बर्फीले रेगिस्तान में छिपी समृद्धि : क्या ग्रीनलैंड का खनिज भंडार विश्व राजनीति को बदल देगा ?

Estimated read time 1 min read

21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था अब केवल तेल और गैस पर निर्भर नहीं रही; तकनीक-आधारित औद्योगिक क्रांति ने Rare Earth Elements (REEs) को आधुनिक युग का नया ‘काला सोना’ बना दिया है। इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर ऊर्जा पैनलों, पवन टरबाइनों, उन्नत सैन्य उपकरणों और स्मार्टफोन जैसे उत्पादों के निर्माण में इन दुर्लभ खनिजों की अत्यधिक आवश्यकता होती है। हालांकि, वर्तमान में वैश्विक REE आपूर्ति का लगभग 70% से अधिक नियंत्रण चीन के पास है, जिससे पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

ऐसे में, जब ग्रीनलैंड में विश्व के सबसे समृद्ध REE भंडारों की पुष्टि हुई, तो यह अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के लिए रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया। यही कारण था कि डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने की पेशकश की, क्योंकि यह न केवल अमेरिका को चीन की खनिज आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता से मुक्त कर सकता था, बल्कि उसे वैश्विक तकनीकी और सैन्य शक्ति में और मजबूती भी प्रदान कर सकता था।

धुंध से घिरी बर्फीली चोटियों के बीच, ग्रीनलैंड का छोटा सा कस्बा, नर्साक, वैश्विक संघर्ष का नया केंद्र बनता जा रहा है। यह सिर्फ 1,300 लोगों की आबादी वाला शांतिपूर्ण स्थान है, लेकिन इसके नीचे दबी अरबों साल पुरानी चट्टानों में छिपे दुर्लभ खनिज इसे दुनिया की सबसे मूल्यवान भूमि में से एक बना सकते हैं।

ऑस्ट्रेलियाई कंपनी Energy Transition Minerals के निदेशक हाल ही में यहां पहुंचे थे, लेकिन उनकी यात्रा उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं रही। फरवरी की कड़ाके की ठंड में बर्फ से ढकी सड़कों ने उन्हें खदान स्थल तक पहुंचने नहीं दिया। हेलीकाॅप्टर से वे नर्साक तक तो आ गए, लेकिन आगे का रास्ता बर्फीली पहाड़ियों में कहीं खो गया। यह मुश्किलें महज मौसम की नहीं हैं। ग्रीनलैंड में खनन अत्यंत जटिल और विवादित विषय बन चुका है।

ग्रीनलैंड की मिट्टी के नीचे दुर्लभ खनिज तत्वों (rare-earth elements) का विशाल भंडार मौजूद है, जिसका वैश्विक बाजार में बड़ा महत्व है। इलेक्ट्रिक वाहनों, जेट फाइटर्स, पवन टरबाइन और हेडफोन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के लिए इनकी भारी मांग है। नर्साक के ऊपर स्थित Kvanefjeld नामक पहाड़ी, खनिज संपदा से भरपूर है। इस क्षेत्र में अनुमानित एक अरब टन खनिज मौजूद हैं, जो पूरे वैश्विक बाजार को बदलने की क्षमता रखते हैं।

हालांकि, खनन कंपनियों के लिए यह क्षेत्र किसी दुर्गम युद्धभूमि से कम नहीं। न तो यहां पक्की सड़कों का जाल है, न ही परिवहन की सुविधा। विशाल बर्फीले मैदानों में खदानें बनाना बेहद खर्चीला और जोखिम भरा है। पूरी ग्रीनलैंड की आबादी 57,000 के करीब है, और श्रमिकों की भारी कमी है। इसके अलावा, तैरते हुए हिमखंडों की वजह से समुद्री परिवहन भी बेहद मुश्किल हो जाता है।

ग्रीनलैंड में खनन केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है, यह राजनीति और पर्यावरण का जटिल संघर्ष भी है। 2007 में ग्रीनलैंड सरकार ने Energy Transition Minerals को Kvanefjeld में दुर्लभ खनिजों की खोज की अनुमति दी थी। लेकिन 2021 में सत्ता परिवर्तन के बाद हालात बदल गए। नर्साक के ही निवासी और ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री मूटे बी. एगोदे ने सत्ता में आने के बाद यूरेनियम खनन पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया।

2022 में उनकी सरकार ने एक कानून पास कर दिया, जिससे उन सभी खनिजों का खनन अवैध हो गया जिनमें यूरेनियम की थोड़ी भी मात्रा पाई जाती है। इस कानून ने Kvanefjeld खनन परियोजना को लगभग बंद कर दिया। कंपनी ने सरकार पर ग्रीनलैंड की जीडीपी से भी चार गुना ज्यादा $11.5 बिलियन के हर्जाने का दावा करते हुए डेनमार्क और ग्रीनलैंड के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का मामला दर्ज कर दिया है। ग्रीनलैंड सरकार का कहना है कि खनन पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है और पर्यटन एवं मत्स्य उद्योग को खतरे में डाल सकता है, जो यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

खनन परियोजनाओं को लेकर स्थानीय इनुइट समुदाय भी चिंतित है। युवा पुरातत्व छात्रा आवााराक बेंड्टसन कहती हैं, “हम अपने पूर्वजों की तरह प्रकृति पर निर्भर रहते हैं। अगर यहां खनन हुआ, तो हमें अपना घर छोड़ना पड़ेगा। यह हमारी भूमि है, हमारा पहाड़ है।“ जल प्रदूषण और वन्यजीवन पर प्रभाव को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है।

दुनिया के बड़े देश चीन की Rare Earth Monopoly को तोड़ना चाहते हैं, और ग्रीनलैंड इस प्रतिस्पर्धा का महत्वपूर्ण मोर्चा बनता जा रहा है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या ग्रीनलैंड अपने पर्यावरण और सांस्कृतिक धरोहर की कीमत पर यह बदलाव चाहता है? क्या खनिज संपदा का दोहन उसकी स्वतंत्रता के सपने को साकार करेगा, या फिर उसे वैश्विक राजनीति का मात्र मोहरा बना देगा? खदानों की यह जंग सिर्फ मिट्टी के नीचे दबे खजाने की नहीं, बल्कि पूरी मानवता के विकास और नैतिकता की लड़ाई भी है।

भविष्य में Rare Earth Elements की मांग में और भी अधिक वृद्धि होगी क्योंकि दुनिया हरित ऊर्जा (green energy) की ओर बढ़ रही है। 2050 तक जब अधिकांश देश नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की ओर अग्रसर होंगे, तब इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरी भंडारण और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के लिए REEs की आवश्यकता कई गुना बढ़ जाएगी। इसके अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अंतरिक्ष अनुसंधान और 6G जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास में भी इनकी अनिवार्यता रहेगी। ऐसे में, ग्रीनलैंड के खनिज भंडार पर नियंत्रण पाने की होड़ और तेज होगी।

हालांकि, यह केवल आर्थिक लाभ का मुद्दा नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव, स्थानीय जनजातियों के अधिकार और वैश्विक भू-राजनीति का बड़ा मोर्चा भी बन गया है। यदि ग्रीनलैंड अपने खनिजों का दोहन करने का निर्णय लेता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह केवल वैश्विक शक्तियों के लिए संसाधन आपूर्ति केंद्र न बन जाए, बल्कि अपनी आर्थिक स्वतंत्रता और पारिस्थितिकी संतुलन को भी बनाए रखे।

(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author