सरकार और किसानों के बीच गतिरोध बरकरार, कृषि मंत्री के बातचीत के प्रस्ताव को किसानों ने बताया खोखला

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“सरकार को कोई अहंकार नहीं है….. हम खुले दिमाग से चर्चा करने के लिए तैयार हैं। जब भी उनका प्रस्ताव आएगा, हम निश्चित रूप से विचार-विमर्श करेंगे” – ये बातें कल एक प्रेस कांफ्रेंस में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कही।

लेकिन इसी प्रेस कांफ्रेंस में नरेंद्र तोमर ने एक और बात कही जो उनके उपरोक्त बात के न सिर्फ़ खिलाफ़ है बल्कि उनके तानाशाही रवैये को भी दर्शाता है। उन्होंने कहा-” आरोप लग रहे थे कि कृषि कानून अवैध हैं क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और केंद्र सरकार ये नियम नहीं बना सकती है। तो केंद्र के पास व्यापार पर कानून बनाने का अधिकार है।”

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार को किसानों को समझाया कि जो कानून बने हैं वो उनके हक में हैं और अगर कोई समस्या है तो सरकार उस पर विचार के लिए तैयार है। साथ ही कृषि मंत्री ने किसानों से प्रस्तावों पर फिर से विचार करने की अपील की, लेकिन किसान अब भी अपनी मांग पर कायम हैं।

कृषि मंत्री ने सरकार के अड़ियल रवैये को एक बार फिर जस्टीफाई करते हुए कहा कि “किसान जब भी चर्चा करना चाहें, सरकार तैयार है। पूरा देश इसका साक्षी है। स्वामीनाथन आयोग ने 2006 में एमएसपी को डेढ़ गुना करने की बात कही थी, हमने उसे भी पूरा करने की कोशिश की। अधिक उम्र के किसानों के लिए भी केंद्र सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। किसानों की सामाजिक सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया है। नया कानून, नए मौके और नई टेक्नोलॉजी लेकर आएगा।

तोमर ने कहा कि कृषि कानून में प्रावधान है कि पैन कार्ड से व्यापारी खरीदारी कर सकता है लेकिन किसानों को लगता था कि कोई भी पैन कार्ड के जरिए खरीदकर भाग जाएगा। इस आशंका के समाधान के लिए राज्य सरकार को शक्ति दी जाएगी कि वह इस प्रकार की परिस्थिति में कोई भी नियम बना सकती है।

मंडियों पर स्पष्टीकरण देते हुए कृषि मंत्री ने कहा “किसानों को डर है कि इन कानूनों से एपीएमसी की मंडियां खत्म हो जाएंगी। किसान प्राइवेट मंडी के चंगुल में फंस जाएगा। राज्य सरकार प्राइवेट मंडियों का पंजीकरण कर सकें और उनसे सेस वसूल सकें, सरकार ऐसी व्यवस्था करेगी। “

एमएसपी पर सरकार लिख कर देने को तैयार

कृषि मंत्री तोमर ने एमएसपी के मसले पर कहा है कि ” हम बार-बार एमएसपी के बारे में किसानों को आश्वासन दे चुके हैं, लेकिन अब भी किसानों को कोई शंका है तो मोदी सरकार एमएसपी पर लिखकर देने को तैयार है।”

कृषि कानूनों पर कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर कृषि मंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि  “समझौता किसान की फसल का होगा। किसान की जमीन, पट्टा या लीज पर नहीं ली जा सकेगी और न ही इसका समझौता होगा। अगर फसल तैयार करने के दौरान कोई खेत पर कोई ढांचा बनाने की जरूरत पड़ी तो बाद में ये ढांचा हटाना पड़ेगा। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में कांट्रैक्ट फार्मिंग पहले से ही हो रही है। “

