बनारस में विश्वनाथ कॉरिडोर के बाद जगन्नाथ कॉरिडोर, ध्वस्तीकरण की नोटिस से उग्र लोगों ने मोदी के प्रचार में आए बीजेपी विधायक को घेरा

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बनारस। साल 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच अगर किसी शहर की शक्ल में फ़र्क़ दिखता है तो उसमें एक वाराणसी भी है। विश्वनाथ मंदिर परिसर के सुंदरीकरण के बाद मोदी-योगी सरकार ने गुपचुप तरीके से जगन्नाथ कॉरिडोर बनाने की योजना बनाई है। बनारस के अस्सी और नगवा इलाके के करीब तीन सौ घरों पर सरकारी मुलाजिमों ने लाल निशान लगा दिया है। इस फ़ैसले से हजारों लोग आहत हैं। खासतौर पर वो लोग जो अपने पुराने काशी की गलियों वाले रहन-सहन और खान-पान की संस्कृति को नष्ट होता नहीं देख पा रहे हैं। जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए जिन लोगों के मकानों को खाली करने का हुक्म दिया गया है वो काफी चिंतित, असहज और काफी गुस्से में हैं।

अस्सी के इसी रास्ते पर है प्राचीन जगन्नाथ मंदिर

पीएम नरेंद्र मोदी 14 मई 2024 को अपना नामांकन-पत्र दाखिल करने बनारस आ रहे हैं। इसी दिन वह रोड शो भी करेंगे। बनारस शहर में मोदी के प्रचार के लिए बीजेपी नेताओं की मुहल्लेवार ड्यूटी लगाई गई है। बनारस का अस्सी और नगवा मोहल्ला कैंट विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इलाकाई विधायक सौरभ श्रीवास्तव 07 मई 2024 को अपने समर्थकों के साथ नरेंद्र मोदी के प्रचार नगवा इलाके में पहुंचे तो उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा। उग्र भीड़ ने उन्हें घेर लिया और उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। नगवां इलाके के ने विधायक और उनके समर्थकों को घेरकर खूब खरी-खोटी सुनाई। साथ ही वापस जाओ के नारे भी लगाए। बीजेपी विधायक सौरभ श्रीवास्तव के विरोध का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, मंगलवार को विधायक सौरभ श्रीवास्तव और उनके समर्थक टोपी पहनकर मोदी की गारंटी का पर्चा बांट रहे थे। उन्हें देखते ही लोग घरों से निकल आए और विरोध शुरू कर दिया। लोगों ने विधायक सौरभ श्रीवास्तव को चारों ओर से घेर लिया। आरोप लगाया कि जगन्नाथ कॉरिडोर के नाम पर सरकार उन्हें उजाड़कर गुजरातियों को बसाना चाहती है। हमारे पूर्वजों ने 70 से 80 साल से अपनी मेहनत की कमाई से जमीन खरीदी और मकान बनाया। अब वो हमारी जमीन फर्जी तरीके से हड़प लेना चाहते हैं। जिसे वोट देकर हम सत्ता और सरकार में लाए, वही हमें उजाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए नगवा और अस्सी इलाके में सर्वे कराया जा रहा है। सड़कों को चौड़ा करने लिए सरकार बगैर मुआवजा दिए लोगों को बेदखल करने पर उतारू है। जब से सर्वे शुरू हुआ है तब से लोगों का सुख-चैन छिन गया है।

पावन पथ का मोदी ने किया था लोकार्पण

बीजेपी विधायक सौरभ श्रीवास्तव करीब एक घंटे तक लोगों को समझाने की कोशिश करते रहे। गुस्साये लोग उनके वादों को फर्जी और झूठ करार देते रहे। आक्रोशित नागरिकों ने विधायक के समर्थकों की टोपी भी उतार दी। बाद में विधायक से जगन्नाथ कॉरिडोर के जद में आने वाले लोगों को लिखित आश्वासन लिया। साथ ही अफसरों से फोन कर जनता की बात सुनने का निर्देश दिया।

