तमिलनाडु: सैमसंग के प्रदर्शनकारी कर्मचारियों पर एम.के. स्टालिन सरकार के दो चेहरे

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तमिलनाडु में हालिया घटनाक्रमों में एक अलग ही विरोधाभास देखने को मिल रहा है। 8 अक्टूबर 2024 को तमिलनाडु सरकार ने 38,698 करोड़ रुपये मूल्य के 14 नए निवेश सौदों को मंजूरी प्रदान की थी, जिसमें से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी यह मंजूरी प्रदान की गई है।

इसके साथ ही एम.के. स्टालिन सरकार ने यह भी दावा किया है कि इससे कुल 46,931 नए रोजगार सृजित होंगे। निश्चित रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी पूंजी के साथ तमिलनाडु पर बड़े पैमाने पर धावा बोल रही हैं।

लेकिन अगले ही दिन, 9 अक्टूबर 2024 को तमिलनाडु पुलिस ने बहुराष्ट्रीय कंपनी, सैमसंग के प्रदर्शनकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई करते हुए, उनके धरना पंडाल को नष्ट कर दिया और करीब 400 कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया था। एमके स्टालिन सरकार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच संबंधों के ये दो पहलू उभरकर हमारे सामने नजर आते हैं।

सरकार ने इस श्रम विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए हस्तक्षेप करने का दिखावा करते हुए असल में प्रदर्शनकारी श्रमिकों के खिलाफ ऐसे सख्त रुख को अपनाया है। यहां तक ​​कि डीएमके सरकार ने यूनियन और प्रबंधन दोनों के साथ वार्ता के लिए अपने तीन मंत्रियों को भी भेजा।

मंत्रियों ने एकतरफा और धोखाधड़ी वाले अंदाज में घोषणा की कि सैमसंग प्रबंधन ने श्रमिकों की सभी मांगों को स्वीकार कर लिया है, और हड़ताल में शामिल श्रमिकों को काम पर लौटने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। लेकिन श्रमिक टस से मस नहीं हुए। उनकी मुख्य मांग है, उनके लेबर यूनियन सीटू को सैमसंग प्रबंधन मान्यता दे।

ट्रेड यूनियन अधिकारों का हनन

श्रम विभाग ने यह बहाना बनाते हुए श्रमिकों की यूनियन को पंजीकृत करने से इंकार कर दिया कि ट्रेड यूनियन का रजिस्ट्रार, कंपनी के नाम से यूनियन को पंजीकृत नहीं कर सकता, क्योंकि यह अवैध और असंवैधानिक है।

ट्रेड यूनियन अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि कंपनी के नाम को यूनियन के नाम के साथ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, और इसके अलावा, तमिलनाडु सरकार ने भी इस संबंध में कोई नियम निर्धारित नहीं किये हैं।

चेन्नई में कई यूनियनों के नाम उद्योगों के नाम पर हैं, जैसे कि अशोक लीलैंड वर्कर्स यूनियन, एमआरएफ वर्कर्स एसोसिएशन आदि। फिर भी, श्रम विभाग ने इस झूठे बहाने से उनकी यूनियन को पंजीकृत करने से इंकार कर दिया, जो कि भारतीय संविधान में निर्दिष्ट उनके संगठित होने के मौलिक अधिकार का हनन है। इस मुद्दे पर मज़दूर अदालत भी गए थे।

प्रबंधन और सरकार ने एक बार फिर से इसे बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया, और कहा कि मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है, और उन्हें यूनियन को मान्यता देने के लिए इस मामले के नतीजे का इंतजार करना होगा।

न्यायालय के फैसले में कई वर्ष लग सकते हैं और तब तक के लिए प्रबंधन ने सरकार के पूर्ण समर्थन के साथ, श्रमिकों को उनके सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार से वंचित कर दिया है।

यहां पर गौरतलब है कि यदि सरकार श्रम विभाग को निर्देश दे कि वह यूनियन को बगैर कोई अवैध शर्त रखे बिना पंजीकृत कर दे, तो मज़दूर सहर्ष हड़ताल को वापस ले सकते हैं; और यदि सैमसंग प्रबंधन श्रमिकों की मांगों जैसे कि वेतन में संशोधन, उत्पादकता बोनस इत्यादि पर यूनियन के साथ बातचीत शुरू कर दे, तो आसानी से समस्या का समाधान संभव है।

