Friday, April 26, 2024

पुलवामा हमले में सुरक्षा चूक और खुफिया विफलता पर प्रधानमंत्री की चुप्पी निंदनीय

करन थापर और फिर रवीश कुमार को दिए अपने इंटरव्यू में जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले में यह खुलासा करके कि “सीआरपीएफ द्वारा जवानों को सड़क मार्ग के बजाय एयर लिफ्ट करके ले जाने के प्रस्ताव को गृह मंत्रालय ने मंजूरी नहीं दी और सीआरपीएफ के कनवॉय को तब मजबूरी में सड़क मार्ग से ले जाना पड़ा, जिससे पुलवामा हादसा हुआ और 40 जवानों की जान चली गई।” जब यह बात सत्यपाल मलिक के अनुसार, उन्होंने प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए को बताया तो, उनसे प्रधानमंत्री और एनएसए, दोनों ने चुप रहने के लिए कहा।

इस इंटरव्यू और खुलासे पर विवाद उठना ही था और उठा भी और अब सवालों के घेरे में प्रधानमंत्री खुद हैं। हालांकि पीएम अभी खामोश हैं और सरकार की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया अभी नहीं आई है, पर सुरक्षा विशेषज्ञ और विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रिया बराबर आ रही है। विपक्ष के आरोप और प्रतिक्रिया को उनका राजनीतिक कदम कहा जा सकता है, पर अब तक की सबसे महत्वपूर्ण और एक्सपर्ट प्रतिक्रिया पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल शंकर रॉय चौधरी की आई है और उनकी बात को राजनीतिक बयानबाजी कह कर दरकिनार नहीं किया जा सकता है।

देश के 18वें थल सेनाध्यक्ष जनरल शंकर रॉय चौधरी ने रविवार को द टेलीग्राफ से बात करते हुए कहा कि “पुलवामा नरसंहार को टाला जा सकता था, अगर सीआरपीएफ के जवानों ने हमेशा ‘कमजोर’ विकल्प वाली सड़क मार्ग से मूवमेंट के बजाय हवाई मार्ग से श्रीनगर की यात्रा की होती तो।”
पूर्व सेना प्रमुख आगे कहते हैं कि “इतने बड़े काफिले (78 वाहनों में 2,500 से अधिक जवानों को ले जाने वाले) को पाकिस्तान की सीमा के इतने करीब स्थित राजमार्ग से नहीं ले जाया जाना चाहिए था।”

जनरल रॉय चौधरी का बयान न तो किसी राजनेता का बयान है और न ही यह किसी सामान्य व्यक्ति का बयान है, यह बयान पूर्व सेनाध्यक्ष का बयान है जो सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं और ऐसे जोखिम भरे अनेक मामलों से अपने सेवाकाल में निपट चुके होंगे।

पुलवामा हमला फरवरी 2019 में हुआ था। तब पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले में विस्फोटकों से भरी एक कार ने एक बस, जिसमें सीआरपीएफ के जवान बैठे थे, को टक्कर मार दी और उस विस्फोट में 40 जवान मौके पर ही शहीद हो गए थे। विस्फोटक से भरी इस कार के बारे में भी सत्यपाल मलिक ने खुलासा किया कि “वह कार उस इलाके में पहले भी देखी गई थी।” उनके अनुसार “मुख्य मार्ग से मिलने वाली लिंक सड़कों पर कोई भी बैरियर या पुलिस जिप्सी की तैनाती नहीं थी।”

यह एक हैरान कर देने वाला खुलासा है कि इतने संवेदनशील क्षेत्र से सीआरपीएफ का कारवां गुज़र रहा है और कई जगहों पर न तो बैरिकेड लगाए गए और न ही सड़कों और मुख्य मार्ग और उससे मिलने वाली लिंक रोड के जंक्शन पर कोई ड्यूटी ही लगाई गई। एयर लिफ्ट की तो बात ही छोड़ दीजिए, सड़क मार्ग से भी फोर्स के कनवॉय गुजरने के पहले, गुजरने के दौरान और गुजरने के बाद जो एहतियातन सुरक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए थी, वह भी नहीं थी। जबकि यह काफिला जम्मू कश्मीर के भी एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र से गुजर रहा था।

जनरल शंकर रॉय चौधरी ने इसी अखबार से बात करते हुए आगे कहा कि “पुलवामा में जानमाल के नुकसान की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार पर है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सलाह देते हैं। यह एक गंभीर हादसा था। इस घात के पीछे खुफिया विफलता भी थी, जिसके लिए एनएसए को भी इस चूक की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”

