सेंगोल राजदंड और मणिपुर की तबाही

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28 मई 2023 वाकई में भारत के इतिहास में एक यादगार दिन के रूप में जाना जायेगा। एक तरफ 20 विपक्षी दलों के विरोध के आह्वान के बावजूद संसद के नये भवन का उद्घाटन कार्य संपन्न किया गया, जिसके लिए पिछले ढाई वर्षों के दौरान पीएम मोदी ने स्वयं कई बार जाकर प्रगति कार्यों का मुआयना किया था। संसद के भीतर सबसे पहले दक्षिण से पधारे ब्राह्मणों ने प्रवेश किया, फिर इतिहास से धर्माचार्यों द्वारा राजाओं को दिया जाने वाला राजदंड “सेंगोल” लिए पीएम मोदी ने प्रवेश किया। यह तस्वीर वास्तव में भारत के लोकतंत्र के 75 सालों में एक-एक कर विखंडित होने, राज्य-धर्म के सामूहिक तंत्र के आगे लोक के विलुप्त कर दिए जाने की सांकेतिक प्रतिष्ठापना को वैध बनाने वाला दिन था।

ऐसा जान पड़ता है कि राजदंड में वास्तव में वह दैवीय शक्ति निहित थी, जिसने एक महीने से भी अधिक समय से संसद से सटे संसद मार्ग पर स्थित जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी महिला पहलवान खिलाड़ियों सहित उनके समर्थन में हरियाणा, पंजाब और यूपी से आई बुजुर्ग महिलाओं, छात्र संगठनों की छात्राओं को महिला महापंचायत करने से धृष्टता से रोक ही नहीं दिया, बल्कि शासन को बलपूर्वक प्रदर्शनकारियों को पुलिस वैन, बसों में घसीटकर ठूंसने की हिम्मत प्रदान कर दी।

राजदंड को नीतिपरायणता का प्रतीक बताया जा रहा है, शायद 1,200 वर्ष पहले की नीतिपरायणता में महिलाओं का यही स्थान रहा हो। दलित, आदिवासी, महिला का जो स्थान राजवंशी ब्राह्मणवादी शासन व्यवस्था में रहा था, उसकी एक स्पष्ट झलक 28 मई को देश के सर्वोच्च शिखर पर देखने को मिली, जिसे देश ने राष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से ग्रहण किया।

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा 30 से अधिक उग्रावादियों को मार गिराने वाले बयान से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि ये एनकाउंटर 28 मई को ही हुए या ये पिछले 23 दिनों का आंकड़ा है। राज्य में इंटरनेट शटडाउन 3 मई से ही जारी है, और इसे 30 मई तक बढ़ा दिया गया है। ऐसे में तथ्यों की पड़ताल बेहद कठिन हो जाती है। कुकी और मैतेई समुदाय की ओर से जारी बयानों और तथ्यों को पेश करने से सही स्थिति का पता लगाना एक टेढ़ी खीर है। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से तटस्थ भूमिका के निर्वहन के बारे में कुकी, नागा ही नहीं बल्कि देशभर में सवाल उठ रहे हैं।

कुकी नागा समुदाय का मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर विश्वास पूरी तरह से उठ गया है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर महिला पहलवान खिलाड़ियों का स्थान कुकी समुदाय की महिलाओं ने ले लिया है, जो बताता है कि सेंगोल दंड संसद के भीतर प्रतिष्ठापित करने के बावजूद भारत में बहुसंख्यक आबादी अभी भी लोकतंत्र पर भरोसा रखती है, और अपने विरोध की आवाज वह देश की राजधानी के जरिये देश और विश्वभर में पहुंचाने में समर्थ है।