लेकिन प्रबंधन और स्टालिन सरकार हड़ताल तोड़ने वालों की भूमिका निभाने पर आमादा नजर आते हैं।

लेकिन मज़दूरों के संघर्ष को इतनी आसानी से दबाया नहीं जा सकता था। डीएमके की यूनियन एलपीएफ को छोड़कर बाकी सभी यूनियनों सहित कई अन्य उद्योगों के मज़दूरों ने सैमसंग मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन किया। लेकिन, तमिलनाडु पुलिस ने उनकी हड़ताल को कुचलने के लिए यूनियन के 8 पदाधिकारियों को गिरफ़्तार कर लिया।

यूनियन ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। 10 अक्टूबर को जब बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई तो अदालत ने इस बात की पुष्टि की कि मज़दूरों को शांतिपूर्वक विरोध करने का पूरा अधिकार है, नतीजतन पुलिस को गिरफ़्तार मज़दूरों को रिहा करना पड़ा।

हालांकि यह हड़ताल पिछले एक महीने से चल रही थी और दूसरे महीने में प्रवेश कर चुकी थी, लेकिन सरकार ने 8 अक्टूबर को हड़बड़ी दिखाते हुए यह कार्रवाई की थी, क्योंकि हड़ताल के राजनीतिक स्वरुप ग्रहण करने का खतरा उत्पन्न हो गया था।

इस दौरान, सीपीआई और सीपीआई (एम) जैसे डीएमके के गठबंधन में सहयोगी दलों के नेताओं और विदुथलाई चिरुथैगल के थिरुमावलवन ने धरना स्थल पर एकजुटता बैठक में हिस्सा लेने की योजना बना ली थी।

इसे रोकना सरकार की इस कार्रवाई का तत्काल उद्देश्य था और इसीलिए धरना स्थल के पंडाल में तोड़फोड़ की कार्रवाई करते हुए पुलिस ने श्रमिकों की गिरफ्तारी और लाठीचार्ज के माध्यम से धरना स्थल को खत्म कर दिया।

लेकिन प्रशासन का यह दांव उल्टा पड़ गया, और यह मामला तेजी से तूल पकड़ता चला गया। 10 अक्टूबर को सहयोगी दलों के नेताओं ने सैमसंग के श्रमिकों के साथ अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करते हुए सरकार को चेतावनी दे डाली। अब एमके स्टालिन और उनकी पार्टी डीएमके इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ चुके हैं।

तमिलनाडु के प्रमुख वामपंथी और मजदूर नेता, एस. कुमारस्वामी ने जनचौक के साथ अपनी बातचीत में कहा, “एमएनसी निवेश को आकर्षित करने की अपनी सनक में डीएमके सरकार जानबूझकर मजदूरों के हितों से समझौता कर रही है।

एमएनसी निवेश तमिलनाडु के मजदूर वर्ग के लिए वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप है। एमके स्टालिन का दावा है कि उनकी सरकार द्वारा लाए गए निवेश के माध्यम से कुल 35 लाख नई नौकरियां सृजित की गई हैं, लेकिन उनकी सरकार इस पर कोई श्वेत पत्र जारी करने के लिए तैयार नहीं है कि ये नौकरियां आखिर कहां पैदा हुई हैं, और ये नौकरियां किस प्रकार की हैं।

लगभग सभी एमएनसी कंपनियों में, बिना किसी अपवाद के, बड़े पैमाने पर ठेकाकरण और श्रम अधिकारों में कटौती की गई है। हमने हुंडई में इसके खिलाफ श्रमिकों के संघर्ष को देखा है। हमारी यूनियन ने एमएनसी सैन मीना में 100 दिनों की हड़ताल संचालित की थी, और एक अन्य एमएनसी मैग्ना में करीब 120 दिनों की हड़ताल का नेतृत्व किया।

यहां तक कि मदरसन जैसी घरेलू कंपनी में भी हमें 100 दिनों से अधिक समय तक हड़ताल का नेतृत्व करना पड़ा। स्टालिन सरकार ने हमेशा एमएनसी और अन्य भारतीय कॉर्पोरेट प्रबंधन का पक्ष लिया है।”