क्यों घेरे गए विधायक

बीजेपी विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने स्थिति को संभालते हुए नाराज लोगों को शांत कराने के लिए यकीन दिलाया कि वो किसी का घर नहीं टूटने देंगे। इसके बाद माहौल कुछ सामान्य तो होने लगा, लेकिन लोगों का गुस्सा पूरी तरह शांत नहीं हो सका। लोगों का कहना था कि विधायक अभी हमें लिखकर दे देंगे और बाद में आश्वासन से मुकर जाएंगे। सरकारी फरमान से परेशान लोग ही मारे जाएंगे और विधायक नहीं आएंगे। जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए तीन सौ परिवारों को उजड़ा गया तो करीब दो हजार लोग बेघर हो जाएंगे। विधायक का घेराव करने वालों ने यहां तक कहा कि बीजेपी नेता अपनी काली कारगुजारियों छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। वो अबकी बीजेपी को वोट नहीं देंगे। अलबत्ता बीजेपी प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को हराने के लिए चुनाव प्रचार भी करेंगे। बनारस की गलियों में जाकर लोगों को यह बताएंगे कि बीजेपी विकास नहीं, विनाश करने वाली पार्टी है।

काफी जद्दोजहद के बाद बीजेपी विधायक ने चबूतरे पर बैठकर नगवां इलाके के लोगों को लिखित आश्वासन दिया कि, ग्रीन बेल्ट और जगन्नाथ कॉरोडर में गलत तरीके से चिन्हित मकानों व भूभागों का सरकारी दस्तावेज व रिकार्ड में ब्योरा हर हाल में सही करवाएंगे। यहां जो भी योजना बना रही है उसे निरस्त कराया जाएगा। सौरभ ने इस मामले में बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा समेत कई अफसरों से बात की। इसके बाद लोगों ने विधायक का घेराव खत्म किया।

विधायक का घेराव और प्रदर्शन का नेतृत्व मझीललका दीक्षित, राघवेंद्र पांडे, ननकू, कौशलेंद्र पांडे, नीरज, अभिषेक मिश्रा का कहना था कि हमारे पूर्वजों जमीन खरीदकर मकान बनवाया था, जिसे तोड़ने के लिए लाल निशान लगाए गए हैं। हमें लोगों को उजाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह कहां तक उचित है? जगन्नाथ कारिडोर के लिए सर्वे और घरों पर बुल्डोजर चलवाए जाने की आशंका जताते हुए हिमांशु मिश्र ने समूचे खेल के पीछे कैंट से विधायक सौरभ श्रीवास्तव को जिम्मेदार बताया। कहा, “चुनाव सिर पर है, इसलिए वो गली-गली घूम रहे हैं। चुनाव बीतते ही वो हमें पहचानेंगे ही नहीं।”

गणेश नारायण तिवारी कहते हैं, “जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए सर्वे को लेकर नगवा इलाके के लोग कई मर्तबा विधायक से मिले, लेकिन उन्होंने कभी ठोस जवाब नहीं दिया। चुनाव सिर पर है तो वो गली-गली परेड कर रहे हैं। शायद बीजेपी ने विधायकों को अल्टीमेटम दे दिया है कि अबकी जिस विधानसभा में बीजेपी को कम वोट मिलेगा, वहां के विधायक को साल 2027 में विधानसभा का टिकट नहीं मिलेगा। इसलिए लिए वो दिन-रात मोदी को जिताने के लिए दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन अबकी बीजेपी की स्थिति पहले जैसा नहीं है।”

बनारस के एसडीएम सदर का आदेश

बनारस के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर प्रशासन ने अस्सी इलाके के नगवां मुहल्ले में जगन्नाथ कारिडोर की एक बड़ी कार्ययोजना बनाई है। लोकसभा चुनाव के चलते जगन्नाथ कारिडोर के लेआउट को फिलहाल गोपनीय रखा गया है। यही वजह है कि नगवां मुहल्ले के करीब तीन सौ से अधिक घरों में रहने वाले लोगों को बुल्डोजर चलने का डर सता रहा है। इनमें तमाम ऐसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने बैंक से लोन लेकर अपना आशियाना बनवाया है। अस्सी घाट के किनारे जगन्नाथ कॉरिडोर का निर्माण कराने के लिए मकानों को चिह्नित कर लिया गया है। तमाम मकानों पर निशान लगा दिए गए हैं। लोग आशंका जता रहे हैं कि चुनाव के नतीजे आने के बाद सबसे पहले बनारस के नगवा में ही बुल्डोजर गरजेंगे।