यह एक घातक आतंकी हमला था, जिसे नरसंहार या जवानों की सामूहिक हत्या कहना अधिक उचित होगा। पर यही हमला 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए संजीवनी बन गई। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक हुई। इस पर भी सवाल उठे। पुलवामा हमले में हुई सुरक्षा चूक और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक की उपलब्धियों पर भी सवाल उठे। अब पता चल रहा है कि वायुसेना का एक हेलीकॉप्टर तो वायुसेना की गलती से ही उड़ा दिया गया था। यह संदेह तब भी उठा था, पर उन्मादित राष्ट्रवाद की आड़ में न तो सुरक्षा चूक पर कोई जांच हुई और न ही सर्जिकल स्ट्राइक की इस चूक पर।

देश में पहली बार मतदाताओं से अपना वोट बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा सैनिकों को समर्पित करने की अपील के साथ मांगे गए। यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना। चुनाव और उग्र राष्ट्रवाद में पुलवामा हमले में हुई सुरक्षा चूक का मुद्दा जानबूझकर दबा दिया गया। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के इस खुलासे के बाद अब उन दोनों घटनाओं की असलियत सामने आ रही है। पर आज इन्हीं मुद्दों पर 2019 में वोट मांगने वाली भाजपा का एक भी प्रवक्ता मुंह नहीं खोल रहा है।

मैं प्रधानमंत्री जी की बात इसलिये नहीं करूंगा क्योंकि वे ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर पहले भी चुप्पी लगा जाते रहे हैं और अब भी वे खामोश बने हुए हैं। लेकिन सत्यपाल मलिक के ‘द वायर’ के पत्रकार करण थापर को दिए गए इंटरव्यू में इस खुलासे पर कि “केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जवानों को ले जाने के लिए विमान के सीआरपीएफ के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। मैंने इसे उसी शाम पीएम को बताया। यह हमारी गलती है। अगर हमने विमान सीआरपीएफ को दे दिया होता तो ऐसा नहीं होता। तब प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने मुझसे चुप रहने को कहा”। प्रधानमंत्री की चुप्पी पुलवामा हमले में एक गंभीर सुरक्षा चूक की ही नहीं, बल्कि एक बड़ी साजिश का भी संकेत भी देती है।

जनरल रॉय चौधरी, जो नवंबर 1994 से सितंबर 1997 तक सेना प्रमुख थे, ने यह भी कहा कि “जम्मू और श्रीनगर के बीच अंतरराज्यीय राजमार्ग पर चल रहे सीआरपीएफ के एक काफिले पर पुलवामा में मुजाहिदीन के एक समूह द्वारा घात लगाकर हमला किया गया था। अगर सैनिकों ने हवाई यात्रा की होती तो जानमाल के नुकसान को टाला जा सकता था। राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने वाले सभी बड़े वाहन और काफिले हमेशा हमले की चपेट में रहते हैं। सैनिकों को हवाई जहाज से ले जाना स्पष्ट रूप से अधिक सुविधाजनक और कम थकाने वाला होता।”

40 से अधिक वर्षों के एक विशिष्ट सैन्य करियर में जनरल रॉय चौधरी ने 1991 और 1992 के बीच जम्मू और कश्मीर में 16वीं कोर की कमान संभाली थी। जनरल ने कहा कि “जिस क्षेत्र में पुलवामा हमला हुआ वह हमेशा सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक बेहद ‘कमजोर क्षेत्र’ रहा है।” यहां कमज़ोर से उनका आशय आतंकवाद की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र रहा है।

उन्होंने कहा कि “जम्मू में सांबा (सतवारी हवाईअड्डे से 31 किमी) तक जाने वाली सड़क घुसपैठ के कारण हमेशा असुरक्षित रहती है। जितना अधिक ट्रैफ़िक आप अंतरराज्यीय राजमार्ग पर जाने देते हैं, आप उतना ही उन्हें जोखिम में डाल देते हैं क्योंकि यह इलाका पूरी तरह से पाकिस्तान की सीमा से बहुत दूर नहीं है।”

जनरल रॉय चौधरी ने खुफिया विफलता पर भी अपनी बात कही कि “सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत एक बड़ा नुकसान है। वे जवान जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं। इतने बड़े हमले की कोई अग्रिम सूचना तक खुफिया एजेंसियां एकत्र न कर पाएं यह एक घोर खुफिया विफलता थी।”

