मोदी आज की परिस्थिति में घबराया हुआ है: सुब्रह्मण्यम स्वामी

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, भाजपा-संघ से एक बार फिर नरेंद्र मोदी के लिए नई चुनौतियां सामने आती जा रही हैं। वो चाहे मंत्रिमंडल में पिछले कई वर्षों से ख़ामोशी से अपना मंत्रालय संभाल रहे केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी हों या 2014 से पहले यूपी से आने वाले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हों। हालांकि राजनाथ सिंह तो अब लगभग पूरी तरह से शिथिल पड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें मोदी खेमे का व्यक्ति समझना एक भूल होगी। जहां तक नितिन गडकरी का प्रश्न है वे समय आने पर बगावती सुर निकालते देखे जा सकते हैं।

कभी-कभार सार्वजनिक मंचों पर इसकी झलक दिख जाती है। 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले के प्रांगण में भी दर्शकों ने इसे महसूस किया था। लेकिन हाल ही में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मोदी का मंत्रिमंडल के समक्ष गुजरने की एक क्लिप तेजी से वायरल हो रही है। इसमें कैमरे का फोकस राष्ट्रपति मुर्मू के बजाए उनके पीछे चल रहे पीएम मोदी पर ही बना हुआ है। पीएम मोदी दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकार करते देखे जा सकते हैं, लेकिन एकमात्र नितिन गडकरी ही हैं जिन्होंने नमस्कार का जवाब देने के बजाय अपने दोनों हाथ पीठ के पीछे छिपा रखे हैं।

कहना न होगा कि 2019 के आम चुनावों से पहले भी आरएसएस ने नितिन गडकरी को आगे कर विकल्प की तलाश शुरू कर दी थी, लेकिन पुलवामा/बालाकोट की घटना ने देश के समूचे परिदृश्य को बदल डाला था, और यह बात जहां से शुरू हुई थी वहीं दबा दी गई।

इस सिलसिले को भाजपा के नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य, डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी मुखर ढंग से कह रहे हैं। कल एक यूट्यूब न्यूज़ चैनल के साथ इंटरव्यू में स्वामी ने खुलकर पीएम मोदी के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद के लिए पीएम मोदी का विकल्प पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

साक्षात्कारकर्ता द्वारा जब यह पूछे जाने पर कि भाजपा नेतृत्व में शायद ही कोई हो जो मोदी के विकल्प की मांग करे, और देश के सामने मोदी ही भाजपा के प्रतीक के तौर पर पेश किये जा रहे हैं, पर सुब्रह्मण्यम स्वामी का स्पष्ट कहना था कि आरएसएस के पास वह ताकत है, जो मोदी को पीएम की दौड़ से बाहर कर सकती है।

प्रश्नकर्ता के यह सवाल करने कि जिस आत्मविश्वास से मोदी जी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने लिए तीसरे कार्यकाल के लिए देश की जनता से आशीर्वाद मांगा, उसके बारे में लोग कह रहे हैं कि जब इतने विश्वास के साथ बोल रहे हैं तो संभव है कि तीसरी बार भी वही सत्ता में आयें। आखिर इस आत्मविश्वास का राज क्या है?

इस पर डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना था, “दुनिया को बुद्धू बनाने वाले तो ऐसे ही कॉन्फिडेंट लगेंगे। आप इतिहास में हिटलर का उदाहरण देख सकते हैं। जब हिटलर के सामने स्पष्ट हार की स्थिति थी, तबके उसके भाषण सुनिए, उसने ये ग्लोरी, वो ग्लोरी होगी की बात की थी। लोगों को बुद्धू बनाकर वह नशे की गिरफ्त में डालने पर लगा हुआ था। मैं ज्यादा न कहकर यही कह सकता हूं कि मोदी आज की परिस्थिति में घबराया हुआ है।”

ब्रिक्स शिखर वार्ता में क्या पीएम मोदी, शी जिन पिंग को लाल आंख दिखा पाएंगे पर स्वामी का कहना था कि “लाल आंख तो घर वालों को दिखायेंगे। शी जिन पिंग को दिखाने की संभावना नहीं है।”

चीन-भारत तनाव और सीमा विवाद को लेकर प्रश्न पर उनका कहना था, “2015 में मोदी ने अमित शाह के माध्यम से मुझे खबर भिजवाई कि शी जिन पिंग मुझे ब्रिक्स बैंक का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, और इस पर सबकी सहमति है। मैं नहीं माना क्योंकि मैं जानता था कि बाकी सभी 5 देश चीन के पक्ष में हैं। ब्रिक्स में चीन का दबदबा शुरू से था। हमें अलग-थलग कर देंगे। आज की परिस्थिति में बहुत कम देश भारत का साथ दे रहे हैं। मैंने यह प्रस्ताव नहीं माना। मुझे पता था कि ब्रिक्स को लेकर भारत का पक्ष धीरे धीरे खटाई में पड़ जायेगा, और आज वही हो रहा है। चीन लगातार इसके विस्तार और अपने दोस्तों को जोड़ने में लगा हुआ है।”

