Friday, April 19, 2024

स्पेशल रिपोर्ट: जंगल राज का खौफ फैलाने वाले आखिर कौन लोग हैं? 

“मेरे ऑफिस के एक सीनियर सर बीच मीटिंग में बोलते हैं कि, ‘अब से ऑफिस की लड़कियां सरकारी कामों के लिए कार्यालय नहीं जाएंगी। इस बात का सब ख्याल रखिए। मैं प्रोजेक्ट मैनेजर से भी इस बात पर गौर करने के लिए कहता हूं। क्योंकि प्रोजेक्ट मैनेजर राजस्थान से हैं। अब वह समय नहीं रहा। सरकार बदल चुकी है। मैंने पुराना वक्त देखा है इसलिए आप लोगों को सचेत कर रहा हूं।’ वो सीनियर सर तथाकथित ऊंची जाती से ताल्लुक रखते हैं। एक सरकारी ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारी नाम ना बताने की शर्त पर बताते हैं। 

बिहार की राजधानी पटना में 9 अगस्त यानी मंगलवार की शाम होते-होते राजभवन के सामने जदयू और राजद के झंडे जगह-जगह लहराने लगे थे। ‘चाचा-भतीजा ज़िंदाबाद’ के नारे भी बीच-बीच में सुनाई देते रहे। इन सारे वाकयों के बीच एक समूह और भीड़ सोशल मीडिया पर जंगल राज!! का राग अलाप रहा था। समाज में इस बात का डर फैलाने के लिए वह पूरी कोशिश कर रहा है। 

कुर्मी आ गुआर बा

जाति की राजनीति जहां क्षेत्र की राजनीति बनकर रह गई है। ऐसे बिहार में इस सत्ता परिवर्तन के बाद भी इस बात का पूर्ण उपयोग किया गया। दिल्ली के एक न्यूज पेपर के वरिष्ठ पत्रकार संजीव झा सत्ता परिवर्तन के बाद ट्विटर पर लिखते हैं कि, “बिहार में कबाड़ बा-कुर्मी आ गुआर बा-बिहार में बहार बा-कुर्सी कुमार बा”

वहीं बिहार के सुपौल जिला के डोरा पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि रौशन झा और समाजसेवी सुमन सिंह बताते हैं कि, “90 के दशक में बिहार के सुपौल, सहरसा और मधेपुरा में जातीय हिंसा चरम पर थी। इस सरकार के आने के बाद हम लोग फिर से लोगों को सचेत कर रहे हैं। एक खास जाति का प्रभुत्व पूरे बिहार को कहीं फिर से जातीय हिंसा में ना से ठेल दे।” 

लेकिन इससे पहले भी महागठबंधन के राज्य में एक भी जातीय हिंसा तो नहीं हुई, तो आप कैसे यह कह सकते हैं? इस सवाल पर सुमन सिंह बताते हैं कि, “आखिर खून तो लालू यादव का ही है।”

तेजस्वी को एक जातिवादी नेता के तौर पर संघ से जुड़े लोग घोषित करने में लगे हुए हैं। 

“बार-बार जंगल राज कहकर सोशल मीडिया पर नए लड़कों को दिग्भ्रमित किया जा रहा है। जंगल राज की कहानी असल में बहुजन राज की कहानी थी। लेकिन सोशल मीडिया पर दिग्भ्रमित पोस्ट पढ़कर आज के युवा तेजस्वी राज से डर रहे हैं। इसकी रूपरेखा बहुत ही महीन तरीके से गढ़ी जा रही है। जैसे, राहुल गांधी को पप्पू साबित कर दिया गया उसी तरह बिना जांचे परखे तेजस्वी को एक जातिवादी नेता के तौर पर संघी घोषित करने में लगे हुए हैं।” बिहार में बहुजन पत्रकारिता कर रहे सन्नी बताते हैं। 

तेजस्वी शपथ के बाद हस्ताक्षर करते हुए।

“वो कहेंगे कुशासन है, जंगलराज है, भ्रष्टाचार है। वो घोटाले का आरोप लगाएंगे। 30 वर्ष के सम्पूर्ण कार्यकाल को धता बताएंगे। वो पलटू और चारा चोर कहेंगे, जातियों में उलझाकर जातिवादी बताएंगे। लेकिन हम लोग सामाजिक न्याय पर अड़े रहेंगे। आर्थिक न्याय की मांग करते रहेंगे। सामंतवादी हुकूमत और साम्प्रदायिक शक्तियों के विनाश की बातें और दलित-पिछड़े-शोषित समाज के हक की मांग करते रहेंगे।” बिहार के उभरते लेखक और पत्रकार प्रियांशु कुशवाहा बताते हैं। 

हिंदू-मुस्लिम-पाकिस्तान पर डिबेट करने वाली मीडिया अब रोजगार की बातें कर रही है

सत्ता परिवर्तन के बाद मीडिया का एक बड़ा समूह तेजस्वी से 10 लाख रोजगार के वायदे पर सवाल लगातार पूछ रहा है। इस सवाल और जवाब को पक्ष के नेताओं के द्वारा सोशल मीडिया पर बारंबार पोस्ट किया जा रहा है। 

“पिछले आठ वर्षों से हिंदू-मुस्लिम-पाकिस्तान पर डिबेट करने वाली मीडिया अब रोजगार की बातें कर रही है, उसे तेजस्वी का किया हुआ वादा याद आ रहा है। इसका श्रेय भी मैं तेजस्वी को ही दूंगा, उन्होंने अकेले दम पर एक फूहड़ जमात को जन सरोकार के मुद्दे से जोड़ा है। 7-8 साल बीतने पर भी पंद्रह लाख़ नहीं मिला। अभी तेजस्वी ने शपथ भी नहीं लिया और तुम वायदा याद दिलाने लगे। इस मुहिम को अब ज़िंदा रखिए।” पटना में रहकर बैंकिंग की तैयारी करने वाला 24 साल का विपुल बताता है

सत्ता संघर्ष में भाजपा की यह शिकस्त विपक्ष के कितने काम आयेगी?

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व उपाध्यक्ष और लेखक अंशुमान सरकार बताते हैं कि, “पूरे देश में बीजेपी की राजनीति का स्तर इतना नीचे हो गया है कि नीतीश कुमार का बार-बार दल बदलना भी नहीं खलता है। इसलिए इस परिवर्तन का नीतीश कुमार को लेकर जनता पर कोई निगेटिव इंपैक्ट ज्यादा नहीं पड़ा है। जातिगत समीकरण को देखते हुए ऐसा लगता है कि जाति राजनीति का मुख्य केंद्र बिहार में लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूरी तरह हारेगी। साथ ही बीजेपी ने एक-एक कर अपने प्रायः सारे पुराने सहयोगी गंवा दिये हैं। आज की तारीख में उसका सबसे बड़ा सहयोगी शिवसेना का एकनाथ शिन्दे गुट ही है, जो ‘सबसे नया’ भी है।”

वहीं सुपौल के कम्युनिस्ट दल के छात्र नेता अमित चौधरी बताते हैं कि, ” विपक्षी दलों, खासकर क्षेत्रीय दलों को खत्म करने की जो साजिशें लगातार हो रही थीं। बिहार के इस सियासी प्रयोग ने देश के उदास लोगों को राहत की सांस दी है। साथ ही नीतीश कुमार जैसे प्रभावशाली लोगों के आने से विपक्ष भी मजबूत हुआ है।

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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