अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग।

भारत में बहुत ज्यादा लोकतंत्र है: नीति आयोग सीईओ अमिताभ कांत

नयी दिल्ली। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ अमिताभ कांत को मौजूदा सरकार में सुधारों का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा है कि भारत में ‘कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है’ जिसके चलते यहां कड़े सुधारों को लागू कर पाना मुश्किल हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश को मुकाबले के लायक बनाने के लिये और सुधारों की जरूरत है।

वह मंगलवार को स्वराज्य पोर्टल के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आयोजित इस कार्यक्रम में कांत ने कहा कि पहली बार केंद्र ने बड़े स्तर पर सुधारों की चुनौती को स्वीकार किया है और उसने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों के सिलसिले को आगे बढ़ाया है। उनका कहना था कि अब इस काम को अगले चरण में राज्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ‘‘भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि भारत में लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही हो जाता है … आपको इन सुधारों (खनन, कोयला, श्रम, कृषि) को आगे बढ़ाने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।’’

अमिताभ कांत ने कहा कि ‘‘मौजूदा मोदी सरकार ने कड़े सुधारों को लागू करने के लिये भरपूर राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखायी है।’’ इस सिलसिले में उन्होंने चीन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अगर चीन से मुकाबला करना है तो सुधारों की प्रक्रिया को और तेज करना होगा।

केंद्र में सुधारों की गति को तेज करने के बाद अब कांत की नजर राज्यों पर है। उहोंने कहा कि अगले दौर का सुधार अब राज्यों की तरफ से होना चाहिए।

उन्होंने इसका अपने तरीके से गणित बताया। उन्होंने कहा कि ‘‘अगर 10-12 राज्य उच्च दर से वृद्धि करेंगे, तब इसका कोई कारण नहीं कि भारत उच्चदर से विकास नहीं करेगा। हमने केंद्र शासित प्रदेशों से वितरण कंपनियों के निजीकरण के लिये कहा है। वितरण कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए और सस्ती बिजली उपलब्ध करानी चाहिए।’’

इस समय जबकि किसान केंद्र सरकार के सिर पर चढ़े हुए हैं और उससे निकलने का रास्ता केंद्र को नहीं सूझ रहा है तब भी अमिताभ कांत अपने सुधारों के एजेंडे से पीछे नहीं हटते। कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जुड़े सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह समझना जरूरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था बनी रहेगी, मंडियों में जैसे काम होता है, होता रहेगा..  किसानों के पास अपनी रूचि के हिसाब से अपनी उपज बेचने का विकल्प होना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें लाभ होगा।

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