Friday, April 19, 2024

इस्तीफे पर अडिग राहुल ने फिर बोला आरएसएस पर हमला, कहा-संस्थाओं पर कब्जे का संघ का लक्ष्य पूरा

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर अपने कांग्रेस अध्यक्ष न होने की बात दोहरायी है। उन्होंने बाकायदा चार पेज का एक पत्र लिखकर इस बात का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि वह अपने अध्यक्ष पद से हटने के फैसले को लेकर अडिग हैं। और लोकसभा चुनावों में हार की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। साथ ही उन्होंने सीडब्ल्यूसी को तत्काल अपना दूसरा अध्यक्ष चुन लेने की सलाह भी दी है।

उन्होंने पत्र में कहा है कि “पार्टी को नये अध्यक्ष पर जल्द से जल्द फैसला लेना चाहिए। मैं इस प्रक्रिया में कहीं नहीं हूं। मैंने पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया है। और मैं पार्टी का अध्यक्ष नहीं हूं। सीडब्ल्यूसी को जल्द से जल्द एक बैठक बुलानी चाहिए और तय करना चाहिए (किसे कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त करना है)।”

चार पेज के इस पत्र को गांधी ने ट्विटर पर भी शेयर किया है। इस पत्र में उन्होंने मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार पर तो हमला बोला ही है इसके साथ ही अपने लोगों को भी नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि “हम अपने विरोधियों को सत्ता की आकांक्षा की बलि दिए बगैर नहीं हरा सकते हैं और इसके लिए एक गहरे वैचारिक संघर्ष में उतरना होगा।”

उन्होंने कहा कि कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते 2019 के चुनावों में हार की पूरी जिम्मेदारी मेरी है। भविष्य में हमारी पार्टी के विकास के लिहाज से जवाबदेही बेहद महत्वपूर्ण है। यही वह कारण है जिसके चलते मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है।

अगले अध्यक्ष के चुनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि “मेरे बहुत सारे सहयोगियों ने सुझाव दिया कि मुझे अगला अध्यक्ष नामित करना चाहिए। यह सही है कि कोई नया पार्टी को नेतृत्व दे लेकिन यह मेरे लिए सही नहीं होगा कि मैं उसका चयन करूं।”

उन्होंने कहा कि मुझे पार्टी पर पूरा भरोसा है कि वह इस बात का फैसला ले सकती है कि कौन हम लोगों को पूरे  साहस, प्यार और उत्साह के साथ नेतृत्व दे सकता है।

बीजेपी पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि “ मेरी लड़ाई केवल राजनीतिक सत्ता को हासिल करने की लड़ाई नहीं है। बीजेपी के खिलाफ मेरे भीतर किसी भी तरह की नफरत या गुस्सा नहीं है। लेकिन मेरे भीतर की हर जिंदा कोशिका उनके भारत के विचार का पूरी ताकत के साथ विरोध करती है।….यह कोई नई लड़ाई नहीं है बल्कि इस धरती पर हजारों सालों से चली आ रही है। जहां वो मतभेद देखते हैं हम एकता। जहां वो घृणा देखते हैं हम प्यार। जिससे उनको डर लगता है मैं उसे गले लगाता हूं।”

यह उदारवादी विचार देश के लाखों लाख हमारे प्यारे नागरिकों के दिलों में बसता है। भारत का यही विचार है जिसकी हम पूरी ताकत से रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे देश और हमारे प्यारे संविधान पर जो हमला हो रहा है वह हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को ध्वस्त कर देगा। हम किसी भी रूप में इस लड़ाई से पीछे हटने वाले नहीं हैं। मैं कांग्रेस पार्टी का एक समर्पित सिपाही और भारत का प्रतिबद्ध बेटा हूं। और अपनी अंतिम सांस तक उसकी सेवा और रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