14 फरवरी 2019 को पुलवामा में वास्तव में क्या हुआ था और अब सत्यपाल मलिक के बयानों से जुड़ी खबरें मुख्यधारा की मीडिया में लगभग ब्लैकआउट हैं। इस पर सरकार की तरफ से गंभीर चुप्पी है। सत्यपाल मलिक के साक्षात्कार ने पुलवामा नरसंहार पर कई सवाल तो उठाए हैं। इसके बाद पाकिस्तान के बालाकोट क्षेत्र में एक आतंकवादी शिविर पर सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था। इस सर्जिकल स्ट्राइक ने 2019 के चुनावों से पहले इस पूरी कहानी को ही बदल दिया और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक भाजपा के अभियान की धुरी बन गया, जिसने अन्य सभी मुद्दों- जैसे बेरोजगारी और कृषि संकट- को जानबूझकर ठंडे बस्ते में डाल दिया।

पुलवामा हमला कैसे हुआ, इसकी विस्तृत जांच की विपक्ष की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। भाजपा ने इस प्रकार के किसी भी सवाल को “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया। परम विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित जनरल रॉय चौधरी ने पुलवामा पर सरकार की चुप्पी के बारे में पूछे जाने पर साफ और बेलाग शब्दों में कहा कि “यह एक गलती है कि, इससे सरकार अपना हाथ धोने की कोशिश कर रही है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि सैनिकों को विमान द्वारा ले जाया जाना चाहिए था, जो कि नागरिक उड्डयन विभाग, वायु सेना या बीएसएफ के पास उपलब्ध हैं।”

पुलवामा हमला भले ही पाक से आए आतंकवादियों ने किया हो, बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में हमने उनका बदला भी ले लिया हो, पर जिस सुरक्षा चूक के कारण 48 जवानों की मौत हुई, उनके घर उजड़े, उस सुरक्षा चूक की कोई जांच हुई या नहीं? और हुई तो सरकार के कौन-कौन अफसर दंडित हुये?
क्या सरकार के पास विमान नहीं थे, या वे सड़क से ही जोखिम उठाकर इतने जवानों को भेजना चाहते थे, या उन्होंने जोखिम का मूल्यांकन किया ही नहीं यदि किया तो लापरवाही से किया, इन सब मुद्दों की जांच पड़ताल की गई थी या नहीं। यह सारे सवाल सत्यपाल मलिक के इस इंटरव्यू के बाद उठ खड़े होंगे।

बिगुल की लास्ट पोस्ट, धीमी गति का मार्चपास्ट, पुष्प चक्रिका रीथ और जूते के नोक पर टिकी हुयी संगीनों भरी गर्दन झुकी हुयी शोक परेड अंदर से रुलाती रहती है। मौत एक अनिवार्य सत्य है। पर इस तरह टुकड़े-टुकड़े बिखर कर हुयी मौत पर भले ही हम सब राष्ट्र को समर्पित करके औपचारिक शोक संवेदना प्रकट कर, फिर रोजमर्रा के काम में लग जायें, पर यह मौत उस सुरक्षा बल, उस यूनिट और उसके परिवार और मित्रों के मन में जो घाव दे जाती है वह कभी नहीं भरता है।

युद्धों में जितने जवान सुरक्षा बलों के शहीद नहीं होते हैं उससे कहीं अधिक जवान शांति काल में हो रहे प्रच्छन्न युद्ध में मारे जाते हैं और मारे जा रहे हैं। सरकार और राजनीतिक दलों को अपने क्षुद्र राजनीतिक हित को दरकिनार करके कश्मीर की इस त्रासद समस्या का हल ढूंढना होगा। नए और बहादुर जवानों के क्षत-विक्षत शव को टीवी पर देखना दुःखद है।

उम्मीद है सत्यपाल मलिक के इस बयान पर बीजेपी-आरएसएस के प्रवक्ताओं के बजाय सरकार की प्रतिक्रिया आयेगी और उसमें यह बात स्पष्ट होगी कि यदि सीआरपीएफ ने एयर लिफ्ट की सुविधा मांगी थी तो उसे क्यों नही दी गई और इस घातक सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार कौन है?

सरकार को पुलवामा हमले में हुई सुरक्षा चूक पर जवाब देना ही होगा। जांच कर जिम्मेदार अफसरों की जिम्मेदारी निर्धारित करनी होगी। एक्शन में किसी जवान का शहीद हो जाना अलग बात है, पर लापरवाही से एक भी जवान की मृत्यु हो जाय, यह एक गंभीर मामला है। इसका असर संवेदनशील इलाकों में तैनात सुरक्षा बलों के मनोबल पर पड़ सकता है। सरकार इसे गंभीरता से ले।

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस हैं)

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