वहीं दूसरी तरफ अरम्बाई टेंगोल नामक मैतेई समुदाय के संगठन के बारे में तमाम आरोप लग रहे हैं। ट्राइबल यूनिटी नामक एक ट्विटर हैंडल ने अपने ट्वीट में आरोप लगाया है कि राज्य एवं राष्ट्रीय मीडिया द्वारा इस संगठन की करतूत को जाहिर नहीं किया जा रहा है। उसकी ओर से दावा किया गया है कि 3 मई से प्रदेश में हिंसा और जातीय नरसंहार को भड़काने के पीछे इसी संगठन का हाथ है। और पीछे से इसका समर्थन करने वाले लोग चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। सांसद सनाजओबा ही नहीं मुख्यमंत्री कार्यालय से अरम्बाई टेंगोल के सदस्यों के साथ एन बीरेन सिंह की तस्वीर भी इस ट्वीट में साझा की गई है।

अरम्बाई टेंगोल और मैतेई लीपन नामक दो चरमपंथी संगठनों की इसमें बड़ी भूमिका देखने में आ रही है। अरम्बाई टेंगोल को मैतेई समुदाय का बजरंग दल तक कहा जाता है। हालांकि संगाई एक्सप्रेस नामक एक मणिपुरी अखबार, जिसकी पक्षधरता मैतेई समुदाय के पक्ष में नजर आती है, ने 27 मई की अपनी खबर में लिखा है कि अरम्बई टेंगोल संगठन की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संगठन पर लगाये जा रहे आरोपों के मद्देनजर इसे भंग कर दिया गया है, और हमलों से संगठन का कोई संबंध नहीं है। इसके सदस्य अब स्वतंत्र रूप से अपनी भूमिका निभाएंगे, लेकिन भविष्य में यदि जरूरत पड़ी तो संगठन को दोबारा पुनर्जीवित किया जायेगा। 

उधर नागा छात्र संगठन तांगखुल कटामनो लॉन्ग, गौहाटी द्वारा जारी एक ट्वीट में 24 मई को नागा समुदाय की महिलाओं के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुए एक पत्र जारी कर इस घटना की कड़ी निंदा की गई है। यह खबर बताती है कि मणिपुर में लगातार परिस्थितियों को बद से बदतर किया जा रहा था।

इससे पहले द वायर के करन थापर के साथ कुकी पीपुल्स अलायन्स (केपीए) जिसके राज्य में दो विधायक हैं, और पार्टी राज्य में भाजपा सरकार के पक्ष में अपना समर्थन दी थी, के महासचिव विलियम ललांग हंगशिंग ने 3 दिन पहले साफ़-साफ़ बताया था कि भाजपा विधायक और मंत्री, लेतपो होकिप (कुकी) के घर में जब लूटपाट और आगजनी की घटना को अंजाम दिया जा रहा था, तो उन्होंने बार-बार मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को फोन कर मदद की गुहार लगाई थी। पार्टी का विधायक, मंत्री और पड़ोसी होने के बावजूद एन बीरेन सिंह ने कोई कार्रवाई नहीं की, नतीजा उनके घर को जला डाला गया। हैंगशिंग दावे के साथ अपने इंटरव्यू में कहते हैं कि यह इस बात का सबूत है कि बीरेन सिंह जानबूझकर कुकी समुदाय के दमन को अंजाम दे रहे हैं, और यही वजह है कि अब कुकी मणिपुर से अलग होने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।

कुकी समुदाय के लिए अब इंफाल में वापस लौटने की कोई स्थिति नहीं रह गई है। 16 मई के गार्डियन के लेख में अलग राज्य की ओर बढ़ते क़दमों के बारे में रिपोर्ट की गई है। इंफाल के मैती समुदाय के अलुन सिंह के शब्दों में, “यह असंभव है। वे अब हमारे पड़ोसी हर्गिज नहीं हो सकते। इस दौरान जो कुछ घटा है, उसके बाद तो हर्गिज नहीं।” जबकि चूड़ाचानपुर स्थित कुकी मोसे वर्ते के अनुसार, ”यह जनजातीय आबादी के नृजातीय सफाए की मुहिम है। ऐसे में अलग राज्य ही एकमात्र विकल्प है। अलग राज्य में ही हम अब खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते हैं।”