चुनाव आयोग और दूसरी संस्थाओं पर भी उन्होंने जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और साफ-सुथरे चुनाव के लिए देश की संस्थाओं का निष्पक्ष होना जरूरी है। कोई चुनाव एक स्वतंत्र प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और एक पारदर्शी चुनाव आयोग के बगैर नहीं लड़ा जा सकता है। और इनसे वस्तुपरक और निष्पक्ष होने की उम्मीद की जाती है। और न ही उस चुनाव को स्वतंत्र कहा जा सकता है जिसमें किसी एक दल का वित्तीय संसाधनों पर पूरा कब्जा हो।

उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में हम केवल एक पार्टी से चुनाव नहीं लड़ रहे थे बल्कि भारतीय राज्य की पूरी मशीनरी से लड़ रहे थे। प्रत्येक संस्था को विपक्ष के खिलाफ खड़ा कर दिया गया था। अब यह बात बिल्कुल साफ हो गयी है कि भारत में अब कोई निष्पक्ष संस्था नहीं रह गयी है।

बहुत सालों से लंबित देश के संस्थागत ढांचे पर कब्जे का आरएसएस का लक्ष्य अब पूरा हो गया है। हमारा लोकतंत्र बुनियादी रूप से कमजोर हो गया है। आज से अब एक स्वाभाविक खतरा सामने आ गया है जिसमें भारत के भविष्य को तय करने की जगह चुनाव की भूमिका महज औपचारिक होगी।

सत्ता पर यह कब्जा अकल्पनीय स्तर की हिंसा और देश को दर्द देगा। जिसके सबसे ज्यादा शिकार किसान, बेरोजगार युवा, महिलाएं, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक होंगे। हमारी अर्थव्यवस्था और देश की प्रतिष्ठा पर इसका प्रभाव विनाशकारी होगा।

इस पत्र में वह पीएम मोदी पर हमले से भी बाज नहीं आए हैं। उन्होंने कहा है कि पीएम की जीत उनके ऊपर लगे आरोपों को खारिज नहीं करती है। बड़ी से बड़ी रकम और झूठा प्रचार सत्य के प्रकाश को नहीं ढक सकता है। भारतीय राष्ट्र को फिर से अपनी संस्थाओं पर अपने दावे को पुख्ता करना चाहिए।

पिछले एक महीने से अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के भीतर नाटक चल रहा था। कभी कोई राहुल गांधी को मनाने की कोशिश कर रहा था तो कभी उनके पक्ष में इस्तीफे आ रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से आयी खबर में बताया गया है कि अगले एक हफ्ते में अभी इस दिशा में कोई प्रगति होना संभव नहीं है।

बताया जा रहा है कि राहुल और सोनिया गांधी इसी सप्ताह विदेश के दौरे पर जाने वाले हैं। दरअसल राबर्ट वाडरा के बारे में बताया जा रहा है कि उनका किसी अज्ञात स्थान पर आपरेशन हुआ है या फिर होने वाला है। लिहाजा प्रियंका गांधी पहले ही बाहर चली गयी हैं।

कांग्रेस के एक नेता का कहना था कि राहुल और सोनिया शनिवार तक बाहर जा सकते हैं और इस मसले पर कोई भी फैसला 10 जुलाई से पहले हो पाना संभव नहीं दिखता है।

हालांकि कांग्रेस के नेता यह चाहते हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर बने रहें।

बताया जाता है कि चुनावों के बाद हुई पहली सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने इशारे में ही अशोक गहलोत और कमलनाथ पर इस बात के लिए जमकर हमला किया था कि इन लोगों ने अपने बेटों को टिकट दिलाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। शायद यही वजह है कि बार-बार निवेदन के बावजूद इन दोनों को उन्होंने मुलाकात का समय नहीं दिया।

साथ ही राहुल इस बात को लेकर भी परेशान थे कि उन राज्यों के नेता जिनके नेतृत्व में पार्टी की हार हुई है जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं हुए।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

Related Articles

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।