मणिपुर: प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 28 जुलाई को करेगा सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘द वायर’ के साथ एक साक्षात्कार में मेतेई समुदाय को बदनाम करने के लिए मणिपुर कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ जारी समन को चुनौती देने वाली प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग की याचिका को 28 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। इस मामले का उल्लेख वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष किया। याचिकाकर्ता डॉ खाम खान सुआन हाउजिंग कुकी आदिवासी समुदाय से आते हैं।

प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग हैदराबाद विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं। उन्हें 6 जुलाई, 2023 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इंफाल पूर्व की अदालत ने एक समन नोटिस जारी किया था। प्रोफेसर हाउजिंग पर ‘द वायर’ पर करण थापर के कार्यक्रम में मेतेई समुदाय को बदनाम करने का आरोप लगाया गया था और उन पर धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना), 200 (जानबूझकर कुछ गलत घोषित करना), 295 (ए) (धार्मिक भावना को अपमानित करने के लिए जानबूझकर कार्य करना), 298 ( मौखिक रूप से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), भारतीय दंड संहिता की धारा 505(1), और 120बी (आपराधिक साजिश) लगाया गया है।

इंफाल पूर्वी जिला अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने प्रोफेसर को ‘द वायर’ के साथ उनके हालिया साक्षात्कार के लिए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। उन्हें 28 जुलाई को सुनवाई के लिए उपस्थित होना होगा।

यह समन इम्फाल के एक सामाजिक कार्यकर्ता मोइरांगथेम मनिहार सिंह द्वारा दायर एक शिकायत के बाद आया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि हाउजिंग ने कोबरू और थांगजिंग जैसे मैतेई समुदाय से जुड़े ‘धार्मिक स्थलों पर अपमानजनक टिप्पणी’ की थी ।सबूत के तौर पर सिंह ने साक्षात्कार की सामग्री वाली एक यूएसबी ड्राइव प्रस्तुत की।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में प्रोफेसर हाउजिंग के बयानों ने मैतेई समुदाय को बदनाम किया है और मणिपुर में सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा दिया है। साक्षात्कार में हाउजिंग ने कहा था कि कुकी समुदाय के लिए अलग प्रशासन बनाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान, शिकायत की प्रति, दर्ज एफआईआर की प्रति और अदालत द्वारा पारित आदेशों सहित पूरी शिकायत का रिकॉर्ड मांगा है। उन्होंने कहा कि मणिपुर राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच व्याप्त सांप्रदायिक तनाव और अशांति की घोर अज्ञानता के कारण उन्हें समन जारी किया गया।

याचिका में वकील दीक्षा द्विवेदी के मामले का हवाला दिया गया है, जिसमें मणिपुर पुलिस द्वारा उनके खिलाफ देशद्रोह, युद्ध छेड़ने की साजिश आदि के अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद अंतरिम सुरक्षा प्रदान की गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह भी द्विवेदी के मामले से समान रूप से जुड़े हुए हैं, क्योंकि उन्हें आशंका है कि दो समुदायों के सांप्रदायिक तनाव के बीच उनके जीवन और स्वतंत्रता को खतरा है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि मणिपुर में व्यापक संघर्ष के कारण वह इस बात से आशंकित हैं कि यदि वह समन का जवाब देने के लिए मणिपुर जाते हैं तो उनके जीवन को वास्तविक या आसन्न खतरा हो सकता है। हाउजिंग ने अपनी याचिका में आगे कहा कि छह जुलाई, 2023 को मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी किया गया था और जिन अपराधों के तहत उन पर आरोप लगाया गया था, उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।

एक ट्वीट में, प्रोफेसर ने कहा था कि यदि एक बहुसंख्यक राज्य और उसके शासन ने सच्चाई को चुप कराने और मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन करने के लिए सत्ता के अपने एकाधिकार का उपयोग करना चुना है, तो हमें एकजुट रहना होगा, पुनः दावा करना होगा और इन मणिपुर हिंसा के विरुद्ध लड़ना होगा ।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग ने मैतेई समुदाय को बदनाम करने के लिए गलत बयान दिए, जिससे मणिपुर में सांप्रदायिक दुश्मनी बढ़ गई।

इंडिपेंडेंट एक्टपर्ट कमेटी से जांच की मांग

तारीख- 19 जुलाई, दिन- बुधवार। मणिपुर का एक वीडियो वायरल होता है। जिसमें भीड़ दो कुकी महिलाओं को निवस्त्र कर सड़क पर परेड कराती नजर आई। कुछ लोग उनसे अश्लील हरकतें करते दिखे। इसे देख कलेजा कांप गया। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही स्वत: संज्ञान लिया था। और कहा था कि वीडियो देखकर हम बहुत परेशान हुए हैं। सरकार को वक्त देते हैं कि वो एक्शन ले, नहीं तो हम एक्शन लेंगे।

मणिपुर में ‘यौन उत्पीड़न की घटनाओं और चल रही हिंसा’ की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में एक इंडिपेंडेंट एक्टपर्ट कमेटी बनाकर जांच करने की मांग की गई है।

याचिका एडवोकेट विशाल तिवारी ने दायर की है। इसमें कहा गया है, मणिपुर में कानून के शासन और भारतीय संविधान के दर्शन का उल्लंघन हुआ है। मणिपुर के विभिन्न जिलों जैसे चुराचांदपुर, इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, बिष्णुपुर में हिंसा और आगजनी की सूचना मिली है। महिलाओं का रेप हो रहा है। यौन उत्पीड़न हो रहा है। राज्य में छेड़छाड़, गोलीबारी, बम विस्फोट, दंगों के मामले सामने आए हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 मानवाधिकार उल्लंघन पर रोक लगाते हैं। इस तरह की घटनाएं लोकतंत्र को ख़त्म कर देगी।”

याचिकाकर्ता ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में हाईकोर्ट के आदेश पर हिंसा फैलने के संबंध में निष्क्रियता का आरोप लगाया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को ‘अनुसूचित जनजाति’ का दर्जा देने पर विचार करने का निर्देश दिया था। याचिका के मुताबिक सरकारों ने मैतेई, कुकी और नागा समुदायों के बीच हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं की। याचिकाकर्ता ने कहा, “यूरोपीय संसद जैसे विदेशी अंतरराष्ट्रीय फोरम में भी इस मामले पर चर्चा हुई। लेकिन भारतीय संप्रभु मशीनरी इस पर चुप है। न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने कोई उचित कदम उठाया।

याचिका में ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2008 के फैसले का जिक्र है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज न करना जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और न्याय तक पहुंच का उल्लंघन है। याचिका में अदालत से तुरंत दखल देने को कहा गया है।

याचिका में कहा गया कि मणिपुर पुलिस ने सोशल मीडिया पर इस घटना को अपहरण, गैंगरेप और मर्डर का केस बताया है। जब पुलिस के सामने कोई संज्ञेय अपराध की जानकारी आती है तो पुलिस का कर्तव्य है कि वो एफआईआर दर्ज करे। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने सीबीआई को मणिपुर में चल रही हिंसा के संबंध में एफआईआर दर्ज करने, पीड़ितों के बयान दर्ज करने, जांच शुरू करने और चार्जशीट तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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