उन्होंने कहा, “नरसिम्हाराव के शासनकाल में 1991 में हमने जो एलएसी बनाई थी, वह कारगर थी। 1981 में मैं चीन गया था। मानसरोवर के मार्ग को, जिसे उन्होंने 40 साल से नहीं खोला था, मेरे कहने पर खोला था। ब्रिक्स मीट में एलएसी बनाई गई थी पीवी नरसिंहराव की सरकार में, जिसमें मेरा योगदान था।”

भारत-चीन सीमा विवाद पर उनका कहना था, “1996 एलएसी को पार कर चीन 4,600 वर्ग किमी लद्दाख के इलाके में कब्जा कर चुका है। कारोकोरम क्षेत्र में देप्सांग को उसने पूरा हड़प लिया है। गलवान को भी पूरा ले लिया है। कैलाश रेंज को भी, यहां तक कि चुसू लेक एअरपोर्ट को भी एक-दो महीने में ले लेगा। उसकी मंशा स्पष्ट है, वो बिल्कुल स्पष्ट है। वो पड़ोसी देशों को बताना चाहता है कि भारत कुछ नहीं है। भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश सभी आज कहीं न कहीं चीन के पक्ष में हैं।”

मोदी की लाचारगी की वजह क्या है? इसका जवाब देते हुए डॉ स्वामी ने कहा, “मोदी जब बाइडेन से मिलने गये थे तो उन्होंने उनकी एक भी बात का खंडन नहीं किया। वहां की उप-राष्ट्रपति जो भारतीय मूल की हैं, की भी एक बात का जवाब नहीं दिया। हमारी मीडिया पूरी तरह से मैनेज्ड है, विदेशों में जो छपता है यहां कुछ नहीं मिलता पढ़ने को। जिसे डर होता है वही व्यक्ति छिपाने की कोशिश करता है।”

स्वामी ने आगे कहा, “मोदी तो कई बार चीन गये हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में 12 बार चीन के दौरे पर गये थे। गुजरात में मंदारिन भाषा तक सिखाने का प्रयास किया। अपने विजिटिंग कार्ड तक में चीनी भाषा में अपना नाम लिखवाया। यह मोदी का स्वार्थ नहीं बल्कि मोदी विवश हैं। उनकी विवशता और मजबूरी है। अभी समय नहीं आया इस बारे में बताने का। मुझे चीन के उच्च पदस्थ अधिकारी बताते हैं, मैं सुनता हूं और कुछ समय बाद वैसी ही बात को होते देखता हूं।”

गलवान झड़प में जब हमारे सैनिक मारे गये थे, तब मोदी जी ने कहा था कि हमारी सीमा में न कोई  घुसा था, न घुसा है। यह विवाद आज भी बना हुआ है, क्या वे इस विवाद को हल कर पाएंगे। इस सवाल के जवाब मे स्वामी कहते हैं, “गलवान में जो हुआ, हमारे शहीद हुए थे, उसे तो अब हमने छोड़ दिया है। हिंदुस्तान की धरती का 5,600 वर्ग किमी उन्होंने हमसे छीन लिया है, जिस पर कोई विवाद नहीं है।”

उन्होंने कहा, “नरसिम्हाराव के कार्यकाल में जो विवाद था उसे तभी स्पष्ट कर दिया गया था कि ये आपकी सीमा है और ये हमारी है। बाकी विवाद को हम बातचीत के जरिये हल करेंगे। लेकिन उनके विदेश मंत्री क्या बोलते हैं? लाइन ऑफ़ कंट्रोल में जो विवाद है, वो तो 5 इंच की है, उस पर क्या विवाद हो सकता है? हमारी मीडिया में भी यह छपता है, जबकि मोदी से कोई पूछने की स्थिति में नहीं है कि क्या चीन हमारी सीमा में घुसा है कि नहीं? आज हमारी मीडिया की हालत ऐसी हो गई है, तो आम आदमी मोदी से कैसे पूछे? लेकिन मोदी की जिन पिंग से इस बारे में पूछने की हिम्मत कतई नहीं है।”