जबकि सैमसंग प्रबंधन ने, श्रमिक यूनियन सीटू, जिसके साथ बहुसंख्यक श्रमिक गोलबंद हैं, से वार्ता करने से इंकार करते हुए, हड़ताल में हिस्सा नहीं लेने वाले श्रमिकों की एक जेबी कमेटी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर, यह प्रचारित करने की नाकाम कोशिश की थी कि बहुसंख्यक श्रमिकों ने हड़ताल खत्म करने का फैसला किया है।

इसके तहत पितृत्व अवकाश को 3 दिनों से बढ़ाकर 5 दिन करना, वर्तमान में 5 के बजाय 108 रूट पर श्रमिकों के लिए एसी बसों की शुरूआत, अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 तक उत्पादकता स्थिरीकरण प्रोत्साहन के रूप में 5000 रुपये, वर्ष में 4 के बजाय कंपनी में 6 पारिवारिक निमंत्रण, श्रमिकों को 2000 रुपये मूल्य के उपहार, और काम के दौरान किसी श्रमिक की मृत्यु हो जाने पर अतिरिक्त 1 लाख रुपये की अनुग्रह राशि आदि शामिल हैं।

ये बेहद मामूली मांगें हैं और इनमें सीटू के द्वारा उठाई गई मूल मांगों को दरकिनार किया गया है, जिस पर श्रमिक हड़ताल पर गए थे। इसलिए श्रमिक अपनी हड़ताल को जारी रखने के लिए पूरी तरह से दृढ़ हैं।

प्रगतिशील ताकतों के समक्ष विकट कार्यनीतिक दुविधा

एम.के. स्टालिन सरकार की मौजूदा और ऐसे कई श्रम-विरोधी एवं जन-विरोधी कृत्यों ने प्रगतिशीलों और वामपंथी दलों के लिए विकट दुविधा की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जो इसके अलावा, इस सरकार को इसकी घोषित भाजपा-विरोधी भूमिका के लिए अपना समर्थन दे रहे हैं।

वे डीएमके को भारतीय ब्लॉक में एक मजबूत भागीदार मानते हैं और इसलिए सभी भाजपा-विरोधी ताकतें केंद्र से भेदभाव का सामना करने पर इसके समर्थन में एकजुट हो जाती हैं, जैसे कि जब तमिलनाडु को बाढ़ राहत निधि से वंचित किया गया या, या जब केंद्र ने चेन्नई मेट्रो रेल परियोजना के दूसरे चरण जैसी स्वीकृत परियोजनाओं के लिए भी विकास निधि से फंड जारी करने से इंकार कर दिया था।

इसके अलावा, एम.के. स्टालिन सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा के अलावा 1000 रुपये प्रति माह की सहायता राशि जैसी कई लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं। इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इस सरकार की कुछ अभिनव विकास योजनाएं चल रही हैं।

लेकिन जब कभी एम.के. स्टालिन सरकार अपने जनविरोधी चेहरे के साथ नमूदार होती है, वामपंथी एवं लोकतांत्रिक शक्तियों को काफी शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ता है, और यहां तक ​​कि उनके बीच नाराजगी भी उभरने लगती है।

उदाहरण के लिए, इसने तमिलनाडु सरकार के स्वामित्व वाली SIPCOT (स्माल इंडस्ट्रीज प्रमोशन कारपोरेशन ऑफ़ तमिलनाडु) द्वारा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ गुंडा अधिनियम लागू कर दिया।

तमिलनाडु में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के संयोजक के. बालाकृष्णन, जिन्हें कोयंबटूर में हाल ही में आयोजित राज्य सम्मेलन में भारत जोड़ो अभियान के तमिलनाडु राज्य महासचिव के रूप में भी नामित किया गया है, ने जनचौक को बताया, “तमिलनाडु सरकार एक सक्रिय व्यापार समर्थक और श्रमिक विरोधी सरकार बन चुकी है।

और यहां तक ​​कि काम के घंटे बढ़ाकर 10 घंटे प्रतिदिन करने के लिए एक मसौदा कानून भी लेकर आई थी, हालांकि इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध के चलते इस कदम को फिलहाल टाल दिया गया है। सरकार गेल पाइपलाइन परियोजना के खिलाफ, किसानों के विरोध को कुचलने का काम कर रही है।