जगन्नाथ कॉरिडोर के पीछे की कहानी

बनारस जिला प्रशासन ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर जगन्नाथ कॉरिडोर की कार्ययोजना बनाई है। बताया जा रहा है कि बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर अस्सी-नगवां के बीच एक बड़े इलाके में जगन्नाथ कॉरिडोर का खाका खींचा गया है। पीड़ित परिवारों का आरोप है कि बनारस प्रशासन फोकट में उनसे उनका मकान छीन लेना चाहता है। जमीन हथियाने के लिए कोलकाला ब्लाक- 78 निवासी तथाकथित प्रेम नारायण पुत्र श्रीप्रकाश की ओर से बनारस के एसडीएम सदर के यहां एक याचिका दायर की गई। यह याचिका भी उसी तरह दाखिल की गई, जैसे सर्वे सेवा संघ हथियाने के लिए अनाम व्यक्ति की ओर से दाखिल की गई थी। प्रेम नारायण बनाम सरकार की याचिका पर 23 जनवरी 2023 को सुनवाई हुई, जिसकी वाद संख्या 35498/2023 है।

मजेदार बात यह है कि वादी प्रेमनारायण एसडीएम सदर कोर्ट में कभी हाजिर हुआ ही नहीं हुआ और उसके पक्ष में फैसला भी आ गया। अभी यह तक पता नहीं चल पाया है कि वो वास्तविक व्यक्ति है अथवा छद्म नाम से किसी ने मुकदमा दायर किया है? कहा जा रहा है कि जिस तरह से छद्म नाम से की गई शिकायत के आधार पर सर्व सेवा संघ की समूची संपत्ति रेलवे के हवाले कर दी गई, कुछ उसी तरह का खेल नगवां में शुरू हो गया है।

सालों पुरानी रजिस्ट्री के अभिलेख

72 वर्षीय बुजुर्ग पत्रकार जयनारायण मिश्र कहते हैं, ” वादी प्रेम नारायण पक्ष के कोर्ट में हाजिर हुए बगैर ही यह मामला एसडीएम कोर्ट में तेज रफ्तार से दौड़ना शुरू हुआ। एसडीएम सदर ने प्रेम नारायण पुत्र श्रीप्रकाश मामले में तहसीलदार को आख्या देने का निर्देश दिया। तहसीलदार ने 2 मार्च 23 को इस मामले को आगे बढ़ाते हुए नायाब तहसीलदार को और नायाब तहसीलदार ने तत्काल राजस्व निरीक्षक और लेखपाल भदैनी से आख्या मांगी। दोनों सरकारी नुमाइंदों ने मार्च 2023 में ही जांच के बाद अपनी आख्या दे दी। इसी के बाद पीड़ितों को नोटिसें मिलने लगीं।”

नगवा में सबसे पहले दो लोगों को नोटिस मिला, जिनमें एक राजकुमार पटेल पुत्र रामचरण दास और दूसरे हैं राम अधार सिंह। दोनों लोगों ने अपने अधिवक्ताओं के मार्फत 19 जनवरी 2024 को एसडीएम सदर सार्थक अग्रवाल की कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। एसडीएम ने उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को देखा और सुना। पीड़ित पक्ष ने वादी को कोर्ट में हाजिर करने की मांग उठाई, लेकिन एसडीएम सदर सार्थक अग्रवाल ने 9 फरवरी 2024 को वादी प्रेम नारायण के पक्ष में फैसला सुना दिया।

क्या है फैसले में ?

