कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अमेरिका के तीन दिनों के इस दौरे के पहले दिन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में अपने संबोधन के दौरान नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों और भविष्य की योजनाओं पर भी खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मेरी भूमिका भारतीय राजनीति में प्यार, सम्मान और विनम्रता के मूल्यों को बढ़ाना है। मुझे लगता है कि ये भाव मौजूदा समय में हमारी राजनीतिक प्रणाली से गायब है। ये बात लगभग उसी अंदाज़ में राहुल ने की जिस अंदाज़ में महात्मा गांधी विश्व को शांति और अहिंसा का संदेश देते रहे हैं।
यह सच है भारतीय लोकतंत्र में जिस तरह विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के दुष्चक्र और हथकंडे अपनाए गए। सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग हुआ। सदन से ना केवल राहुल की सदस्यता ख़त्म की गई वरना 140 सम्मानीय सांसदों को भी निलम्बित किया गया। देश के दो मुख्यमंत्रियों को बिना अपराध सिद्ध किए चुनाव के दौरान जेल में जबरिया डाला गया। बहुमत का नाजायज़ इस्तेमाल किया गया। मनमाने विधेयक पास हुए। सांसद राहुल के साथ तो ऐसा व्यवहार किया गया जो अक्षम्य है। किंतु राहुल महात्मा गांधी का अनुसरण करते हुए ना तो कभी क्रोधित हुए ना ही किसी को अपशब्द कहे। उनकी इस अदा ने एक सदा को जन्म दिया। यह देश में ही नहीं बल्कि दुनियां में मोहब्बत की नई इबादत लिख गया।
आपको याद होगा एक बार राहुल गांधी ने संसद में सभी मनोमालिन्य और कलुष दूर करने पीएम के पास जाकर गले लगाने की चेष्टा की थी जिसे बदमिजाज स्वयंभू ने यह कहा कि राहुल मुझे उठाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाह रहे थे। वो खड़े नहीं हुए इस घटना को मज़ाक बनाया गया। यह मज़ाक केवल पीएम ने नहीं बनाया बल्कि मोदी मीडिया ने भी भरपूर खिल्ली उड़ाई जबकि यह संसदीय परम्परा का एक गरिमामय आचरण था। इसीलिए वे राजनीति में प्यार , सम्मान और विनम्रता की बात कह रहे हैं। क्योंकि राजनीति में दुश्वारियां दुनिया के कई देशों में भी बढ़ती जा रही है इसलिए इसे कहना टेक्सास विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच उचित ही है ताकि युवा पीढ़ी राजनीति को भली-भांति सम्मान और उसे गरिमा प्रदान करें।
यात्रा के दौरान विश्व बाजारवाद को बढ़ाने वालों पर खुलकर कटाक्ष भी किए, कथित भूमंडलीकरण ने संपूर्ण दुनिया में एक शोषण का जाल बुना हुआ है। भारत भी मनमोहन जी के काल से इस दुष्चक्र में फंसा जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री ने चरम पर पहुंचाया। उन्होंने चीन को भारत का सबसे बड़ा बाजार सौंप दिया। छोटी-छोटी उपभोक्ता चीजों से लेकर हर तरह की सामग्री और विनिर्माण में चीन की मौजूदगी ने देश के उद्यमियों को ना केवल क्षति पहुंचाई बल्कि उनके रोजगार छीन लिए। यह बहुत नुकसानदायक साबित हुआ। उन्होंने आव्हान किया कि इस मुद्दे पर बढ़तीु बेरोजगारी झेल रहे देशों को विमर्श की आवश्यकता है। दुनिया के तमाम बाजारों को समाप्त कर कारपोरेट के हाथ सौंपना दुनिया की जनता के शोषण को पुष्ट करता है इस तरफ ध्यान देना और नई नीतियों को बनाना उचित होंगा।
