पूरे देश में और विशेषकर उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण का खेल जारी है। बजट सत्र के दौरान विधानसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री लगातार एक से एक विभाजनकारी बयान दे रहे थे। इसी बीच उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मदनी मस्जिद के एक हिस्से को ध्वस्त करने के मामले का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने इसे अदालत की अवमानना माना है। ज्ञातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के 13 नवंबर 2024 के आदेश में ऐसी किसी भी कार्रवाई के पहले अदालत को सूचना देना अनिवार्य घोषित किया था।
लेकिन इस मामले में उच्चतम न्यायालय को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी। जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह की पीठ ने आदेश दिया कि अगले आदेश तक और किसी तोड़फोड़ पर रोक रहेगी। अदालत को बताया गया कि मस्जिद याचिकाकर्ताओं की निजी जमीन पर बनाई गई थी। और यह निर्माण 1999 में नगर निगम के अधिकारियों से उचित आदेश मिलने के बाद किया गया था।
आदेश में यह भी कहा गया है कि शिकायत के बाद SDM ने मामले की जांच की और 22 दिसंबर 2024 के अपने प्रेस नोट में निर्माण को पूरी तरह स्वीकृत योजना के अनुसार पाया। जो निर्माण स्वीकृत योजना के अनुसार नहीं था उसे याचिकाकर्ताओं ने खुद ही हटा लिया था। न्यायालय ने तोड़फोड़ को अदालत के आदेश की घोर अवमानना माना है और दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को बताया कि तोड़फोड़ के पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। यहां तक कि जिस SDM ने निर्माण सही होने का आदेश दिया था, उसका तोड़फोड़ के पहले वहां से तबादला कर दिया गया। यह आरोप लगाकर कि निर्माण नगर पालिका तथा थाने की जमीन पर अवैध ढंग से किया गया था, 9 फरवरी को जब हैमर, जेसीबी, पोकलैंड मशीनें लगाकर ध्वस्तीकरण किया गया, उसके पूर्व 8 फरवरी को उच्च न्यायालय उस प्रशासनिक नोटिस को स्टे कर चुका था। जाहिर है इस पूरे खेल के पीछे की नीयत ध्रुवीकरण को तेज करने की है।
वक्फ बिल के माध्यम से यही खेल राष्ट्रीय स्तर पर खेला जा रहा है। सरकार द्वारा वक्फ संपत्ति के प्रबंधन में आधुनिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के नाम पर सरकार ने यह बिल पेश किया। बाद में इसे जेपीसी को भेज दिया गया जहां 15-11 के बहुमत से यह स्वीकार हो गया, लेकिन राज्य सभा में विपक्ष के नेता खड़गे ने आरोप लगाया कि विपक्ष के असहमति के 70% बिंदुओं को रिपोर्ट से हटा दिया गया। उन्होंने रिपोर्ट वापस भेजने की मांग किया। विपक्ष का आरोप है कि यह मुस्लिम समुदाय के संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। यह वक्फ बोर्ड के काम में सरकार का अनावश्यक प्रशासनिक हस्तक्षेप है।
दरअसल वक्फ कानून अब तक 1995 के मूल कानूनी ढांचे द्वारा नियंत्रित था, जिसके तहत एक सर्वे कमिश्नर की नियुक्ति की जाती थी जो वक्फ संपत्ति की पहचान करने, जरूरत होने पर जांच करने और उसके दस्तावेजीकरण के लिए जिम्मेदार होता था। वक्फ संपत्ति की सुरक्षा के लिए उसके पास तमाम अधिकार होते थे। अक्सर वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण का खतरा होता है, लेकिन उसके लिए जेल तक का कठोर प्रावधान था। 2013 के संशोधन में वक्फ संपत्ति की सुरक्षा के प्रावधानों को और मजबूत किया गया। साफ-साफ उनकी बिक्री, विनिमय या ट्रांसफर को निषिद्ध घोषित किया गया। दरअसल कोई भी व्यक्ति जो किसी संपत्ति का कानूनी मालिक हो वही वक्फ बना सकता है। वह सरकारी जमीन नहीं हो सकती।
अब नए संशोधित बिल में विवाद निपटाने की जिम्मेदारी वक्फ ट्रिब्यूनल की बजाय जिलाधिकारी को दे दी गई है, जाहिर है इससे वक्फ संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा। नए बिल में waqf by use की अवधारणा को खत्म कर दिया गया है। राज्य वक्फ बोर्ड में अब गैर मुस्लिम सीईओ भी रहेंगे। प्रत्येक बोर्ड में कम से कम दो गैर मुस्लिम होंगे। जाहिर है इन बदलावों से वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी और सरकारी नियंत्रण का केंद्रीकरण हो जाएगा। दरअसल इससे वक्फ सामाजिक और धार्मिक काम के जिस मकसद से बनाए गए हैं, वही समाप्त हो जाएगा।
दरअसल वक्फ को लेकर जो भी संशोधन किए जा रहे हैं, वह केवल कानूनी मामला नहीं है, बल्कि वह सीधे तौर पर एक बहुसंख्यकवादी राज्य के अधीन अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है। इसी के साथ मोदी सरकार द्वारा UCC लागू करने की जो योजना है उसे जोड़कर देखा जय तो सरकार की पूरी मंशा स्पष्ट हो जाती है।
दरअसल सच्चर कमेटी ने वक्फ संपत्ति के under utilisation की बात उठाई थी और मुस्लिम समुदाय के विकास का सवाल उठाया था। कई जगह वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण कर वहां आलीशान इमारतें बनी हुई है। लेकिन सच्चर कमेटी का पूरा परिप्रेक्ष्य ही अलग था। अब उसी का इस्तेमाल कर मोदी सरकार मनमाने बदलाव करने की ओर बढ़ रही है। इन बदलावों का व्यापक विरोध हो रहा है जो बड़ा स्वाभाविक है। वक्फ बोर्ड में हिंदुओं को अनिवार्यतः सदस्य बनाने का क्या औचित्य है?
पूरे देश भर से लगभग 5 करोड़ शिकायतें इसके खिलाफ हुई हैं। अब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का कहना है कि यह सब पाकिस्तान और चीन के इशारे पर हो रहा है। कुछ ने इसे ईमेल जेहाद का नाम दिया है। सबसे खतरनाक मामला तो यह है कि बहुत सी ऐसी संपत्तियां थीं जो भले वक्फ के रूप में दर्ज न हों, दरगाह, मस्जिद या कब्रिस्तान के रूप उनका इस्तेमाल होता था, इस उपयोग के कारण वे वक्फ ही मानी जाती थीं। अब इस नए कानून के बनने के बाद यह सब खत्म हो जाएगा।
दरअसल भाजपा सरकारें अपने कदमों से अल्पसंख्यकों को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेल रही हैं, जिसके राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर निहितार्थ हैं। लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष ताकतों को इसका एकजुट होकर विरोध करना होगा ताकि राष्ट्रीय एकता और गणतंत्र सुरक्षित रह सके।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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