एसडीएम सदर सार्थक अग्रवाल ने वाद संख्या 35498/2023 में 09 फरवरी को अंतिम आदेश देते हुए कहा कि कोलकाता निवासी रामनारायण पुत्र श्रीप्रकाश के प्रार्थाना-पत्र के अंतर्गत दफा-32/38 में राजस्व संहिता प्रस्तुत करते हुए कहा कि बनारस के परगना देहात अमानत के अराजी नंबर-3302, 3303, 3308 और 3337 पूर्व में सार्वजनिक उपयोग की जमीन थी। इसका व्योरा साल 1291 फसली के खसरा अंकित है।

एसडीएम ने अंतिम आदेश देते जो फैसला सुनाया उसमें कहा गया है कि आपत्तिकर्ता राम अधार सिंह पुत्र स्व. छेदी सिंह मोहल्ला-नगवा की 19 जनवरी 2024 की आपत्ति बलहीन है। तहसीलदार सदर की आख्या दिनांक 23 फरवरी 2023 स्वीकार की जाती है। तदनुसार पहगना देहात अमानत तहसील सदर में स्थित अराजी संख्या अराजी नंबर-3302, 3303, 3308 और 3337 अंकित वर्तमान प्रविष्टि त्रुटिपूर्ण होने के कारण निरस्त कर 1291 फसली खतौनी में अंकित प्रविष्टि बहाल करते हुए प्रश्नगत अराजी संख्या 1291 फसली में अंकित प्रविष्टि के आधार पर संबंधित खाते में दर्ज किया जाए। साथ ही तहसीलदार की 2 मार्च 2023 की आख्या का आदेश अंकित कर आवश्यक कार्यवाही हेतु पत्रावली अभिलेखागार में दाखिल की जाए।

जगन्नाथ मंदिर के पूर्वी हिस्से में की जमीन के बाद नाला है जो गंगा नदी में मिलता है। वो नाला अब बंद कर दिया गया है। वहां से गंगा घाट जाने का रास्ता भी बंद कर दिया गया है। उस रास्ते को रविदास पार्क के बगल से खोल दिया गया है। यह जमीन अब खाली हो गई है, जिस पर कब्जा किया जाना है। नगवां नाले के उस पार बड़े हनुमान का मंदिर है। इस मंदिर के बाद गंगा किनारे की जमीन पर राम अधार सिंह मुकदमा लड़ रहे हैं। नगवां मुहल्ले के तमाम लोग एसडीएम पर आरोप लगा रहे हैं कि सारी चीजों को एक साथ करके घालमेल कर दिया गया है।

वरिष्ठ पत्रकार जयनारायण मिश्र कहते हैं कि जगन्नाथ कॉरिडोर तो एक बहाना है। इस कॉरिडोर के जरिये गुजरातियों को यहां बसाना है। जनचौक से बातचीत में वह कहते हैं, “वादी प्रेमनारायण नाम के आदमी का कोई वजूद नहीं है। उसका पता भी संदिग्ध है। सुनवाई के दौरान किसी तारीख पर वह उपस्थित भी नहीं हुआ। चंद दिनों के अंदर जांच आख्या मंगवाकर त्वरित फैसला सुना दिया जाना किसी के गले से नीचे नहीं उतर रहा है।”

“जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए जिन लोगों को नोटिसें मिली हैं उन लोगों में एसडीए सदर के इस फैसले पर कोर्ट में आपत्ति लगाई है। साथ ही यह भी कहा है कि सिविल वाद के मामले में एसडीएम कोर्ट को फैसला सुनाने का कोई अधिकार है ही नहीं। एसडीएम सिर्फ राजस्व के मामलों का निस्तारण कर सकते हैं। हमारा परिवार आजादी के पहले से ही यहां काबिज है। सभी के मकान बन गए हैं। हजारों लोग मौके पर आबाद हैं। “

सुंदरीकरण के बाद मंदिर का दरवाजा

जयनाराण यह भी कहते हैं, “नगवा इलाके के छह एकड़ जमीन को जबरिया जगन्नाथ कॉरिडोर के नाम पर हड़पे जाने की साजिश की जा रही है। तीन सौ परिवारों के उजड़ने की आशंका है। हमें लगता है कि अगर बीजेपी सरकार सत्ता में आती है तो हमारी जमीनों पर बुल्डोजर चलते देर नहीं लगेगी। जिन लोगों के सिर पर उजाड़े जाने की तलवार लटक रही है वो इस बार बीजेपी नेताओं को इलाके में चुनाव प्रचार नहीं करने देंगे। नगवा इलाके को लोग इस चुनाव में मोदी का बायकाट करेंगे।”