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रेस कांफ्रेंस में कृषि कानूनों को किसान हितैषी बताते हुए कहा कि ” सरकार किसानों को मंडी की बेड़ियों से आजाद करना चाहती थी जिससे वे अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी को भी, अपनी कीमत पर बेच सकें। कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि अभी कोई भी कानून यह नहीं कहता कि तीन दिन बाद उपज बेचने के बाद किसान को उसकी कीमत मिलने का प्रावधान हो जाएगा, लेकिन इस कानून में यह प्रावधान सुनिश्चित किया गया है। उन्होंने कहा कि हमें लगता था कि लोग इसका फायदा उठाएंगे, किसान महंगी फसलों की ओर आकर्षित होगा, बुवाई के समय उसे मूल्य की गारंटी मिल जाएगी और किसान की भूमि को पूरी सुरक्षा देने का प्रबंध किया गया है। सरकार ने किसानों से लगातार बात की लेकिन फायदा नहीं हुआ। “

किसान जब चाहें सरकार बात चीत के लिए तैयार

कृषि मंत्री ने वार्ता नाकाम होने की पूरी जिम्मेदारी किसानों पर डालते हुए कहा “हमने किसानों की समस्याओं को लेकर उनके साथ पूरा संवाद करने की कोशिश की। कई दौर की वार्ताएं कीं। लेकिन उनकी ओर से कोई सुझाव आ ही नहीं रहा था। उनकी एक ही मांग है कि कानूनों को निरस्त कर दो। हम उनसे पूछ रहे हैं कि कानूनों में किन प्रावधानों से किसानों को समस्याएं हैं। लेकिन इस बारे में भी उन्होंने कुछ नहीं किया तो हमने ही ऐसे मुद्दे ढूंढे और उन्हें भेज दिए। जिन प्रावधानों पर किसानों को आपत्ति है सरकार उनका समाधान करने के लिए तैयार है। “

किसानों ने तोमर के बयान को बकवास करार देकर खारिज किया

किसान आंदोलन 16 वें दिन भी जारी है। कृषि मंत्री की अपील को किसान नेताओं ने खारिज करते हुए कहा कि पहले भी बहुत बार बात हो चुकी है। कानून रद्द करने से कम पर समझौते का सवाल नहीं है।

उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि “हम कृषि कानून रद्द कराना चाहते हैं। जब तक तीनों कानून रद्द नहीं होता, हमारा आंदोलन खत्म नहीं होगा। हमने सरकार से एमएसपी पर कानून बनाने को कहा था, सरकार ने वो नहीं किया। अब कोई बातचीत नहीं। पहले बहुत चर्चा हो चुकी है।”

बीकेयू (डकौंडा) के अध्यक्ष बूटा सिंह ने सरकार को चेताते हुए कहा है “हम तीन कानूनों के खिलाफ हैं। अगर प्रधानमंत्री हमारी बात नहीं मानते हैं, तो हम रेलवे ट्रैक को अवरुद्ध कर देंगे।”

 किसान संगठनों का कहना है कि सरकार कह रही है कि राज्य सरकारें कुछ सुधार कर सकती हैं। सवाल यह उठता है कि खेती में केंद्रीय कानून क्यों बनाए गए, केवल कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए। किसानों की ओर से आगे कहा गया कि सरकार की प्रस्तुति बार-बार जोर देकर कहती है कि ये कानून किसानों के लिए लाभदायक हैं, लेकिन सरकार कानूनों के विरोध के सवालों पर उत्तर देने से साफ बच रही है।

अपनी मांगों पर कायम किसानों ने कहा कि भारत सरकार ने देश के किसानों की मांग को नकारकर अपना संवेदनहीन चेहरा प्रस्तुत किया है। जाहिर है सरकार कंपनियों के हितों की सेवा कर रही है और इस ठंड के बावजूद उसे किसानों की कोई चिंता नहीं है। हमारा ये आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार ये तीनों कानून वापस नहीं ले लेती।

(जनचौक के संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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