उन्होंने बीजेपी सरकार की वैचारिक पृष्ठभूमि पर भी प्रहार कर जमकर हमला बोला. राहुल गांधी ने कहा, “आरएसएस का मानना है कि भारत एक विचार है और हमारा मानना है कि भारत में विचारों की बहुलता है। हमारा मानना है कि इसमें सभी को शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए, सपने देखने की अनुमति दी जानी चाहिए और उनकी जाति, भाषा, धर्म, परंपरा या इतिहास की परवाह किए बिना उन्हें जगह दी जानी चाहिए।” ये बात भी सिर्फ संघ के लिए नहीं है बल्कि विश्व पटल पर पनप रही तानाशाह वृत्ति वाले देशों के लिए भी है जो एक विशेष कौम, धर्म और उनके घर्मावलंबियोंं की तरक्की हेतु संकीर्ण मानसिकता रखते हैं। दुनिया के प्रायः सभी देशों में हर कौम और धर्म के मानने वाले लोग हैं तब इस तरह की सोच अन्याय की परिधि भी आएगी।
उन्होंने एक और महत्वपूर्ण बात कही जो उनके एक जिम्मेदार राजनैतिक नायक बनने की पुष्टि करते हैं। उनका ख़्याल है कि एक राजनैतिक, देशप्रेमी और जनप्रिय व्यक्ति का अपने निज का आइडिया ख़त्म कर लोगों के बारे में सोचना ही देवता होना होता है। भगवान राम, बुद्ध और महात्मा ऐसे ही लीडर्स थे। यही हिंदुस्तान के नेता और अमेरिका के नेताओं में फ़र्क है।
उनके तमाम विचार इस बार एक उन्हें जगनायकत्व के करीब पहुंचाते नज़र आते हैं। उनकी ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा से जो गरल निकला उसका आचमन करते हुए वे जन जन के बहुत करीब पहुंचे हैं इसलिए उनके लिए वे सदैव प्रतिबद्ध नज़र आते हैं।यही वजह है कि सदन में जब से वे प्रतिपक्ष नेता बने हैं उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को वापिस लेने मज़बूर किया है। ख़ौफ़ का जो आलम था वह लगभग ख़त्म हुआ है। डरो मत कारगर हुआ। अब स्थितियां उलट गई है पीएम जब राहुल बोलने वाले होते हैं या तो उठकर भाग जाते हैं या आते ही नहीं है।
यह सब करिश्मा राहुल गांधी के सुदृढ़ व्यक्तित्व से संभव हुआ है उन्हें विरासत में जो देश मिला उसको चलाने वाले फासिस्टवादी थे जिन्होंने एक विकसित होते भारत को धर्मांधता और हिंदुत्व के रथ पर आरुढ़ किया और दिल से लूटा। देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को कारपोरेट को बेचा। शिक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा व्यवस्था को पंगु बनाया। करोड़ों लोगों को मुफ्त राशन, किसानों और बहनों को अल्प राशि देकर फुसलाया तथा हर मोड़ पर देशवासियों को लूटा देश का अपार धन पूंजीपतियों के हवाले कर दिया। जो काम हुए उनकी पोल बरसात ने खोल दी। नौकरियों और परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा से बेरोजगारी चरम पर पहुंची। कारपोरेट के हाथ में बाजार जाने से मंहगाई बढ़ी।
ऐसी स्थितियों में राहुल गांधी की सजगता और सादगी ने तथा सबसे बड़ी निर्भीकता के जज़्बे ने उन्हें अपार लोकप्रियता से नवाजा। यह सच है कि यदि चुनाव आयोग ने निष्पक्षता से काम किया होता तो मोदीजी का मैदान साफ़ हो गया होता। लेकिन जनमत ने जितना भी मत इंडिया गठबंधन को दिया उसकी बदौलत ही जन जन की आवाज़ संसद के गलियारों में गूंजने लगी है। यह विजय कम नहीं।
इन तमाम घटनाओं से बार बार महात्मा गांधी याद आते हैं राहुल ने गांधी के संघर्ष का पथ चुना है वे पिछले कांग्रेसियों से बिल्कुल अलहदा हैं और सिर्फ जनहित के लिए ही काम करते हैं जो लोग पिछली कांग्रेस की नज़र से उन्हें देखते हैं वह भी बदल रही है संघ और स्मृति ईरानी ने उन्हें बखूबी पहचान लिया है इसलिए भाजपा से दूरी बढ़ रही है। उनके अमरीका प्रवास के दौरान दिए वक्तव्यों और मिले भरपूर सम्मान से यह जाहिर होता है कि उनकी सोच व्यापक है और वे दुनिया के ख़तरों के प्रति सतर्क है और उनके मामले में प्रतिपक्ष नेता यानि शेडो प्रधानमंत्री की तरह ही देश दुनिया की ख़बर रखते हैं। यकीनन उनकी ये विशेषताएं उन्हें एक दिन देश का उत्तरदायित्व सौंपने की काबिलियत की ओर इशारा करती है देश दुनिया की चिंता और उनकी पहल उन्हें जगनायक बना दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)