2019 में देश ने मोदी ने नाम पर वोट दिया था? इस पर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा, “37% वोट लोगों ने मोदी के नाम पर नहीं हिंदुत्व के नाम पर दिया था। 2024 में यदि मोदी नहीं लड़ते तो हमारी जीत की संभावना बढ़ जाती है। उसके नाम पर लोगों में घृणा है आज। लोग डरते हैं, चुप रहते हैं। वे कहते हैं कि वे अपनी घृणा को वोट में बदलकर हमें हराएंगे। जैसे इंदिरा आपातकाल में सोचती थीं, वही हाल होगा। मैं रोज जमीन में घूमता हूं लोग मुझसे मिलकर रोते हैं कि कैसे छुटकारा मिले इससे।

कहीं आप मोदी जी द्वारा वित्त मंत्री न बनाये जाने की खुंदक की वजह से उनकी आलोचना तो नहीं करते हैं? इस सवाल पर स्वामी कहते हैं, “मैंने कभी वित्त मंत्रालय की मांग नहीं की। एक बार ही मुलाक़ात हुई थी मेरी उनसे। मैंने कहा कोई काम देंगे तो ठीक है, वरना मैं अपना काम बना लूंगा। मैंने कुछ मांगा, उल्टा मोदी ने मुझसे बहुत मांगा। जब वे 72 में विद्यार्थी परिषद में थे तो आपातकाल के दौरान गुजरात में मेरा लगेज उठा के ले जाते थे। उस समय मैं भूमिगत था। पीएम बनने से पहले कई बार मुझे फोन करवाते थे कि आरएसएस के साथ मेरी मीटिंग कराइए। मोहन भागवत के साथ इनकी मीटिंग कराई थी। इनसे पहले वाले सर संघ चालक के साथ भी मीटिंग कराई थी। कई बातें हैं जिन्हें आज मैं बोल नहीं सकता, जब बोलूंगा तो विस्फोट होगा।”

स्वामी ने आगे कहा, “वे प्रचारक थे और मैं भूमिगत हीरो था, क्योंकि मैं संसद में आकर गायब हो गया था। मेरी गिरफ्तारी न हो सके, इसमें आरएसएस ने मेरी मदद की थी। ये आता था क्योंकि यह प्रचारक था। मेरे से 10 साल कम उम्र के थे, तो मेरा लगेज लेने के लिए आये थे।”

लेकिन आप हीरो थे, मोदी जी ने आपको जीरो बना दिया? इस सवाल पर सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं, “मैंने राम मंदिर को बनाने के लिए कोर्ट में बहस की, राम सेतु को बचाया, कितने मंदिरों को बचाने की लड़ाई लड़ रहा हूं। ये सारी चीजें भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। अब यदि मुझे वित्त मंत्री बनाएं और मुझे काम ही न करने दें तो मुझे इस्तीफ़ा देकर आना पड़ेगा। मैंने तो उससे मिलना भी छोड़ दिया। पहले चिट्ठी लिखता था, अब उसे भी छोड़ दिया। उसके चमचे बैठे हैं।”

ये विचार हैं भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के, जो खुद को पीएम मोदी से 10 वर्ष सीनियर बताते हैं। एक निर्वासित जीवन बिताते हुए डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कटु आलोचक हैं। उनका साफ़ मानना है कि पीएम मोदी और वित्त मंत्री सहित समूचे मंत्रिमंडल में आर्थिक नीतियों को लेकर कोई समझ नहीं है। 13 अगस्त 2023 को अपने ट्विटर हैंडल से स्वामी ने वैकल्पिक अर्थनीति को जारी करते हुए ओप-एड जारी किया है, जिसमें नई अर्थनीति की जरूरत पर जोर दिया गया है।

सवाल है कि डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी जो कह रहे हैं। नितिन गडकरी सार्वजनिक रूप से जैसा चित्र पेश कर रहे हैं। मोदी-शाह जिस प्रकार से राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे की जगह मोदी के चेहरे को आगे कर रहे हैं, उसके चलते भाजपा के पास देश में नया नेतृत्व और सामूहिक नेतृत्व का पूरी तरह से अभाव हो गया है। यही वजह है कि राज्यों में लगातार भाजपा की हार का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, जिसे ईडी/सीबीआई की मदद से भरपाई की जा रही है।

लेकिन आज विपक्षी गठबंधन बेहद मजबूत और अखिल भारतीय स्वरूप लिए हुए है, जबकि एनडीए के पास अपने पुराने दोस्त भी नहीं बचे। क्या सचमुच आरएसएस वैसा ही सोच रही है, जैसा सुब्रह्मण्यम स्वामी दावा कर रहे हैं, और नितिन गडकरी की भाव-भंगिमा बयां कर रही है? क्या सच में एक अकेला सबपे भारी, देश में नहीं बल्कि भाजपा/आरएसएस पर पड़ रहा है? 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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