इसने हाल ही में तमिलनाडु लैंड पूलिंग एरिया डेवलपमेंट स्कीम रूल्स, 2024 को अधिसूचित किया है, ताकि केंद्र के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के कुछ प्रावधानों को भी दरकिनार किया जा सके ताकि कोई भी सरकारी प्राधिकरण या सार्वजनिक उपक्रम एक योजना शुरू कर उसके लिए विकास के नाम पर किसानों की जमीन को पूल (पढ़ें हड़पना) कर सके।

सरकार चेन्नई हवाई अड्डे के विस्तार के लिए परंडूर में 5600 एकड़ जमीन हड़पने के खिलाफ विरोध कर रहे किसानों और स्थानीय लोगों का भी क्रूरतापूर्वक दमन कर रही है।”

बालाकृष्णन आगे कहते हैं कि अपने सभी धर्मनिरपेक्ष दावों के बावजूद, डीएमके सरकार स्कूलों में आरएसएस की घुसपैठ पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही है। उन्होंने किसी महाविष्णु का उदाहरण देते हुए बताया है कि उक्त व्यक्ति एक सरकारी स्कूल में छात्रों के सामने बेहद प्रतिगामी धार्मिक व्याख्यान दे रहा था।

कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए वेलफेयर पार्टी के तमिलनाडु अध्यक्ष रहमान ने जनचौक के साथ हुई अपनी बातचीत में कहा, “एम.के. स्टालिन की डीएमके सरकार भाजपा विरोधी, कॉर्पोरेट समर्थक सरकार है।

भाजपा विरोधी रुख सिर्फ राज्य में केंद्र विरोधी और आरएसएस-भाजपा विरोधी भावनाओं का दोहन करने के लिए है, लेकिन द्रविड़ मॉडल सरकार जिस सामाजिक न्याय का दावा करती है, वह अपनी अंतर्वस्तु में बेहद कमजोर है।

डीएमके ने एआईएडीएमके सरकार की 274 किलोमीटर लंबी 8 लेन चेन्नई-सलेम एक्सप्रेसवे परियोजना का विरोध किया था, लेकिन उसके द्वारा इस परियोजना का त्याग नहीं किया गया है, उल्टा अब 258 किलोमीटर लंबी चेन्नई-बैंगलोर एक्सप्रेसवे परियोजना पर आगे बढ़ रही है, जिससे किसानों और अन्य स्थानीय लोगों को और भी ज्यादा नुकसान होने जा रहा है।

उन्होंने स्पष्ट किया, “मोदी सरकार के द्वारा स्वंय एम.के. स्टालिन को व्यक्तिगत रूप से अमेरिका जाने और निवेश के लिए लॉबिंग करने तथा कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने की अनुमति प्रदान की गई थी।

लेकिन इनमें से किसी भी समझौता ज्ञापन में न्यूनतम श्रम अधिकारों के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया था। इसलिए यह एम.के. स्टालिन सरकार का समर्थन करने वाली ताकतों के लिए घोर संत्रास का विषय बना हुआ है, क्योंकि इसकी भूमिका भाजपा विरोधी नजर आती है।”

तमिलनाडु के एक प्रमुख बुद्धिजीवी प्रोफेसर ए. मार्क्स का कहना है कि डीएमके सरकार की दोहरी प्रकृति को देखते हुए ऐसी दुविधा होना अपरिहार्य है, और वे डीएमके सरकार का समर्थन या विरोध करने के मामले में एक अति या दूसरी अति पर जाने के प्रति आगाह करते हैं।

प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक, जवाहर ने जनचौक को बताया है कि यह दुविधा सिर्फ कार्यकर्ताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि डीएमके गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के लिए भी एक कटु सत्य है।

वे कहते हैं, “पीटीआर पझानिवेलराजन, एम.के. स्टालिन के मंत्रिमंडल में एक तेजतर्रार और ज्ञान-संपन्न मंत्री हैं, और उन्हें पहले वित्त मंत्री पद से नवाजा गया था। पार्टी के पुराने नेताओं के साथ उनकी अनुचित वित्तीय मांगों को लेकर छोटी-मोटी कहा-सुनी हुई थी।