लेकिन जब ये रिपोर्ट लंदन के जरिये दुनियाभर के संज्ञान में आ रही थी, भारत में कर्नाटक में मिली करारी हार की यादों को मिटाने के लिए नई-नई कवायद तैयार की जा रही थी। मुख्यमंत्री की भूमिका ही यदि एक समुदाय विशेष की नजरों में संदिग्ध हो जाये तो वह समुदाय खुद को कैसे सुरक्षित महसूस कर सकता है। इंफाल घाटी से जनजातीय आबादी का पलायन लगभग पूरा हो चुका है, तो मैती समुदाय ने पर्वतीय क्षेत्रों को पूरी तरह से छोड़ दिया है। दोनों समुदायों के बीच की फाल्ट लाइन को इन 23 दिनों में कम करने के बजाय उसे इतना चौड़ा कर दिया गया है कि अब इसे भरना किसी के लिए भी संभव नहीं रह गया है।

क्या गृहमंत्री अमित शाह को इतने दिनों के बाद फुर्सत मिली है। मणिपुर राज्य की, जो कुछ दिन पहले ही असम की यात्रा पर आये थे, लेकिन वहीं से वापस दिल्ली लौट गये। सोमवार की सुबह ही नरेंद्र मोदी ने एक और वन्दे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का उद्घाटन असम के लिए किया। उनके पास भी भयानक हिंसा और रक्तपात में डूबे इस राज्य के लिए समय नहीं है। अमित शाह की ओर से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय की सिंगल बेंच द्वारा मैतेई समुदाय के अनुसूचित जनजाति के दावे पर दिए गये निर्देश को ही आधार बनाकर, सारा दोष न्यायालय पर मढ़कर बच निकलने का रास्ता खोजा गया। लेकिन पहले दौर की हिंसा और आगजनी के बाद तो राज्य एवं केंद्र सरकार के पास पूरा-पूरा मौका था। राज्य सरकार की नाकामी या पक्षपातपूर्ण रवैये के बारे में केंद्र को जानकारी न हो, यह हो ही नहीं सकता।

पिछले कुछ दिनों से मैतेई समुदाय की ओर से इंफाल घाटी में सार्वजनिक प्रदर्शन और उनकी ओर से कुकी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की मांग लगातार की जा रही थी। दूसरी तरफ सैकड़ों चर्च और घरों को ख़ाक में मिलाये जाने और खुद को एक बार फिर से जंगलों में धकेल दिए जाने, अपने बच्चों की शिक्षा एवं भविष्य की चिंता में घुल रहे समुदाय के मन में अनिष्ट की आशंका ने इस आग में घी डालने का ही काम किया है।

इसके साथ ही 1,000 से अधिक हथियार और 10,000 राउंड गोला-बारूद की लूट ने बड़े हिस्से में इस आशंका को बल दिया था कि हो न हो, एक और बड़ा नरसंहार भविष्य में देखने को मिलेगा। अधिकतर हथियार इंफाल में मैतेई समुदाय के समूह द्वारा लूटे गये थे, और इनके पीएलए जैसे उग्रवादी समूहों के हाथों में चले जाने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। ये हथियार मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कालेज, दो पुलिस स्टेशन से लूटे गये थे, जबकि कुकी ग्रुप के द्वारा आईआरबी बटालियन कैंप और चुराचानपुर पुलिस स्टेशन से हथियारों की लूट की गई थी। हालांकि इनमें से करीब आधे हथियार दोनों समुदाय से जब्त करने का दावा मणिपुर पुलिस द्वारा किया गया था, लेकिन यह घटना राज्य प्रशासन और केंद्र को साफ़-साफ़ संदेश दे रही थी। दो दिन पहले तीन शस्त्रागारों से 1000 से अधिक हथियार लूटे जा चुके हैं।