“जगन्नाथ मंदिर परिसर में कई परिवार पचास से सौ सालों से रह रहे हैं। अगर जगन्नाथ मंदिर को छोड़कर सभी को उजाड़ दिया गया तो गंगा के किनारे से जगन्नाथ कॉरिडोर आकार ले लेगा। अवैध कब्जा बताकर सरकार जमीन खाली करा लेगी और किसी को मुआवजा भी नहीं देना पड़ेगा। साथ ही सापुरी परिवार एकाएक फोकस में आ जाएगा। ट्रस्ट की आमदनी भी बढ़ जाएगी।”

किसका है जगन्नाथ मंदिर

जगन्नाथ मंदिर का संचालन बनारस का एक कारोबारी शापुरी परिवार करता रहा है। यह मंदिर ट्र्स्ट जगन्नाथ जी के नाम पंजीकृत है। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी बनारस में लोकसभा चुनाव लड़ने गुजरात से यहां आए उस समय उनका बनारस में उनके चुनाव संचालन की जिम्मेदारी बीजेपी के नेता रहे सुनील ओझा के कंधे पर थी। सुनील ओझा गुजरात के भावनगर सीट से दो बार विधायक रह चुके थे। हाल ही में बीमारी से उनकी मौत हो गई थी। मोदी के चुनाव जीतने के बाद वो काशी में ही रह गए और पीएम का काम देखने लगे। बाद में पार्टी ने उन्हें यूपी का सह प्रभारी नियुक्त कर दिया।

सफाई के बाद मंदिर का कुंड

दरअसल, सुनील ओझा गंगा के किनारे अपना एक बड़ा और आलीशान आश्रम बनाना चाहते थे। इसीलिए वो जमीनें ढूंढ रहे थे। इसी बीच सुनील ओझा बनारस के कारोबारी दीपक शापुरी के संपर्क में आए। दो-तीन लोगों के साथ वो मौके पर पहुंचे और जगन्नाथ मंदिर व उसके परिसर को घूमकर देखा। इसी दौरान उन्होंने मंशा जताई कि उन्हें गंगा के किनारे अपना एक आश्रम बनाने के लिए बड़ी जगह की तलाश है। ओझा कुछ दिनों तक दीपक शापुरी के आवास पर ठहरे भी।

जगन्नाथ मंदिर में में पूजा-पाठ की व्यवस्था शापुरी परिवार ही करता है। जगन्नाथ मंदिर का परिसर करीब ढाई एकड़ का है। उसी समय से मंदिर परिसर के कुछ हिस्से के अलावा उसके दक्षिण और पूरब की तरफ लगे करीब चार एकड़ जमीन को किसी तरह से खाली कराने की योजना बनी। बाद में कथित कोलकाता निवासी प्रेमनारायण की ओर से याचिका दायर की गई।

शापुरी परिवार है ट्रस्टी

जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्टी दीपक शापुरी मुख्य ट्रस्टी है। चौक के पास बांसफाटक पर पहले उनका दीपक सिनेमा हुआ करता था। दीपक की गिनती बनारस के रईस कारोबारियों में की जाती है। जनचौक ने उनका पक्ष जानने चाहा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि, “जगन्नाथ मंदिर हमारा है। पूजा-भोग का इंतजाम हमीं कराते हैं। पिछले साल प्रशासन की देखरेख में पर्यटन विभाग ने मंदिर प्रागण में विकास कार्य कराया था। इससे अधिक हमें कुछ नहीं पता। यह भी नहीं मालूम की प्रशासन की मंशा क्या है और वो क्या करना चाहता है।”