फिर अचानक से, रहस्यमय तरीके से एक ऑडियो टेप सामने आया जिसमें पझानिवेलराजन एक निजी बातचीत में एम.के. स्टालिन के लालची और बेहद विवादास्पद दामाद सबरीसन और बेटे उदयनिधि के कुकृत्यों की आलोचना कर रहे हैं। तत्काल पझानिवेलराजन को महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय से हटा दिया गया।

यह एम.के. स्टालिन की अपने परिवार के भीतर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से लड़ने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है! इसलिए, डीएमके सरकार के प्रति उनके रवैये में प्रगतिशील शक्तियों की दुविधा वास्तविक है। बरखा दत्त के साथ कार्ति चिदंबरम के साक्षात्कार में भी इसकी अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।”

जवाहर आगे कहते हैं कि हम केवल समर्थन या विरोध के चश्मे से चीजों को नहीं देख सकते हैं, ये दोनों ही चीजें एक साथ होनी चाहिए। हमें हर मुद्दे की योग्यता के हिसाब से इसे परखना होगा और विरोध की तीव्रता और उसकी अवधि उसी पर निर्भर होनी चाहिए।

गठबंधन के सहयोगी अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं

डीएमके के गठबंधन के सहयोगी अधिकाधिक मुखर होते जा रहे हैं। डीएमके के सहयोगियों की असहमति सिर्फ़ सैमसंग मामले में ही देखने को नहीं मिली। तमिलनाडु के उत्तरी जिलों में मुख्य रूप से दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रमुख सहयोगी पार्टी थिरुमावलवन की विदलाई चिरुथैगल काची ने सत्ता में अपनी हिस्सेदारी की मांग शुरू कर दी है।

और हालांकि डीएमके के पास खुद का बहुमत है, लेकिन यह सहयोगी गठबंधन सरकार की मांग कर रहा है। इसी तरह, कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने भी कुछ इसी प्रकार की भावनाएं व्यक्त की हैं।

यहां तक कि पी. चिदंबरम ने भी चेतावनी देते हुए कहा है कि “अगर एक पत्ता गिरता है, तो दो उगेंगे”, जिसका मतलब है कि कांग्रेस के पास हमेशा एआईएडीएमके के साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला है, जिसका चुनाव चिह्न दो पत्ते है।

कुछ लोग तो यहां तक संदेह कर रहे हैं कि क्या डीएमके अपनी भाजपा विरोधी भूमिका को बरकरार भी रख पायेगी। चेन्नई मेट्रो परियोजना के विस्तार के लिए फंड रोक दिए जाने पर डीएमके ने केंद्र के खिलाफ जमकर बयानबाजी की।

इसके बाद एम.के. स्टालिन 26 सितंबर को दिल्ली जाकर मोदी से मिलते हैं और 5 अक्टूबर को केंद्र परियोजना को अपनी मंजूरी दे देता है। एम.के. स्टालिन ने भी हाल ही में अपने केंद्र विरोधी बयानबाजी को काफी हद तक अपने बेटे तक सीमित कर दिया है।

डीएमके ने अतीत में भी भाजपा के साथ गठबंधन किया था। यही कारण है कि प्रगतिशील कार्यकर्ताओं को डीएमके के खिलाफ सतर्क रहना चाहिए।

जैसा कि कामराज ने काफी अर्से पहले इंगित किया था, उभरता हुआ बेटा (सूर्य से तुलना) भी अस्त होते हुए बेटे की माफ़िक नज़र आता है!

नोट: इस लेख के लिखे जाते समय तक सैमसंग, डीएमके सरकार और सैमसंग वर्कर्स यूनियन के बीच समझौता नहीं हो पाया था, लेकिन 15 अक्टूबर को भारी विभिन्न राजनीतिक दलों और जन-दबाव के चलते आख़िरकार सरकार और प्रबंधन ने सीटू यूनियन को मान्यता देने के अलावा करीब-करीब सभी मुख्य मांगों को स्वीकार कर लिया है, जो हाल के वर्षों में प्रतिरोधी श्रमिक आंदोलनों में सबसे बड़ी जीत है।

(बी.सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। [email protected] पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)

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