गृह मंत्री की तीन दिवसीय यात्रा होने जा रही है। 26 दिन बीत चुके हैं, लेकिन मणिपुर में शन्ति के बजाय एक बार फिर से तीखा संघर्ष शुरू हो चुका है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इस बारे में पीड़ितों की ओर से मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को मुख्य जिम्मेदार माना जा रहा है। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि ये उग्रवादी सरकार के साथ त्रिपक्षीय वार्ता में शामिल थे, जो 2008 में बनाई गई थी। लेकिन 1000 से अधिक हथियार लूटे जाने से स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है।

कुकी स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन (केएसओ) की ओर से अपने वीडियो ट्वीट में दावा किया गया है कि लंगचिंग में 1948 में स्थापित गांव को जलाकर ख़ाक कर दिया गया है।

केएसओ का कहना है कि मैतेई इसे अपना गांव बताकर झूठा प्रचार कर रहे हैं। इसमें भी अरम्बाई टेंगोल संगठन की संदिग्ध भूमिका और मुख्यमंत्री को दोषी करार दिया गया है।

https://twitter.com/ksoshillong1961/status/1662888069568266242?s=20

एक अन्य ट्वीट में बताया गया है कि एक कुकी- जो आदिवासी जम्खोथंग तौथंग जो कि डीडीयू-जीकेवाई उम्मीदवार था को मणिपुर राज्य पुलिस और अरम्बाई टेंगोल और मेतेई लीपुन ने मिलकर 27 मई 2023 को मार डाला गया। इंफाल और एन बीरेन की मणिपुर सरकार ने इसे कुकी उग्रवादी करार दिया है। और इसे “राज्य पुलिस का कुकी उग्रवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे युद्ध” के रूप में निरुपित किया जा रहा है।

डॉ लम्तिंथांग होकिप के ट्वीट में कहा गया है “जहां एक तरफ मुख्यमंत्री एन बीरेन द्वारा आतंकी मैतेई अरम्बाई टेंगोल और मेतेई लीपुन जिन्होंने राज्य के शस्त्रागार लूटे उन्हें आम नागरिक बताया जा रहा जबकि अपने लाइसेंसी बंदूक के साथ आत्मरक्षा में खड़े स्थानीय स्वंयसेवियों को कुकी आतंकी कहा जा रहा है।”

सुशांत सिंह अपने ट्वीट में लिखते हैं, “इस प्रकार एक बार फिर मणिपुर में 48 घंटे के भीतर 1,000 से ज्यादा हथियारों की लूट मणिपुर राइफल और आईआरबी से की गई है। यह तब है जब सेना प्रमुख राज्य के दौरे पर हैं, और केंद्र के स्वंय के सुरक्षा सलाहकर राज्य में मौजूद हैं। जवाबदेही नामक शब्द कभी इन्होंने सुना भी है?”

स्वतंत्र रूप से विभिन्न लोगों द्वारा मणिपुर की खबरें देश-दुनिया के सामने आ रही हैं, जो बेहद डराने वाली हैं। इनमें से एक यह भी है-

क्या गृहमंत्री अमित शाह अपने तीन दिवसीय दौरे से राज्य के संकट की मुख्य जड़ को तलाश पाने में सफल होंगे? क्या मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाकर अल्पसंख्यक कुकी, नागा समुदाय के विश्वास को फिर से बहाल करने की ओर कदम बढ़ाया जायेगा? अभी तक के हालात और घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है कि राज्य मशीनरी पूरी तरह से नाकाम और पक्षपातपूर्ण रही है। यदि मणिपुर में शांति और स्थायित्व को बहाल करना है तो उसके लिए यह पहला कदम होगा। लेकिन क्षुद्र राजनीतिक लाभ पर ही यदि ध्यान केंद्रित रहा तो यह मणिपुर सहित समूचे उत्तर-पूर्व के राज्यों की संभावित अशांति के लिए घोर अनिष्ट का संकेत है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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