जगन्नाथ मंदिर का मुख्य गेट जो बदहाल है

अस्सी के जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ, सुभद्रा और बल्लभ की मूर्तियां हैं। इसी मंदिर में स्थापित जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है और रथयात्रा पर तीन दिनों तक मेला भी लगता है। रथयात्रा के पास बेनी साव का बगीच था। वहां अब एक विशाल कालोनी बस गई है। भगवान जगन्नाथ की यात्रा अस्सी उठकर जाती है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, बेनी साव के बगीचे में भगवान जगन्नाथ विश्राम करते हैं। फिर सुबह श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। यदि जगन्नाथ मंदिर को छोड़कर बाकी सभी उजाड़ दिया जाए वह जगह खाली हो जाएगी और गंगा के किनारे से जगन्नाथ कॉरिडोर आकार ले लेगा।

नगवां निवासी गोलू मिश्रा कहते हैं, “हमें लगता है कि बीजेपी नेता सुनील ओझा ने ही एसडीएम कोर्ट में फर्जी मुकदमा दाखिल कराया था। वह कभी एसडीएम कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ, फिर भी फैसला उसके पक्ष में सुना दिया गया। यह जानने की कोशिश भी नहीं की गई कि अमुक आदमी जिंदा है अथवा नहीं। मुकदमे की फाइल में वादी प्रेमनारायण का आधार कार्ड तक नहीं है, जबकि अदालतें इन दिनों हर मामले में इसे अनिवार्य रूप से लगवा रही हैं।”

“जगन्नाथ मंदिर का परिसर करीब 2.52 हेक्टेयर में है, जिसका अराजी नंबर 3302 है। इसमें 1.72 एकड़ में भूमि अंकित है। जगन्नाथ मंदिर के पीछे 0.80 एकड़ जमीन सार्वजनिक उपयोग की बताई गई है। एसडीएम सदर ने पांचों अराजी को एक में मिला दिया है। नगवां निवासी राम अधार सिंह पहसे से ही मुकदमा लड़ रहे हैं। उसी आधार पर वह कोर्ट में पेश हुए और अपना पक्ष प्रस्तुत किया था, जिसे एसडीएम ने खारिज कर दिया। बीजेपी सरकार की नीयत साफ नहीं है। अवैध कब्जा का फैसला सुनाकर वो जमीन हड़प लेना चाहती है। कारिडोर के लिए जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट को मुआवजा भी नहीं देना पड़ेगा।”

विस्थापन के भय से नगवां इलाके के लोग भयभीत हैं। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए। यह मामला अभी हाईकोर्ट में है। नगवा मुहल्ले के करीब दो हजार लोग परेशान हैं। इलाके में रहने वाले गरीबों का कोई पुरसाहाल नहीं है। पर्यटन विभाग ने करीब नौ करोड़ रुपये की लागत से जगन्नाथ मंदिर परिसर में टाइल्स और लाइटें लगवाई हैं। मंदिर का सुदरीकरण कराया गया है। पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। सुंदरीकरण कराते समय वहां सफाई अभियान चलाया गया था और करीब 152 ट्रैक्टर मलबा हटवाया गया था।

जगन्नाथ मंदिर का एक रास्ता यह भी जिसे होटल वालों ने कब्जा लिया है

जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए जमीन को सार्वजनिक घोषित कर ध्वस्तीकरण का कार्रवाई शुरू किए जाने की तैयारी है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगर मोदी सरकार सत्ता में आती है तो सबसे पहला काम जगन्नाथ कारिडोर के लिए ध्वस्तीकरण का काम शुरू होगा। पीड़ितों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए इस में मामले में राहत की मांग उठाई है। कोर्ट की आदेश की कॉपी लेकर पीड़ित परिवार अफसरों और सत्तारूढ़ दल के नेताओं के यहां दौड़ रहे हैं, लेकिन कहीं से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। इस सिलसिले में एसडीएम से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका पक्ष नहीं मिल पाया। अगर उनका कोई पक्ष आएगा तो उसे भी रिपोर्ट में नत्थी किया जाएगा।

