनी प्राइवेसी सेटिंग्स पर ध्यान दें। साथ ही बच्चों को भी डाटा चोरी के खतरों के बारे में सजग करें।

  • नाबालिग बच्चों की तस्वीरें ऑनलाइन साझा न करें।
  • अपनी या बच्चों की आवाज़ को इंटरनेट पर स्टोर न करें।
  • लैपटाप और फोन से ब्राउज़िग हिस्ट्री डिलीट करें।
  • अपने पासवर्ड हर 3 महीने में बदल दें और हमेशा काफी जटिल किस्म के पासवर्ड बनाएं।
  • तस्वीरों में अपने बच्चों के चेहरों पर इमोजी लगा दें या उन्हें ब्लर कर दें, यदि पारिवारिक फोटो ऑनलाइन साझा की जा रही हो।
  • बड़े बच्चों से अनुमति लेकर ही उनकी तस्वीर परिवार या दोस्तों में साझा करें।

डिजिटल दुनिया के बारे में आज भी हमारी जानकारी बहुत सीमित है। हम ऐसी चीज़ से खेल रहे हैं जो एक डाॅरमैंट बम जैसा है और कभी भी हमें भारी नुकसान पहुंचा सकता है। कम से कम हम अपने बच्चों को इसके खतरों से सुरक्षित रखें। जैसे-जैसे फ्राॅड, माॅर्फिंग, डिजिटल किडनैपिंग और साइबर क्राइम के केस बढ़ते जा रहे हैं, यह ज़रूरी हो जाता है कि स्कूलों में इसके बारे में बच्चों और उनके अभिभावकों को शिक्षित किया जाए।

(कुमुदिनी पति, सामाजिक कार्यकर्ता हैं और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।)

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