पीड़ितों की उड़ गई है नींद

जगन्नाथ कारिडोर से प्रभावित कौशलेंद्र पांडे पांडेय कहते हैं, “जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए जब से सर्वे का काम चल रहा है, तब से मोहल्ले के लोगों का सुख छिन गया है। नगवा मुहल्ले की सब्जी विक्रेता कलावती की सदमें से मौत हो गई। समाजसेवी रामयश मिश्र ने कहा कि, “हम किसकी बात पर विश्वास करें। एक तरफ तो बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा हम लोग से कह रहे हैं कि आप लोग कोर्ट जाइए, हम अपना काम कर रहे हैं, दूसरी ओर बीजेपी विधायक आश्वासन दे रहे हैं कि हम तोड़फोड़ नहीं होने देंगे। आखिर हम किसकी बात पर भरोसा करें। “

अस्सी क्षेत्र के नागरिक बीएचयू में वेद विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उपेंद्र कुमार त्रिपाठी भी रहते हैं। वह कहते हैं, “अस्सी-नगवा क्षेत्र के लगभग 300 मकानों को एसडीएम सदर द्वारा फर्जी तरीके से नाम काटकर उसे सार्वजनिक जमीन घोषित कर दिया गया है। यहां तक की कुछ दिनों पूर्व कमिश्नर कौशल राज शर्मा एसडीएम सदर सार्थक अग्रवाल ने क्षेत्र में आकर सर्वे भी किया। लोगों का कहना है कि जगन्नाथ कॉरिडोर के नाम पर हम लोगों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है हम लोग 70– 80 साल से अपने मेहनत की कमाई से जमीन खरीद कर मकान बना कर रह रहे हैं और हमें सरकार उजाड़ने का प्रयास कर रही हैं। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार उनके पूर्वजों द्वारा जमीन खरीद के मकान बनवाया गया और आज हम लोगों को सरकार हमारे ही घर से उजाड़ने का प्रयास कर रही है।”

जगन्नाथ कारिडोर के लिए सर्वे को लेकर स्थानीय नागरिक हिमांशु मिश्र काफी गुस्से में दिखते हैं। वह कहते हैं, “साल 2014 में नरेंद्र मोदी पहली मर्तबा चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने दावा किया कि वो काशी को क्योटो बनाएंगे, लेकिन व्यापारिक स्थल बना दिया। विश्वनाथ कारिडोर में सेल्फी प्वांइंट और नमो घाट को पिकनिक स्पाट बना दिया। व्यापारियों को पैसा दिलवाकर होटल खुलवा दिया है। होटलों का किराया महंगा हो गया। पांच रुपये वाली चाय 15 की हो गई। समूचा अस्सी मोहल्ला जाम से कराह रहा है। लोग दहशत में हैं। जो लोग यहां पचास साल से आबाद हैं और कई लोग पीढ़ियों से रह रहे हैं, वो आखिर कहां जाएंगे? “

“विश्वनाथ मंदिर की तरह यहां भी कॉरिडोर बनाया गया तो जगन्नाथ मंदिर का हाल भी वैसा ही होगा। लगता है कि कुछ लोग बनारसियों को भगाकर यहां गुजरातियों को बसाना चाहते हैं। गंगा में क्रूज चलवा रहे हैं, जिनका संचालन गुजराती कर रहे हैं। आधी रात तक रेस्टोरेंट खुल रहे हैं और हुक्का बार भी। सरकार बनारस की कालजयी संस्कृति पर हमला कर बनारसियों को उजाड़ना और गुजरातियों को बसाना चाहती है।”

बनारस में गुजरातियों का सिंडिकेट

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “बनारस में गुजरातियों का सिंडिकेट काम कर रहा है। बाहुबलियों को मिलाकर वो काम करा रहे हैं। ये लोग झूठ का व्यापार कर रहे हैं। गरीबों को उजाड़ रहे हैं। बनारसियों को उजड़ा जा रहा है। बनारसी जहां भी रहेंगे अपने मिजाज से रहेंगे। अपने मिजाज के साथ रहेंगे। पूरे काशी के स्वरूप को नष्ट करना चाहते हैं। क्रूज भी गुजराती ही संचालित कर रहे हैं। कुछ लोग मुफ्त वाली खिचड़ी खाते हैं और घाट पर सोते हैं। गाहे-बगाहे काम भी कर लेते हैं। यह सरकार हृदयहीन है। बनारसियों को खदेड़कर भगा रही है। इस चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी का कड़ा विरोध होगा। बीजेपी को लोग तभी वोट देंगे जब वो मंच से ऐलान करेंगे कि जगन्नाथ कारिडोर के सालों से रह रहे लोगों की जमीने जबरिया नहीं हथियाई जाएंगी।”

“बनारस की संकरी गलियां भक्तों के लिए जगह और सुविधाओं की चुनौती पेश करती हैं। भोजन और पानी के सीमित विकल्प हैं। शौचालय लगभग नहीं हैं। जगह को खाली करने की जटिलताओं के कारण, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना को स्थगित कर दिया था, लेकिन बीजेपी सरकार ने 250 से अधिक मंदिरों को बेरहमी के साथ तोड़वा डाला। जनादेश से लैस और पुजारी से नेता बने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी की मौजूदा सरकार ने जगन्नाथ कारिडोर बनाने की योजना लेकर आगे बढ़ रही है। ऐसे में हजारों लोगों को अपनी इच्छा के विरुद्ध अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। मंदिरों के कथित विनाश के कारण मोदी की तुलना मुगल सम्राट औरंगजेब से की जाने लगी है, जिसे लोकप्रिय कल्पना में अक्सर मंदिरों के विनाश से जोड़ा जाता है।”

ये विकास नहीं, विनाश का मॉडल है

राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “अस्सी मोहल्ले में भीड़-भड़क्का से स्थानीय लोग काफी परेशान हैं। सड़कों के किनारे बेतरतीब खड़ी होने वाली बाइकों और गाड़ियों के चलते पैदल चलना मुश्किल हो गया है। बनारस में विकास नहीं, विनाश मॉडल दिख रहा है। दारू और भांग के ठेके खुल गए हैं। पुलिस ध्यान नहीं दे रही है। रात के अंधेरे में हुक्का बार चल रहे हैं। लड़के लड़कियां अय्याशी कर रहे हैं। धर्म नगरी और धंधेबाजों की नगरी बन गई है। 25-25 हजार रुपये कमरों का किराया हो गया है। लूट का धंधा खड़ा हो गया है। आने वाली पीढ़ी को चरित्रहीन और विकलांग बनाया जा रहा है। असली बनारसीपन को मिटाया जा रहा है।”

बाबा विश्वनाथ के दैनिक दर्शनार्थी वैभव त्रिपाठी नए जगन्नाथ कॉरिडोर के लिए सर्वे शुरू किए जाने के निर्णय को तुगलकी करार देते हैं। वह कहते हैं, “पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग काशी की सीमाओं के भीतर मर जाते हैं उन्हें मोक्ष या मुक्ति मिलती है। बहुत से लोग मोक्ष की कामना के साथ काशी में बसे। बनारस के लोग अब खुद को शक्तिहीन महसूस कर रहे हैं। उनको जो करना था कर चुके हैं। इस बार सत्ता में आएंगे तब बनारस में क्या बचेगा, क्या चला जाएगा, कुछ भी कह पाना आसान नहीं है। इस सरकार ने काशी की शैली, गलियां, मंदिर, मकान और संस्कृति का विनाश कर दिया है। पर्यटक आपकी सड़कें देखने आते हैं क्या? मोदी सरकार ने भगवान शिव की नगरी को नष्ट किया है। अबकी महादेव उन्हें सबक सिखाएंगे। मुझे उम्मीद है कि इस चुनाव में काशी की जनता उनके झूठ का जबाव जरूर देगी।”

वैभव कहते हैं, “विश्वनाथ कॉरिडोर के चलते बनारस का सारा कारोबार चौपट हो गया है। मुर्दों की आवाजाही तक रोक दी गई है। पता नहीं कौन सा विकास हो रहा है काशी का विनाश कर के, किसके लिए हो रहा है। लोगों को लगने लगा है कि मोदी-योगी हिन्दू हैं ही नहीं। औरंगजेब से भी बुरे हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर से सटे इलाके में रहने वाले लोगों से पूछिए कि कितनी मूर्तियां तोड़ी गईं। बनारस की धरोहरें नष्ट की जा रही हैं। अबकी तो बाबा विश्वनाथ ही इन्हें दंड देंगे।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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